गीतों के कार्यक्रम हमेशा से ही विविध भारती के प्रमुख कार्यक्रम माने गए हैं। जितना महत्व फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों का हैं उतने ही महत्वपूर्ण हैं गैर फिल्मी गीतों के कार्यक्रम। पहले लगभग हर विधा के गैर फिल्मी गीत सुनवाए जाते थे लेकिन कुछ ही समय पहले किए गए परिवर्तनों से विविध भारती की यह श्रेणी बहुत कमजोर हुई हैं।
शाम बाद के प्रसारण में जयमाला के बाद 7:45 पर 15 मिनट के लिए प्रसारित होने वाले दो साप्ताहिक कार्यक्रम मंगलवार को प्रसारित होने वाली बज्म-ऐ-क़व्वाली और शुक्रवार को प्रसारित होने वाला लोक संगीत कार्यक्रम या तो बंद कर दिए गए हैं या ऐसे समय प्रसारित हो रहे हैं जो क्षेत्रीय प्रसारण का समय हैं। अगर प्रसराण समय बदला हैं तब भी ठीक नहीं क्योंकि बहुत से श्रोता सुन नहीं पाते और अगर ये कार्यक्रम बंद कर दिए गए हैं तब हम यह अनुरोध करते हैं कि इन दोनों कार्यक्रमों को दुबारा शुरू कीजिए और ऐसे समय प्रसारित कीजिए जो क्षेत्रीय प्रसारण का समय न हो ताकि सभी इसका आनंद ले सकें।
आजकल गैर फिल्मी गीतों के दो ही कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं - वन्दनवार और गुलदस्ता। दोनों ही बढ़िया कार्यक्रम हैं और प्रसारण समय भी उचित हैं।
सुबह 6:00 बजे दिल्ली से प्रसारित होने वाले समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद 6:05 पर हर दिन पहला कार्यक्रम प्रसारित होता हैं - वन्दनवार जो भक्ति संगीत का कार्यक्रम हैं। इसके तीन भाग हैं - शुरूवात में सुनवाया जाता हैं चिंतन जिसके बाद भक्ति गीत सुनवाए जाते हैं। इन गीतों का विवरण नही बताया जाता हैं। पुराने नए सभी गीत सुनवाए जाते हैं। उदघोषक आलेख प्रस्तुति के साथ भक्ति गीत सुनवाते हैं और समापन देश भक्ति गीत से होता हैं। आरम्भ और अंत में बजने वाली संकेत धुन बढ़िया हैं।
शाम बाद के प्रसारण में जयमाला के बाद सप्ताह में तीन बार शुक्रवार, रविवार और मंगलवार को 7:45 पर 15 मिनट के लिए प्रसारित किया जाता हैं कार्यक्रम गुलदस्ता जो गजलों का कार्यक्रम हैं।
इस तरह हम गैर फिल्मी गीतों में भक्ति गीत, देश भक्ति गीत और गजल सुनते हैं। इनमे अगर नई रचनाएं भी सुनवाई जाती हैं तब भी गीत की विधा सीमित ही हैं। आजकल नए जमाने के गीतों में किस तरह का गीत-संगीत चल रहा हैं, इसका पता विविध भारती से नहीं चल रहा जबकि लगता हैं नए गायक कलाकार आजकल बहुत हैं और निजी संकलन के गीतों के अलावा एलबम भी बहुत हैं। हमारा अनुरोध हैं कि नए जमाने के गीतों का एक ऐसा कार्यक्रम भी शुरू कीजिए या हो सकता हैं ऐसा कोई कार्यक्रम किसी ऐसे समय प्रसारित हो रहा हैं जिसे क्षेत्रीय प्रसारण के कारण बहुत से शहरों के श्रोता नहीं सुन पाते हो, तब ऐसे समय प्रसारित कीजिए जो क्षेत्रीय प्रसारण का समय न हो ताकि सभी इसका आनंद ले सकें। इस तरह पुराने नए और सभी विधाओं के गैर फिल्मी गीतों को हम सुन पाएगे।
आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -
शुक्रवार को नवरात्र का महत्वपूर्ण दिन था - दुर्गाष्टमी। इस दिन सुबह-सवेरे पहले कार्यक्रम वन्दनवार में एक भी माँ दुर्गा का भक्ति गीत नही था। एक भी साकार रूप का भक्ति गीत नही सुनवाया गया। सभी निराकार रूप के भक्ति गीत सुनवाए गए। शुरूवात की इस भक्ति गीत से -
प्रभु संग प्रेम की डोर बाँध ले
और अपने जीवन को साध ले
उसके बाद कबीर की रचना सुनवाई - मैली चादर ओड़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊं
फिर शास्त्रीय पद्धति में ढला भक्ति गीत सुनवाया गया -
ठाकुर तुम संग नाही आए
उतर गयो मेरो मन का संसार
भक्ति गीतों का समापन किया मलूकदास की इस रचना से - दीनबन्धु दीनानाथ मेरी सुध लीजिए
अगले दिन शनिवार को नवरात्र का अंतिम दिन था। इसे ध्यान में रख कर भक्ति गीतों का समापन किया माँ दुर्गा के इस भक्ति गीत से -
शेरा पहाडा वाली माँ
जब तेरा बुलावा आए
मैनु बड़ा चंगा लगता
इस दिन शुरूवात की इस साकार रूप के भक्ति गीत से - जय राधा माधव जय कुञ्ज बिहारी
