विविध भारती से शास्त्रीय संगीत के दो कार्यक्रमों का प्रसारण होता हैं संगीत सरिता और राग-अनुराग एक कार्यक्रम के माध्यम से रोज हमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की कई जानकारियाँ मिलती हैं और दूसरे में विभिन्न फिल्मी गीतों के शास्त्रीय आधार का पता चलता हैं। लेकिन खेद हैं कि केवल शास्त्रीय गायन और वादन का आनंद देने वाला हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि बंद कर दिया गया हैं। अनुरोध हैं कि इस कार्यक्रम का प्रसारण फिर से शुरू कीजिए।
आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -
सुबह 7:30 बजे संगीत सरिता कार्यक्रम में श्रृंखला प्रसारित की गई - थाट और उसके प्रकार जिसमे हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न थाट और उनके रागों का परिचय दिया गया। लोकप्रिय और कम प्रचलित दोनों ही तरह के रागों को शामिल किया गया। इसे प्रस्तुत कर रहे हैं ख्यात शास्त्रीय गायक पंडित प्रभाकर कालेकर जी। हर राग के लिए राग के आरोह अवरोह, राग का चलन बताया। हर राग में उन्होंने अपना गायन भी सुनाया और राग पर आधारित फिल्मी गीत भी सुनवाया।
खमाज थाट की चर्चा में शुक्रवार को राग कलावती के बारे में बताया गया। यह जानकारी दी कि इसकी बंदिश एक ताल में होती हैं। सुभाष काले जी ने एक ताल की जानकारी दी। इस राग में निबद्ध बंदिश सुनाई जिसके बाद इस राग पर आधारित चित्रलेखा फिल्म का गीत सुनवाया - काहे तरसाए जियरा
शनिवार से बिलावल थाट की चर्चा आरम्भ हुई। सबसे पहले शंकरा राग की चर्चा की। जानकारी मिली कि यह बहुत सुरीला राग हैं। प्राचीन समय में महफ़िलो की शुरूवात इसी राग से की जाती थी। इस राग में बंदिश सुनाई -
अजब जोगी आए मोरे घर
फिल्मी गीत सुनवाया - झनन झन झना के अपनी पायल चली मैं आज मत पूछो कहाँ
रविवार को राग बिहाग का परिचय मिला। बताया कि यह पुराना मधुर राग हैं। इस राग में गाना कठिन हैं। इस राग में मध्यम लय की तीन ताल में बंदिश भी सुनाई - ले जा रे जा पथिकवा
इस राग पर आधारित ख़ूबसूरत फिल्म से यह गीत सुनवाया - पिया बावरी सोमवार को राग हंसध्वनि के बारे बताया गया कि यह लोकप्रिय राग हैं और दक्षिण भारतीय संगीत से उत्तर भारतीय संगीत में आया हैं। इस राग में तीन ताल में बंदिश भी सुनाई - कल न पड़े रे माही तड़पत बीत घड़ी पल छिन
इस राग पर आधारित परिवार फिल्म का गीत भी सुनवाया - जा तोसे नही बोलूँ कन्हैय्या
मंगलवार से आसावरी थाट की चर्चा शुरू हुई। राग देसी पर चर्चा हुई। बताया कि यह दोपहर के समय गाया जाने वाला लोकप्रिय राग हैं और अक्सर इसमे दो धईवत का प्रयोग होता हैं जिसे गाकर बताया। इस राग में तीन ताल में बंदिश भी सुनाई - आई रे आई तोरे मिलन को
जिसके बाद फिल्म बैजू बावरा से उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ और बी डी पलोसकर की गाई यह रचना भी सुनवाई - आज गावत मन मेरो झूम के
बुधवार को बहुत ही कम प्रचलित राग देवगंधार के बारे में बताया कि इसमे शुद्ध गंधार का प्रयोग होता हैं। मध्य लय में तीन ताल में बंदिश सुनाई -
बरजोरी न करो ऐ कन्हाई
इसके बाद फिल्मी गीत सुनवाया - इत नन्दनन आगे नाचूंगी
गुरूवार को राग अडाना के बारे में बताया गया। यह राग उतरांग से गाया जाता हैं पर यह राग दरबारी से समानता रखता हैं। दोनों रागों का चलन बताया।
बंदिश सुनाई - रंग रंग मुख पर मत फेकों बनवारी
