विविध भारती के दो कार्यक्रम ऐसे हैं जिनके माध्यम से सदविचार बता कर श्रोताओं को प्रेरित किया जाता हैं, ये दो कार्यक्रम हैं चिंतन और त्रिवेणी दोनों ही दैनिक कार्यक्रम हैं और सुबह की सभा में प्रसारित होते हैं।
आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -
इस सप्ताह रविवार का दिन विशेष था। 30 जनवरी के इस दिन दोनों ही कार्यक्रमों में गांधी जी को पूरी श्रद्धा और निष्ठा से याद किया गया।
6:05 पर चिंतन में उनका यह कथन बताया - स्वर्ग और पृथ्वी दोनों हमारे भीतर हैं, पृथ्वी से हम परिचित हैं लेकिन अपने भीतर के स्वर्ग से बिलकुल अपरिचित हैं।
7:45 को त्रिवेणी में कहा कि गांधी आज के युग में अधिक प्रासंगिक हैं। सत्य और अहिंसा के लिए गांधी जी ने पूरा जीवन लगा दिया जिसकी आवश्यकता आज अधिक हैं। उनकी जीवन शैली की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने एक ही अंगवस्त्र धारण किया था क्योंकि इस देश में गरीबी में जी रहे लोगो के लिए तन ढकने तक के लिए पूरे कपडे नही थे। हमारे लिए गांधीजी एक नाम नही एक विचारधारा, एक जीवन दर्शन हैं। उनके आदर्शो पर चल कर हम आत्मनिर्भर हो समाज को बदल सकते हैं। चर्चा के दौरान ये नए-पुराने गीत सुनवाए -
माटी पुकारे तुझे देश पुकारे
सुनो सुनो ऐ दुनिया वालो बापू की ये अमर कहानी
दे दी हमें आजादी हमें बिना खडग बिना ढाल
अंत में बताए फिल्मो के नाम - लगे रहो मुन्ना भाई, बापू की अमर कहानी और जागृति।
चिंतन में शुक्रवार को इप्सन का कथन बताया गया - जीवन बहुमूल्य हैं, समय बहुत कम हैं, समय का अधिक से अधिक उपयोग करे और सकारात्मक कार्यो में लगाए।
शनिवार को भगवान बुद्ध का कथन बताया - आदमी जन्म से नही कर्म से महान बनाता हैं।
सोमवार को भगवान महावीर का कथन बताया - बड़ी से बड़ी बात को सरल विधि से कहना उच्च संस्कृति का प्रमाण हैं। मन की संस्कृति उच्च रहनी चाहिए।
मंगलवार को भी भगवान महावीर का ही कथन बताया - पाप तभी तक होता हैं जब तक ईश्वर की व्यापकता का अनुभव नही होता। हर व्यक्ति पाप के लिए जिम्मेदार हैं।
बुधवार को आचार्य विनोबा भावे का कथन बताया - लक्ष्य पर दृष्टि हमेशा होनी चाहिए, लक्ष्य प्राप्ति में देरी होने पर निराशा से बचना चाहिए।
आज एडिसन का कथन बताया गया - अच्छा स्वभाव सौन्दर्य के अभाव को पूरा करता हैं किन्तु सौन्दर्य अच्छे स्वभाव के अभाव की पूर्ति नही कर सकता।
चिंतन में एक कमी लगी, कबीर, रहीम और अन्य संत कवियों के कई नीति विषयक दोहे हैं जिन्हें भी सम्मिलित किया जा सकता हैं।
त्रिवेणी में शुक्रवार को पर्यावरण और जीवहिंसा पर चर्चा हुई। बताया कि एकमात्र ज्ञात ग्रह हैं - पृथ्वी। इसमे पौधों और जीवो का संतुलन बिगड़ रहा हैं। अपने लाभ के लिए जीवो के साथ बर्बरता से हिंसा हो रही हैं। पेड़ काट कर प्रकृति का संतुलन बिगाड़ा जा रहा हैं। नदी का पानी प्रदूषित हो रहा हैं। गीतों का चुनाव भी अच्छा रहा -
जीवहिंसा पर - नफ़रत की दुनिया को छोड़ कर प्यार की दुनिया में खुश रहना वृक्षों की कटाई पर - हरी भारी वसुंधरा पे नीला-
नीला ये गगन - ये कौन चित्रकार हैं
जल प्रदूषण पर - पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
अंत में फिल्मो के नाम बताए जिनके गीत सुनवाए गए - हाथी मेरे साथी, बूँद जो बन गई मोती और शोर।
