इस सप्ताह एक ख़ास दिन था - बकरीद, जिसकी झलक सुबह के प्रसारण में मिली।
सप्ताह भर सुबह पहले प्रसारण की शुरूवात परम्परा के अनुसार संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि सुनवाई गई। यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुआ। क्षेत्रीय केंद्र से अभिवादन अच्छा लगता है, तेलुगु में जो कहा जाता है वह मैं यहाँ लिख रही हूँ जिसे आसानी से समझा जा सकता है - श्रोतलुकु नमोः सुमान्जलि ! शुभोदयम !! इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ जिसकी शुरूवात प्रायोजकों के एकाध विज्ञापन से होती रही जिसके बाद पहले कार्यक्रम वन्दनवार की शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, फिर सुनाया गया चिंतन।
चिंतन में इस बार शामिल रहे कथन - आचार्य चाणक्य का कथन कि विद्वानों में अनपढ तिरस्कृत होते है जैसे हंसों में बगुला, इसीलिए जो माता-पिता अपनी संतान को शिक्षा के लिए प्रेरित नहीं करते वे संतान के शत्रु होते है। पंचतंत्र में आचार्य विष्णु शर्मा ने कहा कि कटु वचन बोलना विष फैलाना है। जवाहर लाल नेहरू का कथन कि शान्ति और सौहार्द की स्थिति अच्छी होती है। स्वामी स्वरूपानन्द का कथन कि भक्ति में शक्ति असीम होती है। शनिवार को बच्चो के लिए जवाहर लाल नेहरू के विचार बताए गए कि बच्चो की आँखों में देश का भविष्य होता है इसीलिए बच्चो के प्रति जागरूक रहकर उन्हें अच्छे संस्कार देने चाहिए। इस दिन बकरीद थी, क्या ही अच्छा होता अगर बलिदान, त्याग संबंधी किसी महर्षि का विचार बताया जाता। आज बताया गया स्वामी विवेकानन्द का कथन कि अग्नि अपने आप में न अच्छी होती है न बुरी उसी तरह होती है हमारी मानसिक स्थिति भी।
इस बार भी प्रस्तुति संकलित करने योग्य रही।
वन्दनवार में भक्ति गीतों में विविधता रही। शुक्रवार को शुरूवात में एक पुराना भजन नए रूप में सुनवाया गया -
श्री रामचन्द्र कृपालु भाजमन
इसे गायिका (लताजी) की आवाज़ में हम सुनते रहे पर इस बार गायक और साथियों की आवाज़ में सुनना अच्छा लगा।
साकार रूप के भक्ति गीत और पुराने लोकप्रिय भजन इस सप्ताह नहीं सुनवाए गए। निराकार रूप के भक्ति गीत शामिल रहे - मैं एक दिया हूँ तू रोशनी है
भक्तों के भक्ति गीत जैसे -
हे मनमोहन हे चतुरशान तुझको मेरा शत शत प्रणाम
प्रभुजी मेरे अवगुन चित्त न धरो शास्त्रीय पद्धति में ढले भक्ति गीत - सुभान तेरी कुदरत के क़ुर्बान
नया भजन भी सुनवाया गया -
राधा कहे कृष्ण कृष्ण सीता कहे राम राम
कृष्ण हो या राम दोनों है प्रथम नाम
हालांकि भाव के अनुसार यह अनूप जलोटा के लोकप्रिय भजन की नकल ही लगी।
कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, लोकप्रिय देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे -
हम अपने पथ पर, मिले-जुले सब धर्मों से
तेरी उतारे आरती, जय जननि जय भारती
चलना है नई डगर पर
सबसे प्यारा देश हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
और अल्ताफ़ हुसैन के संगीत से सजी एन के सिन्हा की ये रचना जिसे सप्ताह में दो बार सुनवाया गया -
ये भूमि हमारी वीरों की हम हिन्दों की सन्तान है
