सबसे नए तीन पन्ने :

Friday, October 31, 2008

साप्ताहिकी 30-10-08

यह सप्ताह दीपावली का सप्ताह था।

रोज़ सवेरे 6 बजे समाचार के बाद चिंतन से प्रसारण की शुरूवात हुई जिसमें गुणों के बारे में चाणक्य नीति, विभिन्न विद्वानों के विचार बताए गए। दीपावली के दिन विदेशी चिंतक के विचार बताए गए जो अवसर के अनुरूप भी नहीं थे जबकि अवसर के अनुसार कोई नीतिगत बात बताई जानी चाहिए थी क्योंकि यह प्रसारण की शुरूवात होती है। वैसे क्षेत्रीय केन्द्र ने इसका पूरा ध्यान रखा और वन्देमातरम के बाद तमसो मा ज्योतिर्गमय, यह पूरा श्लोक कहने के बाद मंगलध्वनि सुनवाई।

वन्दनवार में भी सामान्य भजन बजते रहे जबकि इस दिन तेलुगु भक्ति गीतों के कार्यक्रम अर्चना में लक्ष्मी स्तुति सुनवाई गई। अंत में बजने वाले देशगान में शुक्रवार को सुनवाया गया देशगान मैनें पहली बार सुना शायद यह गीत नया है -

कदम कदम बढाते चलो
भारत के गीत गाते चलो

शायद बोल लिखने में ग़लती हो। इस गीत का विवरण नहीं बताया गया।

7 बजे भूले-बिसरे गीत में इस सप्ताह भी कुछ ऐसे गायकों के गीत सुनवाए गए जिनसे श्रोताओं का अधिक परिचय नहीं है। बहुत दिन बाद पहाड़ी सान्याल का गीत सुनना अच्छा लगा। इसके अलावा कुछ लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए। सबसे अच्छा लगा दीपावली के दिन कार्यक्रम की समाप्ति खेमचन्द प्रकाश के स्वरबद्ध किए, तानसेन फ़िल्म के कुन्दनलाल सहगल के इस गीत से करना -

दिया जलाओ जगमग जगमग

7:30 बजे संगीत सरिता में गायिकी अंग का गिटार श्रृंखला समाप्त हुई। यह श्रृंखला कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने प्रस्तुत की जिसमें गायक और गिटार वादक दीपक क्षीरसागर ने अच्छी जानकारी दी जैसे - गीत और तार से बना है गिटार, इसमें मुख्य तीन तार होते है शेष तार गायक अपने अंदाज से बढाते है, इसी तरह गिटार की लम्बाई भी सवा दो से ढाई फुट होती है पर कलाकार अपने अनुसार कुछ बढा लेते है, इसमें प्रयुक्त होने वाली लकड़ी, विभिन्न तारों के सुरों को बजा कर भी बताया गया। विभिन्न रागों पर गतें, बन्दिशें प्रस्तुत की गई, सह कलाकार थे सूर्याक्ष देशपाण्डे। फ़िल्मी धुनें भी बजी और यह फ़िल्मी गीत भी सुनवाए गए जैसे महबूबा फ़िल्म का यह गीत -

मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा

यह भी बताया कि बाबरनामा में भी गिटार की चर्चा है इस तरह शोध के आधार पर यह पता चलता है कि भारत से गिटार वाद्य विदेशों में गया और वहाँ से परिवर्तित होकर फिर से हमारे देश में एक नए रूप में आया। गिटार के जिस नए रूप की यानि स्पैनिश गिटार की चर्चा की गई है तो इससे संबंधित एक फ़िल्मी गीत मुझे याद आ रहा है, वैसे तो गिटार के कई गीत है पर यह गीत ख़ास है जो फ़िल्म जोशीला का है जिसे किशोर कुमार ने गाया है और जिसे देवआनन्द पर फ़िल्माया गया है -

मैं आया हूँ लेके साज़ हाथों


इसकी ख़ास बात यह है कि आरंभ में गिटार पर संगीत सामान्य से कुछ लम्बा है पर सुनने में बहुत अच्छा है। इसकी चर्चा युनूस जी ने अपने ब्लोग रेडियोवाणी या इसी ब्लोग में कुछ महीने पहले ही की थी और यह धुन भी विविध भारती पर सुनवाई थी पर किस कार्यक्रम में, यह मुझे याद नहीं आ रहा है। अगर यह पूरा गीत, गिटार की लम्बी आरंभिक धुन के साथ आधुनिक गिटार की चर्चा करते हुए सुनवा दिया जाता तो कार्यक्रम और भी अच्छा हो जाता।

