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Thursday, December 31, 2009

नये साल में नहीं सुनाई देगा वर्ल्डस्पेस का सुरीलापन....

मेरे शहर के सांध्य दैनिक प्रभात-किरण में कल जब ये ख़बर पढ़ी कि वर्ल्डस्पेस सैटेलाइट रेडियो बंद हो रहा है तो मन भारी हो गया.आर्थिक संकटों से जूझ रही पूरी दुनिया के असर की गाज आख़िर वर्ल्डस्पेस पर भी गिर ही गई.एक शानदार सिलसिले के बंद हो जाने की ये ख़बर आपके साथ बाँटते हुए मन बड़ा दु:खी है....



बीतते जा रहे २००९ ने जाते जाते संगीतप्रेमियों को आख़िर वह मनहूस ख़बर सुना ही दी है. एक ईमेल के ज़रिये वर्ल्डस्पेस सैटेलाइट रेडियो ने अपनी भारतीय अनुशंगी इकाई को बंद करने की घोषणा कर दी है. सैटेलाइट के ज़रिये वर्ल्डस्पेस ने जिस ख़ूबसूरती से सुरीलापन परोसा था वह बेजोड़ ही नहीं था रोमांचकारी भी था. भारतीय शास्त्रीय संगीत,ग़ज़ल,चित्रपट संगीत के अलावा गुजराती,बांग्ला,मराठी,पंजाबी और तमिल भाषाओं में इसके प्रसारणों ने एक लम्हा तो हमारी देसी प्रसारण संस्थाओं को घबराहट दे ही दी थी. बेहतरीन क्वालिटी का डिजीटल प्रसारण, फ़िज़ूल की उदघोषणाओं से परहेज़,और दुर्लभ रचनाओं का संकलन वर्ल्डस्पेस को अन्य रेडियो प्रसारणों से अलग करते थे. वर्ल्डस्पेस ने अपने आपको आर्थिक रूप से स्वतंत्र रखने के लिये इश्तेहारों के बजाय श्रोताओं के सदस्यता शुल्क पर ज़्यादा ऐतबार किया. उसे हाथों हाथ लिया भी गया लेकिन लगता है वैश्विक मंदी और एक जगह जाकर रूक सी गई उसकी सदस्यता ने उसके वजूद को मुश्किल में डाल ही दिया. वैसे वर्ल्डस्पेस के बंद होने की ख़बर पिछले एक बरस से आ रही थी लेकिन अब यह एक सचाई है कि वर्ल्डस्पेस बंद हो रहा है. इस ख़बर ने संगीत के उन श्रोताओं को निश्चित ही दु:खी कर दिया है जो जुनूनी कहे जा सकते हैं.

इसमें की शक़ नहीं कि संगीतप्रेमियों को सीडी,इंटरनेट और आकाशवाणी और विविध भारती का आसरा तो है ही और सुनने वाला तो कैसे भी अपनी प्यास बुझा ही लेगा लेकिन वर्ल्डस्पेस ने जिस उत्कष्टता से अपनी महफ़िलें सजाईं थीं वह अब शायद ही सुनने को मिले. कुमार गंधर्व,अमीर ख़ाँ,गिरिजा देवी,सिध्देश्वरी देवी,बेगम अख़्तर,प्रभा अत्रे पर किये गये कार्यक्रम तो श्रोताओं को भुलाए नहीं भुलेंगे.वर्ल्डस्पेस की सबसे बड़ी ख़ासियत यह रही कि उसने प्रसारणकर्ताओं की अपनी टीम एकदम नई आवाज़ों को शुमार किया और भाषा,कंटेट और प्रसारण क्वालिटी के ख़ालिस नया अंदाज़ गढ़ा. रागों की जानकारी देने और शास्त्रीय संगीत की ओर नये श्रोताओं को लाने के लिये राग-रागिनियों पर आधारित गीतों का प्रसारण किया. अपने उर्दू चैनल फ़लक पर शायरों के साथ तीन से चार घंटों के इंटरव्यू प्रसारित किये. इनमें मुनव्वर राना का इंटरव्यू तो अविस्मरणीय था. प्रसारणकर्ताओं की फ़ेहरिस्त में भी वर्ल्डस्पेस ने माणिक प्रेमचंद जैसे फ़िल्म संगीत के गूढ़ ज्ञाता को अपने साथ जोड़ा. वर्ल्डस्पेस पर सीएनएन और बीबीसी सुनना एक अदभुत अनुभव होता था. मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले को जिस तरह से बीबीसी के संवाददाताओं ने कवर किया था वह तो अपने आप में नायाब था ही लेकिन स्पष्ट आवाज़ के साथ बीबीसी को अपने घरों में बजते सुनना किसी करिश्मे से कम नहीं था वरना मीडियम वेव और शार्टवेव पर बीबीसी को खरखराहट के साथ सुनने में सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है.

वर्ल्डस्पेस ने एक और ख़ास आदत से भारतीय श्रोताओं को रूबरू करवाया. और वह थी संगीत को पैसा देकर सुनने की आदत डालना.कई लोगों को याद होगा कि हम भारतीय लोग किसी ज़माने में रेडियो की लायसेंस फ़ीस भरने पोस्ट-ऑफ़िस जाया करते थे.धीर धीरे वह फ़ोकट का माल हो गया. वैसे भी हम संगीत और नाटक सुनने/देखने का काम मुफ़्त में करने के लिये कुख्यात हैं. वर्ल्डस्पेस ने उस मूर्खता को सुधारा. कभी भी कोई भी श्रोता बिना सदस्यता शुल्क दिये इस सैटेलाइट रेडियो के प्रसारण नहीं सुन सकता था. बहरहाल वर्ल्डस्पेस विदा हो रहे २००९ के साथ विदा ले रहा है लेकिन उसने सुननेवालों को जो सुकून,तसल्ली और परमानंद दिया है वह कई बरसों तक याद किया जाता रहेगा....

