जैसा कि आप जानते हैं कि 'रेडियोनामा' रेडियो की बातों और यादों का ब्लॉग है। और हमें ये कहते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है अब 'रेडियोनामा' पर हम लगातार आपके लिए सामग्री प्रस्तुत करेंगे। सोमवार, बुधवार और शनिवार को अलग अलग श्रृंखलाएं पेश की जाएंगी।
कायदे से ये लेख सुबह ही आ जाना चाहिए। पर आज हमारे इंटरनेट कनेक्शन की 'किरपा' के रहते आपसे शाम को मुखातिब हो पा रहे हैं। बहरहाल... आज से हम शुरू कर रहे हैं जाने-माने ब्रॉडकास्टर और विविध-भारती में हमारे भूतपूर्व साथी लोकेंद्र शर्मा की श्रृंखला--'ताने बाने (लोकेंद्र शर्मा की जिंदगी के...कुछ उलझे कुछ सुलझे)। इस श्रृंखला का आग़ाज़ लोकेंद्र जी की लिखी एक कहानी से हो रहा है। दिलचस्प बात ये है कि इस 'कहानी की कहानी' रेडियोनामा पर पहले ही पेश कर चुके हैं। ज़ाहिर है कि जिन लोगों ने उसे ना पढ़ा हो, वो इस लिंक पर क्लिक करके उसे पढ़ सकते हैं।
तो पेश है लोकेंद्र शर्मा की कहानी --'केंचुआ'।
सनद रहे कि अगले सप्ताह बुधवार से लोकेंद्र जी शुरू करेंगे अपने जीवन के 'ताने-बाने'।
कायदे से ये लेख सुबह ही आ जाना चाहिए। पर आज हमारे इंटरनेट कनेक्शन की 'किरपा' के रहते आपसे शाम को मुखातिब हो पा रहे हैं। बहरहाल... आज से हम शुरू कर रहे हैं जाने-माने ब्रॉडकास्टर और विविध-भारती में हमारे भूतपूर्व साथी लोकेंद्र शर्मा की श्रृंखला--'ताने बाने (लोकेंद्र शर्मा की जिंदगी के...कुछ उलझे कुछ सुलझे)। इस श्रृंखला का आग़ाज़ लोकेंद्र जी की लिखी एक कहानी से हो रहा है। दिलचस्प बात ये है कि इस 'कहानी की कहानी' रेडियोनामा पर पहले ही पेश कर चुके हैं। ज़ाहिर है कि जिन लोगों ने उसे ना पढ़ा हो, वो इस लिंक पर क्लिक करके उसे पढ़ सकते हैं।
तो पेश है लोकेंद्र शर्मा की कहानी --'केंचुआ'।
सनद रहे कि अगले सप्ताह बुधवार से लोकेंद्र जी शुरू करेंगे अपने जीवन के 'ताने-बाने'।
रेडियो स्टेशन
के साउण्ड प्रूफ स्टूडियो में मौसम बदलने का पता नहीं चलता, यह
जानते हुए भी बाहर आकर श्रीकांत को इस बात पर अचरज हुआ कि बरामदे के पार बारिश हो
रही है. सीली हवा को उसने गहरे तक पिया और चिपचिपाते कारीडोर में निगाह डाल, अपने
पीछे स्टूडियो के स्प्रिंगदार दरवाज़े का धीरे-धीरे बंद होना महसूस किया.
सामने ड्यूटी रूम का पिछला दरवाजा मुंह
पर परदा लटकाए था.
कारीडोर
पार करते हुए श्रीकांत को लगा परदे के दूसरी ओर भीड़ है. बड़ी सी टेबल पर झुका
छोटा-सा जसवंत सिंह भी अंदर होगा और “टेप लायब्रेरिच्च जमा
करा दित्ते ?” यह सवाल चेहरे पर जड़े उसके परदा हटाने का
इंतजार कर रहा होगा.
श्रीकांत मुड़ कर बरामदे में सीधा बढ़
गया. वह जानता था, ड्यूटी ऑफिसर जसवंत सिंह अपने हर सवाल का नकारात्मक उत्तर पाते
ही, बताने लगता है कि जब वह एनाउन्सर था, उसने कभी ऐसे “ब्लण्डर्स” नहीं किए, वह
रिकॉर्ड बहुत अच्छे फेडइन करता था और उसके क्रॉस फैड भी लाजवाब थे और...