शनिवार को जीवन के अंधेरो की सकारात्मक चर्चा हुई। अँधेरे में छोटे से दिए की लौ भी आस जगाती हैं। अँधेरे से घबराने की बजाय संयत रहने से ही उजाला देख पाते हैं। उम्मीद का दामन न छोड़े, सुबह जरूर आती हैं। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए -
अँधेरे में जो बैठे हैं नजर उन पर भी कुछ डालो, अरे ओ रोशनी वालो
रात भर का हैं मेहमां अन्धेरा किस के रोके रूका हैं सवेरा
वो सुबह कभी तो आएगी
अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - संबंध, सोने की चिड़िया, फिर सुबह होगी
सोमवार को नए विषय पर प्रस्तुति अच्छी रही। चर्चा रही कि धरती पर संगीत न होता तो जग सूना रहता। प्रकृति के संगीत की बात चली कि ईश्वर ने हमें धरती पर भेजने से पहले ही संगीत भेजा - पक्षियों की चहचहाहट, झरनों नदियों की बहती धारा का संगीत। जब मनुष्य को भेजा तो उसके दिल की धड़कन का संगीत। हमें चाहिए कि हम उसे मीठे बोलो में ढाले और मीठा बोले। चर्चा के दौरान तीन गीत सुनवाए गए -
जीवन को संगीत बना लो
संगीत जहां हैं गीत वहां
लोगो का दिल अगर जीतना तुमको हैं तो मीठा मीठा बोलो
मीठी संगीतमय प्रस्तुति !
मंगलवार को प्यार की चर्चा हुई। शुरूवात अच्छी हुई कि आजकल प्यार फैशन बन गया हैं। आकर्षण को ही प्यार का नाम दे दिया गया हैं। पहले प्यार की अभिव्यक्ति में सालो लग जाते थे। प्यार की एक परिपक्व उम्र होती हैं। प्यार में नैतिकता, समर्पण और संस्कार होने चाहिए। प्यार पर प्यार से दिया गया भाषण हमें बहुत प्यारा लगा और गीतों का चुनाव कुछ इस तरह रहा -
इश्क में प्यार में क्या हो रहा हैं
अगर तुम मिल जाओ ज़माना छोड़ देगे हम
ये इश्क हाय बैठे बिठाए जन्नत दिखाए
बुधवार को बहुत पुरानी बात अच्छे ढंग से बताई गई। जीवन में खुशी के साथ गम हैं। कुछ लोग गम को धुंए में उड़ाते हैं। गम में व्यसन के बजाए मुस्कुराना चाहिए और दूसरो को भी मुस्काने की प्रेरणा देना चाहिए। एक बात बहुत अच्छी बताई - जो व्यसन के गुलाम बनते हैं वो अनाडी हैं और जो व्यसन को गुलाम बनाते हैं वो खिलाड़ी हैं। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए -
मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया
सीख लो गम के मारो मुस्कुराना सीख लो
जिन्दगी हैं खेल कोई पास कोई फेल
आज की त्रिवेणी में बहुत जानी-मानी बात पर जानी-पहचानी चर्चा हुई - जिन्दगी की पहेली। जिन्दगी पहेली हैं, इसे समझने की कोशिश की जानी हैं जो कठिन हैं क्योंकि समय के गर्भ में क्या छिपा हैं इससे हम अंजान हैं। जीवन के प्रति सबका दृष्टिकोण अलग हैं। सुख दुःख से भरा जीवन अंगूर के दाने की तरह हैं। चर्चा के दौरान सुनवाए ये नए-पुराने गीत -
जिन्दगी कैसी हैं पहेली
कैसी पहेली हैं ये जिंदगानी
ये जीना हैं अंगूर का दाना
अंत में फिल्मो के नाम बताए - आनंद, परिणीता और खट्टा-मीठा
इस बार त्रिवेणी में विषयो की विविधता अच्छी रही। पर्यावरण और जीवहिंसा जैसे गंभीर विषयो से लेकर प्यार जैसे समाज की नब्ज पकड़ने वाले विषयो से सजी त्रिवेणी से दिन का शुभारम्भ हुआ। कार्यक्रम प्रायोजित होने से शुरू और अंत में प्रायोजक के विज्ञापन प्रसारित हुए।
दोनों ही कार्यक्रमों के लिए आरम्भ और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई।
सबसे नए तीन पन्ने :
Thursday, February 3, 2011
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