पहले विविध भारती से कहा जाता था - ये विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम या कहते थे ये आकाशवाणी है विविध भारती का पंचरंगी कार्यक्रम. पंचरंगी कार्यक्रम के बारे में सुना था की शुरूवात में पांच तरह के कार्यक्रमों की योजना थी यानी पांच रंगों के कार्यक्रम जिनमें एक रंग फिल्मी संगीत, दूसरा शास्त्रीय संगीत, तीसरा लोकसंगीत और अधिक मुझे जानकारी नहीं है, खैर... आज के समय की बात करें तो सुबह के प्रसारण में 6 से 8 बजे तक के कार्यक्रमों में पांच रंग स्पष्ट नजर आते है - पहला रंग गूढ़ कथन का चिंतन है, दूसरा वन्दनवार का भक्ति संगीत, तीसरा पुराने फिल्मी संगीत का सुरीला रंग, चौथा शास्त्रीय गहराई में डूबा पारंपरिक संगीत और पांचवा रंग दिन भर के लिए उपदेश देता है.
अब एक नज़र इस सप्ताह के सुबह के कार्यक्रमों पर… इस सप्ताह दो दिन ख़ास रहे - सोमवार को हिन्दी दिवस - वास्तव में यह दिन विविध भारती के लिए पर्व का दिन होना चाहिए क्योंकि न सिर्फ़ देश में बल्कि विदेशों में भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में विविध भारती का बडा योगदान है पर सुबह के प्रसारण में हिन्दी दिवस की झलक तक नहीं मिली। आज गीतकार हसरत जयपुरी की पुण्य तिथि है जिनके लिए भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम समर्पित किया गया।
सप्ताह भर सुबह पहले प्रसारण की शुरूवात परम्परा के अनुसार संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि, यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुए. इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ वन्दनवार कार्यक्रम से जिसकी शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, यह धुन सुबह के समय के लिए बहुत उचित है फिर सुनाया गया चिंतन.
चिंतन में गूढ़ विचार बताए जाते है जो आध्यात्म की उंचाइयो को छूते है और हर दिन जीवन दर्शन का एक पाठ पढाते है जैसे महाभारत में बताए गए मानव लोक के छः सुखों को बताया गया, स्वामी रामतीर्थ द्वारा बताया गया वेदान्त का कथन कि ईश्वर स्वयं में है जिसे अनुभव किया जाना है, बाणभट्ट का कथन की इंसान की नियत धन की गरमी से लता के समान झुलसती है। सोमवार हिन्दी दिवस को स्वामी विवेकानन्द के विचार बताए गए कि विश्व को कुटुम्ब मानने की योग्यता उसी में होती है जो किसी भी तरह के भेदभाव को नहीं मानता है जबकि इस दिन भाषा संबंधी महात्मा गांधी जैसे किसी मनीषी के कथन बताए जा सकते थे।
वन्दनवार में अच्छे भक्ति गीत सुनवाए गए, ईश्वर के साकार रूप की भक्ति जैसे -
शिव स्तुति - हे गंगाधर हे शिवशंकर
निराकार रूप की भक्ति -
प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
भक्ति गीत जैसे -
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले
गोविन्द नाम लेकर तब प्राण तन से निकले
पारंपरिक रचनाएं भी सुनवाई गई -
ॐ जय जगदीश हरे
पुराने लोकप्रिय भजन भी शामिल रहे -
प्रबल प्रेम के पाले पड कर प्रभु को नियम बदलते देखा
अपना मान टले टल जाए भक्त का मान न टलते देखा
पर एक भी नया भजन नही सुनवाया गया।
सप्ताह भर कार्यक्रम की प्रस्तुति का आलेख भी अच्छा रहा, कहा गया कि ईश्वर प्रेम में है, समभाव में है, ह्रदय में विकार नही होना चाहिए, ईश्वर की उपासना पूरे मन से करना चाहिए आदि।
कार्यक्रम का अंत देशगान से होता रहा। अच्छे देशभक्ति गीत सुनवाए गए, लोकप्रिय गीत जैसे -
है स्वर्ग नही धरती पर धरती को स्वर्ग बनाना है
हर्ष से अपना आँगन द्वारा खुशिया आज मनाए री
आओ सखी मंगल गाए री
नया या बहुत कम सुना गीत -
जय जन्म भूमि जय हो
सप्ताह में एक बार भी गीतों का विवरण नही बताया गया।
6:30 से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई.
