रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।
9 बजे का समय होता है ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं के कार्यक्रम गुलदस्ता का। शुक्रवार को यह कार्यक्रम केवल 15 मिनट ही सुनने को मिला जिसमे एक ही विधा सुनवाई गई - गजल। शुरूवात हुई पंकज उदहास की आवाज से, शायर रहे सागर निजामी जिसके बाद कलाम-ऐ-ग़ालिब गूंजा रफी साहब की आवाज में -
दिया है दिल अगर उसको बशर क्या कहिए
वाकई आनंद आ गया।
फिर अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की आवाज़ों में शमीम जयपुरी की गजल सुनी। इसके बाद 9:15 बजे से 9:30 बजे तक क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ जो हिन्दी में था। सामान्य ज्ञान का यह कार्यक्रम अच्छा रहा।
शनिवार को शुरूवात अच्छी हुई, मधुकर राजस्थानी के बोलो में मन्नाडे का गाया यह गीत वाकई आनंदित कर गया -
पल भर की पहचान आपसे
कल से आज सुहाना लागे
फिर शुरू हो गया गजलो का सिलसिला -
बेगम अख्तर से मीर तकी मीर का कलाम, मेहदी हसन की आवाज में -
काश तुमने मुझे दीवाना बनाया होता
इस तरह चुनाव अच्छा रहा पर मुकेश की आवाज में कलाम सुनना कुछ जंचता नही, जानिस्सार अख्तर का कलाम सुनवाया गया।
रविवार को एक ही शायर के कलाम गूंजते है। इस बार इब्राहिम अश्क की गजले गूंजी। चन्दन दास की आवाज़ से शुरूवात हुई -
जिन्दगी के मरहले आसान होते जाएगे
अगर आप इस दिल के मेहमान होते जाएगे
हरिहरन, तलत अजीज की आवाजो में भी गजले सुनवाई गई।
सोमवार को दाग के कलाम से शुरूवात हुई, गुलाम अली की आवाज में उसके बाद सागर अंजुम का कलाम वीनू पुरूषोत्तम की आवाज में अच्छा लगा -
हुस्न पर जब कभी शबाब आया
सारी दुनिया पर इंक़लाब आया
जिसके बाद तलत अजीज के बारे में बताया कि वो हैदराबाद से है और जानकारी दी उनके करिअर के परवान चढने की। फिर बताया अनूप जलोटा के बारे में कि वो डबल किंग के नाम से जाने जाते है। यह तो सभी जानते है कि अनूप जलोटा भजन और गजल दोनों में माहिर है पर यह शायद कम ही श्रोता जानते है कि वो डबल किंग के नाम से जाने जाते है। उनका गाया बेताब लखनवी का कलाम सुनवाया। सुदर्शन फाकिर का कलाम जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की आवाज़ों में भी शामिल- ए-बज्म रहा।
मंगलवार को सरदार अंजुम के कलाम से शुरूवात हुई। कम सुनी जाने वाली आवाजो में रेणु और विजय चौधरी की आवाजो में सुना -
मुस्कुराने की बात करते हो किस जमाने की बात करते हो
शायर बशीर बद्र के बारे में बताते हुए उनकी नज्म सुनवाई राजकुमार और इन्द्राणी रिजवी की आवाजो में। भूपेन्द्र और मिताली से सुना सैय्यद राही का कलाम और समापन किया कैफी आजमी के बारे में बता कर राजेन्द्र और नीना मेहता से उनकी गजल सुनवा कर।
बुधवार को बहादुर शाह जफ़र का कलाम सुनवाया गया, सूफी गजल बेगम आबिदा परवीन की आवाज़ में। बताया गया कि सूफी रचनाए गाने में आबिदा परवीन का जवाब नही। गुलाम अली के बारे में बताते हुए सुनवाया -
मेरा जज्बे मोहब्बत कम न होगा
जहा में यार तू बदनाम न होगा
हसन कमाल का कलाम भी शामिल रहा।
गुरूवार को एलबमो की रचनाएं शामिल रही। पंकज उदाहास की गई रचना सुनवाई गई महक एलबम से। मेहदी हसन की पुरानी और मशहूर गजल सुनवाई गई -
आके जब मेरी तरफ
गुलज़ार को सुना जगजीत सिंह की आवाज में। मिताली सिंह की गई गजल भी सुनी और अंत में सुनवाई गई बहादुर शाह जफ़र का कलम मोहम्मद हुसैन और अहमद हुसैन की आवाजो में, पर एक बात समझ में नही आई जब शायर का नाम गया फिर इसे पारंपरिक रचना क्यों कहा गया।