7:45 पर त्रिवेणी में शुक्रवार को कमल (शर्मा) जी ने लीक से कुछ हट कर विषय उठाया। आमतौर पर बातें होती है आदर्शवाद की पर इस दिन ठोस व्यावहारिक धरातल पर मिलावट का मुद्दा उठाया जिसमें सुनवाया गया एक गीत बहुत ही क्म सुनवाया जाता है, मिर्च में पिसी ईंट, मिठाई में ब्लाटिंग पेपर, चावल में कंकर मिलाए जाने का गीत मैनें तो पहली ही बार सुना। त्रिवेणी में नारी पर भी चर्चा हुई और दीपावली के दिन भी इधर-उधर की बातें ही होती रही।

दोपहर 12 बजे का समय है एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम का। हर दिन कार्यक्रम के अंत में अगले दिन के लिए फ़िल्मों के नाम बता दिए गए और हर दिन शुरूवात में ही उस दिन की फ़िल्मों के नाम बता दिए गए। 12 से 1 बजे के दौरान श्रोता एस एम एस करते रहे और बताई गई फ़िल्मों में से किसी गाने की फ़रमाइश करते रहे। पहला संदेश आने तक पहला गीत उदघोषक की पसन्द का बजता रहा बाद में इस पहले गीत के लिए संदेश भी आते रहे।

शुक्रवार को ओंकारा, टशन, बंटी और बबली, विवाह, आशिक बनाया आपने, अक्सर जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं निम्मी (मिश्रा) जी। शनिवार को झूम बराबर झूम, धूम, आपका सुरूर, ग़दर एक प्रेम कथा, लगान जैसी आजकल की और नब्बे के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आए राजेन्द्र (जोशी) जी। रविवार को जानी मेरा नाम, यादों की बारात जैसी सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आए कमल (शर्मा) जी पर यह कार्यक्रम हम 12:30 बजे से सुन पाए क्योंकि 12 बजे से क्षेत्रीय केन्द्र से तेलुगु में स्वास्थ्य संबंधी प्रायोजित कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसमें बच्चों के स्वास्थ्य की चर्चा की गई।


सोमवार को आए युनूस जी और लाए अस्सी के दशक से अब तक की फ़िल्मों में से चुनी हुई फ़िल्में जैसे बातों बातों में, विवाह, हीरो, सिंह इज़ किंग, जब वी मेट। मंगलवार को आए राजेन्द्र (जोशी) जी, फ़िल्में रही सागर, धर्मात्मा, करण अर्जुन, सड़क जैसी सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। बुधवार को आए राजेन्द्र (जोशी) जी और फ़िल्में रही दोस्ती, सोलहवाँ साल, ब्लफ़ मास्टर जैसी साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को पधारीं शहनाज़ (अख़्तरी) जी और फ़िल्में रही साठ के दशक से अब तक की जैसे लव इन टोकियो, संघर्ष, हमसाया, हमराज़, निकाह, ज़हर, ओंकारा जैसी लोकप्रिय फ़िल्में।
इस तरह हर दिन ऐसी लोकप्रिय फ़िल्में चुनी गई जिसके लगभग सभी गीत लोकप्रिय रहे जिनमें से बहुत ही लोकप्रिय गीतों की फ़रमाइश आई -

ओ मेरे राजा ख़फ़ा न होना देर से आई दूर से आई
मजबूरी थी लेकिन मैनें वादा तो निभाया (जानी मेरा नाम)

है अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आएगा (सोलहवाँ साल)

और कुछ ऐसी फ़िल्में भी चुनी गई जिनके गीत बहुत लम्बे समय से नहीं बजे जैसे -

वो हसीं दर्द दे दो जिसे मैं गले लगा लूँ (हमसाया)

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है।

1 बजे म्यूज़िक मसाला में ज़ोहेब हसन, अदनान सामी, अल्ताफ़ राजा, की आवाज़ में बुमबुम, जूनून, दिल के टुकड़े हज़ार हुए एलबम से गीत सुनवाए गए। कैट वाक एलबम से अनामिका का गाया यह गीत अच्छा लगा -

