विविध भारती से फिल्मी कलाकारों के रूपक कार्यक्रम दो हैं - हिट सुपरहिट और आज के फनकार जो दैनिक हैं। कई बार ये दोनों कार्यक्रम ऐसे नए-पुराने कलाकारों पर केन्द्रित होते हैं जिनका उस दिन जन्म दिन या पुण्य तिथि होती हैं। दोनों ही कार्यक्रमों की अवधि आधा घंटा हैं। हिट सुपरहिट कार्यक्रम हर दिन दो बार प्रसारित होता हैं।
आइए इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -
दोपहर 1:00 बजे और रात 9 बजे प्रसारित हुआ हिट-सुपरहिट कार्यक्रम।
शुक्रवार को यह कार्यक्रम गीतकार और शायर कैफी आजमी पर केन्द्रित रहा। अनोखी रात, आखिरी ख़त फिल्मो से लोकप्रिय गीत सुनवाए। यह बात अच्छी लगी कि पुरानी फिल्म कागज़ के फूल का लोकप्रिय नगमा सुनवाया गीता राय (दत्त) की आवाज में -
वक़्त ने किया क्या हसीं सितम
और नई फिल्म फिर तेरी कहानी याद आई से कुमार सानू की आवाज में एक नगमा सुना -
यादो के सब जुगनू जंगल में रहते हैं
समय के लम्बे अंतराल में नई-पुरानी आवाज में दोनों नगमे सुनना अच्छा अनुभव रहा। इन गीतों के अलावा दोपहर में फिल्म हंसते जख्म से यह नगमा सुनवाया - तुम जो मिल गए हो, यह चुनाव ठीक ऩही लगा क्योंकि इसमे संगीत पक्ष हावी हैं। इस नगमे का आकर्षण ही इसके अलग ढंग का संगीत संयोजन हैं। अच्छा होता अगर इस फिल्म से लताजी की गाई गजल सुनवा देते। वैसे रात में यह ऩही सुनवाया, इसकी जगह हकीक़त फिल्म का नगमा सुनवाया - होके मजबूर मुझे, बहरहाल इस कार्यक्रम में एक लोकप्रिय गजल की कमी महसूस हुई।
शनिवार को प्रस्तुत हुआ - सैटरडे स्पेशल। इस दिन सेना दिवस था। फ़ौजी भाइयो को समर्पित गीत सुनवाए गए। शुरूवात की
आक्रमण फिल्म के गीत से - देखो वीर जवानो अपने खून पे ये इल्जाम न आए
इसके बाद हकीक़त फिल्म से - अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
जिसके बाद नई फिल्म लक्ष्य से सुनवाया - कंधो से मिलते हैं कंधे
फिल्म बार्डर के संदेशे आते हैं गीत से समापन किया। इस तरह नए पुराने गीतों से अच्छी प्रस्तुति रही, पर रात में प्रस्तुति ज्यादा अच्छी रही। रात में यह भी बताया कि यह 63 वां सेना दिवस हैं और साथ ही फ़ौजी भाइयो के सम्मान में दो-चार वाक्य कहे कि कठिन परिस्थितियों में वे हमारी सुरक्षा करते हैं, सेना के तीनो अंगो में कडा अनुशासन बना रहता हैं। शुरूवात में सुनवाया गीत - हिन्दुस्तान की क़सम
और चायना गेट फिल्म से यह नया गीत भी सुनवाया - हमको तो रहना हैं एक दूजे के साथ
आक्रमण और लक्ष्य फिल्मो के गीत दोपहर की तरह ही रहे।
रविवार को आयोजन रहा - फेवरेट फाइव। इसमे कोई एक कलाकार आमंत्रित होते हैं, अपने पसंदीदा पांच गीत बताते हैं और यह भी बताते हैं कि यह गीत उन्हें क्यों पसंद हैं। साथ में कुछ और बातचीत भी हो जाती हैं। इस बार आमंत्रित रहे ख्यात पार्श्व गायक सुदेश भोंसले जो गीतों के साथ अपनी एक ख़ास कला के लिए अधिक प्रसिद्ध हैं, वो कई कलाकारों की आवाजे निकालते हैं। अपनी इस कला को उन्होंने ईश्वर की देन माना हैं। बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। बताया कि बचपन से फिल्मी गीत अधिक पसंद रहे। सुनवाया यह पहला गीत -
