दोपहर में 2:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।
3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने। रतनपुर से सुमन उपाध्याय का पहला फोनकाल आया, यह सखि अक्सर पत्र भेजती रहती है, पर कोई विशेष बात नहीं की। विभिन्न क्षेत्रों जैसे जबलपुर, उदयपुर, झाड़खण्ड, छतीस गढ़ और पटना के गाँव से फोन आए और एक लोकल काल भी था। कार्यक्रमों के बारे में बात हुई, विविध भारती के कार्यक्रम पसन्द करने की भी बात की। छात्राओं ने अपनी पढाई के बारे में बताया, कुछ कम शिक्षित घरेलु महिलाओं ने भी बात की। अपने सिलाई कढाई के शौक के बारे में बताया। एक सखि ने बताया कि पसन्दीदा विषय हिन्दी साहित्य है और उदयपुर की सखि ने नए देखने योग्य पार्क के बनने की बात बताई। एक सखि ने खीर बनाना बताया। खीर देश में सभी जगह बनाई जती है, अच्छा होता किसी क्षेत्रीय व्यंजन के बारे में बताते।
सखियों ने नए-पुराने विभिन्न मूड के गानों की फ़रमाइश की।
सुन री सखि मोहे सजना बुलाए
मोहे जाना है पी की नगरिया
साजन साजन मेरे साजन तेरी दुल्हन सजाऊँगी
सोमवार को पधारे रेणु (बंसल) जी और अंजू जी। यह दिन रसोई का होता है। श्रोता सखि द्वारा भेजा गया व्यंजन बताया गया - मक्का के ढोकले जो अच्छे लगे, हालांकि बनाना थोड़ा कठिन है। इसे अलग-अलग विधियों से बनाना भी बताया गया। एक विधि में गेहूँ के आटे का प्रयोग मक्का की जगह बताया यानि दाल ढोकली जैसा। हम इसे बहुत आसान तरीके से बनाते है, मोटी रोटी बेल कर उसके चौकोर टुकड़े काट कर उबलती दाल में डाल देते है। चलिए… अच्छा लगा एक ही व्यंजन को कई तरीके से जानना। इस दिन गाड़ियों की भी चर्चा की गई कि ग़ायब होते अन्य वाहनों के साथ कम होते दुपहिया वाहन और बढती मोटर गाड़ियाँ।
सखियों की पसन्द पर इस दिन पुराने गीत सुनवाए गए जैसे पतंगा फ़िल्म का यह लोकप्रिय गीत -
मेरे पिया गए रंगून किया है वहाँ से टेलीफून
एक मज़ेदार गाड़ी का गीत भी सुना -
कभी न बिगड़े किसी की मोटर
मंगलवार को पधारी सखियां निम्मी (मिश्रा) जी और अंजू जी। इस दिन हमेशा की तरह सखियो के अनुरोध पर गाने नए ही सुनवाए गए जैसे दिल्ली 6, रैट, मुस्कान फ़िल्मों के गीत और यह गीत भी -
आँखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएँ है
इस दिन सखियों के पत्र कुछ अधिक ही पढे गए। अलग-अलग विषयों के पत्र, किसी पत्र के आधार पर सेना में महिलाओं को फ्रंट पर भेजने की भी जानकारी दी, कुछ पत्रों में प्रकृति की बातें थी, कुछ ने अच्छे विचार बताए, कुछ ने बचपन की बातें की। कुल मिलाकर कार्यक्रम सुन कर लगा - कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा
बुधवार को सखियाँ पधारीं - रेणु (बंसल) जी और चंचल जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। संतरे, पपीता, आँवला के उपयोग की सलाह… कौन सी नई बात है, हर तरह का उपयोग सभी जानते है। श्रोता सखियों ने पत्रों से सर्दियों के मौसम को ध्यान में रख कर कुछ नुस्ख़े बताए, मेकअप के सुझाव बताए, सभी पुराने।
इस दिन सखियों के अनुरोध पर कुछ पुराने समय के गाने सुनवाए गए - हीर रांझा, तीन देवियाँ, रोटी कपड़ा और मकान, हरे रामा हरे कृष्णा, प्यासा सावन और प्रेमरोग फ़िल्म का यह गीत -