ब्रोडकास्टिंग हॉउस का बरामदा, इमारत के एक गुंबद के साथ गोल करवट लेता हुआ
पोर्टिको तक सीधा चला गया था. ऐसा ही एक बरामदा दूसरे कोने के गुंबद से चलकर
पोर्टिको तक आया था. बरामदे में कमरों की कतार के साथ-साथ चलते हुए श्रीकांत ने
गौर किया कि सामने वाले गुंबद पर हुई लाल-पीली
पुताई की पट्टियां भीग कर ताज़ा हो गई हैं. गुंबद के पीछे आकाशवाणी भवन की बंद
खिड़कियों पर पानी फिसल रहा था. बरामदे की पूरी लंबाई में चिपचिपापन बिछा था.
बारिश रुकने की इंतजार में बीसियों देखे-अनदेखे चेहरे खंभों से टिके आकाश ताक रहे
थे.
‘लाइब्रेरी’ वाली नेमप्लेट के आगे श्रीकांत थमा. दरवाज़ा बंद
था. किवाड़ों के पेट पर कांच के टुकड़े जड़े थे, जिनकी पीठ नीले परदे से ढंपी थी.
हैण्डल घुमा कर श्रीकांत ने दरवाजे को सरकाया और तिरछा सा फंस कर भीतर हो लिया.
आलमारियों की लंबी कतारें अंधेरे में डूबी थीं. थोड़ा सा उजाला श्रीकांत के साथ
भीतर घुस आया था. चुंधियाई आंखों को अंधेरे का अभ्यस्त बनाते हुए श्रीकांत ने
देखा, कोने में सटकर खड़ी दो धुंधली लंबाईयां छिटक कर एक-दूसरे से अभी-अभी अलग हो
गई हैं. पलभर को श्रीकांत की बुद्धि मर गई. वह ठीक से कुछ भांप नहीं पाया. और जब
तक दृश्य साफ हुआ मिसेज कपूर अपने कपड़े संभाल चुकी थीं. मिस्टर अन्सारी ने
ऐश-ट्रे पर धुआं छोड़ती सिगरेट उठाते हुए पूछा-
“क्या चाइये?”
और इस सवाल ने श्रीकांत के
दिमाग़ में एकाएक धूप सी छिटका दी. वह घबरा गया. बिना सोचे समझे उसने ‘आयम सॉरी’ कहा और दरवाज़ा उघाड़ लाइब्रेरी से बाहर
हो गया. वह साफ समझ रहा था कि लाइब्रेरी की छत से चिपकी ट्यूब लाइटें पलकें इसलिए
मूंदें हैं, क्योंकि हवा बारिश में भीगी हुई है और मिस्टर अन्सारी मिसेज कपूर के
साथ लाइब्रेरी के जंगल में अकेले हैं.
उसने माथे से पसीना पोंछा. कहीं दूर
बादल गरजे और हवा का झोंका उससे टकरा कर बिखर गया. श्रीकांत नहीं चाहता था कि आगे
समझे. लेकिन उसकी नसें जवान थीं और हर भूखी रात,
अब उसे निगलने लगी थी. उसके सामने बार-बार दो आकृतियां छिटक कर एक दूसरे से अलग हो
रही थीं और उसके बदन पर हजारों चींटियां रेंग रही थीं.
बारिश की आवाज़ बरामदे से गुजरते हुए
श्रीकांत के साथ-साथ चल रही थी.
धक..धक..धक..
उसका दिल उफन रहा था. हाथ में
पकड़े सामान को उसने जोरों से सीने पर सटा लिया. पसीने की लीक फिसल कर ठोड़ी पर लटक आई. ड्यूटी रूम का अगला दरवाज़ा
खुला था. चेहरे पर रूमाल रगड़ कर भीतर दाखिल होते हुए श्रीकांत ने देखा, एक-एक कुर्सी पर तीन-तीन लोग लदे हैं. कुर्सियां
कम थीं. कुछ लोग इधर-उधर खड़े थे. बारिश के कारण भीतर अंधेरा घिर आया था. सिगरेटों
के लाल मुंह चमक-चमक कर बुझ रहे थे. एक दो ने “हल्लो शिरी” कहा. श्रीकांत जल्दी से मुस्कराया और “एक्सक्यूज मी” कह लोगों से रास्ता लेता हुआ आगे बढ़ गया. आलमारी की नाक पर लटके नथनुमा
ताले को खोल उसने टेप और रिकॉर्ड कपबर्ड में घुसा दिए. पास ही खड़ी बॉव्ड बालों
वाली इंग्लिश एनाउन्सर दीवार से पीठ टिकाए छत घूर रही थी. बे-बांहेंदार ब्लाउज में
उसने वक्ष आधे ही छिपाए थे.