रंग और नूर की बारात किसे पेश करूं
रफी साहब ने गजल फिल्म के लिए गाया हैं। बताया कि यह गीत बचपन से उन्हें पसंद हैं। दूसरा गीत सुनवाया आंधी फिल्म से - तेरे बिना जिन्दगी से कोई शिकवा तो नही
यह गीत वह अक्सर स्टेज शोज में लताजी के साथ गाते हैं। लताजी के साथ स्टेज कार्यक्रमों के अनुभव भी बताए। लताजी की आवाज भी निकाली। तीसरा गीत सुनवाया सिलसिला फिल्म से जो वाकई उनके लिए ख़ास हैं - ये कहाँ आ गए हम
इसमे अमिताभ बच्चन की आवाज में काव्य पंक्तियाँ हैं, अमिताभ की आवाज निकालना सुदेश जी की खासियत हैं। यहाँ भी पंक्तियाँ सुनाई।
चौथा गीत सुनवाया मेरे अपने फिल्म से जो किशोर कुमार का अलग अंदाज का गीत हैं - कोई होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते
बताया कि किशोर कुमार के वह बचपन से प्रशंसक रहे हैं। मिली फिल्म से एक ऐसा ही गीत सुनवाकर कार्यक्रम का समापन किया - आए तुम याद मुझे, इस गीत को पहले गुनगुना कर भी सुनाया।
शुरू और अंत में परिचय दिया और समापन किया रेणु (बंसल) जी ने। अच्छा रहा यह कार्यक्रम। इस कार्यक्रम को विनय (तलवलकर) जी के तकनीकी सहयोग से प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टी) जी ने।
सोमवार को गीतकार जावेद अख्तर के गीत सुनवाए गए। हिट-सुपरहिट ये गीत सुनवाए - जाने क्यों लोग प्यार करते हैं
लगान, जोधा अकबर, स्वदेश फिल्मो के गीत सुनवाए। ऐसे गीत भी सुनवाए जो हिट नही लगे, लक्ष्य फिल्म का यह गीत हैं - अगर मैं कहूं मुझे तुमसे मोहब्बत हैं, ऐसा ही कम प्रचलित लक बाई चांस फिल्म का गीत भी सुनवाया।
मंगलवार को अभिनेत्री राखी पर फिल्माए गए गीत सुनवाए गए। शर्मिली, आँखों आँखों में, जीवन मृत्यु फिल्म के रोमांटिक युगल गीत, बेमिसाल और ब्लैक मेल फिल्म से यह गीत सुनवाया - पल पल दिल के पास तुम रहती हो
इनमे से रात में केवल आँखों आँखों में फिल्म का गीत सुनवाया जिससे कार्यक्रम की शुरूवात की। इसके बाद कभी-कभी फिल्म का शीर्षक गीत (नज्म), जुर्माना, शक्ति, बसेरा और मुकद्दर का सिकंदर फिल्मो के गीत सुनवाए। हल्की-फुल्की जानकारी दी कि राखी ने फिल्मी करिअर बंगला फिल्मो से शुरू किया। पहली हिन्दी फिल्म हैं जीवन-मृत्यु। पर कभी-कभी और जुर्माना फिल्मो के गीतों के बाद शक्ति फिल्म का गीत सुनवाते हुए यह महत्वपूर्ण बात नही बताई कि इन दोनों फिल्मो में वह अमिताभ बच्चन की नायिका हैं जबकि शक्ति फिल्म में उन्होंने अमिताभ की माँ की भूमिका की और इसी फिल्म के आसपास रिलीज फिल्म बेमिसाल में फिर से वह अमिताभ की नायिका बन कर आई, जुर्माना की तरह यहाँ भी प्रेम त्रिकोण हैं जिसमे विनोद मेहरा की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। जुर्माना फिल्म का गीत -
सावन के झूले पड़े तुम चले आओ
और बसेरा फिल्म का शीर्षक गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा।
