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Saturday, January 30, 2010

विविध भारती कार्यक्रमोंमें हाल किये गये परिवर्तन राष्ट्रीय और सुरत के स्थानिक

विविध भारतीके कार्यक्रमोंमें 1 जनवरीसे परिवर्तन किये गये है वो ज्यादातर तो समय के साथ श्रोताओं की मांग के अनुसार है और कुछ पुराने कार्यक्रमों की वापसी है । हिट सुपर हिट कार्यक्रम जैसे अन्नपूर्णाजीने बताया था, आज के फनकार कार्यक्रम का थोड़ा सा बदला हुआ स्वरूप है, जिसमें ज्यादा पुराने कलाकारों को स्थान शायद नहीं है । पर जो श्रोता अनुरंजनी के समय निजी चेनल्स के प्रति मूड़ जाते थे उनको पकड के रख़ने की कोशिश है । हा, अनुरन्जनी बंद होने के कारण कई श्रोतालोगो को आपत्ती भी हो सकती है, जिन लोगोने शाम के 6.30 के इस कार्यक्रम के समय को ख़त लिख़ लिख़ कर बदलवाया था । आजके फनकार भी ज्यादा तर पूरानी किस्तें है या कहीं थोडे से पुन:सम्पादीत है । लगता है कि आज के फनकार और एक ही फिल्म से की समय समय पर अदलाबदली होती रहेगी ।
बाईस्कोप की बातें अब पिटारेके अंदरके छोटे पिटारे से निकल कर फ़िरसे बड़े पिटारे का साप्ताहीक हिस्सा बन गया है । पर सब जानते है, कि ये सब किस्तें श्री लोकेन्द्र शर्माजी की निवृती के पहेले के ही है, तो इसमें मेरी राय इसे सम्पूर्ण रूपसे गलत बताना नहीं है, पर इस कार्यक्रम के निर्माण विभागको फिरसे गठीत करने की जरूरत है और पूरानी पर इस कार्यक्रम के लिये नयी फिल्मों को लेकर नयी किस्ते तैयार करने की शीघ्र आवस्यक्ता है और ऐसा अगर नहीं किया गया तो इस कार्यक्रम की अवधी एक साल से ज्यादा नहीं होगी ऐसा लगता है ।
पूरी फिल्मी धूनों के अलग कार्यक्रमकी कमी बार बार लिख़ने पर भी पूरी नहीं हो रह्री है, जहाँ तक विविध भारतीके रेडियोके एफ एम और मिडीयम वेव नेटवर्क प्रसारण का सवाल है, यह बात अख़रती है और निराशा पेदा कर रही है । और आज कल अंतरालमें तथा डीटीएच पर शाम करीब 6.08 पर होने वाले प्रसारण का सवाल है तो सिर्फ वाय एस मूल्की की एकोर्डियन पर मेग्निफीसन्ट मेलोडीझ और वी बालसारा की पियानो-एकोर्डियन और युनिवोक्ष पर प्रस्तूत एलपीझ ही बजती रहती है । या वान शिप्ले की उनकी सक्रियता के अंतिम दौर की एपपी या कभी ब्रियान सिलाझ की पियानो पर सीडी पर ही बात पूरी हो जाती है । एनोक डेनिलेल्सके पियानो-एकोर्डियन तथा वाद्यवृन्द को कुछ गिनेचुने अपवाद को छोड कर बजाया ही नहीं जाता, करीब 8-10 महिनों से \
रात्री 7.45 के तथा सुबह 9.30 के किसी भी प्रसारण को क्रमानूसार दूसरे दिन 9.15 पर और रात्री 9.30 पर पुन: प्रसारण कि आवश्यक्ता ज्यादातर स्थानिय विविध भारती के विज्ञापन प्रसारण सेवा के केन्दों के तेढेपन के कारण ही है । जैसे विविध भारतीका सुरत केन्द्र सुबह 10 के बजाय 9.30 पर ही अपना प्रसारण स्थानिय कर देता है, जिसका कारण यह बताया जाता है, कि उस समय स्थानिय रोज़ाना फोन इन कार्यक्रम प्राईम टाईममें रख़ने से विज्ञापन कार ज्यादा मिलते है , जब कि हक़ीकत यह है कि इनमें से ज्यादातर विज्ञापन या एक या दो प्राजोजित कार्यक्रम सरकारी विभागो के ही होते है । और यह भी सुबह 11 बजे सोमवार से शुक्रवार तक प्रसारण एक घंटे के लिये बंध करके किया जाता है ।
यहा सुरतमें पहेले फोन-इन कार्यक्रम सुबह 9.15 से 10 बजे के अलावा 10.05 से 11.00 बजे तक होते थे, उनको बदल कर 10.05 से 10.30 तक पहेले से ही मिले एसएमएस आधारित फरमाईशे प्रसारित कि जाती है । जो राजस्व पानेका एक नया ज़रिया है । पर उसके बाद सोमवार से गुरूवार महिलाओं केर लिये विशेष कार्यक्रम होते है जिनका स्वरूप प्राईमरी चेनल्स पर आनेवाले माहिलाओं के कार्यक्रमों जैसा ही होता है, बिचमें बजने वाले कुछ फिल्मी गीतों को छोड़ कर । इसमें समाजसेवी महिलालोगोकी मुलाक़ात की बात होती है वहाँ तक तो ठीक है पर व्यवसायी महिलालोगो को बुलाकर उनके साहस के नाम और उनके पूरे नहीं तो पूरे के नज़दीक पते भी प्रसारित होते है, तो यह तो कैसी अफलातून सुविधा हुई, कि पुरस्कार पाओ और अपने व्यवसाय का भी प्रचार करो ! एक एक कार्यक्रम गुजराती वार्ताकार और कविलोगो को दिये गये है अपनी रचनाएं प्रस्तूत करने के लिये, पर यह रचनाएं तरोताझा होती है या नहीं वह तो बहोत बहोत सहित्य पढने वाले ही बता सकते है, जो मैं नहीं हूँ ।
अभी नवसारीमें गुजराती साहित्य परिसद का अधिवेसन पिछले माह को हुआ था तो उसकी गतिविधी को लेकर उनके संचालकोकी कई मुलाकाते प्रसारित कि गयी । जो वास्तवमें प्राईमरी चेनल्स के लिये ज्यादा उपयूक्त हो सकती है । पर एक सवाल यह भी मनमें उठा है कि यह प्रसंग तो पूरे राज्य के लिये खास है तो वि.प्र.सुरत के इस निर्माण को राज्यके अहमदावाद, बडोदरा, राजकोट और भूजने सहप्रसारित या बादमें अपने समय पर प्रसारित किया क्या ?