क्या चाइए...... ?
........? .......
झटक कर श्रीकांत के सामने दो
आकृतियां अलग-अलग हुई और...
क्या चाइए ...? … श्रीकांत की
आंखों में आकाश तक फैला एक प्रश्न वाचक सिमट आया. कपड़े सम्भालते समय, मिसेज कपूर का जिस्म किस तरह उघड़ा और तेजी से
ढंपा था... श्रीकांत अब अधिक स्पष्टता से देख रहा था. दो आधे-आधे चांद दीवार से
पीठ टिकाए खड़े श्रीकांत को झांक रहे थे... क्या चाइए...? …
श्रीकांत ने आलमारी की नाक पर ताला
जड़ा. ड्यूटी ऑफिसर जसवंत,
टेलीफोन पर किसी की डांट सुन रहा था. श्रीकांत उसके करीब आकर खड़ा हो गया. उसकी
निगाह इंग्लिश एनाउन्सर के बदन को छूती हुई कमरे में चारों और दौड़ गई. लगा कमरे
में अजीब भुनभुनाहट छाई है. एक साथ अलग-अलग बातों पर बहस करते हुए लोग. ए बी और डी
चैनल का प्रोग्राम सुनाते हुए तीन रेडियो. सिगरेट पीती हुई मिस भण्डारी. श्रीकांत
को लगा, कमरे में आवाज़ों से अधिक धुआं भरा है.
टेलिफोन क्रैडिल पर रखते हुए जसवंत ने
श्रीकांत को घूरा.
“ऑटोग्राफ ले लो,” मुस्करा कर हल्का होने की कोशिश में श्रीकांत ने कहा और पेन की टोपी
उतारने लगा. जसवंत ने एक “हूं” के बाद
क्यू शीट की फाइल उसके सामने पटकी और कुर्सी से पीठ टिका कर रूआंसा हो गया. फ्रेंच
कट दाढ़ी वाला एक एनाउन्सर चश्मे वाले एनाउन्सर से बतिया रहा था. पास ही एक
बड़ा-सा जूड़ा बनाए मिसेज सिन्हा बैठी थी. श्रीकांत ने दस्तखत करने के लिए झुकते
हुए मिसेज सिन्हा के सिर में खुशबूदार तेल सूंघा और न देखकर भी देखा कि मिसेज
भण्डारी और दिनों की बजाए अधिक गोरी लग रही हैं.
दस्तखत करके पीछे हटते समय, पेन की टोपी श्रीकांत के हाथ से
नीचे गिर गई. गिराने की आवाज़ से लोगों की बातें पल भर रुकीं
और फिर होने लगीं. जसवंत टेबल के नीचे झुक कर फर्श टटोलने लगा. श्रीकांत खिसिया
गया था. जसवंत ने टेबल के नीचे से मुस्कुराता चेहरा निकाल कर उसकी तरफ देखा और
लोगों से बचा कर आंखी मारी “खूद ई ढूंढ ले यार.”
“एक्सक्यूज मी” कह मिसेज सिन्हा को एक तरफ खिसकाने तक श्रीकांत इस आंख मारने का मतलब
नहीं समझा था, लेकिन टेबल के नीचे सिर घुसाते ही
उसे मिस भण्डारी की नंगी पिंडलियां दीखीं. स्कर्ट का घेरा कुछ इस तरह लापरवाह था
कि घुटनों से ऊपर का मांसल हिस्सा भी दीख रहा था. श्रीकांत के बदन में तेजी से एक
गर्म लीक रेंग गई. कल्पना में तो हर रात संसार की ग्रेट-ब्यूटीज़ उसके आगे जिस्म
उघाड़े आ खड़ी होती हैं. लेकिन सचमुच... आज तक इन अंगों को उसने इतना जीवित नहीं
देखा था. नशे का एक परनाला श्रीकांत के सिर पर गिरने लगा. टेबल के नीचे अंधेरा था.
