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Thursday, October 14, 2010

विविध भारती के मेहमान - साप्ताहिकी 14-10-10

विविध भारती में लगभग हर दिन मेहमान आते हैं। विशिष्ट व्यक्तियों के अनुभव, उनकी संघर्ष यात्रा के साथ महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी मिलती हैं। साथ-साथ सुनने को मिलते हैं उनके पसंदीदा गीत भी। यह कार्यक्रम हैं -

शुक्रवार - सरगम के सितारे
शनिवार - विशेष जयमाला
रविवार - उजाले उनकी यादो के
सोमवार - सेहतनामा
बुधवार - आज के मेहमान और इनसे मिलिए


इनमे से विशेष जयमाला विविध भारती की लगभग शुरूवात से ही हैं। जहां तक मेरी जानकारी हैं पहली मेहमान हैं ख्यात अभिनेत्री नरगिस। अन्य कार्यक्रम समय के साथ-साथ विविध भारती से जुड़ते गए। इनमे से विशेष जयमाला को छोड़ कर सभी भेंटवार्ताएं हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

शाम बाद के प्रसारण में 7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद फ़ौजी भाईयों के जाने-पहचाने सबसे पुराने कार्यक्रम जयमाला में शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया आज के दौर के संगीतकार और गायक हिमेश रेशमिया ने। लेकिन उदघोषणा में केवल संगीतकार बताया गया। उन्होंने भी अपनी प्रस्तुति में खुद के स्वरबद्ध किए गीत सुनवाए पर खुद के गाए गीत नही सुनवाए, हालांकि उनके गाए गीत लोकप्रिय हैं।

अच्छा लगा कि उन्होंने नए पुराने सभी समय के गीत सुनवाए। शुरूवात उनके नए गीत प्यार किया तो डरना क्या फिल्म के शीर्षक गीत से की। समापन में भी ऐसे ही नए गाने सुनवाए। बताया कि शंकर जयकिशन उनके पसंदीदा संगीतकार हैं। पुरानी फिल्म ताजमहल फिल्म का गीत सुनवाया। अपने पिता के पसंदीदा संगीतकार एस डी बर्मन की फिल्म अभिमान का गीत सुनवाया।

कारगिल की हल्की सी चर्चा के साथ फ़ौजी भाइयो को नमन किया। शुरू में ही बताया कि जयमाला कार्यक्रम बचपन से सुनते रहे हैं। इस कार्यक्रम को रमेश (गोखले) जी के सहयोग से शकुन्तला (पंडित) जी ने प्रस्तुत किया। यह कार्यक्रम प्रायोजित था। प्रायोजक के विज्ञापन प्रसारित हुए। बीच में क्षेत्रीय केंद्र से सन्देश भी प्रसारित हुए। शुरू और अंत में जयमाला की संकेत धुन बजी।

इसी समय के प्रसारण में बुधवार को जयमाला के बाद 7:45 पर 15 मिनट के लिए प्रसारित होता हैं कार्यक्रम इनसे मिलिए। इस कार्यक्रम की अवधि बहुत कम हैं, केवल 15 मिनट हैं। इसीलिए कभी-कभी यहाँ विविध भारती आधुनिक तकनीक का भी प्रयोग करती हैं जिसके अंतर्गत मेहमान को अपने स्टूडियो में आमंत्रित न कर टेलीफोन पर ही बात कर ली जाती हैं। इस सप्ताह भी यही हुआ। संगीतकार उत्तम सिंह से अमरकांत (दुबे) जी की टेलीफोन पर की गई बातचीत सुनवाई गई। यह बातचीत की दूसरी और अंतिम कड़ी थी। इसमे बताया कि मनोज कुमार ने शिरडी के साईँ बाबा फिल्म बनाते समय उत्तम सिंह को आमंत्रित किया और पहले से ही वहां जगदीश खन्ना काम कर रहे थे। यही पर बनी जोडी उत्तम-जगदीश और इसके साईँ बाबा बोलो सहित दो गाने तैयार किये। फिर साथ काम किया। एलबम भी शुरू किया। लेकिन जगदीश जी के निधन से जोडी टूटी। बाद में यश चोपड़ा ने उत्तम सिंह को आमंत्रित किया, यहाँ दिल तो पागल हैं शीर्षक गीत की हल्की चर्चा हुई गीत सुनवाया गया और यह कार्यक्रम यह कहते हुए समाप्त हुआ कि लम्बी बातचीत की जा सकती हैं।