8 comments:

Udan Tashtari said...

ये तो अच्छी खबर नहीं...


मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.


नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

रवि रतलामी said...

वाकई दुखद खबर है, परंतु कुछ कारण तो लगता है वर्ल्ड स्पेस के कुप्रबंधन का भी लगता है. मैंने इसकी सेवा में यह पाया था कि हिन्दी गानों का इनका संग्रह बहुत ही कम था और बारंबार एक जैसे एलबम बजाते रहते थे. रेडियो झंकार से तो छः महीनों में ही ऊब हो गई थी. मोक्ष जैसे शानदार संगीत चैनल मोनो साउंड में बजाते थे!
जो भी हो, सेवा कुल मिलाकर अच्छी और विकल्पहीन थी, इसका बंद होना अखरेगा ही...

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

संवाद के किसी भी स्रोत का बन्द होना दु:खद होता है।

Yunus Khan said...

अफसोसनाक ख़बर । वर्ल्‍डस्‍पेस की मार्केटिंग जबरदस्‍त थी । क्‍वालिटी शानदार । लेकिन एक ही समस्‍या थी गानों की विविधता की कमी ।

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

रेडियो फरिस्ता के पहेले एक रेडियो ख़नक नाम का चेनल पूराने हिन्दी गानो का इस मंच पर आता था, उसमें कई जानेमाने रेडियो प्रसारको, जिसमें अमीन सायानी साहब भी शामिल थे, की बेहतरीन आवाझोंमें कोई कोई गानो के बारेमें मझेदार टिपणीयाँ परोसी जाती थी । शुरूमें यह मंच अपने प्रचार के लिये मूफ़्त था, बादमें दो अलग अलग चेनल्स-समूहके हरेक के लिये 300/-रूपये का सालाना या शायद अर्ध-वार्षिक शुल्क रख़ा गया था । वहाँ तक कोई दिक्कत नहीं थी पर दुनिया के हर कोनेमें पहोंचने के लिये स्थानिय हिस्सेदारी जैसे जैसे बढाते गये, शुल्क सीधा 1800/- रूपये का कर दिया गया और मेरे जैसे सरहद पर खड़े श्रोता लोगो को उस मंच से अलग होना पड़ा क्यों की बढते हुए हर चेनल्स दुनिया के हर कोने के वहाँ स्थित सभी श्रोता लोगोको पसंद नहीं आयेगे । वे सिर्फ़ विस्थापीतों को ही अपने निज़ी एक दो भाषा के या संगीत के पसंद आयेगे । मेस्ट्रो चेनल पर पाश्च्यात्य वाद्यसंगीत सुनने का मज़ा कुछ और ही था । अन्य संजयजी और युनूसजी ने जो कहा है उन से मेरी राय मिलती है । विविध भारतीने श्री मनोहरी सिंह जैसे महान सेक्सोफोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक को मुलाकात करके सुनवाया है पर महान पियानो और पियानो एकोर्डियन वादककी मुलाकात कभी प्रस्तूत नहीं की या करेंगे, जब कि मेरे इस मंच के श्रोता रहे कुछ मित्रोने मूझे बताया था कि रेडियो फरिस्ता पर इन दोनों को आमंत्रीत किया गया था, अलग अलग ही । क्या विविध भारती आनेवाले नये सालमें मेरा विश्वास गलत ठहराकर उनको बुलायेगा ? यह विविध भारती की और से श्रोताओं को अनमोल भेट होगी ।
सब को मुबारक नया साल ।
पियुष महेता

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

पियानो एकोर्डियन वादक का नाम 'एनोक डेनियेल्स' आप उपर की मेरी टिपणी में शामिल करके पढीये ।
पियुष महेता ।

sanjay patel said...

एक और बात यूनुस भाई...विविधता के अलावा स्थानीय डीलर की बेरूख़ी भी थी जो वर्ल्डस्पेस के विस्तार में बाधक बनीं. मैंने तक़रीबन छह बरस पहले सदस्यता ली और उसके बाद कम से कम दस नये नामों के संदर्भ दिये जिसमें से एक को भी अटैण्ड नहीं किया गया...और आख़िर में वही बात कि विस्तार में हाहाकार....नाहक ही चैनल्स पर चैनल्स खोले गए...उतना संकलन और उतना ही स्टाफ़....सब समीकरण गड़बड़ा गए....किसी ज़माने में ऐसी दिक्कत विविध भारती के सामने भी आई थी. विविध भारती को चाहिये कि अपनी सेवा को एफ़एम पर ही चौबीस घंटे की कर दे...मज़ा आ जाए....यूनुस भाई विविध भारती के नवागत केन्द्र निदेशक राजेश रेड्डी तक रेडियोनामा की बात पहुँचाइये न....क्योंकि अभी राष्ट्रीय प्रसारण सेवा में जो विविध भारती का दिन का प्रसारण पुर्नप्रसारित किया जाता है वह स्पष्ट नहीं सुनाई देता....

समयचक्र said...

नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाये.

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