फिर भी दूध के दो खंभों को वह साफ देख रहा था. क्या चाइए...? नशा... नशा...
बेरोंएदार खंभों को शायद श्रीकांत छू ही
लेता, यदि “अबे मिली” की पुकार जसवंत न लगा देता. श्रीकांत तेजी
से बाहर निकल आया. जसवंत जोरों से मुस्करा रहा था. उत्तर में श्रीकांत ने भी एक
घबराई मुस्कान जसवंत की ओर फेंकी और टोपी पेन के मुंह पर जड़ने लगा. मिस भण्डारी
उसी तरह सिगरेट पी रही थी. मिसेज सिन्हा टेलिफोन पर अचानक बदल गए मौसम की बात कर
रही थीं. इंग्लिश एनाउन्सर खड़ी छत को घूर रही थी. किसी ने कोई शेर सुना कर
वाहवाही ली.
श्रीकांत ने ड्यूटीरूम के बाहर
हड़बड़ाते हुए महसूस किया कि भीतर बहुत गर्मी है.
सर्द हवा खुले कालर में घुसी
और समूचे श्रीकांत को सिहरा गई. बरामदे में वही बारिश का चिपचिपापन बिछा था.
श्रीकांत एक खंभे से टिक गया.
मिसेज अरोड़ा जाने कहां से भीगती हुई आकर
श्रीकांत के पास खड़ी हो गई. उनके कपड़ों से चूता पानी फर्श पर जमा होने
लगा. बिना टिकुली के मिसेज अरोड़ा का माथा कितना बड़ा लगता है. चेहरे पर लटकी
बारिश की बूंदें और बिखर कर कायदे से इधर उधर चिपके बाल. श्रीकांत को लगा कोई बात
न करना अशिष्टता होगी.
“कहां भीग आई ?”
उसने चिपकी साड़ी में उभरे कटावों को पीते हुए पूछा. मिसेज अरोड़ा
वक्षों से चिपके पल्लू को छुड़ा कर निचोड़ रही थीं. झुकते ही उनके भीगे ब्लाऊज का
गला अधिक खुल गया. दो गोरे-गोरे बादल श्रीकांत की आंखों में तिरे.
धक...धक...धक.........
क्या चाइए ? ……..
“अरे भैया कुछ न पूछो...” मिसेज अरोड़ा ने निचुड़े
आंचल को खोल कर फटकारा, “कैन्टीन से यहां तक आते-आते ये हाल हो गया.”
श्रीकांत को सिगरेट की तलब
हुई. वह सिगरेट केवल कंपनी तक पीता है, लेकिन लग रहा था इस समय पसलियों में
पछाड़ें खाते दिल को सिगरेट के धुएं से ही दबाया जा सकता है. मिसेज़ अरोड़ा दिल्ली
के मौसम को भला-बुरा कह रही थी. “जब हम मसूरी में थे...” कह कर उन्होंने कोई घटना सुनाई. श्रीकांत ने सुना नहीं, वह केवल देख रहा
था. मिसेज अरोड़ा के कपड़े शरीर से चिपक कर गुम हो गए थे. पारदर्शी से कपड़ों में
उनका जिस्म जगह-जगह निर्वसन लगा. वे इतना करीब खड़ी थीं कि उनके अंगों से उठती भाप
श्रीकांत ने अपनी सांस में अनुभव की.
धक...धक...धक...
अस्फुट से वाक्यों को उल्टा-सीधा जोड़कर
श्रीकांत ने जल्दी से अंदाज़ा लगाया कि मिसेज अरोड़ा का मसूरी में अपना मकान है और
उनके हसबैंड बड़े बिजी रहते हैं और उनका नौकर भाग गया है और.... धक... धक...धक...
धक... धक...
