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Thursday, October 7, 2010

महिला और युवा वर्ग के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 7-10-10

महिला और युवा वर्ग के कार्यक्रम आधुनिक विविध भारती की देन हैं। शुरूवाती दौर के कार्यक्रमों में ऐसे कोई कार्यक्रम नही हुआ करते थे। ये कार्यक्रम हैं सखि-सहेली और जिज्ञासा सखि-सहेली कार्यक्रम ख़ास तौर पर महिला वर्ग के लिए तैयार किया गया हैं। महिलाओं के लिए विशेष रूप से कार्यक्रम शायद पहली बार नब्बे के दशक में तैयार किया गया था। शाम 4 बजे प्रसारित होने वाले पिटारा के अंतर्गत दो कार्यक्रम चूल्हा-चौका और सोलह श्रृंगार जो रेणु (बंसल) जी प्रस्तुत किया करती थी। आजकल भी कभी-कभार चूल्हा-चौका के कुछ अंको का फिर से प्रसारण होता हैं।

सखि-सहेली कार्यक्रम पहले साप्ताहिक था पर अब सप्ताह में 5 दिन सोमवार से शुक्रवार तक प्रसारित होता हैं। इसमे महिलाओं के सम्पूर्ण अस्तित्व पर निगेहबानी की कोशिश की जा रही हैं। इसका समय भी महिलाओं के लिए अनुकूल हैं, दोपहर बाद 3 से 4 बजे तक एक घंटे के लिए यह कार्यक्रम प्रसारित होता हैं। इनमे से मंगलवार का कार्यक्रम युवा सखियों के लिए होता हैं, इस दिन करिअर संबंधी जानकारी दी जाने के कारण यह केवल लड़कियों के लिए ही नही बल्कि लड़को के लिए भी उपयोगी हैं। इस तरह इस दिन का कार्यक्रम युवा वर्ग का कार्यक्रम हुआ। वैसे युवाओं के लिए विशेष रूप से साप्ताहिक कार्यक्रम हैं - जिज्ञासा। 15 मिनट के इस कार्यक्रम का प्रसारण समय भी युवाओं के लिए उचित हैं - शनिवार रात 7:45 पर।

पहले विविध भारती पर युवाओं के लिए कोई विशेष कार्यक्रम नही था। बाद के वर्षों में जिज्ञासा कार्यक्रम शुरू किया गया था जो सामान्य ज्ञान का कार्यक्रम था। फिर इसे बंद कर रविवार को पिटारा के अंतर्गत यूथ एक्सप्रेस कार्यक्रम एक घंटे के लिए प्रसारित होता था फिर इसे भी बंद कर कुछ ही समय पहले जिज्ञासा शुरू किया गया। पहले के सामान्य ज्ञान के कार्यक्रम से अब इस कार्यक्रम का स्वरूप कुछ अलग हैं। वास्तव में यह सामान्य ज्ञान का कार्यक्रम हैं, इस तरह सबके लिए हैं पर इसी कारण से यह युवाओं के लिए अधिक उपयोगी हैं। शुरूवात और अंत में संकेत धुन बजती हैं जो अच्छी लगती हैं, संकेत धुन के साथ उपशीर्षक के साथ शीर्षक कहना भी अच्छा लगता हैं - ज्ञान की रेडियो एक्टिव तरंग - जिज्ञासा पर शीर्षक जिज्ञासा जिस अंदाज से कहा जाता हैं वो अच्छा नही लगता। सामान्य ज्ञान के इस कार्यक्रम के शीर्षक कहने में ऊर्जा, स्फूर्ति होनी चाहिए, यह तेज गति नजर नही आती।

सखि-सहेली कार्यक्रम का फलक विशाल हैं। सोमवार से गुरूवार तक के कार्यक्रमों का स्वरूप एक जैसा हैं, शीर्षक हैं - सखि-सहेली और शुक्रवार के कार्यक्रम का स्वरूप अलग हैं, शीर्षक हैं - हैलो सहेली। इसी के अनुसार इस कार्यक्रम की दो परिचय धुनें हैं - सोमवार से गुरूवार तक एक धुन जो थोड़ी लम्बी हैं और इसका एक अंश नई फिल्म यादें के एक गीत के संगीत का अंश हैं, इस तरह यह धुन उतनी अच्छी नही लगती। शुक्रवार को हैलो सहेली की अलग धुन सुनवाई जाती हैं जो ठीक हैं। इसमे शीर्षक के साथ उपशीर्षक भी कहा जाता हैं - सखियों के दिल की जुबां - हैलो सहेली ! शुरूवाती चार दिनों में हर दिन के लिए एक विषय निर्धारित हैं -सोमवार - रसोई, मंगलवार - करिअर, बुधवार - स्वास्थ्य और सौन्दर्य, गुरूवार - सफल महिलाओं की गाथा।

