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Tuesday, May 4, 2010

श्रृंखला का अंतिम गीत - फ़ौजी गया जब गाँव में

आज इस श्रृंखला का मैं अंतिम चिट्ठा लिख रही हूँ।

आज याद आ रहा हैं सत्तर के दशक की फिल्म आक्रमण का एक गीत। वैसे इस फिल्म के गीत कभी-कभार विविध भारती से सुनवाए जाते हैं पर यह गीत बहुत लम्बे समय से नही सुना। पहले सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था।

इस गीत को गाया हैं किशोर कुमार ने और इसे राजेश खन्ना पर फिल्माया गया हैं। इस फिल्म में राजेश खन्ना अतिथि भूमिका में हैं, भूमिका क्या हैं, केवल दो गीत ही उन पर फिल्माए गए हैं जिनमे से एक गीत अक्सर सुनवाया जाता हैं - देखो वीर जवानो अपने खून पे ये इल्जाम न आए

इस गीत में वो प्रोत्साहित कर रहे हैं युद्ध पर जाने वाले फ़ौजी भाइयो को, इनका एक पैर कटा हुआ हैं।

आज मैं दूसरा गीत याद दिला रही हूँ। यह एक स्टेज शो हैं। बड़ा मस्त अंदाज हैं इसमे राजेश खन्ना के अभिनय और किशोर कुमार की आवाज का।

इस गीत में एक कहानी हैं कि कैसे उसे गाँव वाले पहले नकारा समझते हैं, फिर वह फ़ौजी बनता हैं और जब गाँव वापस आता हैं तो उसका स्वागत होता हैं फिर वह डाकुओ से गाँव वालो की रक्षा करता हैं।

गीत का मुखड़ा और अन्तरो के कुछ बोल याद आ रहे हैं -

फ़ौजी गया जब गाँव में
पहन के फुल बूट पाँव में

पहले लोगो ने रखा था मेरा नाम निखट्टू
दो दिनों में ऐसे घूमा जैसे घूमे टट्टू
----------------------------

मेरे स्वागत को दौड़े चाचा चाची मामा मामी
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इतने में बन्दूक चली गाँव में आ गए डाकू
मैं एक वो ----------
मैंने एक-एक को मारा

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

अब और गीत मुझे याद नही आ रहे हैं इसीलिए इस श्रृंखला को मैं यही समाप्त कर रही हूँ। अलविदा !

2 comments:

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री अन्नपूर्णाजी,
ऐसा जरूरी नहीं है कि आपको नियमीत रूप से ही इस प्रकार के गाने याद आ जाय और साप्ताहीक सिलसिला ही ज़ारि रख़ पाये, पर एक अनियमीत श्रृंखला के रूप में भी जारि रख़ सकती है ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.

रोमेंद्र सागर said...

मैं पीयूष भाई से सौ फी सदी सहमत हूँ.... इस श्रृंखला को समाप्त करने की हरगिज़ ना सोचे ...नियमित ना सही , अनियमित ही सही - पर जारी रखें ! मजेदार थी ....! अगर मुनासिब समझे तो हम जैसे ( पियूष भाई और मुझ जैसे ) नियमित पाठकों से कुछ वैचारिक योगदान भी ले सकती हैं .... पर बंद ना करें !
< सागर >
!! नई दिल्ली !!

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