हम भारत माँ की शान है
कम सुना जाने वाला देश गान भी सुनवाया गया -
हर तरफ़ अँधेरा है दीप तू जलाता चल रास्ते चमक उठे रोशनी लुटाता चल
नया देश गान भी शामिल रहा -
भारत एक दिया है, हम सब इस दिए की बातियाँ
यही बातियाँ धर्म-कर्म है और देश की जातियां
इस तरह इस सप्ताह देशगान अच्छे रहे पर एक बात खटकती रही कि सभी गीतों के लिए विवरण नहीं बताया गया।
6:30 बजे से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।
7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के दूसरे भाग से हम जुड़े। सप्ताह में अधिकतर लोकप्रिय गीत ही सुनवाए गए। मंगलवार को लगा कि सदाबहार नग़में कार्यक्रम सुन रहे है। वक़्त, सावन की घटा, मेरे लाल, जौहर महमूद इन गोवा (गोवा) फ़िल्मों के हमेशा सुने जाने वाले गीत और यह गीत -
नैन मिले चैन कहाँ दिल है वहीं तू है जहाँ
अन्य दिनों में भी ऐसे गीत शामिल रहे - रविवार को फ़िल्म वीर दुर्गा दास से - थाने काजलिया बना लूँ और सोमवार को बरसात की रात फ़िल्म का शीर्षक गीत। याद नहीं आ रहा कि ये गीत कब भुलाए-बिसराए गए।
एकाध ऐसा गीत भी शामिल रहा जो कम सुनवाया जाता है पर लोकप्रिय इतना है कि भूला-बिसरा गीत नहीं लगता जैसे शुक्रवार को सुनवाय गया मदर इंडिया फ़िल्म का गीत -
मतवाले पिया डोले जिया
आज सुनवाया गया हिमालय की गोद में फ़िल्म का गीत - कंकरिया मार के जगाया, इसी तरह नया दौर फ़िल्म का गीत।
कुछ कम सुने, भूले-बिसरे गीतों को सुनना अच्छा लगा। भूली-बिसरी आवाज़ों में अनमोल घड़ी का गीत शमशाद बेगम और ज़ोहरा बाई अम्बाले वाली की आवाज़ों में -
उड़न खटोले पे उड़ जाऊँ तेरे हाथ न आऊँ
गीता दत्त का फ़िल्म 12 ओ क्लाक का गीत - कैसा जादू बालम तूने डाला
इसके अलावा कुछ और गीत -
मैं राही भटकने वाला हूँ कोई क्या जाने मतवाला हूँ
शनिवार को बकरीद की शुभकामना दी और सुनवाया किशोर कुमार का गाया हम सब उस्ताद है फ़िल्म का यह गीत - प्यार बाटते चलो
एकाध वाकई भूला बिसरा गीत सुना -
दिखा दो जलवा हमें एक बार थोड़ा सा
तेरा दिल है मेरा,
जबसे हमने दिल बदले है सारा जग है बदला
लालारूख़ और हंगामा फ़िल्म से भी भूले-बिसरे गीत शामिल थे।
हर दिन कार्यक्रम का समापन कुंदनलाल सहगल के गीत से होता रहा।
इस कार्यक्रम में कुछ सामान्य जानकारी भी दी गई जैसे महबूब प्रोडक्शनस की फ़िल्म मदर इंडिया में 12 गाने है। कुछ फिल्मों के रिलीज का वर्ष और बैनर बताया गया।
7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला आरंभ हुई - शास्त्रीय संगीत में अष्टपदी जिसमें आमंत्रित कलाकार है ख़्यात गायिका कल्पना जोगलकर। बातचीत कर रही है निम्मी (मिश्रा) जी। शुरूवात में ही बताया गया कि 19वी सदीसे ग्वालियर घराने से अष्टपदी आरंभ हुई। इससे शास्त्रीय संगीत अधिक सुलभता से अधिक लोगों तक पहुँचने लगा। ख्यात कवि जयदेव जी की रचना गीत-गोविन्द से अष्टपदी की शुरूवात हुई। विभिन्न रागों में अष्टपदी सुनवाई गई। इन रागों का पहले चलन बताया गया फिर बंदिशें भी सुनवाई गई जिसमें हारमोनियम पर संगत की चैतन्य कुंटे जी और तबले पर संगत की ओंकार गुलपाणी जी ने। हर दिन अलग-अलग रागों