7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के दूसरे भाग से हम जुड़े जो प्रायोजित है. इसीसे विज्ञापन भी प्रसारित हुए पर एक भी विज्ञापन क्षेत्रीय केंद्र का नही था. इस कार्यक्रम में भूली बिसरी आवाजे, गीतकार, संगीतकार और फिल्मो के नाम कम ही सुनाई दिए, जाने पहचाने गीत ही अधिक रहे. शुक्रवार को सुरैया का गाया अफसर फिल्म का लोकप्रिय गीत सुनवाया गया -
नैना दीवाने इक नही माने
साथ ही तलत महमूद, हेमंत कुमार के गाए गीत भी सुनवाए गए. रविवार को सुमन कल्याणपुर का फरेब फिल्म का कम सुना गीत प्रसारित हुआ -
ए जिन्दगी के साथी ना जाना जिन्दगी से
इसके अलावा लता, रफी, किशोर, आशा के अक्सर सुनाए जाने वाले गीत सुनवाए गए.
शनिवार को तो कार्यक्रम का एक अंश भी भूला बिसरा नही था.
आज गीतकार हसरत जयपुरी की पुण्य स्मृति में कार्यक्रम समर्पित किया गया। गीतों का चुनाव अच्छा रहा। उनके लिखे ऐसे गीत भी सुनवाए गए जो कम ही सुनवाए जाते है जैसे सुहागन फ़िल्म का लताजी और मन्नाडे का गाया गीत -
भीगी चाँदनी छाई बेखुदी
हर दिन कार्यक्रम का समापन कुंदनलाल सहगल के गीत से होता रहा. अक्सर लोकप्रिय गीत ही सुनवाए गए पर शुक्रवार को सुनवाया गया परवाना फिल्म का यह गीत कम ही सुनवाया जाता है -
टूट गए सब सपने मेरे
ये दो नैना सावन भादों
बरसे शाम सवेरे
इस कार्यक्रम में कुछ सामान्य जानकारी भी दी गई जो अच्छी लगी जैसे कुछ फिल्मों के रिलीज का वर्ष और बैनर बताया गया, एक ही नाम से बनने वाली अधिक फिल्मो की जानकारी ही दी गई. एकाध बार उस दिन प्रसारित होने वाले कार्यक्रम की भी जानकारी दी गई जैसे बताया कि एक ही फिल्म से कार्यक्रम में पुरानी फिल्म नदिया के पार के गीत सुनवाए जाएगे और गीत की झलक भी सुनवाई गई. इसके अलावा एकाध बार उदघोषक ने अपना नाम भी बताया और उनके साथ कंट्रोल रूम और ड्यूटी रूम के साथियो के नाम भी बताए।
पर हर दिन एक बात खटकती रही कि भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम की संकेत धुन नहीं है।
7:30 बजे संगीत सरिता में बढिया श्रृंखला चल रही है - एक धुन दो रूप जिसमें आमंत्रित कलाकार है लोकगीत गायिका सुचरिता गुप्ता और भोजपुरी फिल्मो के संगीतकार राजेश गुप्ता. इसमे उत्तर प्रदेश के उन लोकगीतों पर चर्चा की जा रही है जिन्हें फिल्मो में लिया गया है. सुचरिता जी ने लोकगीत गाये है जिनकी रिकार्डिग वाराणसी केंद्र में की गई. यहाँ निम्मी (मिश्रा) जी के साथ बातचीत कर रहे है राजेश जी. बताया गया कि भाव के अनुसार इन गीतों के नाम है. लोकगीत के साथ इसकी ताल की भी जानकारी दी जा रही है जिसे बजा कर सुना रहे है विवेक कुलकर्णी. इन गीतों को विभिन्न रागों की सहायता से फिल्मी गीतों में ढाला गया है. फिल्मी गीत भी सुनवाए गए.