बुधवार को 1:00 बजे से 1:15 तक क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। केन्द्रीय सेवा से जुड़ने पर आज मैं ऊपर आसमाँ नीचे गीत शुरू हो चुका था। फिर देवदास फिल्म से डोला रे डोला गीत सुना और कार्यक्रम समाप्त हो गया। रात में पता चला कि यह कार्यक्रम निर्माता संजय लीला भंसाली पर केन्द्रित था। हल्की सी जानकारी भी दी कि उनकी पहली फिल्म खामोशी - द म्यूजिकल हैं। हम दिल दे चुके सनम का शीर्षक गीत सुनवाया, सांवरिया फिल्म से दो गीत सुनवाए जिनमे से एक यह लोकप्रिय गीत सुना -
जब से तेरे नैना मेरे नैनो से लागे
गुजारिश फिल्म से एक गीत सुनवाया जो लोकप्रिय नही लगा। ब्लैक फिल्म की चर्चा की। उन्हें मिले पुरस्कारी की भी चर्चा हुई।
गुरूवार को पार्श्व गायक कैलाश खेर के गाए गीत सुनवाए गए। इस दिन एक बात अच्छी रही कि रोमांटिक गीत अधिक नही सुनवाए गए। कुछ अलग भाव के गीत सुनना अच्छा लगा - मेरे मौला कर्म हो कर्म
स्वदेश फिल्म से - यूंही चला चल रे कितनी हसीं हैं ये दुनिया
यह रहस्यवादी गीत भी सुना, वैसे आजकल ऐसे गीत कम लिखे जा रहे हैं - पिया के रंग रंग देनी ओढ़नी
दिल्ली 6 से क़व्वाली भी सुनवाई गई। फना फिल्म का गीत भी सुना - सुहान अल्लाह जिसे पिछले दो सप्ताह से सुनते-सुनते मैं थक गई। दिन हो या रात, फरमाइशी कार्यक्रम हो या गैर फरमाइशी कार्यक्रम, यह गाना लगातार बज रहा हैं। वैसे रात में रोमांटिक गीत अधिक बजे। सलाम-ए-इश्क फिल्म से प्यार हैं या सजा और कारपोरेट फिल्म से ओ सिकंदर भी सुनवाया गया। रात में हल्की जानकारी भी दी कि कैलाश खैर की आवाज सूफियाना हैं। बचपन से ही संगीत का शौक़ रहा।
रात 9:30 बजे आज के फनकार कार्यक्रम प्रसारित किया गया। इस सप्ताह कुछ कार्यक्रमों में कोई सृजनशीलता नजर नही आई बल्कि लगा कार्यक्रम तैयार ही नही किए गए। ऐसे लग रहा था उजाले उनकी यादो के और आज के मेहमान जैसे कार्यक्रमों का दुबारा प्रसारण सुन रहे हैं। इन कार्यक्रमों की बातचीत की रिकार्डिंग को यहाँ सुनवा दिया गया, बीच-बीच में गाने सुनवा दिए। यहाँ तक कि बातचीत ठीक से संपादित भी नही रही। लेकिन मंगलवार को रिकार्डिंग का अच्छा उपयोग किया गया।
शुक्रवार को यह कार्यक्रम संगीतकार चित्रगुप्त पर केन्द्रित था। इस दिन उनकी पुण्यतिथि थी। कोई विशेष बाते ऩही बताई गई। केवल तीन ही जानकारियाँ मिली। पहली बात - उन्होंने गीत के बोलो में मीटर पर ध्यान दिया, उनका मानना था कि बोल मीटर में होने से संगीत अच्छा होगा। दूसरी बात उन्होंने लोकगीतों पर आधारित धुनें भी बनाई, ऐसा ही एक लोकगीत सुनवाया जो मैंने पहली बार सुना पर खेद हैं फिल्म का नाम ऩही बताया गया -
अब हम कैसे चले डगरिया लोगवा नजर लगावेगा
तीसरी बात महत्वपूर्ण रही कि आज के दौर के संगीत की शुरूवात में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, यहाँ जो गीत सुनवाया उसे सुन कर प्रमाण मिल गया, बाद के समय खासकर सत्तर के दशक से ऐसे ही रोमांटिक युगल गीत बनने शुरू हुए -
बस अब तडपाना छोडो .......... जो दिल में प्यार का तूफ़ान हैं हम जान गए हैं