में अष्टपदी में पहले बंदिशे गाकर सुनवाई गई फिर जाने-माने कलाकारों की गई अष्टपदी सुनवाई गई। इन दोनों ही रागों का चलन बताया जाता रहा। राग मियाँ की मल्हार, देस, पूर्वी, झिंझोटी, बहार, वृन्दावनी सारंग, कामोद सुनवाए गए। जितेन्द्र अभिषेकी, पंडित कृष्ण राव शंकर पंडित, पंडित बाला साहेब का गायन सुनवाया गया। पूरा कार्यक्रम साहित्य और शास्त्रीय संगीत को समर्पित रहा इसीलिए सप्ताह भर कोई फिल्मी गीत नहीं सुनवाया गया। इस श्रृंखला की प्रस्तुति कांचन (प्रकाश संगीत) जी की है जिसमें सहयोग दिया वसुन्धरा अय्यर ने और तकनीकी सहयोग है विनायक तलवलकर का।
7:45 को त्रिवेणी में शुक्रवार को बताया गया विचार था - जीवन में सावधान रहना चाहिए, थोड़ी सी असावधानी से भी भारी नुकसान हो सकता है। सुनवाया गया गीत शिक्षा फ़िल्म से -
तेरी छोटी सी एक भूल ने सारा गुलशन जला दिया
इसके साथ मेरा नाम जोकर का ऐ भाई देख के चलो और चलती का नाम गाड़ी का बाबू समझो इशारे, पो पो गाना भी शामिल था।
शनिवार को बकरीद का रंग था, विचार था - ज़मीन की ख़ातिर जंग में दुनिया में अशान्ति फैली है। ताजमहल के इस गीत से शुरूवात की -
तेरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यों है
फिर सुनवाया गया - इंसान का इंसान से हो भाईचारा
रविवार का विषय था - लड़का और लड़की में अंतर। आलेख अच्छा था। गीत भी, ख़ासकर यह गीत -
गुड़िया हमसे रूठी रहोगी कब तक न हंसोगी
सोमवार का विचार था - रिश्तों का आधार दिखावा होने से कई बार ये डगमगाने लगते है। आलेख भी अच्छा था और गाने भी अच्छे चुने गए -
ज़िन्दगी इम्तेहान लेती है
और जैसा कि अक्सर होता है, सप्ताह में भूले-बिसरे गीत में सुनवाए गए गीतों में से एक गीत चुन लिया जाता है। इस दिन शामिल किया यह गीत - प्यार बाँटते चलो
मंगलवार का विचार था - जीवन में फूलों के साथ काँटे भी है। पहला गीत अच्छा लगा -
तेरे फूलों से भी प्यार तेरे काँटों से भी प्यार
उसके बाद गाइड का गीत सुना पर अंत में अनोखी रात का यह गीत विषय के साथ नहीं जँचा -
मेरी बेरी के बेर मत तोड़ों कोई काँटा चुभ जाएगा
शुरू से आलेख की जो ऊँचाई बनती आई थी वो अंत में गिर गई।
बुधवार का विचार सुन-सुन कर थक गए - सबके लिए जीवन की परिभाषा अलग-अलग है और गीत भी वही -
ज़िन्दगी है खेल कोई पास कोई फेल
और आज का विचार था - कटुवचन न बोलो। आलेख अच्छा था पर गीतों के चुनाव में असावधानी हो गई, दोस्ती के गीत ही हावी रहे -
मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया सुना है के तू बेवफ़ा हो गया
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
शायद अन्य रिश्तों पर गीत कम है।
इस तरह इस सप्ताह भी हर दिन की शुरूवात के लिए अच्छे प्रेरणादायी विचार रहे।
इस समय के प्रसारण में दो ही कार्यक्रम प्रायोजित रहे - भूले-बिसरे गीत और त्रिवेणी और दोनों का एक ही प्रायोजक है जिसके विज्ञापन भी प्रसारित हुए। संगीत सरिता कार्यक्रम को भी कोई संगीत कंपनी प्रायोजित कर सकती है।
त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।
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