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Friday, November 14, 2008

संगीत की अमृत धारा और ग़लती के बाँध

दो सप्ताह से अस्वस्थता के कारण साप्ताहिकी नहीं लिख पाई। वैसे रेडियो में भी केवल सवेरे का ही प्रसारण सुन पाती थी। ख़ैर अब सब ठीक है, और आज साप्ताहिकी की जगह हम कुछ बात करते है केवल सवेरे के प्रसारण की…

आज भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में एक हादसा (इस स्थिति को हादसा ही कहा जा सकता है) हुआ। एक युगल गीत सुनवाया गया सुमन कल्याणपुर और मुकेश की आवाज़ों में -

अखियों का नूर है तू अखियों से दूर है तू
फिर भी पुकारे चले जाएगें तू आए न आए

बहुत ही लोकप्रिय गीत है और यही नहीं इस फिल्म के सभी गीत लोकप्रिय है और फ़िल्म भी बहुत लोकप्रिय हुई - जौहर महमूद इन गोआ जो गोआ मुक्ति आन्दोलन पर आधारित थी। बरसों से फ़रमाइशी और ग़ैर फ़रमाइशी कार्यक्रम में विविध भारती समेत कई स्टेशनों से इस फ़िल्म के गीत सुनते आए है पर पिछले एक-दो साल से विविध भारती पर इस फ़िल्म के गीत सुनवाते समय फ़िल्म का नाम बताया जा रहा है - गोआ। यह ग़लती क्यों और कैसे हो रही है यह तो समझ में नहीं आ रहा पर यह ग़लती छोटे-बड़े नए-पुराने सभी उदघोषक कर रहे है। कारण चाहे जो भी हो पर विविध भारती जैसे प्रतिष्ठित केन्द्र से इस तरह की ग़लती अक्षम्य अपराध है क्योंकि इस तरह की (ग़लत) उदघोषणा से फ़िल्म का इतिहास ही बदल रहा है। हालांकि जो पुराने उदघोषक है वे अच्छी तरह से जानते होगें (जानना चाहिए) कि फ़िल्म का नाम जौहर महमूद इन गोआ है, गोआ नहीं फिर भी ऐसी क्या मजबूरी है जो केवल गोआ नाम बताया जा रहा है। इस तरह से आने वाली पीढी तो इस फ़िल्म का नाम गोआ ही समझेगी। हमारा अनुरोध है कि कारणों की जाँच कर शीघ्र ही ग़लती को सुधारा जाए।

7:30 बजे संगीत सरिता में इन दिनों चल रही है श्रृंखला - रागों में भक्ति संगीत की धारा जिसे प्रस्तुत कर रहे है गायक और संगीतकार शेखर सेन। इस श्रृंखला को तैयार किया है छाया (गांगुली) जी ने और पहली बार 1992 में इसका प्रसारण किया गया था। वास्तव में यह श्रंखला इतनी अच्छी है कि इसे दुबारा सुनने से भी पहली बार सुनने जैसा आनन्द आ रहा है। इसमें विभिन्न रागों पर आधारित पहले फ़िल्मों से लिए गए भक्ति गीत सुनवाए गए आजकल ग़ैर फ़िल्मी भक्ति सुनवाए जा रहे है। हर दिन एक राग के बारे में बताया जा रहा है। फिर इस राग पर भक्ति गीत और गायन, वादन सुनवाया जा रहा है। राग सिन्धु भैरवी से श्रृंखला की शुरूवात की गई जिसमें मुकेश का गाया भक्ति गीत सुनवाया गया -

जोत से जोत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो

इसके बाद इसी राग पर निखिल बैनर्जी का सितार वादन सुनवाया गया। सुनवाए गए विभिन्न राग है -
राग चारूकेशी - गीत - श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम (फ़िल्म गीत गाता चल) ,