इन चारो दिनों में हर दिन दो उदघोषिकाएं आती हैं। विषय पर जानकारी देती हुई आपस में बतियाती हैं। सखियों की फरमाइश पर फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं। सखियों के पत्र भी पढ़े जाते हैं जिसमे नियत विषय पर जानकारी भी होती हैं। इस तरह हर विषय पर कुछ जानकारी विविध भारती की ओर से और कुछ जानकारी सखियों के पत्रों से दी जाती हैं। बीच-बीच में कभी-कभार कुछ अलग तरह से भी जानकारी दी जाती हैं जैसे झलकी या किसी अन्य भेंटवार्ता कार्यक्रम के अंश सुनवाए जाते हैं। शुक्रवार को कोई एक उदधोषिका सखियों से फोन पर बातचीत करती हैं और उनकी पसंद के फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं।

इन दोनों कार्यक्रमों को सुनकर ऐसा लगता हैं जब विविध भारती अपने पुराने पारंपरिक स्वरूप से अलग कार्यक्रम तैयार कर ही रही हैं तब बच्चो के लिए कोई कार्यक्रम क्यों नही किया जा सकता। बच्चो के लिए विविध भारती पर कुछ भी नही हैं। हमारा बचपन भी विविध भारती के प्यार-मोहब्बत के गाने सुनते हुए ही बीता हैं। अब तो कोई कार्यक्रम तैयार किया जा सकता हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

शुक्रवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम हैलो सहेली। फोन पर सखियों से बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। 8-10 फोन काल थे जिनमे से अधिकतर काल महाराष्ट्र से ही थे। एक बाढ़ग्रस्त स्थान से काल आया। सखि ने बताया कि गंगा के किनारे बाढ़ आई हैं जो कुछ ही दूरी पर हैं, सरकार सहायता कर रही हैं। पर फोन पर पूरी स्पष्ट बात हुई। कोई गड़बड़ नही।

ज्यादातर घरेलु महिलाओं ने बात की। बताया कि घर का कामकाज करती हैं। एक विवाहिता बहुत ही कम उम्र की थी, एक संयुक्त परिवार से थी। एक महिला ने बताया वह सिलाई का काम करती हैं जिससे अच्छी आय हो जाती हैं। एक सखि ने अपनी मूक-बधिर बेटी के बारे में बताया कि वह उसी विशेष स्कूल में पढ़ती हैं। एक शारीरिक रूप से कमजोर सखि ने भी बात की और कहा कि वह अपना काम स्वयं करती हैं। इस दिन वृद्धावस्था दिवस था। एकाध सखि से इस बारे में भी बात हुई, सखि ने बताया कि हमें बुजुर्गो का ध्यान रखना हैं जिससे यही संस्कार बच्चों में भी आते ही।

एक सखि ने 2 अक्टूबर की चर्चा कर बालक फिल्म का यह गीत सुनवाने का अनुरोध किया -

सुन ले बापू ये पैगाम मेरी चिट्ठी तेरे नाम

सखियों की पसंद पर नए-पुराने और बीच के समय के गाने सुनवाए गए जैसे पुराना गीत -

दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ

नगीना, मैंने प्यार किया, हीर रांझा फिल्मो के गीत।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश से शहरों से भी फोन आए, गाँव, जिलो से फोन आए। पूरा कार्यक्रम सुन कर लगा कि सखियाँ दुःख, कष्ट होने पर भी राह निकाल कर आगे बढ़ रही हैं। सखियों ने विविध भारती के कार्यक्रमों को पसंद करने की बात कही लेकिन खेद रहा कि 3 अक्टूबर, विविध भारती के जन्मदिन की चर्चा किसी ने नही की और उसके तुरंत बाद आयोजित हो रहे विश्व स्तर के राष्ट्रमंडल खेलो की भी चर्चा नही की। कम से कम इन खेलो के बारे में रेणु जी खुद चर्चा करती। कम से कम महिला खिलाड़ियों को शुभकामनाएं देते। कार्यक्रम के समापन पर बताया गया कि इस कार्यक्रम के लिए हर बुधवार दिन में 11 बजे से फोन कॉल रिकार्ड किए जाते हैं जिसके लिए फोन नंबर भी बताए - 28692709 28692710 मुम्बई का एस टी डी कोड ०२२

इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया वीणा (राय सिंघानी) जी ने, माधुरी (केलकर) जी के सहयोग से, तकनीकी सहयोग तेजेश्री (शेट्टे) जी का रहा।

सोमवार से आज तक, चारो दिन यह कार्यक्रम ले कर आईं - निम्मी (मिश्रा) जी और रेणु (बंसल) जी।

सोमवार को पहले दोनों ने सभी को नमस्कार किया और बड़ो को नमन किया। फिर 1 अक्टूबर को मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस की जानकारी दी। संयुक्त परिवार के महत्त्व और बुजुर्गो की ठीक से देखभाल की चर्चा की। इस सन्दर्भ में तीन उदाहरण दे कर चर्चा की गई - नई फिल्म शरारत पर चर्चा हुई जो वृद्धाश्रम पर है, साहित्य से ख्यात लेखिका उषा प्रियंवदा की इसी विषय पर आधारित कहानी वापसी की चर्चा की और हिन्दी के उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी की चर्चा हुई। इन तीनो चर्चाओं के बजाए अच्छा होता अगर बूढ़ी काकी कहानी पढ़ कर सुनाई जाती।

यह दिन रसोई का होता है, प्याज की खीर बनाना बताया गया। पिछली बार के व्यंजन में बताए अनुसार भुट्टा कद्दूकस न होने की शिकायत भी की, पत्र पुरूष श्रोता से प्राप्त हुआ। सामान्य चर्चा में बिजली और पानी की बचत की बात चली।

सखियों की पसंद पर पुरानी फिल्मो के गीत सुनवाए गए - बड़ी बहन, आदमी, मदर इंडिया, आधी रात के बाद, छाया, इंसान जाग उठा, दिल्लगी फिल्मो के गीत और शमा फिल्म से यह गीत भी -

धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम

पर अफसोस, एक भी बुजुर्गो को समर्पित गीत शामिल नही था।

मंगलवार को करिअर का दिन होता है। इस दिन नर्स बनने की जानकारी दी गई। अच्छा होता इस दिन खेल जगत में करिअर की जानकारी दी जाती। हर स्कूल में खेल टीचर होते हैं। कुछ कॉलेजों में भी होते हैं। खेल टीचर बनने के लिए फिजिकल एजुकेशन या ऐसे ही किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता होती हैं। इस बारे में विस्तृत जानकारी दी जा सकती थी। देश में बने खेल के माहौल में युवाओं के लिए यह उपयोगी होता।

चूंकि यह दिन युवा सखियों के लिए ख़ास होता हैं इसीलिए इस दिन अधिकतर नए गाने ही सुनवाए जाते हैं क्योंकि युवा सखियों की फरमाइश नए गानों के लिए ही अधिक होती हैं।

लव आजकल, फैशन, वीर, अजब प्रेम की गजब कहानी, रावण, जब वी मेट फिल्मो के गीत सुनवाए और ओम शान्ति ओम फिल्म का यह गीत भी शामिल था -

आँखों में तेरी अजब सी गजब सी अदाएं हैं

बुधवार को स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। सखियों के भेजे गए पत्रों से पपीता, चौलाई के औषधीय गुणों की जानकारी दी। निखार के लिए ग्वारपाठा के गुण बताए।

सखियों की फरमाइश पर कुछ पुराने गीत हीरा, मनोकामना, राजा और रंक, गैम्बलर फिल्मो से सुनवाए गए और किनारा फिल्म से यह गीत भी शामिल था -

नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा

आज गुरूवार हैं और गुरूवार को सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन सखियों के पत्रों से कुछ बाते हुई फिर राष्ट्रमंडल खेल पर सन्देश प्रसारित हुआ जिसके बाद महिला खिलाड़ियों को शुभकामनाएं दी गई पर एक भी महिला खिलाड़ी के बारे में कुछ भी नही बताया, यहाँ तक कि किसी का नाम भी नही लिया।