श्रीकांत एक गहरे कुएं में डूबा जा
रहा था. जहां दूध के दो खंभों पर गोरे बादल तैर रहे थे... श्रीकांत चांद का मुंह
नहीं पकड़ सकता ?... कोई आकर श्रीकांत की सांस में फंसा यह प्रश्नवाचक विकाल दे और उसकी
पसलियां कड़कड़ा जाएं और वह बादलों की घाटी में मुंह छुपा कर मर जाए. धक...धक... ‘क्या चाइए ?’
मिसेज
अरोड़ा कुछ देर के लिए श्रीकांत के साथ लाईब्रेरी के जंगल में चली जाएं तो ? पलक मूंदी ट्यूब लाइटें... और नहा कर आई हवा... श्रीकांत को लगा उसके
बाजुओं की मछलियां लदक रही हैं.
आकाश में बिजली की तलवार चमक कर बुझ
गई और धड़-धड़ाकर गूंजने लगी ऊपर देखते हुए मिसेज अरोड़ा बोलीं, “अभी तो कोई आसार नहीं थमने के.” बोलते समय उनके दांत
बजे.
“आपको सर्दी लग रही है. भीतर चली जाइए.” श्रीकांत ने
पेंट की जेब से हाथ निकाल कर, ड्यूटी रूम की तरफ इशारा किया.
“भीतर क्या जाना है
भैया, कोई टैक्सी वैक्सी आए तो घर जाऊं वरना रात यहां थोड़े करनी है.”
श्रीकांत चुप होकर गेट की तरफ
देखने लगा. टैक्सी रिसेप्शन वाले गेट से ही भीतर आ सकती है. लेकिन आएगी तभी, जब
उसे कोई सवारी रेडियो स्टेशन तक की मिले. मिसेज अरोड़ा करोलबाग जाएंगी. श्रीकांत
उनसे लिफ्ट नहीं ले सकता ?
बादल फिर गरजे. सामने आंगन में पानी
भर गया था. मीराबाई की सफेद मूर्ति भीग रही थी. मूर्ति के चारों ओर गोलाई में लगाई
गई फूलों की क्यारियां भी गरदन तक पानी में डूबी थीं. दो-तीन कारें पार्किंग में
खड़ी नहा रही थीं. श्रीकांत ने रेडियो स्टेशन की दीवार के पार ताका. दीवार के
सामानान्तर खड़ी पेड़ों की ऊंची कतार, पेड़ों की झिर्रियों से झांकती रिजर्व बैंक
की विशाल इमारत, सब बारिश में चुपचाप खड़े थे.
“यहां तो मुश्किल ही है टैक्सी का
आना” श्रीकांत ने शंका जाहिर की.
“देखो” कहकर मिसेज अरोड़ा बारिश को देखने लगीं.
पोर्टिको के पास खड़े लोगों में किसी बात पर
ठहाका लगा. श्रीकांत ने मिस्टर अन्सारी की आवाज़ भी सुनी. वह ऊपर से नीचे तक घिन
से भर गया. मिस्टर अन्सारी जैसा आदमी भी इतने जोर से हंस सकता है ? सिर झटक कर जैसे श्रीकांत ने अन्सारी के खयाल को दिमाग से धकेल दिया.
उनके बारे में सोचकर वह उन्हें महत्ता नहीं देना चाहता था. उसने बरामदे को देखा.
एक सीला हुआ हवा का झोंका वहां डोल रहा था. सिमट कर खड़ी तीन औरतें श्रीकांत को
बहुत बेचारी लगीं. मिसेज अरोड़ा पास न खड़ी होतीं तो वह उनके करीब जा खड़ा होता.
चूड़ियों, बिंदियों और लिपिस्टिकों की बातें करती औरतें उसे अक्सर भाती हैं.
अचानक कुछ हुआ और श्रीकांत जैसे एक सूने कमरे में पहुंच गया. इस कमरे
की दीवारों ने कभी चूड़ियां बिंदियां नहीं देखीं. रोज सुबह दो मर्दाने हाथ स्टोव
जलाते हैं. झाड़ू लगाते हैं. कपड़े धोते हैं. उन पर प्रेस करते हैं. बिस्तर बिछाते
हैं. और रात को श्रीकांत के सीने से लगकर सो रहते हैं
इन खुरदरे हाथों की जगह
चूड़ियों वाले हाथ कब लेंगे ?
बादल फिर गरज कर चुप हो गए.