मुझे लगा यह बातचीत सरगम के सितारे या आज के मेहमान कार्यक्रम के अंतर्गत की जा सकती थी। उनका वारिस फिल्म से यह गीत सदाबहार हैं -

मेरे प्यार की उम्र हो इतनी सनम तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे ख़त्म

और भी अच्छे गीत हैं। इस कार्यक्रम को तेजेश्री (शेट्टे) जी के तकनीकी सहयोग से वीणा (राय सिंघानी) जी ने प्रस्तुत किया।

शेष कार्यक्रम शाम 4 से 5 बजे तक पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित किए जाते हैं। पिटारा कार्यक्रम की अपनी परिचय धुन है और सेहतनामा को छोड़कर अन्य दोनों कार्यक्रमों की अलग परिचय धुन है जिसमे आज के मेहमान कार्यक्रम की धुन अच्छी लगती हैं जिसमे यह श्लोक भी हैं -

अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
आनंद मंगल मंगलम
इत प्रियम भारत भारतम

पहले पिटारा की संकेत धुन बजती हैं फिर कार्यक्रम की संकेत धुन।

शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सरगम के सितारे। इस कार्यक्रम के मेहमान संगीत के क्षेत्र से होते हैं और बातचीत गीतों के बनने पर केन्द्रित होती हैं जैसा कि शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं। इस सप्ताह आज के दौर की पार्श्व गायिका महालक्ष्मी अय्यर से ममता (सिंह) जी की बातचीत सुनवाई गई। दो भागो में की गई इस बातचीत के दूसरे भाग का प्रसारण हुआ। शुरू में फना फिल्म के इस गीत पर चर्चा हुई जो गाने में कठिन हैं - चन्दा चमके जिसके लिए बताया कि जो शास्त्रीय संगीत सीखते हैं उनके लिए कठिन नही क्योंकि नियमित रियाज से जबान पतली हो जाती हैं। यह भी बताया कि बच्चो को यह गीत बहुत पसंद आया। जतिन-ललित के साथ तैयार इस गीत के अनुभव बताए। इसी फिल्म के इस देश भक्ति गीत पर भी चर्चा हुई - देश मेरा रंगीला

गानों के विविध रंगों की भी जानकारी दी जैसे दक्षिण में मैलोडी अधिक हैं, पंजाब में रिदम, बंगाली गीतों में लोक संगीत आदि। यह भी बताया कि बचपन से गा रही हैं। अब तक गाए गीतों में सलाम नमस्ते का गीत - तू जहां, अधिक पसंद हैं। पहली बार सुभाष जी और अनु मलिक के साथ रिकार्डिंग के अनुभव बताए। शादी-ब्याह की नोंक-झोक के गीत की रिकार्डिंग के समय को भी याद किया जो अमिताभ बच्चन और जावेद साहब के साथ के अनुभव हैं। चर्चा किए गए सभी गीत सुनवाए और उनका यह ख़ास गीत भी सुनवाया जो बहुत लोकप्रिय हैं -

कभी शाम ढले तो मेरे दिल में आ जाना

लगभग बारह साल का ही करिअर हैं इसीलिए बातचीत में भी आसानी रही। अंत में व्यक्तिगत जानकारी भी दी कि उनकी बहने भी गाती हैं। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली हैं।

इस भेंटवार्ता का ध्वन्यांकन किया चित्रलेखा (जैन) जी ने। इस कार्यक्रम को दिलीप (कुलकर्णी) जी के तकनीकी सहयोग से वीणा (राय सिंघानी) जी ने प्रस्तुत किया।

रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के। शीर्षक के अनुसार इस कार्यक्रम में बीते समय के कलाकार अपनी यादे श्रोताओं से बाँटते हैं। इस सप्ताह मेहमान रही बीते समय की जानी-मानी पार्श्व गायिका शमशाद बेगम। इस कार्यक्रम में एक ख़ास बात होती हैं, जब भी मेहमान बुजुर्गवार हो तब विविध भारती उन्हें अपने स्टूडियो आने का कष्ट नही देती बल्कि खुद ही उनके घर जाती हैं रिकार्डिंग के लिए। यह अच्छी संस्कृति हैं विविध भारती की। इस बार भी यही हुआ। शमशाद बेगम के घर पर बातचीत रिकार्ड की गई। बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने।