उनके कुछ गीतों को पूरा सुनवाया और अंत में बहुत से लोकप्रिय गीतों के अंश सुनवाए। अन्य महत्वपूर्ण बाते ऩही बताई जैसे उनकी पहली फिल्म, उनकी लगभग कुल फिल्मे, उनके योगदान के लिए सम्मान, पुरस्कार आदि।
शनिवार को यह कार्यक्रम केन्द्रित रहा फिल्मकार अनिल शर्मा पर। बताया कि उनकी पहली फिल्म राखी अभिनीत श्रृद्धांजलि हैं। इस फिल्म के बारे में उन्ही की रिकार्डिंग सुनवाई गई। उनकी निर्देशित ग़दर फिल्म की चर्चा हुई। उनकी रिकार्डिंग के दूसरे अंश में उन्होंने धर्मेन्द्र के बारे में बताया जिनके साथ उन्होंने अधिक फिल्मे की जिनमे अपने फिल्म भी शामिल हैं। उनकी रिकार्डिंग का तीसरा अंश भी सुनवाया जिसमे उन्होंने अमिताभ बच्चन की तारीफ़ की जिनके साथ उन्होंने एक ही फिल्म की। तीन अंश रिकार्डिंग के अधिक लगे। अगर किसी और की रिकार्डिंग सुनवाई जाती जिसमे अनिल शर्मा के बारे में किसी ने कहा हो तो अधिक उचित रहता। चर्चा में आई फिल्मो के गीत सुनवाए। शुरूवात में प्रस्तुति की शैली अच्छी रही जिसमे उनके गीतों और काम को मिलाकर लयात्मक प्रस्तुति देने का प्रयास किया गया और जैसा कि स्वाभाविक हैं ऎसी शैली इस तरह के पूरे कार्यक्रम में बनाए रखना कठिन हैं। शोध, आलेख और स्वर युनूस (खान) जी का रहा, सम्पादन पी के ए नायर जी का रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया।
रविवार को यह कार्यक्रम कमल (शर्मा) जी ने संगीतकार ओ पी नय्यर पर प्रस्तुत किया। इस दिन उनका जन्मदिन था। शायद उजाले उनकी यादो के कार्यक्रम में उनसे की गई बातचीत का लगता हैं पहला भाग सुनवा दिया। बीच-बीच में उनके स्वरबद्ध किए रफी साहब के गाए गाने सुनवा दिए। नय्यर साहब की ही रिकार्डिंग से सिर्फ शुरूवाती जानकारी मिल पाई जैसे बचपन में लाहौर रेडियो से कार्यक्रम किए, उनका संघर्ष, पहली फिल्म कनीज वर्ष 1948 में जिसमे पार्श्व संगीत दिया, बतौर संगीतकार पहली फिल्म 1951 में आसमान जो असफल रही, पहला लोकप्रिय गीत आर पार फिल्म से शमशाद बेगम का गाया हुआ -
कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर
बहुत सी महत्वपूर्ण बातो की चर्चा तक नही हुई जैसे उनके साथ लताजी ने नही गाया। लोकसंगीत से उन्हें ख़ास लगाव रहा और ऐसे गीतों के लिए उन्हें आशा भोंसले की आवाज अधिक उचित लगी। बल्कि आशाजी का नाम ही ओ पी नय्यर के संगीत से जुडा हैं। नय्यर साहब, आशाजी और एस एच बिहारी की टीम ने बढ़िया गीत दिए। नय्यर साहब की गीतकार कमर जलालाबादी के साथ भी जोडी खूब जमी। पर इन दोनों गीतकारो का नाम तक नही लिया। आशाजी का एक ही गीत सुनवाया -
आँखों से जो उतरी हैं दिल में तस्वीर हैं एक अनजाने की
और कमल बारोट के साथ एक गीत सुनवाया - हुजुर-ए-वाला जो हो इजाजत
रफी के गीतों की अनावश्यक रूप से भरमार रही।