सप्ताह में एकाध गीत ही सुनने को मिला और ग़ज़लों का ही बोलबाला रहा जबकि कहा जाता रहा यह ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं का कार्यक्रम है। यह विश्वास करना कठिन है कि कलाकार गैर फिल्मी गीत नही गाते और गजले ही गाते है। वैसे गजल सुनवाते हुए किया जा रहा यह प्रयोग अच्छा लगा जिसमे कभी शायर और कभी गजल गायक के बारे में बताया गया।
कार्यक्रम के समापन में कहा जाता रहा - यह था सुनने वालों के लिए विविध भारती का नज़राना - गुलदस्ता जिसमे एक ही तरह के फूल थे, कही एकाध दूसरी तरह का फूल भी दिखा। आरंभ और अंत में बजने वाला संगीत अच्छा है।
9:30 बजे रविवार को कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के और शेष हर दिन आज के फनकार कार्यक्रम प्रसारित किया गया। आज के फनकार कार्यक्रम में शुरू और अंत में बजने वाला संगीत न तो सुनने में अच्छा है और न ही यह कार्यक्रम संबंधी यानी फनकार का कोई संकेत देता है। वैसे भी हर दिन यह कार्यक्रम सुनना अच्छा नही लग रहा है, एकाध दिन एक ही फिल्म से कार्यक्रम हो तो विविधता रहेगी।
रविवार को उजाले उनकी यादो के कार्यक्रम में संगीतकार जोडी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के प्यारेलाल जी से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अंतिम कड़ी सुनवाई गई। विभिन्न गानों के बनने की चर्चा हुई जैसे जीवन मृत्यु, अभिनेत्री, मेरा गाँव मेरा देश, हकीकत। बताया कि पहले गानों को बनाने के लिए बैठके हुआ करती थी। दो आँखे बारह हाथ, जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली फिल्मो के साथ व्ही शांता राम को याद किया। हर बार साथी लक्ष्मीकांत जी को याद करते रहे। इस कार्यक्रम को तैयार करने में तकनीकी सहयोग दिया स्वाती भंडारकर और प्रीति महाजन ने।
आज के फनकार कार्यक्रम में शुक्रवार को फ़नकार थे संगीतकार वसंत देसाई। कमल (शर्मा) जी ने प्रमुख बातें बताई गई जैसे बचपन में मंच प्रस्तुतियां दी। फिल्म जगत में पहले व्ही शांताराम से मिले। फिर शास्त्रीय सन्गीत सीखा। से फिल्मी सफ़र बतौर संगीतकार शुरू हुआ, पहले सहायक थे 1946 से पहचान से मिली। उनके गीत भी सुनवाए - झनक झनक पायल बाजे और कम सुने जाने वाले गीत भी शामिल थे। अच्छा जानकारीपूर्ण कार्यक्रम रहा।
रविवार को गायिका और अभिनेत्री सुरैया की पुण्यतिथि पर शनिवार की फनकार थी - सुरैया। कमल (शर्मा) जी ने प्रस्तुत किया, बताया कि सन्गीत की विधिवत शिक्षा नही ली पर बेजोड़ गायिका बनी। हुस्नलाल भगत राम के संगीत में बहुत गीत गाए। नानू भाई की ताजमहल के लिए मुमताज बनी तब से फिल्मे मिलने लगी। प्यार की जीत फिल्म से लोकप्रियता मिली। सबसे अच्छा लगा खुद सुरैया की आवाज सुनना जिसमे उन्होंने बताया कि बचपन में राजकपूर के साथ रेडियो कार्यक्रम किए। उनके लोकप्रिय गीत - मुरली वाले मुरली बजा के साथ कम सुने गीत भी सुनवाए गए - पंछी जा पीछे रहा है बचपन मेरा
सोमवार के फनकार रहे दो ग्रैमी एवार्ड जीत कर विश्व पटल पर फिर भारत के झंडे गाड़ने वाले ए आर रहमान। प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने। उनके चेंनेई में जन्म से लेकर अब तक की बाते, उनके काम से सम्बंधित दूसरो की कही बाते, उनके गीतों में पिरो कर सुनवाई गई।
