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Friday, June 24, 2011

रेडियो की गोल्डेन वॉयस : मेलविल डि मेलो

जैसा कि आप जानते हैं कि रेडियोनामा पर आकाशवाणी की मशहूर समाचार-वाचिका शुभ्रा शर्मा अपने संस्‍मरण लिख रही हैं--'न्‍यूज़रूम से शुभ्रा शर्मा'। पिछली कड़ी में जब उन्‍होंने मशहूर समाचार-वाचक मेलविल डिमेलो का जिक्र किया तो मैंने उनसे फ़रमाईश की उनसे जुड़ी यादें लिखने की। विस्‍तार से वो बाद में लिखना चाहती हैं, पर फ़ौरन उन्‍होंने ये संस्‍मरण भेजा है। ये उनकी श्रृंखला से इतर आलेख है।

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कोई १९८६-८७ की बात होगी. मैं पटना विश्वविद्यालय में लेक्चरर की नौकरी छोड़कर दिल्ली आ गयी थी और यहाँ एक अदद नौकरी की तलबगार थी. कालेजों से निराश होने के बाद स्कूलों में भी अर्ज़ियाँ भेजने लगी थी. बेटा शानू शाम को घर में बैठने नहीं देता था. धूप कम होते ही उचकना शुरू कर देता था कि बाहर घुमाने ले चलो. वाकर था, लेकिन उसमें बैठना इसे बिलकुल नहीं भाता था. घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही, कभी हैंडल तो कभी हुड पकड़कर खड़ा हो जाता. इतना उधम मचाता कि मेरे लिए अकेले उसे संभाल पाना मुश्किल हो जाता. तब पापा भी मेरे साथ जाने लगे. हम दोनों में से एक उस बन्दर को संभालता और एक उसकी गाड़ी को. तब कहीं शाही सवारी आगे बढ़ पाती.

हम कालकाजी विस्तारखंड के फ्लैट नंबर ११६ में रहते थे, जो प्रथम तल पर है. ठीक सामने वाले ब्लाक में melville de mello भूतल पर १२१ नंबर फ्लैट में मेलविल डि मेलो अपनी पत्नी के साथ रहते थे. सामने पड़ जाने पर दुआ-सलाम होता रहता था, लेकिन आना-जाना नहीं था. शानू भैया को शायद पालने में ही यह आभास हो गया था कि वे बड़े होकर जिस व्यवसाय को चुनने वाले हैं, (वे भारतीय जन संचार संस्थान से रेडियो-टी वी पत्रकारिता का डिप्लोमा लेकर इंडिया टुडे ग्रुप में काम कर रहे हैं) उस क्षेत्र की महान हस्ती के सामने से गुज़र रहे हैं. या फिर शायद श्रीमती डि मेलो के बनाये केक का लोभ रहा हो, लेकिन अपनी शाम की सैर का समापन वे हर रोज़ श्री डि मेलो की गोद में चढ़कर और श्रीमती डि मेलो की पाक विद्या का जायज़ा लेकर ही करने लगे.

हमारे फ्लैट्स में उन दिनों शाम के समय भी कुछ देर पानी सप्लाई होता था. पापा पानी भरने चले जाते और मैं और शानू कुछ समय डि मेलो साहब के साथ गुज़ारते. थोड़ी बहुत सुख-दुःख की बातें होतीं. इसी दौरान मैंने ज़िक्र किया कि मैं नौकरी की तलाश में हूँ.

उन्होंने गहरी पैनी दृष्टि मेरी तरफ डालकर पूछा - तुमने कभी ब्रॉडकास्टिंग के बारे में नहीं सोचा?

मैंने हंसकर कहा - सोचा तो था, लेकिन सफल नहीं हुई.

कहने लगे - क्यों?

तब मैंने उन्हें बताया कि बहुत पहले, बी ए पास करने पर मैंने रेडियो में काम करने की बात सोची थी मगर पापा ने बात वहीँ ख़त्म कर दी थी. उनका कहना था कि तुम अपनी प्रतिभा से, अपनी मेहनत से आगे बढ़ोगी पर कहने वाले यही कहेंगे कि भिक्खुजी की बेटी है, इसीलिए बढ़ावा दिया जा रहा है.