कम प्रचलित राग कुकुभ भिलावल में पारम्परिक आरती ॐ जय जगदीश हरे (फ़िल्म पूरब और पश्चिम) इसी राग को सुना सरोद पर वादक कलाकार बुद्ध देव दास गुप्ता,

राग यमन कल्याण - गीत - मन रे तू काहे न धीर धरे - फिर इस राग में गायन और वादन सुना,

ग़ैर फ़िल्मी भक्ति गीतों में लोकप्रिय भक्ति गीत सुने -

लता की आवाज़ में - ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पैजनिया

आज सुनवाए गए राग भैरवी और मिश्र भैरवी, कलाकार थे - ग़ैर फ़िल्मी भक्ति रचनाओं के शीर्ष कलाकार हरिओम शरण

कुछ समय से पत्रावली में निरन्तर श्रोता फ़िल्मी भक्ति गीतों का कार्यक्रम अर्पण, बन्द किए जाने की शिकायत कर रहे थे। यह कार्यक्रम विविध भारती पर लम्बे समय से प्रसारित हो रहा था, पहले भी ऐसा ही कार्यक्रम सान्ध्य गीत शीर्षक से प्रसारित होता था, इसमें फ़िल्मी भक्ति गीत सुनवाए जाते थे। यह श्रृंखला कुछ हद तक अर्पण की भरपाई करेगी।

शुक्रिया छाया जी इस अनमोल श्रृंखला को तैयार करने के लिए और बहुत-बहुत धन्यवाद महेन्द्र मोदी जी !

4 comments:

RADHIKA said...

संगीत सरिता एक ऐसा कार्यक्रम हैं जिसके शास्त्रीय संगीत के प्रति योगदान के लिए उसकी जितनी तारीफ की जाए कम हैं ,मैं इसे हमेशा सुनती हूँ ,काफी कुछ सीखता हैं हैं यह संगीत प्रेमियों को .
छाया जी को मेरा धन्यवाद .

Yunus Khan said...

अब कैसी हैं आप । हमने आपको मिस किया जी । और हां । जौहर मेहमूद इन गोआ का नाम रिकॉर्डों पर गोआ ही लिखा है । इसलिए गोआ पढ़ा जाता है । जब जिसकी मरजी होती है वो जौहर मेहमूद इन गोआ कह देता है ।

annapurna said...

शुक्रिया राधिका जी !

युनूस जी अब मैं ठीक हूँ। मैनें भी आप सबको बहुत मिस किया।

जौहर महमूद इन गोआ सिर्फ़ एक फ़िल्म ही नहीं है इतिहास के महत्वपूर्ण पलों की साक्षी है। वैसे कोई भी फ़िल्म हो या गानों से जुड़े अन्य विवरण, सही बताए जाए तो ही ठीक रहता है न ! कंपनियों के नए कर्ता-धर्ता तो ग़लतियाँ करते ही है पर विविध भारती सुधार करती रहे तो ऐतिहासिक ग़लतियाँ नहीं होगी।

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्रीमती अन्नपूर्णाजी,
आपको पढ कर एक लम्बे अरसे के बाद आनंद आया । वैसे मैं टिपणी लिख़नेमें थोडा देरीसे मूड बना सका । मूझे पूरा याद है, कि इस फिल्म के रेकोर्ड बाझारमें आने के बाद इस फिल्म की रिलीझ के पहेले इसकानाम गोवा से बदल कर जोहर मेहमूद इन गोवा कर दिया गया था, इस लिये रेडियोवालो की कोई गलती नहीं है, और एक बात और भी है जो युनूसजी ने अफ़िसका मामला होते हुए नहीं बताई है, पर मेरी बिन सत्तावार माहिती के अनुसार कभी कभी कार्यक्रम की पूरी स्क्रीप्ट उदधोषक को तैयार कार्यक्रम निर्माता द्वारा दी जाती है, जिसमें गलत्ती पा कर भी उद्दधोषक अपने हिसाबसे परिवर्तन नहीं कर सकते है ।

पियुष महेता
सुरत्

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