मंगलवार को रेणु (बंसल) जी ने प्रस्तुत किया फनकार बाबी देओल को। सबसे पहले जो बताया उसकी जानकारी बहुतो को शायद नही होगी - असली नाम - विजय सिंह देओल। उनकी फिल्मो की चर्चा की। बरसात की असफलता, गुप्त की सफलता की बात हुई। गीत तो अनकी फिल्मो के शामिल थे ही।
बुधवार को रेणु (बंसल) जी ने अभिनेत्री वहीदा रहमान को जन्मदिन की बधाई देते हुए उन्ही पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया। नाम का अर्थ बताया - वहीदा यानी अनुपम जो शायद बहुतो को नही पता होगा। चौदहवी का चाँद जैसे अमर गीत में उनकी खूबसूरती का बहत योगदान रहा। पहली फिल्म सीआई डीका उअनका पहला गीत भी सुनावे जो लोकप्रिय है - कही पे निगाहें कही पे निशाना, उनकी चर्चित फिल्म नीलकमल के संवाद भी सुनवाए और आज के दौर का गीत भी सुनवाया - ससुराल गेंदा फूल
गुरूवार को निम्मी (मिश्रा) जी ले आई फनकार उर्मिला मार्तोंडकर जिनका उस दिन जन्म दिन था। बाल कलाकार के रूप में फिल्म मासूम से शुरूवात की चर्चा की। राम गोपाल वर्मा ने उनकी प्रतिभा को तराशा। सत्या में अलग ही तरह की भूमिका में चमकी जो कलात्मक भूमिका थी। उनकी फिल्मो से गाने भी चुन कर सुनवाए। उनको मिले फिल्म फेयर और अप्सरा एवार्ड की भी चर्चा हुई।
10 बजे का समय छाया गीत का होता है। शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। हमेशा की तरह साहित्यिक हिन्दी में काव्यात्मक प्रस्तुति। प्रथम स्पर्श की बातें हुई और गीत सुनवाए -
मेरे दो नैना मतवाले किसके लिए
मीठी यादो की बातें हुई और गीत सुनवाए -
कितनी अकेली कितनी तनहा सी लगी उनसे मिलके मै आज
फिर प्यार को परिभाषित करने का प्रयास किया। गीत भी ऐसे ही सुनवाए गए।
शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। ख्यालो, सपनों की बात कही और सुनवाए ऐसे ही गीत -
मेरे सपने में आना रे सजना
मै तो तेरे हसीं ख्यालो में खो गया
आपकी इनायते आपके करम
आप ही बताए कैसे भूलेगे हम
पर दोनों ही दिन गीतों में एक ख़ास बात रही ज्यादातर गीत गायिकाओ की आवाज में रहे शायद पुरूषों पर प्यार का असर गहराई लिए गानों की हद तक नही होता।
रविवार को प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने। आलेख से ज्यादा गानों ने ध्यान खींचा। एक गीत को छोड़ कर सभी गीत गुलज़ार के थे। प्रमुख बात यह रही कि दो गानों को छोड़ कर शेष गीत बहत ही कम सुने हुए थे जैसे यह गीत -
सितारों मुझे नाम लेकर पुकारो
मुझे तुमसे अपनी खबर मिल गई है
और समापन का अंदाज हमेशा की तरह बढ़िया रहा जिसमे गानों की झलक के साथ विवरण बताया जाता है।
सोमवार को अमरकान्त जी तलाशते रहे और अंत में मिल गई प्यार की मंजिल। सुन्दर संक्षिप्त आलेख, शुरूवात की राजा जानी फिल्म के इस गीत से जो बहुत कम सुनवाया जाता है - जानी ओ जानी, हालांकि शांत अच्छा गीत है ये पर कम ही सुनवाया जाता है। इसके साथ ड्रीम गर्ल, जानेमन, अनुरोध फिल्मो के गीतों से तलाश हुई जो आंधी फिल्म के गीत से समाप्त हुई।
मंगलवार को शहनाज (अख्तरी) जी ने साथी के साथ की बात की और बताया साथ हो तो प्रकृति भी सुहानी लगती है। पाकीजा, हरियाली और रास्ता फिल्म का शीर्षक गीत और यह गीत भी शामिल रहा -
तुम ही तुम हो मेरे जीवन में
फूल ही फूल है जैसे चमन में
बुधवार को प्रस्तुत किया निम्मी (मिश्रा) जी ने। व्यक्तिगत रूप से मुझे निम्मी जी का छाया गीत कभी पसंद नही आता। पुराने सुस्त गीत, सुनते सुनते झपकी आने लगती है। इस बार भी यही रहा, उदासी का माहौल और गीत -
कभी तो आ कभी तो आ ओ जाने वाले
क़ैद में है बुलबुल सैय्याद मुस्कुराए
गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने भी उदासी का माहौल रखा। गीत चुने -
वो तेरे प्यार का गम
फिर तेरी कहानी याद आई
फिर तेरा फ़साना याद आया
आखिरी गीत मोहब्बत का सुना लूं तो चलूँ
10:30 बजे कार्यक्रम प्रसारित हुआ आपकी फ़रमाइश जो प्रायोजित था इसीलिए प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। इसमें श्रोताओं ने पुराने लोकप्रिय गीत सुनने की फ़रमाइश अधिक की। शुक्रवार को शुरूवात की प्रेम पर्वत के इस गीत से - ये दिल और उनकी निगाहों के साए जिसकी फरमाइश बहुत दिनों बाद आई। इसके बाद सुनवाए गए यह गीत -
मोरे सैया जी उतरेगे पार नदिया धीरे बहो
मचलती आरजू खडी बाहे पसारे
मेरा नाम जोकर, ऊँचे लोग, आओ प्यार करे फिल्मो के गीत सुनवाए गए। शनिवार को गांधी जी की पुण्यतिथि को ध्यान में रखते हुए श्रोताओं की फरमाइश में से उचित गीत चुने गए। शुरूवात हुई बापू के प्रिय भजन वैष्णव जन से। उसके बाद ऐसी ही गीतों का सिलसिला चला - भाभी, गंगा जमाना, सफर, आओ प्यार करे और सीमा फ़िल्म का गीत - तू प्यार का सागर है। रविवार को बहुत पुराने गीत सुनवाए गए। नौशेरवाने आदिल, काली टोपी लाल रूमाल, दूर गगन की छाँव में, शबनम और प्रिंस फिल्म का यह गीत शामिल था -
बदन पे सितारे लपेटे हुए ए जाने तमन्ना किधर जा रही हो
सोमवार को गुमनाम, रात और दिन, तेरे घर के सामने, एन एडवेंचर आफ राबिन हूड और शरारत फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए।
मंगलवार को पत्थर के सनम, सजा, आरजू, बहू बेगम फिल्मो के लोकप्रिय गीतों के साथ गाइड फिल्म का यह गीत भी सुनवाया गया -
पिया तोसे नैना लागे रे
बुधवार को हम हिन्दुस्तानी, बंदिनी फिल्म का एस डी बर्मन का गाया गीत, इसके साथ यह गीत -
तेरे द्वार खडा एक जोगी
से माहौल अलग और अच्छा रहा। साथ ही सुनवाए गए आप आए बहार आई, पड़ोसन फिल्मो के गीत और यह गीत -
सौ बार जनम लेगे
गुरूवार को चलती का नाम गाड़ी फिल्म का पांच रूपया बारह आना, सारंगा फिल्म का शीर्षक गीत और साथ में ताजमहल, राम तेरी गंगा मिली, तीसरा कौन फिल्मो के गीत सुनवा कर पुराने-नए गीतों का मिलाजुला माहौल रखा।
बुधवार और गुरूवार को ईमेल से प्राप्त फ़रमाइशें पूरी की जाती है अन्य दिन पत्र देखे जाते है। देश के अलग-अलग भागों से बहुत से पत्रों से गानों की फ़रमाइश भेजी गई और हर पत्र में भी बहुत से नाम रहे जबकि ई-मेल की संख्या कम ही रही।
प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में बताया गया। इस बार खासकर ऐ आर रहमान पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की पूर्व जानकारी दी।
11 बजे अगले दिन के मुख्य कार्यक्रमों की जानकारी दी जो केन्द्रीय सेवा से ही दी गई जिससे केन्द्रीय सेवा के उन कार्यक्रमों की भी सूचना मिली जो क्षेत्रीय कार्यक्रमों के कारण यहाँ प्रसारित नही होते। 11:05 पर 5 मिनट के दिल्ली से प्रसारित समाचार बुलेटिन के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।
सबसे नए तीन पन्ने :
Friday, February 5, 2010
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1 comment:
बड़िया प्रस्तुति, रात का प्रोग्राम नहीं सुना उसका मलाल है
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