मैंनें पूरानी पोस्टोमें कुछ बार लिख़ा है, कि विविध भारती की लोकप्रियतामें रूकावटे खूद आकाशवाणी के केन्द्रीय बिक्री एकांश (सेंट्रल सेल्स युनिट) तथा राज्यों के राज़धानीयोके या मूख़्य शहरों के विविध भारतीके विज्ञापन प्रसारण केन्द्रों तथा कुछ हद तक स्थानिय केन्द्रों खुद ही है, और इसका आज श्रेष्ठ उदाहरण एस एम एस के बहाने वीबीएस के तराने के दौरान प्रसारित होने वाले सरकारी प्रायोजित कार्यक्रम है, जिसमें ख़ास बात यह भी है, कि केन्द्रीय विविध भारती सेवाका प्रासारण जहाँ तक रेडियोका सवाल है, लघू-तरंग पर नहीं हो कर सिर्फ़ स्थानिय मध्यम तरंग और एफ एम पर ही होता है । डीटीएच मोबाईलमें नहीं चलता है । और इस दौरान श्रोता लोग निजी चेनल्स पर जाकर आते है । तो इससे एक बात साफ़ होती है कि क्षेत्रीय भाषाओं के राज्यव्यापी अलग एफ एम नेटवर्क की जारूरत है है और है ही । सरकार और आकाशवाणी स्थानिय केन्दों के रोल के बारेमें कुछ भी कहे आम श्रोताके मनमें ये स्थानिय केन्द्रों सर्वप्रथम विविध भारती सहप्रसारण-केन्द्रों ही है ।
पियुष महेता।
नानपूरा, सुरत ।

1 comment:

annapurna said...

केन्द्रीय सेवा के बारे में सही लिखा आपने।

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