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Wednesday, March 25, 2009

रेडियोनामा: बरख़ा रानी जम के थम के बरसो

रेडियोनामा: बरख़ा रानी जम के थम के बरसो
अन्नपूर्णाजीमैं अकेला ही रेडियो सिलोन सुन पाता हूँ यह गलत सहमी कैसे हुई, क्या रेडियो सिलोन अकेले मेरे लिये कार्यक्रम चलायेगा ? अगर आप आज भी रेडियो सिलोन थोड़ी सी स्पस्टता की तकलीफ़ के साथ भी सुनती तो हमारे देश से ही नहीं, पर पाकिस्तान से भी उनको हररोझ फोन करने वाले कई लोग होते है, जो कभी स्पस्ट सुन पाने या तकलीफ़ से सुन पाने या कभी बिलकुल सुन नहीं पाने के कारण फोन करते रहते है । फोन इन कार्यक्रममें भी देश के और पकिस्तान के भी हर हिस्से से लोग फोन करते है और कार्यक्रम के बारेमें सुझाव भी देते है । हाल ही में सुरत के एक मित्रने मेरे फोन इन कार्यक्रम को सुन कर मूझे बताया तो उसके बाद वाले फोन इन कार्यक्रममें उनका एक ख़ामोश (कभी पत्र से या फोन से रेडियो सिलोन का सम्पर्क नहीं करने वाले) श्रोता के रूपमें जिक्र किया (जिससे रेडियो सिलोन और उनकी दोनोंकी होंशलाअफ़झाई हो) तो उन्होंने तो सुना ही पर एक और ख़ामोश श्रोताने उनको इस बात की सुचना दी ।
भावनगर के एक श्रोता श्री बकुल शुक्लाजीने तो इस तरह के रेडियो सिलोन के श्रोता लोगो की टेलिफोन डिरेक्टरी प्रकाशित करके दो दो कापीयाँ वो जिनको रेडियो सिलोन के ज़रिये जानते है, सभी को अपने ख़ूद के खर्च से भेजी है । इसी तरह के एक श्रोता इन्दौर के श्री कैलाश शुक्लाजी बडोदरा के श्री प्रभाकर व्यास और जयन्तीभाई पटेल द्वारा मूझसे परिचित हो कर सुरत हाल ही में आये थे और उनके ठहराव पर उनकी बिनती अनुसार मैं उनसे मिलने गया भी था । और हाल ही में वी बालसारा की पूण्यतिथी पर रेडियो सिलोन के विषेष प्रसारण क जो जिक्र अपनी कोमेन्ट में मैंनें किया था, उस प्रसारण की समाप्ती पर तूर्त ही टेलीफ़ोनीक प्रतिक्रिया मूझे दी । उनके पास रेडियो श्रीलंका के प्रसारण को अधिक अच्छा बनाने के लिये कई उपयोगी सुझाव है । पोटलीवाले बाबा जैसे कुछ पाठको को मेरी इन बातो बकवास भले लगे पर रेडियो सिलोन के प्रभाव पर पाठको के संशय को कुछ हद तक दूर करने का मूझे यही रास्ता नझर आया । चाहे आप इसे मेरी मर्यादा ही क्यों न समझे ?
पियुष महेता ।
नानपूरा-सुरत ।
दि. 25-04-03

1 comment:

annapurna said...

आपने सिलोन के श्रोताओं के बारे में अच्छी जानकारी दी।

कुछ समय पहले आप ही के सुझाव पर मैनें सिलोन सुनने की कोशिश की थी और कुछ-कुछ सुना भी था जिसकी चर्चा मैं पहले कि चिट्ठों में कर चुकी हूँ, पर विश्वास कीजिए आजकल तमाम कोशिशों के बावजूद मेरा रेडियो सिलोन नहीं पकड़ रहा है।

आज भी मेरा वही सुझाव है जो पहले दिया था कि विज्ञापनदाता थोड़ी सहायता करते हुए अगर तकनीकी शक्ति बढा दे तो सिलोन साफ़ सुना जा सकता है जैसा कि दूसरे रेडियो चैनल और टेलीविजन चैनल दुनियाभर में साफ़ सुनाई और दिखाई देते है।

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