अब हम तो भए परदेसी के तेरा यहाँ कोई नहीं
सभी गाने अच्छे सुनवाए गए, प्यार के अलग-अलग रूप भी नज़र आए, अच्छी फ़रमाइश भेजी सखियों ने।
गुरूवार को पधारीं राजुल जी और अंजू जी। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस बार क्रान्तिकारी कमला देवी चट्टोपाध्याय के बारे में जानकारी दी गई। सखियों की पसन्द पर मिले-जुले गीत सुनवाए गए, नई पुरानी फ़िल्में और विषय और भाव भी अलग-अलग जैसे तीन देवियाँ, बातों बातों में और नितिन मुकेश का गाया यह गीत -
थोड़ा दुःख है थोड़ा सुख है, दुःख में सुख छिपा है
हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। कुछ पत्रों में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी, कुछ पत्रों में सखियों ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार भी बताए। गुरूवार को कुछ नयापन रहा। इस कार्यक्रम में सखियों से भी कुछ बौद्धिक कसरत करने के लिए कहा गया है, इसी सिलसिले में सखियों से कहा गया कि ऐतिहासिक व्यक्तित्व झंकारी बाई के बारे में जानकारी भेजे। यह भी पूछा गया कि सखि-सहेली कार्यक्रम की किसी बात से अगर आपका मन व्यथित हुआ है तो बताए।
सखि ने एक प्रश्न भेजा कि श्रोता सखियाँ इसका उत्तर दे - सत्तर के दशक की कौन सी ऐसी फ़िल्म है जिसमें एक भी गीत नहीं था। इस प्रश्न को विविध भारती ने विस्तार दिया और एक प्रश्न जोड़ दिया कि ऐसी पहली फ़िल्म का नाम भी बताए जिसमें एक भी गीत नहीं था। सत्तर के दशक की यह फ़िल्म मेरी पसन्दीदा फ़िल्म है। उत्तर मैं अलग से मेल से भेज रही हूँ।
इस कार्यक्रम की दो परिचय धुनें सुनवाई गई - एक तो रोज़ सुनी और एक विशेष धुन हैलो सहेली की शुक्रवार को सुनी।
इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कांचन (प्रकाश संगीत) जी, कमलेश (पाठक) जी ने प्रदीप शिन्दे जी, मंगेश (सांगले) जी और सुभाष (कामले) जी के तकनीकी सहयोग और रमेश (गोखले) जी की सहायता से।
सदाबहार नग़में कार्यक्रम में गीत तो सदाबहार थे पर विविधता दिखाई नहीं दी। वही प्यार-मोहब्बत के गाने बजते रहे। रविवार को सभी रोमांटिक गीत सुनवाए गए, जोशीला, आकाशदीप, सूरज, परवरिश, आमने-सामने, गीत और गैम्बलर फ़िल्म का यह गीत -
चूड़ी नहीं मेरा दिल है
3:30 बजे नाट्य तरंग कार्यक्रम रविवार को अच्छा रहा, इस्मत चुगतई का लिखा नाटक सुनवाया गया - बाँदी। बहुत मार्मिक कहानी थी। दस सेर अनाज के बदले लड़की खरीदी जाती है जिसे बाँदी यानि नौकरानी की तरह रखा जाता है, पर इस घर के संस्कार निराले, बाँदी से संबंध बनाते है और उसे उसी हाल में छोड़ देते है। यहाँ तक कि महिलाओं का व्यवहार भी वैसा ही है। लेकिन नायक यह संबंध स्वीकारता है और घर छोड़ने से भी नहीं झिझकता। इस नाटक क्स कलाकारों का नम बताया गया पर निर्देशक का नाम नहीं बताया गया। मुंबई केन्द्र की प्रस्तुति थी। रिकार्डिंग पुरानी ही लगी पर कोई जानकारी नहीं दी गई।
शाम 4 से 5 बजे तक सुनवाया जाता है पिटारा कार्यक्रम जिसकी अपनी परिचय धुन है।