इस राग पर आधारित कैसे कहूं फिल्म का गीत सुनवाया - मनमोहन मन में हो तुमीं
सामान्य जानकारी में बताया गया कि फिल्मी गीत एक राग पर आधारित होते हैं और अन्य रागों की भी इसमे झलक होती हैं।
फिल्मी रचनाओं का चुनाव अच्छा रहा। इस श्रृंखला को रूपाली रूपक जी ने प्रस्तुत किया, वीणा (राय सिंघानी) जी के सहयोग से, तकनीकी सहयोग विनीता (ढोलकिया) जी का हैं। हर दिन कार्यक्रम के शुरू और अंत में संकेत धुन बजती रही जो बढ़िया और समुचित हैं।
गुरूवार को शाम बाद के प्रसारण में 7:45 पर प्रसारित हुआ साप्ताहिक कार्यक्रम राग-अनुराग। 15 मिनट के इस कार्यक्रम में विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए। सबसे पहले राग भटियार पर आधारित रूस्तम सोहराब फिल्म का गीत सुनवाया गया - ऐ दिलरूबा
यह राग बहुत अधिक चर्चा में नही आता हैं। इसके बाद साज और आवाज फिल्म का गीत सुनवाया - साज हो तुम आवाज हूँ मैं
जिसके लिए राग का नाम मैंने सुना पतगी, लगता हैं बहुत ही कम प्रचलित राग हैं। इसके बाद ऊंचे लोग फिल्म का गीत सुनवाया - आ जा रे मेरे प्यार के राही
इसके राग का नाम मैंने सुना जन सम्मोहिनी, बहुत कम सुना यह नाम। समापन किया लोकप्रिय राग कलावती पर आधारित दिल दिया दर्द लिया फिल्म के गीत से। इस तरह कम प्रचलित रागों में लोकप्रिय गीत सुनना अच्छा लगा।
यहाँ हम एक बात कहना चाहते हैं। राग अनुराग में फिल्मी गीत सुनवा कर केवल यह बता दिया जाता हैं कि यह गीत किस राग पर आधारित हैं या इस गीत में किस राग की केवल झलक हैं। इस कार्यक्रम में यह जानकारी समुचित हैं। लेकिन संगीत सरिता कार्यक्रम सुनते समय कभी-कभार एक बात खलती हैं। इसमे शास्त्रीय संगीत के विभिन्न अंगो पर चर्चा होती हैं और उसे समझाने के लिए शास्त्रीय गायन और वादन के साथ फिल्मी गीतों में उसका प्रयोग बताने के लिए फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं। पुरानी फिल्मो से लेकर नई फिल्मो तक, कुछ फिल्मो में आवश्यकता के अनुसार ख्यात शास्त्रीय गायकों ने भी गाया हैं। मंगलवार को फिल्म बैजू बावरा की ऎसी ही रचना सुनवाई गई। ऎसी कुछ और भी फिल्मी रचनाएं हैं - एक-दो फिल्मो के लिए उस्ताद आमीर खाँ ने गाया हैं, फिल्म बसंत बहार में पंडित भीमसेन जोशी ने गाया हैं, गीत गाया पत्थरो ने फिल्म में किशोरी अमोलकर ने शीर्षक गीत शास्त्रीय पद्धति में गाया हैं।
फिल्म स्वामी में सुमित्रा लाहिड़ी ने ठुमरी गाई - का करूं सजनी आए न बालम
मैं तुलसी तेरे आँगन की फिल्म में शोभा गुर्टू ने ठुमरी गाई - सैंय्या रूठ गए मैं मनाती रही
फिल्म कुदरत में परवीन सुल्ताना ने गाया - हमें तुम से प्यार कितना ये हम नही जानते
यह रचना शायद लड़की सहयाद्रि की फिल्म से हैं - वन्दना करो अर्चना करो
पंडित जसराज ने पुरानी फिल्म में और एक नई फिल्म में भी गाया। नई फिल्मो में से सरदारी बेगम फिल्म में आरती अंगलीकर ने गाया, ऎसी और भी रचनाएं हैं। इन रचनाओं को शायद ही कभी संगीत सरिता में चर्चा के दौरान सुनवाया गया, यहाँ तक कि ख्याल और ठुमरी की चर्चाओं में तो ये रचनाएं ही अधिक उपयुक्त हैं फिर भी शायद ही कभी सुनवाई गई। यह अनुरोध हैं कि कृपया इन रचनाओं को शामिल कीजिए।
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Friday, February 11, 2011
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