चोरी-चोरी
किया ये दिल मेरा चोरी-चोरी
जहाँ वाले कहे ये क्या हुआ गोरी

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में इस सप्ताह भी हर दिन मिले-जुले लोकप्रिय गाने सुनवाए गए जैसे साठ के दशक की फ़िल्म से यह गीत -

मस्त बहारों का मैं आशिक (फ़र्ज़)

नई फ़िल्म पार्टनर से यह गीत -

दुपट्टा तेरा नौ रंग दा

इस तरह हर दिन सभी श्रोताओं को पूरे कार्यक्रम का आनन्द मिल सका।


3 बजे शुक्रवार को क्षेत्रीय केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम सुनवाया गया - कोशिश सुनहरे कल की, यह कार्यक्रम पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिए तैयार किया गया। इस कार्यक्रम में पर्यावरण के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों की जानकारी दी गई। एक रोचक घटना को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसमें स्कूल का एक लड़का पर्यावरण रक्षा के लिए जामुन के पेड़ को अपना बड़ा भाई मानता है। पर्यावरण की रक्षा के लिए आवश्यक बात भी बताई गई जैसे पेड़ों की झड़ने वाली पत्तियों को जलाने के बजाय मिट्टी में दबा दिया जाए जिससे खाद बनेगी। फोन पर एक लड़के से बात कर यह निष्कर्ष बताया गया कि सड़क पर वाहन सीएनजी से चलने चाहिए। चंबल नदी जहाँ यमुना से मिलती है वहाँ घड़ियाल प्रदुषण से मृत पाए गए, इस समाचार को सुनाकर संदेश दिया गया। बीच-बीच में संबंधित नए फ़िल्मी गीत भी सुनवाए गए।

शनिवार को यही कार्यक्रम तेलुगु में सुनवाया गया।

3:30 से शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम रिले किया गया। फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। पश्चिम बंगाल से जिस सखि ने फोन किया उसने वहाँ के पर्यटन स्थलों की हल्की जानकारी दी, शिक्षित सखियों के भी फोन आए, गाने नए पुराने बजते रहे।

सखि-सहेली में अन्य दिनों में दीपावली की भय्या दूज की बातें हुई। इन त्यौहारों को मनाए जाने की जानकारी भी दी गई और संबंधित गाने सुनवाए गए।


शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना जगदीश चन्द्र के उपन्यास कभी न छोड़े खेत का रेडियो नाट्य रूपान्तर जिसका जगदम्बा प्रसाद ने अनुवाद किया है। यह नीलोवाली और नम्बरदारों के गुट संघर्ष की कहानी है जिसके माध्यम से दो गुटों को आपस में लड़ा कर उनकी शक्ति कम करने की बात कही गई है।

रविवार को शाम 4 बजे यूथ एक्सप्रेस में किताबों की दुनिया में साहिर लुधियानवी को श्रृद्धांजलि दी गई। लाइट हाउज़ स्तम्भ में सफल युवा की श्रेणी में सचिन तेंदुलकर के करिअर के संबंध में जानकारी दी गई। समझ में नहीं आया कि क्या इसको शामिल करना ठीक था क्योंकि यह तो सभी अख़बारों में मिलने वाला समाचार है जिसे युवा आवश्यक होने पर अख़बार की कतरन निकाल कर रख सकते है उसी जानकारी को रेडियो से बताने के बजाय कोई और जानकारी दी जा सकती है। हमेशा की तरह इस बार भी विज्ञान, प्रबन्धन, सूचना प्रौद्यौगिकी के विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश की सूचना दी गई।
4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा में प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम बाईस्कोप की बातें जिसमें बी आर चोपड़ा की फ़िल्म गुमराह की चर्चा हुई। यह कार्यक्रम पिछले महीने ही प्रसारित हुआ था, इस तरह बहुत जल्द दुबारा प्रसारण किया गया।


सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा पवार से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। बुधवार को आज के मेहमान में अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी से अजय शेखर जी की बातचीत सुनवाई गई। उनके करिअर तथा जीवन के बारे में जानकारी मिली। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।


5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में अधिकतर ऐसे गीत सुनने को मिले जिसकी धुन गिटार पर थी, इस तरह अधिकांश गाने एक जैसे लगे।

7 बजे जयमाला में रोज़ फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए जिसमें नए गाने ज्यादा थे जैसे - क्रेज़ी किया रे और कुछ पुराने लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए जैसे कारवाँ फ़िल्म का गीत -