सोमवार को यह कार्यक्रम गीतकार शायर जावेद अख्तर पर लेकर आए युनूस (खान) जी। इस दिन उनका जन्मदिन था। लगातार दो कार्यक्रम जावेद अख्तर पर सुनना ठीक नही लगा। खटकने वाली बड़ी बात यह रही कि इस कार्यक्रम को उनके गीतकार और शायर रूप पर ही केन्द्रित रखा। स्पष्ट रूप से यह बात कही गई कि उनके पटकथा लेखक के रूप जिसमे वो सलीम-जावेद की जोडी से विख्यात रहे, पर चर्चा नही होगी, सिर्फ गीत और वो भी नए फिल्मी गानों पर चर्चा होगी। जबकि कायदे से इस कार्यक्रम में किसी फनकार के समूचे फन पर चर्चा होनी चाहिए। शायद आज के मेहमान कार्यक्रम के लिए उनसे की गई बातचीत सुनवा दी, बीच-बीच में गीतों के साथ। एक और बात अजीब लगी कि एक अच्छे गीतकार में क्या खूबियाँ होनी चाहिए इस बारे में उन्होंने जो भी कहा उस अंश को सुनवा दिया गया, इससे बेहतर होता युनूस जी खुद उनके गीतों की खूबियाँ बताते। इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया पी के ए नायर जी के सहयोग से।
मंगलवार को सुविख्यात पार्श्व गायक कुंदनलाल (के एल) सहगल की पावन स्मृति में बेहतरीन प्रस्तुति रही। इस दिन सहगल साहब की पुण्य तिथि थी। जानकारी दी कि सहगल साहब का जन्म 1904 में हुआ। संगीत की शिक्षा सूफी पीर से ली। बचपन में रामलीला में सीता की भूमिका करते रहे। टाइपराइटर के सेल्समैन का काम किया करते थे। पी एल सरकार उन्हें फिल्मो में ले आए। 1931 में न्यू थियेटर से जुड़े। सिनेमा जगत के पहले लोकप्रिय अभिनेता और गायक बने। उनकी फिल्म देवदास अविस्मरणीय हैं। बंगला की देवदास में उन्हें छोटी सी भूमिका दी गई थी ताकि वह हिन्दी में मुख्य भूमिका कर सके। आर सी (राय चंद) बोराल और पंकज मलिक के संगीत निर्देशन में उन्होंने गाया। 42 साल की अल्प आयु में ही उनका निधन हो गया।
उनके गाए लोकप्रिय गीत सुनवाए। शुरूवात की इस बेहद लोकप्रिय गीत से - एक बंगला बने न्यारा
ये गीत सुनवाए - बालम आए बसों मोरे मन में, काहे गुमान करे गोरी, करूं क्या आस निरास भई, क्यों मुझसे खफा हैं क्या मैंने किया हैं, नुख्ताचीं हैं गमे दिल
यह भी बताया कि उन्होंने बच्चो के लिए गीत और लोरी भी गई। बच्चो की कहानी कहता गीत भी सुनवाया। संगीतकार नौशाद की रिकार्डिंग सुनवाई जिसके पहले अंश में उन्होंने काव्यात्मक अंदाज में सहगल साहब को याद किया और दूसरे अंश में शाहजहाँ फिल्म के इस लोकप्रिय गीत की रिकार्डिंग के अनुभव बताए - जब दिल ही टूट गया
इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया पी के ए नायर जी के सहयोग से।
बुधवार को रेणु (बंसल) जी ले आई चरित्र अभिनेता परेश रावल पर कार्यक्रम। जानकारी दी कि उन्होंने गुजराती थियेटर से शुरूवात की। खलनायक की भूमिकाएं भी की और अब हास्य भूमिकाएं कर रहे हैं। उनकी विशिष्ट भूमिकाओं का उल्लेख किया - ऐतिहासिक भूमिका सरदार फिल्म में सरदार पटेल की, महेश भट्ट की फिल्म तमन्ना में किन्नर की भूमिका। हंगामा फिल्म का सीन भी सुनवाया। चर्चा में आए फिल्मो के गीत भी सुनवाए, उन पर फिल्माया गीत - ओ मेरे डैडी सुनवाया इस जानकारी के साथ कि चरित्र अभिनेता पर गाने आम तौर पर नही फिल्माए जाते पर इन पर फिल्माए गए कुछ गीत हैं। उन्हें मिले पुरस्कारों की भी जानकारी दी।
