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Thursday, March 26, 2009

रेडियो श्रीलंका की हिन्दी सेवा

रेडियोनामा: बरख़ा रानी जम के थम के बरसो
श्री अन्नपूर्णाजी,
मूझे रेडियो सिलोन के बारेमें आपके द्वारा लिख़े सभी चिठ्ठे पूरे याद है । और कुछ दिनो आपने 8 बजे तक आपके जोब पर निकलने के पहेले तक़ सुनने की बातें भी याद है । और आपकी वो बात भी याद है जो भारतीय उत्पादनो के विज्ञापन रेडियो सिलोन पर देने के बारेमें थे तब मैंनें भारतीय रिझर्व बेन्क के विदेशी मुद्रा निती के बारेमें लिख़ा भी था (जो श्री गोपाल शर्माजी की आत्मकथा के आधार पर था )। इस बारेमें जब श्री कैलाश शुक्ला जी से उनके सुरत के दौरे के दौरान बात हुई तब उन्होंने बताया की कुछ भारतीय कम्पनीयाँ श्रीलंकामें निर्यात करती है और कुछ: कम्पनीयाँ वहा अपने प्लान्ट भी स्थापीत कर चूकी है, जो वहाँ से होने वाले मूनाफ़े का कुछ हिस्सा रेडियो श्री लंका के स्थानिय एफ एम केन्दो से या जहाँ आन्तरराष्ट्रीय प्रचार की आवश्यकता हो हिन्दी सेवा से भी अपने विज्ञापन दे सकती है, तो भारतीय विदेशी मूद्रा कानून से कोई दिक्कत नहीं आयेगी, और इस आय को वे प्रसारण की क्षमता बढानेमें लगा सकता है रेडियो श्रीलंका । कैलाशजीने यह भी कहा की अगर वे 41मीटर बंध ही कर दे और उसकी जगह 25 मीटर वाला एक ट्रंस्मीटर स्टेन्डबाय के रूपमें रखे तो भी विलली खर्चमें बचाव के साथ विना रूकावट प्रसारण हो सकेगा । एक और बात की जब सुबह 6 से 7 बजे तक मौसम के कारण उनके सिग्नल्स लम्बी दूरी पार नहीं कर पते तो उनको अपना समय 7 बजे से 9.30 बजे तक करना चाहिए । अभी फिल्मी वादक कलाकारो के बारेमें 4 से पाँच किठ्ठे मेरे प्रकाशित हुए, जो आप की भी होबी है उन पर आपकी कोई टिपणी नहीं आयी इस से थोड़ा अचरज़ हुआ पर शायद समय की कमी रहती होगी वैसे आपकी साप्ताहिक समीक्षा और कोई रेर गानेको याद करने वाली श्रेणीयाँ पसंद है पर कभी उस पर टिपणी लिख़ने के लिये मेरा ज्ञान कम पड़ता है और थोड़ा मेरा नझरिया अनछुये विषय पर ज्यादा चला जाता है । जिससे सभी लेख़को की बात एक ही होते हुए पाठको के सामने न आये ।
धन्यवाद ।
पियुष महेता ।
नानपूरा-सुरत ।

1 comment:

annapurna said...

पीयूष जी वादक कलाकारों के बारे में आपके चिट्ठे इतने पूर्ण होते है की मेरे पास टिप्पणी के लिए कुछ नही रहता.

आपका नजरिया मेरे चिट्ठे के अनछुए विषय पर जाता है तो आप जरूर टिप्पणी लिखिए.

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