विविध भारती में लगभग हर दिन मेहमान पधारे। उनके अनुभव और संघर्ष यात्रा को जानने के साथ नई जानकारियाँ भी मिली और उनके पसंदीदा गीत भी सुने। ये कार्यक्रम हैं - शुक्रवार - सरगम के सितारे, शनिवार - विशेष जयमाला, रविवार - उजाले उनकी यादो के, सोमवार - सेहतनामा, बुधवार - आज के मेहमान और इनसे मिलिए इनमे से विशेष जयमाला को छोड़ कर सभी भेंटवार्ताएं हैं। आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -
शाम बाद 7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद प्रसारित होने वाले फ़ौजी भाईयों के इस जाने-पहचाने सबसे पुराने कार्यक्रम जयमाला में शनिवार को विशेष जयमाला में मेहमान रहे जाने-माने लेखक, निर्माता और निर्देशक जनाब कमाल अमरोही साहब। अच्छे गीतों के साथ बाते भी अच्छी बताई। बताया कि पारंपरिक परिवार से सम्बन्ध रहा जो फिल्मो से दूर था। अपनी फिल्मो की शूटिंग के दौरान हुए खट्टे-मीठे अनुभव सुनाए। एक बार रात के समय कोटा के पास डाकुओं से सामना और बाद में मीनाकुमारी जी के कारण हुआ बचाव। यह बात भी सामने आई कि कभी-कभार शेरो-शायरी भी लिखते हैं, उन्ही का लिखा उनकी बेहतरीन फिल्म पाकीजा का गीत सुनवाया - मौसम हैं आशिकाना और इस फिल्म की जजीरे पर की गई शूटिंग के अनुभव भी बताए कैसे पानी घिर आया था। यह शूटिंग स्थल मीना जी की पसंद था और उन्ही की जिद से शूटिंग हुई थी, गीत सुन कर मुझे भी वह ख़ूबसूरत लोकेशन याद आ गई। एक बढ़िया अनुभव बताया हिन्दू-मुस्लिम एकता और सदभावना से जुडा और इसी के आधार पर बनाई फिल्म - शंकर हुसैन। इसके अलावा खय्याम साहब के संगीत को पहली बार शगुन फिल्म में सुनने के अनुभव बताए। अपनी फिल्मो के और दूसरे भी बेहतरीन गीत जैसे ठंडी हवाएं और तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नही बनती सुनवाए। अच्छी प्रस्तुति रही संग्रहालय से जिसकी प्रस्तुतकर्ता हैं कल्पना (शेट्टे) जी। शुरू और अंत में जयमाला की संकेत धुन सुनवाई गई। यह कार्यक्रम प्रायोजित था। प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए।
इसी समय के प्रसारण में बुधवार को जयमाला के बाद 7:45 पर 15 मिनट के कार्यक्रम इनसे मिलिए में अभिनेता, लेखक और निर्देशक हर्ष छाया से रेणु (बंसल) जी की बातचीत की दूसरी और अंतिम कड़ी प्रसारित हुई। बताया कि जिस काम में दिलचस्पी होती हैं, वही करते हैं। अपने पुराने धारावाहिक स्वाभिमान और हसरते की चर्चा की। अपने ब्लॉग लेखन के बारे में बताया। स्टेज में नाटको के अनुभव बताए। यह भी चर्चा की कि एक लघु फिल्म बना रहे हैं। इस कार्यक्रम के लिए तकनीकी सहयोग प्रदीप (शिंदे) जी का रहा, संयोजन शकुन्तला (पंडित) जी का और प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही।
शेष कार्यक्रम शाम 4 से 5 बजे तक पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित किए जाते हैं। पिटारा कार्यक्रम की अपनी परिचय धुन है जो शुरू और अंत में सुनवाई जाती हैं और कार्यक्रमों की अलग परिचय धुन है जिसमे आज के मेहमान कार्यक्रम में संकेत धुन के स्थान पर श्लोक का गायन हैं।
शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सरगम के सितारे। जैसा कि शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं इस कार्यक्रम के मेहमान संगीत के क्षेत्र से होते हैं। इस सप्ताह पार्श्व गायक मनहर उदहास से युनूस (खान) जी की बातचीत की दूसरी कड़ी सुनवाई गई। बताया कि सत्तर के दशक में जब फिल्म संगीत के क्षेत्र में प्रवेश किया तब स्थापित गायक थे और नए गायकों की आवश्यकता नही थी। पहला गीत विश्वास फिल्म के लिए गाया जो लोकप्रिय हुआ। इसके बाद संगीत की शिक्षा ली और उर्दू भी सीखी। यहाँ उनकी गाई गैर फिल्मी गजल भी सुनवाई - दिया जलाती हैं ये बरसात सनम तेरे बिना। पूरब और पश्चिम के गीत पुरवा सुहानी आई रे, मिलने की बाते बताई। कहा कि उन्हें वही गीत मिले जिसमे दो-तीन गायक हैं। यह गीत उन्होंने विनोद खन्ना के लिए गाया इसी तरह आगे भी उन्हें ऐसे ही गीत मिले। यही पर चर्चा कि अभिमान फिल्म की। यह भी बताया कि उन्होंने लताजी के साथ कई चैरिटी शोज किए और लताजी ने ही अभिमान फिल्म के लिए उनका नाम एस डी बर्मन को सुझाया। जब वह बर्मन साहब से मिले तब उन्हें कोई फिल्मी गीत गाकर सुनाना नही चाहते थे, अपनी प्रतिभा दिखाने, कुछ अलग सुनाने के लिए नेपाली लोकगीत गाकर सुनाया। वही गीत सुनवाया गया और उन्होंने गुनगुनाया भी। अभिमान के इस गीत की लोकप्रियता की चर्चा हुई जिसके लिए उन्होंने माना भी कि यह गीत सभी बड़े कलाकारों के साथ था। इसके बाद कागज़ की नाव फिल्म के गीत की चर्चा चली। उसके बाद कुर्बानी फिल्म मिलने की बात बताई कि कल्याणजी आनंदजी ने उन्हें बुलाया। आधुनिक तकनीक के अनुसार संगीत रिकार्ड हुआ और गीत के बोल रिकार्ड होने की चर्चा शुरू नही हो पाई जो अगली कड़ी में होगी। एक ख़ास बात भी बताई कि उनकी आवाज मुकेश जी से कुछ-कुछ मिलती हैं। शुरू में लोग उनसे कहते थे मुकेश जी की नक़ल न करे और मुकेश जी के निधन के बाद लोग कहने लगे थोड़ा ऐसे॥ गा दीजिए ताकि मुकेश जी जैसा लगे पर हर बार उन्होंने कहा कि उनकी आवाज मूल रूप से ऎसी ही हैं और मुकेश जी की नक़ल उन्होंने कभी नही की। कार्यक्रम बहुत अच्छा तैयार किया गया, बिलकुल कार्यक्रम के शीर्षक के अनुरूप। उनके गाए गीत सुनवाए, जिनसे उन्हें प्रेरणा मिली वो गीत सुनवाए और उनके गाए बहुत से गीतों के अंश शुरू में, बीच में और अंत में सुनवाए। इस कार्यक्रम को माधुरी (केलकर) जी के सहयोग से तनूजा (कोंडाजी कानडे) जी ने प्रस्तुत किया। रिकार्डिंग इंजीनियर हैं विनायक (रेडके) जी। अच्छी रही प्रस्तुति। शुरू और अंत में इस कार्यक्रम की संकेत धुन सुनवाई गई जो लोकप्रिय गीतों के अंशो को जोड़ कर बनाई गई हैं। शुरू में परिचय दिया और समापन किया अमरकांत जी ने। समापन पर विविध भारती का पता भी बताया कि श्रोता बता सके कि यह कार्यक्रम उन्हें कैसा लगा - सरगम के सितारे, विविध भारती सेवा, पोस्ट बॉक्स नंबर 19705 मुम्बई 400091
रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के। मेहमान रहे लेखक, निर्माता और निर्देशक सागर सरहदी जिनसे बातचीत की युनूस (खान) जी ने। बातचीत की यह सातवी और समापन कड़ी थी। इसमे शुरू में उनकी बनाई फिल्म बाजार की चर्चा हुई जिसके लिए यह ख़ास बात उन्होंने बताई कि पच्चीस साल पहले बनाई गई यह फिल्म अब उन्हें ख़ास नही लगती। इस फिल्म का सीन भी सुनवाया। अपनी बनाई फिल्मो के बारे में बताया कि इन फिल्मो को व्यावसायिक सफलता नही मिली। अपनी दक्षता की भी चर्चा की कि रोमांटिक सीन में संवाद लिखने में महारत हासिल हैं। चांदनी फिल्म की चर्चा की जिसमे यश चोपड़ा जी से कुछ अनबन होने के बाद उन्होंने किसी और को लिया था पर बाद में इन्ही से संवाद लिखवाए। इसी तरह कहो न प्यार हैं फिल्म भी की। अपनी इस कला का उन्होंने मुख्य कारण माना कि वो हमेशा समय के साथ चलते हैं, संवाद लिखते समय चरित्र को ध्यान में रखते हैं और कलाकार को भी तभी भाषा और भाव जमते हैं। अपनी फिल्म फासले की असफलता की चर्चा की। यह स्पष्ट कहा कि पैसो की जरूरत के लिए व्यावसायिक फिल्मे करते हैं। फिल्मो के अलावा अपने मूल काम की चर्चा की कि मुख्य रूप से उर्दू अफसाने लिखते हैं, नाटक लिखते हैं और इन्ही कामो के लिए मिले एवार्ड्स की चर्चा की। अपनी अंतिम फिल्म चौसर की चर्चा की जो नए कलाकारों को लेकर बनाई हैं पर सिनेमाघर में शायद रिलीज न हो पाए, इसीलिए चैनलों पर रिलीज करवाना चाहते हैं। अब एक-दो फिल्मे कर रहे हैं और अपनी एक फिल्म भी बनाना चाहते हैं। चर्चा में आई फिल्मो के गीत सुनवाए गए। अच्छी रही प्रस्तुति। इस कार्यक्रम को कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया। रिकार्डिंग इंजीनियर हैं विनायक (तलवलकर) जी।
सोमवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सेहतनामा। इसमे त्वचा के रोग और त्वचा की सुन्दरता पर बातचीत की गई। मेहमान डाक्टर थी त्वचा रोग विशेषज्ञ डाक्टर कल्पना सारंगी जिनसे रेणु (बंसल) जी की बातचीत सुनवाई गई। बहुत विस्तार से जानकारी दी। इलाज और सावधानी पर चर्चा की। सबसे पहले साफ़ और सुन्दर त्वचा की जानकारी दी, अगर दाग-धब्बे न हो तो स्वस्थ और स्किन टोन बराबर हो और शुष्कता न हो तो सुन्दर त्वचा हैं। हारमोन में गड़बड़ी होने से धब्बे आते हैं जिसका इलाज आसान हैं पर आनुवांशिकी त्वचा रोग हो तो इलाज कठिन हैं जिसमे होंठो, उँगलियों के पोरों पर सफ़ेद धब्बे होते हैं जो फैलते जाते हैं। गृहणियों को अक्सर त्वचा के संक्रमण का खतरा रहता हैं, अधिक पानी में काम करना हो तो पहले हाथो में थोड़ा तेल लगा ले। त्वचा की उम्र 25 साल होती हैं जिसके बाद ध्यान रखे, कोई समस्या होने पर परीक्षण करा ले। आधुनिक जीवन शैली के बारे में सलाह दी की कम से कम दस मिनट धूप अवश्य ले, सन स्क्रीन का उपयोग करे। संतुलित आहार ले जिसमे प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट और वसा सामान हो जो फल और हरी सब्जियां लेने से भी पर्याप्त हैं। उम्र के साथ कोशिकाओं में नमी कम होने से त्वचा सूखी लगती हैं। मेकअप ध्यान से करे, अवांछित बालो को लेजर से निकालने में हानि नही हैं। बातचीत के साथ डाक्टर साहब की पसंद के गीत सुनवाए गए - पुरानी फिल्म दिल अपना और प्रीत पराई जैसी फिल्मो के और नई फिल्म जैसे मर्डर के गीत। इस कार्यक्रम को पी के ए नायर जी के सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने प्रस्तुत किया। तकनीकी सहयोग तेजेश्री (शेट्टे) जी का रहा।
बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम मे मेहमान रहे अभिनेता और निर्देशक विक्रम गोखले जिनसे बातचीत की निम्मी (मिश्रा) जी ने। दूसरी और अंतिम कड़ी प्रसारित हुई पर पहली कड़ी से जोड़ने से यह भी पता चला कि पारिवारिक माहौल कला का रहा जिससे इस क्षेत्र में आए। संवाद बोलने से ज्यादा भावो को दर्शाने का प्रभाव अधिक होने पर अच्छी चर्चा चली। बताया कि दुःख हैं तो जरूरी नही कि रोया जाए। अपनी फिल्म यही हैं जिन्दगी की चर्चा की जिसमे कृष्ण की भूमिका की थी, इसके लिए संजीव कुमार को याद किया। अपनी फिल्मो और टेलीविजन के अनुभव बताए। थियेटर में किए नाटको के अनुभव बताए। बताया कि एक नाटक में एक भूमिका 35 साल तक की जिसे दर्शको ने खूब सराहा, बाद में इसी नाटक का निर्देशन किया और यही भूमिका दूसरो से करवाना अच्छा लगा। इस तरह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को अच्छा माना। रेडियो की भी चर्चा कि जिससे पता चला कि पूना रेडियो के लिए गायक कलाकार रहे। अमीन सयानी को पसंद फरमाया और कहा कि अब भी कार में रेडियो सुनते हैं। उनके द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यो की भी चर्चा की। चलते-चलते बताया कि नेत्रहीन और मानसिक विकलांग की भूमिका करना चाहते हैं। अपनी फिल्मो के गीत भी सुनवाए और पसंद के पुराने गीत भी सुनवाए, शास्त्रीय संगीत को पसंद करने की बात बताई। इस कार्यक्रम को कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया। रिकार्डिंग इंजीनियर हैं विनायक (तलवलकर) जी। शुरू में इस कार्यक्रम की संकेत धुन के स्थान पर इस श्लोक का गायन सुना - अथ स्वागतम शुभ स्वागतम, आनंद मंगल मंगलम, इत प्रियम भारत भारतम
सभी कार्यक्रम अपनी-अपनी जगह अच्छे रहे पर सप्ताह भर के इन कार्यक्रमों पर समग्र दृष्टि डालने पर कुछ बाते खटकती रही। पहली बात ज्यादातर मेहमान लेखन और निर्देशन क्षेत्र से रहे जिससे विविधता नही रही। दूसरी बात संयोजन की खटकी, शनिवार और रविवार के मेहमान क्षेत्र के मामले में एक जैसे रहे उसी तरह बुधवार के दोनों कार्यक्रमों के मेहमान भी। तीसरी बात बुधवार के दोनों कार्यक्रम दो कडियों में अनावश्यक विस्तार लगे, एक कड़ी में बातचीत ज्यादा प्रभावी होती। इनसे मिलिए कार्यक्रम अपने वास्तविक स्वरूप में नजर नही आया। जहां तक मेरी जानकारी हैं इस छोटे से कार्यक्रम में नई उभरती प्रतिभाओं से बातचीत होती हैं। अच्छा होता अगर परदे के पीछे काम करने वाले कलाकारों को भी आमंत्रित किया जाता जैसे सिनेमा के निर्माण में तकनीकी पक्ष से जुड़े लोग, इसी तरह कई लोकप्रिय गीतों की लोकप्रिय धुनों में विभन्न साज के वादक कलाकार। इससे कई नई जानकारियाँ भी मिलती थी और इन प्रतिभाओं के धनी कलाकारों को सुनने का मौक़ा मिलता।
सबसे नए तीन पन्ने :
Thursday, May 12, 2011
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