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Tuesday, February 16, 2010

एक नशेड़ियो की क़व्वाली जिस पर सभी झूमे

कभी-कभी ऐसे होता है कि गाने के बोल विवादास्पद होते है पर गाना अपने संगीत और गायकी से बहुत लोकप्रिय हो जाता है। आज ऎसी ही एक क़व्वाली याद आ रही है। फिल्म का नाम है - फाइव राइफल्स - शायद बहुतो ने इस फिल्म के बारे में सुना भी नही होगा।

इस फिल्म के नायक है शाही कपूर जिनकी शायद यह एक ही फिल्म है। वर्ष 1974 में रिलीज यह फिल्म पूरी तरह से असफल रही। कई शहरों में एक-दो सप्ताह ही चली। लेकिन इस फिल्म की एक क़व्वाली ने वाकई धूम मचाई। स्थिति ऎसी भी रही कि लोगो ने पूछा यह क़व्वाली फिल्मी है या गैर फिल्मी ? फिल्मी है ? किस फिल्म से है ? यानी क़व्वाली से फिल्म का नाम जाना जाने लगा।

उन दिनों जलसों समारोहों में सड़को पर जोर-शोर से बजने वाले लाउड स्पीकरो से यह क़व्वाली बहुत गूंजी। रेडियो सिलोन से बहुत सुनवाई गई और शायद बिनाका गीत माला में भी सुनवाई गई। पर विविध भारती से सुनवाई गई या नही, याद नही आ रहा। अब तो बहुत समय से इसे सुना ही नही।

जहां तक मेरी जानकारी है इस क़व्वाली को अपने साथियो के साथ अजीज नाजा ने गाया है। हालांकि अजीज नाजा अलग तरह की क़व्वालियो से जुड़े है।

यह क़व्वाली एक शेर से शुरू होती है जिसका पहला लफ्ज महरूम या ऐसा ही कुछ है और शायद अंतिम पंक्ति है - और चैन मिलता है तो साकी तेरे मयकाने में

फिर क़व्वाली शुरू होती है -

झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम
कली घटा है, आ हां आ आ आ आ
मस्त समां है, आ हां आ आ आ आ
काली घटा है मस्त समां है जाम उठा कर झूम झूम झूम
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम

आज अंगूर की बेटी से मुहब्बत कर ले
शेख साहब की नसीहत से बगावत कर ले
इसकी बेटी ने उठा रखी है सर पर दुनिया
वो तो अच्छा हुआ अंगूर को बेटा न हुआ

(पोस्ट वीडियो में लगाकर छेड़छाड़ करने के लिए अन्नपूर्णा जी से क्षमायाचना- सागर नाहर)

और जाने क्या क्या बोल है इसके, पर गायकी का अंदाज कुछ ऐसा रहा कि सुनने वाले झूम उठे खासकर इसका मुखड़ा बहुत मस्त है। सुनने में वाकई अच्छा लगता है बावजूद विवादास्पद बोलो के...

7 comments:

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री अन्नपूर्णाजी,
यह फिल्म आई एस जोहर की खुद की निर्मीत थी । इसमें एक और अभिनेता राकेश ख़न्ना भी थे । यह कवाली हकीकतमें गैर फिल्मी थी पर इसका रेकोर्ड बाझारमें आते ही इतना चला कि थोडे ही दिनोमें श्री जोहर साहबने अपनी फिल्म में इसको शामिल कर लिया जिसका संगीत और शब्द उस फ़िल्म के नियमीत संगीत कार कल्याणजी-आणंदजी और जो भी गीत कारथे उनसे अलग थे । रेडियो सिलोन पर उनके विज्ञापन और रेडियो प्रोग्राम्स श्री अमीन सायानी साहब देते थे । मेरा पोस्ट जो हरीश भीमाणीजी पर आप के पहेले है वह पढा या नहीं । उस पर हरीशजी की आवाझ श्री अमीन सायानी साहब जके उनके बारेमें कोमेन्ट्स के साथ है और दूसरा ओडियो रेडियो सिलोन पर उंको दी गई बधाई मेरी और उद्द्घोषिका ज्योति परमारजी की आवाझमें है ।
पियुष महेता ।
(सुरत0

परमजीत सिहँ बाली said...

आपने सही लिखा...

रोमेंद्र सागर said...

अज़ीज़ नाजां की गाई विवादस्पद मगर बेहद मशहूर क़व्वाली इस तरह से है...इसमें तीन अंतरे हैं जबकि फिल्म में जोहर साब ने सिर्फ दो ही अंतरे इस्तेमाल किये थे ....वाकई यह एक गैर फ़िल्मी कव्वाली ही थी जो अज़ीज़ नाजां की एक और बहुत ही खूबसूरत क़व्वाली " तीर नज़र का ओ दिलदारा तूने इस अंदाज़ से मारा ...ओ दुनिया मान गयी ..." के साथ रिलीज़ की गयी थी ! बाद में जब जौहर साब ने इस " झूम बराबर झूम शराबी.." क़व्वाली को अपनी फिल्म में इस्तेमाल किया तो हर तरफ इस क़व्वाली की खासी धूम मच गयी ! देखा जाए तो इसी क़व्वाली ने अज़ीज़ नाजां जैसे फनकार को हमेशा के लिए अमर कर दिया !

ना हरम में...... ना सकूं मिलता है बुतखाने में
चैन मिलता है तो साकी तेरे मयखाने में !

झूम झूम ..झूमझूम झूम झूम झूम झूम
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम
काली घटा है, आ हां आ आ आ आ
मस्त फ़ज़ा है, आ हां आ आ आ आ
काली घटा है मस्त फ़ज़ा है जाम उठा कर झूम झूम झूम
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम

आज अंगूर की बेटी से मुहब्बत कर ले
शेख साहब की नसीहत से बगावत कर ले
इसकी बेटी ने उठा रखी है सर पर दुनिया
ये तो अच्छा हुआ अंगूर को बेटा न हुआ
कम से कम सूरते साकी का नज़ारा करले
ताकी मैखाने में जीने का सहारा कर ले
आँख मिलते ही जवानी का मज़ा आयेगा
तुझको अंगूर के पानी का मज़ा आएगा

हर नज़र अपनी बसद शौक गुलाबी कर दे
इतनी पी ले के ज़माने को शराबी कर दे

जाम जब सामने आये तो मुकारना कैसा
बात जब पीने की आ जाये तो डरना कैसा
धूम मची है मैखाने में
धूम मची है मैखाने में..तू भी मचले धूम धूम धूम
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम

इसके पीने से तबियत में रवानी आये
इसको बूढ़ा भी जो पीले तो जवानी आये
पीने वाले तुझे आ जायेगा पीने का मज़ा
इसके हर घूँट में पोशीदा है जीने का मज़ा

बात तो जब है के तू मय का परस्तार बने
तू नज़र दाल दे जिस पर वही मयख्वार बने
मौसमे गुल में तो पीने का मज़ा आता है
पीने वालों ही को जीने का मज़ा आता है
जाम उठा ले ...हा हाsss...मुंह से लगा ले
जाम उठा ले मुंह से लगा ले , मुंह से लगा कर झूम झूम झूम
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम

जो भी आता है यहाँ पी के मचल जाता है
जब नज़र साकी की पड़ती है संभल जाता है
आ इधर झूम के साकी का लेके नाम उठा
देख वो अब्र उठा तू भी ज़रा जाम उठा
इस क़दर पी ले के रग रग में सुरूर आ जाये
कसरते मय से तेरे चेहरे पे नूर आ जाए
इसके हर कतरे में नाजां है निहा दरिया दिली
इसके पीने से अता होती है इक जिंदा दिली
शान से पी ले हा हा sss शान से जी ले..
शान से पी ले शान से जी ले घूम नशे में घूम घूम घूम
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम.......!!!


पुनश्च: = वैसे अगर ये पूरी क़व्वाली सुनने का मन हो आये तो निम्न लिंक पर मैंने इसे अपलोड किया है , वहां इसका रसास्वादन किया जा सकता है !

http://www.youtube.com/watch?v=-RkWIuGjtsA&feature=related

annapurna said...

बहुत शुक्रिया, पूरी क़व्वाली यहाँ लिखने और लिंक देने के लिए।

anuraag said...

maza aa gaya,bahut bahut dhanyavaad

डॉ. अजीत कुमार said...

अन्नपूर्णा जी, आपने शायद मेरे उस पोस्ट पर गौर नहीं किया था जो आज से लगभग 2 साल पहले मैंने अपने ब्लॉग पर डाली थी. वो पोस्ट आपके इसी विषय से सम्बंधित था. अभी नजर दौड़ा लें. http://ajitdiary.blogspot.com/2008/01/blog-post.html

annapurna said...

अजीत जी, बहुत दिन बाद आपकी टिप्पणी देख कर अच्छा लगा।

आपकी पोस्ट मैंने अभी देखी हैं। उस समय मुझसे छूट गई थी। जब मैंने अपनी यह पोस्ट लिखी थी तब मुझे यह अंदेशा भी नही था कि और भी लोग इससे परिचित हो सकते हैं, पीयूष जी जैसे इक्का-दुक्का रेडियो प्रेमियों को छोड़ कर, पर आपका नाता तो इससे अभिमन्यु जैसा है...

धन्यवाद पोस्ट की ओर ध्यान दिलाने के लिए।

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