यह लांछन मेरे स्वाभिमान को हरगिज़ गवारा न होता इसलिए मैंने दोबारा कभी इस बात का ज़िक्र भी नहीं किया.

डि मेलो साहब ने कहा - यह बात अब तो लागू नहीं होती. अब तो शर्मा को रिटायर हुए ज़माना बीत चुका है.

रेडियो से जुड़े तमाम परिचितों में केवल तीन ही लोग थे, जो पापा को शर्मा कहते थे....शर्माजी या भिक्खुजी नहीं. एक पुराने डी जी - पी सी चैटर्जी साहब, दूसरे पाराशर साहब और तीसरे डि मेलो साहब.

तो उस समय डि मेलो साहब ने ही मुझे रेडियो की ओर प्रेरित किया. उन्होंने बताया कि समाचारवाचकों की कैजुअल बुकिंग होती है और मुझे उसके लिए कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने फ़ोन करके अपने परिचितों से पूछा कि कब और कहाँ आवेदन करना है. और तब तक मेरे पीछे पड़े रहे जब तक मैंने आवेदन नहीं भेज दिया. मेरे लिखित परीक्षा पास करने पर वे पापा से भी ज़्यादा खुश हुए. न जाने क्यों उनकी दिली ख्वाहिश थी कि मैं आकाशवाणी में काम करूँ. ऐसे अहैतुक बंधु जीवन में कितने मिलते हैं भला?

यह हमारा बड़ा दुर्भाग्य है कि हमने ऑल इंडिया रेडियो/ आकाशवाणी को घुटनों चलना सिखाने वाले और फिर उसे अपने पैरों पर खड़े होने में मदद देने वाले लोगों का कोई प्रामाणिक इतिहास नहीं रखा है. यूनुस भाई का अनुरोध मिलने के बाद मैंने आकाशवाणी के कई इतिहास उलट-पुलट डाले लेकिन किसी में ऐसे पथ प्रदर्शक लोगों के विषय में कोई ठोस जानकारी नहीं मिली. कई किताबों में "ग्रेट ब्रॉडकास्टर" मेलविल डि मेलो और उनके द्वारा सुनाये गये महात्मा गाँधी के अंतिम संस्कार के आँखों देखे हाल का उल्लेख भर मिला लेकिन वे कब आकाशवाणी में आये, कब अवकाश प्राप्त किया, किन पदों पर रहे और उनकी क्या विशिष्ट उपलब्धियां रहीं - इन सब बातों पर ऐसी तमाम किताबें चुप्पी साधे हुए हैं.

पुस्तकों से निराश होकर मैंने इंटरनेट का सहारा लिया. नयी पीढ़ी के इस नए संसाधन ने पूरी तरह निराश भी नहीं किया. मसलन उससे मुझे पता चला कि डि मेलो साहब ने मसूरी के सेंट जॉर्ज कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. कुछ दिन फौज में भी रहे लेकिन वहां ख़ुद उनके एक अफसर ने उन्हें अपनी "गोल्डेन वॉयस" का बेहतर इस्तेमाल करने की सलाह दी और इस तरह ऑल इंडिया रेडियो को यह गोल्डेन वॉयस मिली.

४ जून १९८९ को वे दुनिया से साइन आउट कर गये. इन्टरनेट के एक लेख से ही पता चला कि अन्य एंग्लो-इंडियन लोगों की तरह उन्हें दफनाया नहीं गया, बल्कि उनकी वसीयत के मुताबिक उनका दाह संस्कार किया गया था. उनके देहांत के बाद उनकी पत्नी अपने रिश्तेदारों के पास ऑस्ट्रेलिया चली गयी थीं. जब वे अपना यह फ्लैट बेचकर जा रही थीं, तब अपने "लिटल एंजल" शानू से मिलने आयी थीं. डि मेलो नाम वाले किसी व्यक्ति के साथ हमारी वही आख़िरी मुलाक़ात थी.       

10 comments:

Anonymous said...

I was a Patnite.I remember, I was a teenager then.Every evening I would be in front of the radio only to listen to the golden voice of Mr De Mello.When he retired, I just found myself aloof from All India Radio news.Where can you find such another.

Yunus Khan said...

I was a Patnite then.I was a teenager them.Every evening I would sit before the radio to listen to the golden voice of Melvill De Mello. Never again heard such a voice on Radio.When he retired I too found myself aloof from the Radio news.Where can you find such another!

फेसबुक पर विनय सिन्‍हा।

डॉ. अजीत कुमार said...

शुभ्रा जी,
जब आप ऐसी शख्शियत D'Mello साहब के उतने करीब रहकर भी उनके बारे में आपको जानने के लिये पुस्तकों और इन्टरनेट का सहारा लेना पड रहा है तो जरा सोचें कि हम अनजान श्रोताओं का क्या होगा.
हमारी पीढी के लोग तो उनकी आवाज़ भी नहीं सुन पाये होंगे.. बहुत चाहत है ऐसी महान शख्शियत के बारे में और विस्तार से जानने की.
बहरहाल, इस संस्मरण में आपकी नजरों से उन्हें जानने का, थोडा ही सही, मौका मिला. जल्द ही हमें और जानने को मिलगा ऐसा विश्वास है.
इस पोस्ट के लिये धन्यवाद.

Anonymous said...

शुभ्रा जी की फेसबुक पर आई टिप्‍पणियां

शालिनी नारायणन की टिप्‍पणी: we missed the chance to meet Mr Melville De Mello, having joined Radio only in the 1990s....

सरिता लखोटिया की टिप्‍पणी-You are really very Lucky to have these personalities to guide you.... my husband still remembers Mr. Melville De Mello's voice on radio and appreciates the Golden Voice....Well Written as always....

Anonymous said...

आकाशवाणी में समाचार-वादक रहे अश्‍विनी त्‍यागी की टिप्‍पणी- Dear Shubra..........yadon ke safar se hum bhi guzar aaye....bahut si baaten nai pata lageen................keep serching yr notes...n pls post...some more.........

Anonymous said...

भूतपूर्व समाचार-वादक अश्विनी त्‍यागी की टिप्‍पणी

Dear Shubra..........yadon ke safar se hum bhi guzar aaye....bahut si baaten nai pata lageen................keep serching yr notes...n pls post...some more...........


दूरदर्शन की मशहूर समाचार-वादिका मंजरी जोशी की टिप्‍पणी-
ye post lagane ke liye dhanyvaad...yaad taza ho aayi....mujhe garv hei ki doordarshan aur akashvani me mujhe bataur samachar vachika chayanit karne vale diggajon me devaki nandan pandey ji ke saath melvel de mellow bhi panel par the....haan , lekh bahut accha laga.

GGShaikh said...

जैसे कोई चित्रपट के दिग्गज निर्देशक की कोई सुंदर सी ऐतिहासिक ब्लैक एंड व्हाइट, अलप-झलप सिल्वर
छायाओं वाली दस्तावेजी फिल्म देख रहे हों, वैसी ही चित्रात्मकता आपके इस द्रश्यालेख्य में मिली...
लेख-दर-लेख कलम भी पैनी और रिच हो रही है...डि मेलो जी ज़्यादा तो ना दिखे पर उनके होने का माहौल बरक़रार रहा आलेख में...
फ़िर आपकी जिंदगी के पहलू-दर-पहलू की जानकारी और उसे मिल रहा कार्किर्दिकीय शेप आलेखों में ढलता जा है...

आलेख पसंद आया...

रौशन जसवाल विक्षिप्त said...

आभार आपका इस लेख के लिए। हो सके तो श्री कृष्‍ण भार्गव जी और श्रीमती शोभना जगदीश के सस्‍मरण भी पाठकों तक पहुचायें। शिमला में मैने इन्‍ही से प्रशिक्षण प्राप्‍त किया था

kamlesh mishra said...

If available, pls post a recorded cut of this Golden Voice.

नीरज गोस्वामी said...

दुःख की बात है के रेडिओ की ऐसी अजीम शख्शियत की जानकारी के लिए आपको आकाशवाणी का नहीं कम्पूटर का सहारा लेना पड़ा...ये हमारे लिए शर्म की बात है के आलतू फालतू लोगों के बारे में हम किताबें छापते हैं और जिनके बारे में लिखना चाहिए वहां चुप्पी खींच जाते हैं...दी मेलो साहब के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा...


नीरज

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