शुक्रवार को सुना कार्यक्रम पिटारे में पिटारा जिसमें कुछ चुने हुए कार्यक्रमों का दुबारा प्रसारण होता है। इस बार प्रसारित हुआ कार्यक्रम चूल्हा चौका। रेणु (बंसल) जी का यह कार्यक्रम मुझे बहुत पसंद है। रेणु जी ने पाक शास्त्री संजीव कपूर से कुछ व्यंजनों पर बात की। ख़ास बात यह रही कि इन व्यंजनों को घर के अलावा ढाबे पर बनाने का भी तरीका बताया गया। यह व्यंजन है - पारंपरिक सरसों का साग, मांसाहारी व्यंजन मटन और जानी पहचानी घरेलु मिठाई खीर।
रविवार को पर्यावरण को बचा कर चलाते हुए यूथ एक्सप्रेस लेकर आए युनूस खान जी। पूरी गाड़ी पर्यावरणमय रही, विश्व स्तर पर चल रहे पर्यावरण संबंधी कार्यक्रम से ओत-प्रोत। जलवायु परिवर्तन पर विमर्श के लिए आए सभी मुद्दों और देशों की जानकारी दी। ऊर्जा के विकल्प पर रामचरण मिश्र की वार्ता सुनवाई गई। ऊर्जा की बचत के घरेलु उपाय भी बताए युनूस जी ने। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान (नैशनल पार्क) की सैर भी करवाई। गाने भी इसी विषय पर चुन कर सुनवाए -
ए नीले गगन के तले धरती का प्यार पले
बाग़ों में फूल खिलते है
इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने।
सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में पेट के रोगों पर डा समीर पारिख से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत सुनवाई गई। बताया कि खान-पीने के अलावा भी पेट रोग के कारण होते है। पीलिया (जानडिक्स) पर विस्तार से जानकारी दी। एक बात अख़र गई। डाक्टर साहब ने बताया कि वो गाने सुनते है पर निम्मी जी हर बार कहती रही, डाक्टर साहब यह गीत सुन लीजिए, क्यों भई, ऐसा क्यों ? डाक्टर साहब से पूछ कर उनकी पसन्द का गीत क्यों नहीं सुनवाया।
बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा से यूनूस (ख़ान) जी की बातचीत की कड़ी प्रसारित हुई। पिछले सप्ताह की कड़ी से बातचीत को आगे बढाया गया। यह जानकारी मेरे लिए तो नई है कि अभिनय के साथ-साथ गायक भी है पर ख़ुद को बाथरूम सिंगर ही बताया। अपने निजी जीवन के बारे में बताया। बहुत खुल कर बातचीत हुई। पूरी बातचीत इस कड़ी में सिमटी नहीं थी इसीलिए अभिनय यात्रा की बहुत सी बातें पता नहीं चली।
एक बेहतरीन कलाकार को पर्दे से हट कर जानने का मौका मिला इस कार्यक्रम से। प्रस्तुति कल्पना (शेट्टी) जी की रही। तकनीकी सहयोगी रहे दिलीप (कुलकर्णी) जी और सुधाकर (मटकर) जी।
हैलो फ़रमाइश कार्यक्रम में शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बात की रेणु (बंसल) जी ने। कुछ श्रोताओ ने बहुत ही कम बात की। एक ड्रेस डिजाइनर से बातचीत अच्छी लगी। अपने काम की विस्तार से जानकारी दी इस महिला ने। नए पुराने अलग-अलग मूड के गाने श्रोताओं के अनुरोध पर सुनवाए गए। पुरानी फ़िल्म संघर्ष का गीत -
मेरे पैरो में घुँघरू बंधा ले तो फिर मेरी चाल देख ले
कुछ पुरानी फ़िल्म कर्तव्य का गीत -
चन्दा मामा से प्यारा मेरा मामा
मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। इस बार भी कुछ श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की, एक महिला ने तो फोन-इन-कार्यक्रम का उपयोग भी फ़रमाइशी पत्र की तरह किया, इतना ही कहा कि वो कुछ नहीं करती है, मनोरंजन के लिए रेडियो सुनती है, पुराने गाने पसन्द है और बस, फ़रमाइश की चोरी-चोरी फ़िल्म के गीत की। समझ में नहीं आता ऐसे फोनकाल क्यों शामिल किए जाते है, फोन पर बात का कुछ तो फ़ायदा हो, कुछ तो बातचीत हो। पर इस दिन गाने कुछ अलग ही सुनवाए गए श्रोताओं की पसन्द पर जो अच्छे रहे -
नया गीत - जय माँ काली
गीत गाया पत्थरों ने फ़िल्म का शीर्षक गीत।
और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की युनूस (ख़ान) जी ने। बौद्धिक स्तर के फोनकाल भी थे। एक महिला ने छोटी सी रचना सुनाई और गीत भी उच्च स्तर का पसन्द किया। हरीशचन्द्र तारामती फ़िल्म का -
सूरज रे जलते रहना
एक आटोमोबाइल का काम करने वाले श्रोता ने भी ऐसा ही अंकुश फ़िल्म का गीत पसन्द किया। एक श्रोता ने सउदी अरब से फोन किया। पता चला वहाँ मौसम ठंडा है और उनके अनुरोध पर नीलकमल फ़िल्म का रफ़ी साहब का गाया लोकप्रिय गीत सुनवाया गया -
बाबुल की दुआएँ लेती जा
पर इन श्रोताओं ने बहुत ही कम बात की। अधिक बात होती तो अच्छा लगता, दूसरों के कुछ अच्छे विचार पता चलते।
5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारित हुआ नए फिल्मी गीतों का कार्यक्रम फिल्मी हंगामा। शुक्रवार को दीवाने हुए पागल, सिलसिले फिल्मों के गीत शामिल थे। शनिवार को जाने तू या जाने न, युवराज, अजनबी फिल्मों के गीत सुने। रविवार को नई फ़िल्म डान का जाना-पहचाना गीत सुना-
खईके पान बनारस वाला
जागर्स, आँखों में सपने लिए फ़िल्मों के गीत भी शामिल रहे। सोमवार को 42 किलोमीटरस के अलावा निगेबान फ़िल्म का यह देसी गीत सुनना अच्छा लगा -
मैं की करा दिल है तुमपे आशना
मंगलवार को टशन जैसी जानी-पहचानी फ़िल्मों के गाने शामिल रहे। बुधवार की फ़िल्में उतनी जानी-पहचानी नहीं थी, हाईजैक, इक़बाल फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। गुरूवार को डार्लिंग जैसी कम जानी-पहचानी फ़िल्मों के गीतों के साथ जाने-पहचाने गीत भी शामिल थे -
प्यार तुमको ही किया, दिल भी तुमको ही दिया
इस कार्यक्रम में के के की आवाज़ बहुत गूँजती है। इस दौर में उन्हीं के गाने लगता है ज्यादा है। इस कार्यक्रम को प्रायोजित किया जा सकता है पर न यह कार्यक्रम प्रायोजित था और न ही विज्ञापन प्रसारित हुए।
प्रसारण के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों में साल के अंतिम सप्ताह में प्रसारित होने वाले विशेष कार्यक्रम चित्रलोक टाप 10 और 31 दिसम्बर को श्रोताओं के फोनकाल पर आधारित हैलो मन चाहे गीत की सूचना दी गई। मन चाहे गीत कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए श्रोताओं से 23 दिसंबर को फोन करने के लिए कहा गया।
शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।
सबसे नए तीन पन्ने :
Friday, December 18, 2009
दोपहर बाद के जानकारीपूर्ण कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 17-12-09
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70 के दशक का बिना गीत की फिल्म थी B R Chopra की इत्तेफ़ाक
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