ये लोकगीत और फिल्मी गीत है -
लाचारी गीत - मध्यम ताल - तोरी गोरी कलाई लुभाए जियरा
राग कल्याण की झलक - फिल्म मुझे जीने दो - नदी नारे न जाऊ
कजरी - बारामासा- नई दुलानी के ढैया बलमा दुपहरिया बिताए रहो
राग असावरी - फिल्म अगर तुम न होते - हम तो है छुई मुई
ख़ास ताल दीपचंद है -
लोरी - निंदिया काहे न आवे
धीरे से आजा रे अँखियन में निंदिया
काहे को ब्याही विदेश
इस बढिया कार्यक्रम का संयोजन कांचन (प्रकाश) संगीत ने किया है, प्रस्तुति सहयोग वसुंधरा अय्यर और तकनीकी सहयोग दिलीप कुलकर्णी, प्रदीप शिंदे, जयंत महाजन, शशांक काटकरे का है.
7:45 को त्रिवेणी में हर दिन एक अच्छा विचार बताया गया जैसे मौसम का असर हम पर भी पड़ता है, इसीलिए प्रकृति को न छेडे, मानव मन जल के समान है, सभी के लिए जीवन की अपनी परिभाषा है, माता-पिता का सम्मान किया जाना चाहिए। इन विचारों पर चर्चा करते हुए नए पुराने गीत सुनवाए गए।
सोमवार का विचार था - हर एक के जीवन में एक मंज़िल होनी चाहिए ताकि उसको पाने के लिए वह एक रास्ता बना कर आगे बढे। क्या ही अच्छा होता इस दिन भाषा से संबंधित कोई विचार लिया जाता।
त्रिवेणी के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।
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Thursday, September 17, 2009
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1 comment:
आपने जो दो उद्द्घोषणाएं क्वोट की है उसमें एक तो सही है और दूसरी क्वोट के रूपमें सिर्फ़ आधी सही है पर वह उदघोषणा बिलकूल गलत होती थी , और वह सिर्फ़ शहनाझ अख़तरीजी ही करती थी कि , ये आकाशवाणी है विविध भारती की मनोरंजन सेवा' । यह पंचरंगी शब्द एक झमानेमें पंडित नरेन्द्र शर्माजीने बिलकूल सही चूना था पर बादमें पाँच से ज्यादा अनेक रंग विविध भारतीमें शामिल हुए, फ़िर भी बहूरंगी की जगह पंचरंगी शब्द सालों तक चला, सिर्फ़ शोर्टवेव पर तथा शाम 3.45 से 5.30 तक बहोत सालों चली कर्णाटक संगीत सभा अंतर्गत । बाकी सभी स्थानिय विज्ञापन प्रसारण केन्दों सिर्फ़ अपने केन्दों के नाम बोलते थे और केन्द्रीय विविध भारती सेवासे मिलनेवाले पूर्व-ध्वनिमूद्रीत कार्यक्रमो के टेपसे स्थानिय या क्षेत्रीय विज्ञापन शामिल करते वक्त 15 मिनीट के कार्यक्रमसे 1 गाना और उसकी उद्दघोषणा के साथ केन्द्रीय विविध भारती सेवा की शुरूआती उद्दघोषणा 'ये विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम' या 'ये आकशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम विविध भारती है' को उड़ा दिया जाता था । सीधा कार्यक्रमका नाम सुनाई पड़ता था । और यही वजह है कि मुम्बई के श्रोता आज भी पत्रावलि, या हल्लो फरमाईश जैसे फोन इन कार्यक्रमोमें स्थानिय बेला ए फ़ूल जैसे कार्यक्रम की बात बिना समझे ही कर बैठते है । रही बात शहनाझजी की तो वे पंचरंगी से मनोरंजन में परिवर्तन के समय किसी कारण बस विविध भारती से कुछ समय दूर थी । वे जब लौटी तब यह गलत उद्दघोषणा कई दिनों तक चलाई , सिर्फ़ उन्हॉनें ही । पर उन्होंने यह ख़याल नहीं किया था कि आकाशवाणी विविध भारती का अंश नहीं हो सकता पर विविध भारती ही आकाशवाणी का एक चेनल है ।
पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।
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