श्रीकांत मिसेज अरोड़ा को घूरने लगा. कितनी सारी चूड़ियां हैं इनके हाथों में ? घर के काम करते वक्त ये चूड़ियां बजती होंगी. खन्न खन्न. इन हथेलियों की
गोरी छूअन...
मिसेज अरोड़ा मुस्कुरा रही थीं.
“क्या देख रहे हो इस
तरह ?”
श्रीकांत ने चाहा इस सवाल का कोई
रोमांटिक जवाब दे. लेकिन डर लगा. मिसेज अरोड़ा उम्र में बड़ी हैं. बोला – “आप को टैक्सी मिल जाए तो मुझे लिफ्ट दीजिएगा ?”
“ओह श्योर,”
मिसेज अरोड़ा ने पूरे विश्वास के साथ पलकें झपकाई. फिर कहा “बस
इत्ती सी बात ?” वे हंसने लगीं. श्रीकांत झेंप गया. हंसते
समय मिसेज अरोड़ा के लिपिस्टिक रंगे होंठ तन गए थे और दांतों की कतार झांक रही थी.
श्रीकांत ने नोट किया, उनके गालों पर दोनों ओर इंच इंच भर की दो लकीरें खिंच आती
हैं. मिसेज अरोड़ा ने आंचल सीने से उघाड़ कर देखा कि सूखा या नहीं. श्रीकांत कहीं
डूबा...
नशा... नशा...
अचानक
ड्यूटी रूम के दरवाज़े से शोर बहकर आया. किसी के भागने दौड़ने टेलिफोन पर “हैलो-हैलो” चिल्लाने और रेडियो का वाल्यूम बढ़ाने की
आवाज़ें थीं. बरामदे में खड़े सभी लोग प्रश्नवाचक निगाहों से ड्यूटी रूम को घूरने
लगे. शायरों की मजलिस जेबों में हाथ घुसाए इत्मीनानी चाल के साथ बाहर आ खड़ी हुई.
“क्या हुआ ?” दूर से किसी ने पंजा नचाकर पूछा.
“होना क्या है...” कह कर किसी ने बताया कि ग्यारह नंबर स्टूडियो में एक रिकॉर्ड पर ट्रैक
बैक था. सुई अटक कर बार-बार एक ही ट्रैक पर फिसल रही थी और लता मंगेशकर बार-बार “सैंया सैंया” दोहरा रही थी.
“एनाउन्सर कौन है ?” किसी ने चिंता व्यक्त की.
“रानी,” कह कर वे साहब “हो..हो..”
करने लगे. हंसने में उनका साथ और जनों ने भी दिया.
रानी से ग़लती हो जाने पर हंसना क्यों
चाहिए...?
...श्रीकांत नहीं समझा. लेकिन मिसेज़
अरोड़ा भी हंस रही थी.
श्रीकांत ने मुस्कुरा कर उनकी
ओर देखा. टैक्सी में उसे मिसेज़ अरोड़ा के साथ पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या अगली
सीट पर ड्राइवर के साथ ?
मिस भण्डारी, मिसेज़ सिन्हा,
इंग्लिश एनाउन्सर, तलवार कट मूछों वाला एनाउन्सर, फ्रेंच कट दाढ़ी वाला एनाउन्सर
सभी ड्यूटी रूम से बाहर निकल आए. रेडियो पर कोई ग़लती होते ही ड्यूटी ऑफिसर
धमाचौकड़ी मचा देता है और तब ड्यूटी रूम में ठहरना मुश्किल हो जाता है. बरामदा
लोगों से भर सा गया. दूध के दो खंभे श्रीकांत के पास आकर थमे.
“हैलो” मिस भण्डारी,
मिसेज अरोड़ा से कह रही थी.
इंच-इंच भर की दो लकीरें काढ़
मिसेज अरोड़ा ने हैलो का जवाब दिया और रानी से हुई फॉल्ट का इतिहास सुनने लगीं.
श्रीकांत को लगा उसकी उपस्थिति नकारी जा रही है. धुएं का एक छल्ला उसकी नाक के पास
होता हुआ गुजरा. वह मिस भण्डारी से सिगरेट नहीं मांग सकता ? काश, मिस भण्डारी इतनी गोरी न होती.
धक...धक...धक...
दिल पछाटें खा रहा था. श्रीकांत को लगा वह बहुत
डरपोक है किसी से कुछ नहीं मांग सकता. वरना क्या वह इतना सूना होकर जी रहा होता ? श्रीकांत को ठीक से याद नहीं कि वह कब से सूना है. रेडियो में एनाउन्सरी
मिलने से पहले तो अकेलेपन की चिंता करने जितना वक्त भी उसके पास नहीं था. लेकिन यह
वक्त मिलते ही उसने महसूस किया था कि उसे अकेला नहीं रहना चाहिए और तब उसने दुकेले
होने की बहुतेरी कोशिशें कीं. लेकिन दुकेले होना एक लंबा रास्ता था, जिसके दोनों
सिरों पर ढेर धुआं छाया था. धुएं की शक्ल सवालिया निशान जैसी थी और सवालों में
श्रीकांत बचपन से कमजोर था.
हर रात रगों का तनाव उसके सपनों पर छा
जाता था और उसकी कल्पना में ढेरों औरतें अपना जिस्म उघाड़े नुमाइश हो जाती थीं.
श्रीकांत हर रात एक नई शादी करता और सुबह देर तक सोया रहता था. देखी-अनदेखी कितनी
ही सलोनी औरतों के साथ उसने काल्पनिक नशे के कुएं में डुबकियां लगाई थीं. कितनी ही
फिल्म अभिनेत्रियां उसने झूठी कर दी थीं.
सूना सूना श्रीकांत मरा मरा
होकर जी रहा था – ढेरों हवाई औरतों के बीच — जो उसके कमरे में चारों ओर थीं — जो
कहीं नहीं थीं.
श्रीकांत जैसे कहीं दूर से लौटा. धुएं
का एक छल्ला उसकी नाक के पास होता हुआ
गुजर रहा था. मिस भण्डारी और मिसेज अरोड़ा किसी बात पर इतने जोर से हंसने लगी थी
कि सारा बरामदा उन्हें घूर रहा था.
श्रीकांत असमंजस में हो गया कि इस
हंसने में उसे भी योग देना चाहिए या नहीं ? मिस भण्डारी मिसेज
अरोड़ा के सामने इस तरह खड़ी थी कि श्रीकांत पराया सा हो
गया था. खड़े-खड़े श्रीकांत की नज़र मिस भण्डारी की पीठ पर फिसलने लगी. कितनी गोरी
गरदन है... उजली उजली बाहें. कमर स्कर्ट में और पतली हो गई थी. घेरे के फैलाव ने
कूल्हों की गोलाई को ढांप लिया था. लेकिन दूध के खंभे...
घबरा कर श्रीकांत लॉन की तरफ
देखने लगा. बारिश थक गई थी. रिजर्व बैंक की छत पर नीला आकाश झांकने लगा था.
चिर्रर्रर्र से पानी चीरती हुई एक बस गीली सड़क पर भाग कर गुज़री. श्रीकांत चिट्र
चिट्र का धीमा होता स्वर सुनकर बस की पीठ छोटी होती जाने की कल्पना करता रहा.
“हैलो भई...” एक स्वर श्रीकांत ने पास आता हुआ सुना.
“गुड इविनिंग
मि.अन्सारी” मिस भण्डारी और मिसेज अरोड़ा ने मुड़कर आते हुए
स्वर की तरफ देखा “व्हेयर वर यू टिल नाऊ ?” मिसेज अरोड़ा ने पूछा.
मिस्टर अंसारी हंसने लगे.
श्रीकांत उनकी तरफ घूर रहा था.
“हैलो शिरी...” मिस्टर अन्सारी ने एक मुस्कुराती हैलो श्रीकांत की तरफ भी उछाली और मिस
भण्डारी को डिनर के लिए निमंत्रित करने में व्यस्त हो गए.
श्रीकांत साफ देख रहा था कि
मिस्टर अन्सारी हंस हंस कर बातें कर रहे हैं. उनके निडर चेहरे पर अंधेरी लाईब्रेरी
का कोई चिन्ह नहीं है. मिसेज़ कपूर कहां है ? अचानक यह सवाल
श्रीकांत के दिमाग में कौंध गया. उसने तेजी से बरामदे में एक नज़र दौड़ाई. मिसेज
कपूर पोर्टिको के पास साड़ियों चूड़ियों की बातों से घिरी थीं.