इसके बाद निर्गुण भक्ति धारा बही - भटकता डोले काहे प्राणी
रविवार को सुबह के इस पहले कार्यक्रम में दशहरा की शुभकामनाएं तक नही दी। शुरूवात हुई इस भक्ति गीत से, यह भजन मैंने पहली बार सुना, अच्छा लगा -
अबकी बार उबारो प्रभुजी
अगला भजन राम की महिमा का रहा - जिनके ह्रदय राम बसे उन्हें काहे की कमी
इसके बाद के दोनों भक्ति गीत, शिव और कृष्ण की जयजयकार के लोकप्रिय भक्ति गीत रहे। सोमवार को सभी लोकप्रिय भक्ति गीत सुनवाए गए। शुरूवात की सामान्य भक्ति गीत से जिसके बाद राम और शिव भक्ति के गीत सुने -
मैं काँवडिया , मैं भोले का पुजारी
भोले बसे हैं मेरे मन में
मंगलवार को भी लोकप्रिय भक्ति गीत सुनवाए गए जैसे कबीर की रचना - बिना विचारे जो करे वो पाछे पछताए
बुधवार को यह कार्यक्रम बहुत खराब रहा। शुरूवात फिल्मी भक्ति गीत से की। दिन की शुरूवात का भक्ति संगीत का गरिमामय कार्यक्रम फिल्मी भजन से शुरू हो तो अच्छा नही लगता। पहले भजन के बाद दूसरा भजन भी फिल्मी ही रहा। बाद के दो - कृष्ण भक्ति और मीरा का भजन रहा।
आज मिले-जुले भजन सुनवाए गए। निर्गुण और सगुण साकार रूप की भक्ति, नया भक्ति गीत भी सुनवाया गया। समापन किया फिल्मी गीत से।
यह गैर फिल्मी गीतों का कार्यक्रम हैं। इस तरह के कार्यक्रम पहले ही बहुत कम हैं जबकि फिल्मी गीत तो दिन-रात बजते ही रहते हैं। यहाँ तक कि सेहतनामा जैसे कार्यक्रमों में भी फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं, फिर कम से कम गैर फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों को तो पूरी तरह से गैर फिल्मी रहने दीजिए। और फिर वन्दनवार जैसा प्रतिष्ठित कार्यक्रम... समझ में नही आता हैं वन्दनवार जैसे कार्यक्रम में फिल्मी घुसपैठ क्यों होती हैं। विनम्र अनुरोध है कृपया फिल्मी भक्ति गीतों का अलग कार्यक्रम रखिए, ऐसे समय जहां क्षेत्रीय कार्यक्रमों का समय न हो ताकि हम इन फिल्मी भक्ति गीतों का आनंद ले सके।
हर दिन वन्दनवार का समापन होता रहा देश भक्ति गीतों से, यह लोकप्रिय गीत सुनवाए गए -
किरण पुंज ले हम चले आ रहे हैं
धरा को सजाओ गगन ला रहे हैं
छोड़ मत पतवार न बिसरे
यह भूमि हमारी वीरों की
हम सिन्धों की संतान हैं
हम भारत माँ की शान हैं
थोड़ी मिट्टी ले ईश्वर ने सृजन किया
लिए मशालअपने-अपने घर से निकले हाथों में हम लिए मशाल
एक देश, देश के जवान एक हैं एक हैं जमीन आसमान एक हैं
किसी भी गीत के लिए रचयिता और संगीतकार के नाम नही बताए।
गुलदस्ता कार्यक्रम में शुक्रवार को आगाज हुआ कतिल राजस्थानी के कलाम से जिसे आवाजे दी मिताली और भूपेन्द्र सिंह ने -
राहों पे नजर रखना होठों पे दुआ रखना
आ जाए कोई शायद दरवाजा खुला रखना
इसके बाद मधुरानी की आवाज में सुनवाया फैज का मशहूर कलाम -
असर उसको ज़रा नहीं होता
वरना दुनिया में क्या नही होता
इस तरह दो गजले सुनी, एक नई और एक पुरानी, दोनों अच्छी रही।
रविवार को शुरूवात हुई परवेज मेहदी की आवाज में अदीम हाशमी के कलाम से - फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
महफ़िल एकतेदाम को पहुंची इन्द्राणी मुखर्जी की आवाज में कैजल उल जाफरी के कलाम से -
कितने जालिम हैं के गम को भी खुशी कहते हैं लोग
शमा पिघलती जा रही रोशनी कहते हैं लोग
मंगलवार को तीन गजले सुनी। कृष्ण बिहारी नूर की रचना से आगाज हुआ, गुलोकारा रही छाया गांगुली -
पलको के ओट में वो छुपा ले गया मुझे
यानि नजर नजर से बचा ले गया मुझे
फिर जफ़र कलीम का मशहूर कलाम सुना, गुलोकार रहे हरिहरन - कोई पत्ता हिले हवा तो चले
आखिर में आशा भोंसले की आवाज में हसन कमाल को सुना -
इन्तेजार का हुनर चला गया
चाहा था एक शख्स को जाने किधर चला गया
इस तरह, इस सप्ताह गुलदस्ता अच्छा रहा। इसकी संकेत धुन भी अच्छी हैं। सबसे अच्छा लगता हैं कार्यक्रम के अंत में यह कहना - ये था विविध भारती का नजराना - गुलदस्ता
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Thursday, October 21, 2010
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