बातचीत की शुरूवात शुरू से ही हुई यानि बचपन से जब न हमारी यह प्रिय गायिका और न ही उनके घरवाले ग्रामोफोन जैसी चीज को जानते-पसंद करते थे। बताया कि गाने का शौक तो बचपन से रहा पर किसी ने हौसला नही बढ़ाया। माहौल भी ऐसा ही था। प्रारम्भिक शिक्षा भी लाहौर के प्राइमरी स्कूल में हुई।बाद में अवसर मिला और ऑडिशन देने पहुंची मास्टर गुलाम हैदर के पास। पहली बार गामोफोन के लिए 12 गाने रिकार्ड किए। पहले भुगतान की भी बात बताई। फिर पेशावर रेडियो से शुरूवात की जहां ग्रामोफोन आर्टिस्ट की हैसियत से गाना शुरू किया।

हम उन्हें फिल्मो की पार्श्व गायिका की हैसियत से जानते हैं पर बातचीत में फिल्मो में प्रवेश के पहले की बातों से न सिर्फ गायिका का परिचय मिला बल्कि उस समय के सामाजिक माहौल, संगीत के प्रति नजरिए की जानकारी मिली। साथ ही यह भी पता चला कि पहले गाने की शुरूवात ग्रामोफोन रिकार्ड निकाल कर होती थी। रेडियो संस्कृति के बारे में भी बताया की पहले प्रोड्यूसर नही केंद्र निदेशक हुआ करते थे।

इस तरह इस पहली कड़ी से न सिर्फ फिल्मी बल्कि उनकी यादो से बहुत सी अन्य जानकारियाँ भी मिली। गीत भी अच्छे चुनकर सुनवाए गए - लोकप्रिय गीत जैसे -

बूझ मेरा क्या नाव रे

काहे कोयल शोर मचाए रे

कही पे निगाहें कही पे निशाना

और ऐसे गीत भी सुनवाए जो बहुत ही कम सुनने को मिलते हैं जैसे - मोरे घुंघरवाले बाल

आशा हैं आने वाले सप्ताहों में कड़ियाँ अधिक दिलचस्प रहेगी।

सोमवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सेहतनामा। जाहिर हैं, इसमे डाक्टर साहब तशरीफ लाते हैं। इस सप्ताह मेहमान रहे, नेत्र रोग विशेषज्ञ डा राहुल नवलकर जिनसे निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। सबसे पहले संक्रमण के बारे में विस्तार से जानकारी दी कि पहले बैक्टीरिया से संक्रमण होता था, आजकल वायरस से होता हैं। गरमी बढ़ने से संक्रमण बढ़ता हैं। संक्रमित आँखों की ओर देखने से संक्रमण नही फैलता बल्कि संक्रमित व्यक्ति जिन चीजो को छूते हैं उसे छूने से संक्रमण फैलता हैं। इसीलिए जिन्हें संक्रमण हैं उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर नही जाना चाहिए। काला चश्मा संक्रमित आँखों के संरक्षण के लिए दिया जाता हैं। इस तरह इससे सम्बंधित भ्रान्ति दूर हुई। सलाह भी अच्छी दी कि संक्रमण होने पर पहले गुनगुने पानी से आँखों को धोए। अगर सुबह उठने पर पलकें चिपकने लगे तब डाक्टर के पास जाए, लेकिन केवल केमिस्ट की सलाह से दवा न ले।

महत्वपूर्ण जानकारी यह भी दी कि आँखों का विकास 80% गर्भ में होता हैं इसीलिए गर्भवती महिला के खानपान में विटामिन ऐ होना चाहिए जिसके लिए गाजर, संतरा, हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं। इसीलिए शिशुओं की आँखों की जांच भी 9 साल तक हर साल कराएं। अगर तिरछापन होगा तो इसी समय ठीक किया जा सकता हैं जिसके लिए ऑपरेशन से न घबराएं।

कैटेराक के बारे में भी अच्छी जानकारी दी कि अब पकने से पहले ही इसका ऑपरेशन किया जा सकता हैं। यह महत्वपूर्ण बात भी बताई कि विश्व में पहला रिकार्ड किया गया ऑपरेशन यही हैं जिसे भारतीय वैद्य ने किया था।

बातचीत के साथ डाक्टर साहब की पसंद के नए-पुराने बढ़िया गीत सुनवाए गए - ओंकारा फिल्म से नैना ठग लेंगे गीत से शुरूवात की तो उमराव जान की आँखों की मस्ती के गीत से समापन। डाक्टर साहब गाने का भी शौक रखते हैं इसीलिए गीत, मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया सुनवाने से पहले गुनगुनाया तो सुनकर बहुत अच्छा लगा। इस कार्यक्रम को पी के ए नायर जी के तकनीकी सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने प्रस्तुत किया।

बुधवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम आज के मेहमान जिसमे आमंत्रित मेहमान रहे जाने-माने फिल्म लेखक, शायर और गीतकार जावेद अख्तर। बातचीत की ममता (सिंह) जी ने। बातचीत की शुरूवात आज के दौर से हुई इसीलिए इस पहली कड़ी में संगीत पक्ष की बातचीत अधिक हुई क्योंकि इस दौर में जावेद साहब का नाम गीत रचना से अधिक जुड़ा हैं। शुरूवाती बात लक्ष्य फिल्म लेखन से हुई जिसे उन्होंने बताया कि लिखने में अधिक समय लगा। पहले आलोचना भी हुई पर बात में फिल्म पसंद की गई। इस गीत की भी चर्चा हुई -

कंधो से मिलते हैं कंधे

यहाँ हल्की सी चर्चा इस फिल्म को बनाने वाले उनके सुपुत्र फरहान की करना थोड़ा विषयांतर लगा पर गीत के बाद विषय सामान्य हो गया। आगे जावेद साहब ने बताया कि वह गीतकार नही लेखक बनना चाहते थे। अपने पहले गीत के बारे में बताया कि केवल यश चोपड़ा ही जानते थे कि वह शायर हैं, इसीलिए सिलसिला फिल्म में गीत लिखने के लिए कहा और इस तरह पहला गीत बना -

देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए

उनकी गीत लेखन की सीधी-सादी शैली पर भी चर्चा हुई, साथ-साथ जैसी फिल्मो के माध्यम से। इस शैली को उन्होंने पिता से मिली प्रेरणा बताया। अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भाषा पर नियंत्रण होना चाहिए और भाषा के साथ ख्याल होना चाहिए। अपने काम के बारे बताया कि धुन पर भी वह गीत लिख सकते हैं और लिखे गीत पर भी धुन तैयार की जाती हैं। संगीतकार ऐ आर रहमान की तारीफ़ की। एक बढ़िया बात बताई कि आजकल कि तेज धुन पर जरूरी नही कि अर्थ हीन बोल के गीत हो, बोल अच्छे भी हो सकते हैं। जुबेदा फिल्म के गीत को पसंद फरमाया।

चर्चा में आए गीत सुनवाए गए। बातचीत आगे की कड़ियों में जारी रहेगी। इस कार्यक्रम का सम्पादन किया युनूस (खान) जी ने। इसे संजय जी और विनायक (रेणके) जी के तकनीकी सहयोग से शकुन्तला (पंडित) जी ने प्रस्तुत किया।

इस तरह इस सप्ताह डाक्टर साहब को छोड़ कर सभी मेहमान फिल्म जगत से रहे और बातचीत भी गीत-संगीत की हुई। विविधता का न होना खासकर पिटारा कार्यक्रम में बहुत खराब लगा। शुक्रवार का कार्यक्रम हैं ही संगीत जगत के लिए। रविवार को भी गायिका से बातचीत की शुरूवात हुई। ऐसे में बुधवार की बातचीत रोकी जा सकती थी क्योंकि जावेद साहब से आज के दौर से बातचीत शुरू होने से यह पहली कड़ी गीत-संगीत की ही रही। वैसे बुधवार को अलग क्षेत्रों के विशिष्ट व्यक्तियों से बातचीत की जाती तो बेहतर होता। फिल्मी माहौल से हट कर अन्य क्षेत्रों से भी परिचय होता। खासकर, इस समय देश में राष्ट्रमंडल खेलों के माहौल में अगर खेल जगत से कोई मेहमान आते तो अच्छा लगता। पुरानी रिकार्डिंग भी सुनवाई जा सकती थी।

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