गुरूवार को कमल (शर्मा) जी लाए ख्यात अभिनेता भारत भूषण पर कार्यक्रम। इस दिन उनकी पुण्य तिथि थी। बताया कि पचास साठ के दशक में संगीत प्रधान फिल्मो में संवेदनशील भूमिकाएं की। फिल्मो के नाम बताते हुए एक के बाद एक गीत (से कुछ भाग) सुनवाते गए, कवि कालिदास फिल्म से ओ आषाढ़ के पहले बादल गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा। चित्रलेखा में छोटी भूमिका की उसके बाद बीस वर्ष के बाद मध्यम दर्जे की फिल्मो में काम किया पर लोकप्रियता नही मिली। विजय भट्ट ने उन्हें बैजू बावरा के लिए चुना जिससे वो स्टार बने। 1953 में चैतन्य महाप्रभु के लिए एवार्ड मिला। 1954 में मिर्जा ग़ालिब फिल्म को सराहना मिली। फिर रानी रूपमती, घूंघट जैसी लोकप्रिय फिल्मे दी। 1964 में जहांआरा और दूज का चाँद फिल्मे सफल नही हुई। 1966 में रिलीज तक़दीर से भी उनका करिअर आगे नही बढ़ा। फिर उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की शुरूवात की प्यार का मौसम फिल्म से। अच्छी सिलसिलेवार जानकारी दी।
गुरूवार का यह कार्यक्रम और शुक्रवार को संगीतकार चित्रगुप्त पर, जन्म दिन के अवसर पर रविवार को संगीत कार ओ पी नय्यर और सोमवार को जावेद अख्तर पर सुन कर लगा कि इन चारो पर एक ही रूपक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा सकता था। वैसे भी हर दिन एक ही फनकार कार्यक्रम सुनना अच्छा नही लगता।
हिट सुपरहिट कार्यक्रम भी दोपहर में 1 बजे से 1:30 बजे तक प्रसारित होता हैं फिर यही कार्यक्रम रात में 9 बजे से 9:30 बजे तक प्रसारित होता हैं। दो समय प्रसारण के बजाय एक समय अन्य कार्यक्रम प्रसारित किए जा सकते हैं।
इस तरह रात के एक घंटे के और दोपहर के आधे घंटे के प्रसारण समय में अन्य कार्यक्रम सुनवाए जा सकते हैं। बंद हो चुके कार्यक्रमों को दुबारा शुरू किया जा सकता हैं जैसे - बज्म-ए-क़व्वाली, लोकसंगीत, अनुरंजनि, एक ही फिल्म से, फिल्मी और गैर फिल्मी नए गीत इनके अलावा कुछ नए कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं जैसे फिल्मी भक्ति, देश भक्ति और हास्य गीतों के कार्यक्रम तथा बच्चो के कार्यक्रम कुछ पुराने लोकप्रिय कार्यक्रमों को दुबारा शुरू किया जा सकता हैं जैसे - एक और अनेक, साज और आवाज कार्यक्रम। कार्यक्रमों में विविधता आने से रोचकता बढ़ेगी।
दोनों ही कार्यक्रमों की अपनी-अपनी संकेत धुन हैं। हिट-सुपरहिट की धुन में लोकप्रिय गीतों के संगीत के अंश हैं, यहाँ एक बढ़िया उपशीर्षक भी हैं - शानदार गानों का सुरीला सिलसिला। आज के फनकार की संकेत धुन सामान्य सी हैं। संकेत धुनें कार्यक्रमों के आरम्भ और अंत में सुनवाई गई। हिट सुपरहिट कार्यक्रम के दौरान और रात में दोनों कार्यक्रमों के बीच के अंतराल में अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजको के विज्ञापन भी प्रसारित हुए।
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Friday, January 21, 2011
फिल्मी कलाकारों के रूपक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 20-1-11
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