पिया तू अब तू आजा

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेता गुलशन ग्रोवर ने। अपने सथियों के बारे में एक-एक कर बताया जैसे गोविन्दा, अनिल कपूर, जैकी श्रोफ़ आदि और इसी से संबंधित लोकप्रिय गीत सुनवाए, इस तरह बिना कहे भी खुद उनके बारे में जानकारी मिल गई।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में उड़िया, पंजाबी गीत सुनवाए गए, इस तरह अलग-अलग क्षेत्रों से एक-एक गीत आजकल सुनवाए जाते है। पत्रावली में शनिवार और सोमवार को पढे गए पत्रों में विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। एक पत्र तो पाकिस्तान से आया था, एक महिला श्रोता ने भेजा जिन्हें विभिन्न देशों के रेडियो कार्यक्रम सुनने का शौक है। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी, पहली क़व्वाली सुनी युसूफ आज़ाद और साथियों की गाई -

सीने में रहने दो होठों पे न लाओ
होठों पे आ गया तो राज़ खुल जाएगा

बोल और धुन दोनों ही लेकर साठ के दशक की फ़िल्म शिकार में आशा भोंसले और सथियों का यह गीत रखा गया जो बहुत ही लोकप्रिय हुआ और तारीफ़ हुई गीतकार और संगीतकार की -

परदे में रहने दो परदा न उठाओं
परदा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा

वाकई ऐसे भेद विविध भारती से ही खुलते है।

बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में महाराष्ट्र परिवहन सेवा से महिला बस कंडक्टर छाया रविन्द्र से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने बातचीत की। लगता है यह कार्यक्रम पहले भी प्रसारित हुआ था, लेकिन ऐसे कार्यक्रम दुबारा सुनना भी अच्छा लगता है। अब तो हैदराबाद में भी महिला कंडक्टर बहुत हो गए है और भीड़ भरी बस में भी अच्छा नियंत्रण रखते है। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।

8 बजे हवामहल में दीपावली को सोमनाथ नागर की लिखी और सत्येन्द्र शरत की निर्देशित झलकी प्रस्तुत की गई दीवाली की रात। इसके अलावा शेष दिनों में सुनी झलकी हवालात में एक रात जिसके निर्देशक है अज़िमुद्दीन, कल के दुश्मन, रचना विनोद वर्मा की और निर्देशक विजय दीपक छिब्बर, सोमवार को अनिता निगम की लिखी निर्देशिका चन्द्रप्रभा भटनागर की झलकी सुनी फोकट चन्द जिसे क्षेत्रीय केन्द्र से झरोका में फोकस चाँद कहा गया। हवामहल की झलकियों से तो मनोरंजन हुआ ही साथ ही उसकी उदघोषणा से भी मनोरंजन हुआ।

रात 9 बजे गुलदस्ता में एक बार फिर सुना गीत - हाय मेरे अल्ला, चाँदी का छल्ला, इसके अलावा ग़ज़लें सुनी छाया गांगुली, जगजीत सिंह, भूपेन्द्र-मिताली, चित्रा सिंह से, कतिल शिफ़ाई के साथ नए पुराने शायरों के कलाम सुने।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में झुमरू, लीडर, आरती, लव इन टोकियो, अनुराग, दिल है कि मानता नहीं, इस तरह पचास के दशक से अस्सी के दशक तक हर दशक की लोकप्रिय फ़िल्म के गीत सुने।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में संगीतकार नौशाद से अहमद वसी की बातचीत की अंतिम कड़ी प्रसारित हुई। इस समापन कड़ी में कोहिनूर और गंगा जमुना के इन सदाबहार गीतों की चर्चा अच्छी लगी -

मधुबन मे राधिका नाचे रे
नैन लड़ गई रे

समापन किया अपनी पत्नी के निधन के समाचार से। इस तरह व्यक्तिगत जीवन के साथ गीत और संगीत की और ख़ासकर के एल सहगल जैसे कलाकारों की चर्चा चली। धन्यवाद कमल (शर्मा) जी इस शानदार प्रस्तुति के लिए।

10 बजे छाया गीत में दीपावली की रात, अमावस की रात निम्मी (मिश्रा) जी ने की चाँद की बातें और सुनवाने शुरू कर दिए भूले-बिसरे गीत।

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें