विविध भारती की केन्द्रीय सेवा का एक रूप से यह बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम है । मेरे कई दोस्तों ( जिनमें से एक बडौदा के श्री जयंतीभाई पटेल भी है )ने आग्रह किया कि मूझे भी इस कार्यक्रममें हिस्सा लेना काहिए । पर मेरा मानना था कि हल्लो फ़रमाईश की तराह अलभ्य गानों की फरमाईश की इस कार्यक्रममें गुंजाईश नहीं है । (सालों से हल्लो फरमाईश के तथा भूतकालीन कर दिये गये हल्लो आप के अनुरोध पर कार्यक्रम के नियमीत श्रोता रहे पाठकोने मेरी फ़रमाईशो को शायद याद रख़ा हो सकता है ।) इस लिये मैं कहाँ तक टालता रहा था । पर एक दिन इसी कार्यक्रम में श्री अमरकांतजीने कहा की श्रोता जाहिर की गयी फिल्मों की सूची कए अलावा भी अपनी पसंद भेज सकते है, तब मैनें बिना आशा रख़े ही एक गाना पियानो और सोलोवोक्ष वादक तथा संगीतकार स्व. श्री केरशी मिस्त्री साहब के संगीत निर्देषन वाला फिल्म वीर बालक का गाना जो स्व गीता दत्तजी के साथ बी कम्लेशकूमारी (सही नाम जालू भेसानिया ) ने गाया है जो करीब 10 साल पहेले दो पहर को आने वाले यादों के झरोखोसे कार्यक्रममें अंतीम बार प्रस्तूत हूआ था, जिसे सुनने की असफ़ल कोशीश मैंनें दो बार हल्लो फरमाईश में की थी । (एक बार अमर कांतजी के साथ बात के वक्त श्री रमेश सेठी साहबने मेरी दूसरी वैकल्पीक पसंस सुनाई थी और एक बार करीब 8 महिने के अंतराल के बाद श्री कमल शर्माजी से बहोत सुन्दर बात होने के बावजूद और इस गाने के अलावा वैकल्पीक पसंद की बात होने पर तथा इस लम्बे अंतराल का जिक्र भी उस बात के दौरान करने पर भी भी डो उषा गुजराती और श्री रमेश गोखलेने निर्दयी बन कर् मेरे फोन कोल को निकम्मा कर दिया था । यह देढ साल पहेले की बात है और इसके बाद आज तक नम्बर नहीं लगा और इसकी शिकायत फेक्स और ई मेईल से भेजने पर भी पत्रावलीमें स्थान प्राप्त नहीं हुआ था । इस का खेद उस घटना के बाद कभी भी निरंतर कोशिश के बावजूद फोन नहीं लगने पर या कभी तक़निकी कारणो के हिसाब से रेकोर्डिंग देरी से शुरू होने के कारण फोन तकनिकी प्रतिनिधी द्वारा उठाये जाने पर इस कार्यक्रम का हिस्सा उस घटना के बाद कभी नहीं बन पाया, जिसका गुस्सा उन कार्यक्रम निर्माता और संकलन कार के प्रति सफ़ल कोशीश होने तक मनमें रहेगा ही रहेगा ।) (इसके लिये युनूसजी के छाया गीत में भी एक लम्बे समय के पहेल्रे लिखा था । ) क्या इस गाने को आप की फरमाईसमें मेरे लधू संदेश को तबदील करके स्थान मिल सकता है ? मानता हूँ कि यह गाना सब गानों से बेहतरीन नहीं होगा पर सबसे बूरा भी नहीं है यह पक्का है ।
दूसरा एस एम एस तराना के गाने नैन मिले नैन हूए बावरे के लिये किया था वह इस लिये की सिने में सुलगते है अरमां गाना कई बार बजता है मेरी फरमाईश के मुकाअबले ज्यादा । पर मूझे विश्वास था कि वह ज्यादा बजने वाला गाना ही बजेगा और होशियार श्रोता चलती सवारी पर सवार हो ही जाते है ।
इस लिये अगर फोन हल्लो फरमाईशमें लगता है और कार्यक्रम निर्माता और संपादक शोख़ीन होते है और लायब्रेरीयन का साथ होता है तो मूझे हल्लो फरमाईश कार्यक्रममें फरमाईश करना ज्यादा आनंद देता है ।
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1 comment:
वैसे एस एम एस के बहाने वी बी एस अच्छे ही गाने सुनवा रही है फिर भी कई उसी समय की अच्छी फ़िल्मों को शामिल नहीं किया जा रहा है जैसे साठ सत्तर के दशक की फ़िल्में लाट साहब, साथी, शतरंज, एक कली मुस्काई, गुमनाम इन फ़िल्मों के गीत भी बहुत लोकप्रिय है।
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