सखियों के अनुरोध पर कुछ ही समय पहले की फिल्मो - परिणीता, मिशन कश्मीर, बार्डर, जहर, वीरजारा से गीत सुनवाए और यह गीत भी शामिल था -

कभी शाम ढले तो मेरे दिल में आ जाना

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। वृद्ध दिवस के सन्दर्भ में ऎसी उमरदराज महिला का पत्र पढ़ा गया जिसका युवा पुत्र इस संसार में नही हैं। उसने सबके लिए आशावादी सन्देश भेजा। कुछ पत्रों में प्रकृति प्रेम का भी सन्देश था, राष्ट्रमंडल खेल के सभी देशी-विदेशियों खिलाड़ियों को शुभकामनाएं दी, अपने प्रदेश के लोकपर्व के बारे में बताया। कुछ पत्रों में कार्यक्रमों की तारीफ़ थी पर यहाँ भी किसी ने भी 3 अक्टूबर, विविध भारती के जन्मदिन की चर्चा नही की।

उदघोषिकाओं ने बचपन की सहपाठिन से मिलने का किस्सा बताया जिनमे से एक के बारे में कि कैसे वह परेशानियों से जूझते हुए जीवन में आगे बढी। शिक्षाप्रद छोटी कहानियां भी सुनाई गई जैसे प्राथमिक कक्षाओं में बच्चो को सुनाई जाती हैं। ऎसी ही चर्चाएँ होती रही। बेहतर होता इस सप्ताह राष्ट्रमंडल खेलो की ताजा जानकारी दी जाती जैसे मन चाहे गीत कार्यक्रम में युनूस (खान) जी फरमाइशी गीत सुनवाते हुए दे रहे थे। कम से कम महिला खिलाड़ियों के खेल की ताजा जानकारी दे देते।

चारो दिन इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कमलेश (पाठक) जी ने।

शनिवार को सुना सामान्य ज्ञान का कार्यक्रम जिज्ञासा। बताया गया कि इस कार्यक्रम में राष्टमंडल खेलों पर श्रृंखला चल रही हैं। इस दिन विभिन्न खेलों में भारतीय टीम का स्तर, टीम और खिलाड़ियों की उपलब्धियां बताई गई। इस तरह यह कड़ी उन खेलो और खिलाडियों पर केन्द्रित रही जिनसे भारत को पदक मिलने की आशा हैं। पहले हॉकी की चर्चा हुई। पुरूषों की टीम में शिवेंदर सिंह और अन्य खिलाड़ी भी चर्चा में रहे। महिला टीम में रानी रामपाल, सुरिंदर कौर और सभी के बारे में बताया। उसके बाद निशाने बाजी यानि शूटरों की चर्चा हुई - तेजस्विनी सावंत, गगन नारंग, बिंद्रा के अंदाज पर बात हुई। फिर कुश्ती की चर्चा में सुशील कुमार, भुवनेश्वर दत्त, अलका तोमर पर जानकारी दी। साथ में यह जानकारी भी दी गई कि पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में इन खेलो को कब शामिल किया गया और स्थिति क्या रही जिसमे यह भी बताया कि कुश्ती में पहला पदक भारत ने ही जीता था। बीच-बीच में फिल्मी गीत भी सुनवाए गए। गीत थोड़ा कम बजे पर कार्यक्रम के अनुरूप रहे जैसे चेक दे इंडिया फिल्म का शीर्षक गीत।

श्रृंखला अगले सप्ताह भी जारी रहेगी। शोध, आलेख और स्वर युनूस (खान) जी का रहा। अच्छी जानकारी पूर्ण रही यह कड़ी। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टे) जी ने, तकनीकी सहयोग पी के ए नायर जी का रहा।

एक बात अखर गई, दोनों ही कार्यक्रमों में लगातार कॉमन वेल्थ गेम्स कहा गया, एक बार भी राष्ट्रमंडल खेल नही कहा गया।

2 comments:

शरद कोकास said...

बहुत अच्छा लगता है अतीत को इस तरह याद करना

જીવન ના િવિવધ રંગો said...

Annapurna Ji Aap Apna Amulya Samay Dekar Saari Jankari Dekar Recall karvati Hai Shukriya

Atul

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