श्रीकांत तपने लगा. क्या वह
इतना निरीह है कि किसी को उससे डरना भी नहीं चाहिए ? मिस्टर
अन्सारी की हंसी बार-बार उसे चिढ़ा रही थी... क्या चाहिए... और श्रीकांत के भीतर
एक बहुत बड़े कढ़ाव में उबाल आ गया था...
धक... धक... धक... क्या चाहिए...
अभी श्रीकांत इन तमाम औरतों पर
टूट पड़ेगा. उसकी मछलियां लदक रही हैं. अब ठंडे झोंके उसे सिहरा नहीं सकते. वह दूध
के खंभों को पी जाएगा. गोरी बालू के टीलों में समा जाएगा और...
एक साथ तीन टैक्सियां रिसेप्शन गेट से दाखिल हुई
और पानी उछाल कर दोनों और बिखेरती हुई पोर्टिको में आकर खड़ी हो गई. बारिश थम गई
थी. चारों ओर उजलापन छिटक आया था. छतों के कोने बूंद बूंद टपक रहे थे. एक ओर
परनाला गिर रहा था. सड़क पर खड़े पेड़ झर रहे थे.
श्रीकांत बुझने लगा.
बरामदा सारा पोर्टिको की तरफ सरक आया. टैक्सी की
आशा में खड़े लोग जोरों से खुश होने लगे. बाकी लोग भी चापलूसी भरी खुशी जाहिर कर
रहे थे. मिस भण्डारी और मिसेज अरोड़ा किलकती हुई टैक्सी की तरफ लपकीं. श्रीकांत को
उनके पीछे जाना चाहिए या नहीं ? टैक्सियां भर रही थी. ड्राइवरों
ने मीटर डाउन कर दिए थे. धड़ाक भड़ाक कर के फाटक बंद हो रहे थे. लिफ्ट लेने वालों
की भीड़ पोर्टिको की सीढ़ियों पर निरीह बनी खड़ी थी. श्रीकांत ने एक टैक्सी की
पिछली सीट पर लकीरें काढ़ते चेहरे के पास मिस्टर अन्सारी का चेहरा देखा. टैक्सियों
ने मीरा बाई की मूर्ति का चक्कर काट कर अपना मुंह दरवाज़े की तरफ किया और पानी
चीरती हुई मेन गेट से बाहर हो गई.
बरामदे में एकाएक सन्नाटा छा
गया. बचे-खुचे लोग खिसियाते हुए पैंटों और पाजामों के पांयचे उठा-उठा कर पंजों के
बल पानी से बचते हुए बाहर जाने लगे. झरते पेड़ों के नीचे बस स्टापों पर लोग बढ़
रहे थे. मीराबाई की मूर्ति पर चढ़ने की कोशिश करता एक केंचुआ बार-बार फिसल रहा था.
दो तीन केंचुए पोर्टिको की सीढ़ियों पर रेंग रहे थे. श्रीकांत भी सीढ़ियों पर खड़ा
था. लगा वह बेकार ही खड़ा है. वह भी केंचुए की तरह ऊंची जगह चढ़ते ही फिसल जाता
है.
एक केंचुआ रेंगता हुआ श्रीकांत
के सीलन भरे बूट पर चढ़ गया. श्रीकांत ने पांव झटक कर उसे उछाल दिया. वह केंचुआ
होना नहीं चाहता. लेकिन...
उसके न चाहने से क्या होता है.
श्रीकांत ने किसी पुस्तक में पढ़ा था कि केंचुआ आधा नर होता है, आधा मादा. तमाम शारीरिक सुख वह स्वयं जुटा सकता
है.
श्रीकांत भी केंचुआ है. उसके न
चाहने से क्या होता है....
2 comments:
वाह वाह बहुत ही मजा आया एकबार जो पढनी शुरू की तो बस पढ़ता ही गया वाह क्या खूब लगी कहानी 'केचुआ
'
शायद ज्यादातर श्रीकान्त बाद में जाकर मिस्टर अन्सारी में बदल जाते होंगे! उस जमाने में यह कहानी लिखना बहुत हिम्मत का काम रहा होगा।
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