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Tuesday, December 30, 2008

रेडियोनामा: भूले बिसरे गीत या जाने पहचाने गीत?

रेडियोनामा: भूले बिसरे गीत या जाने पहचाने गीत?

वैसे श्रोता लोग में भी हर श्रोता की सोच एक दूसरे से कुछ: मिलतेरे और कुछ: अलग सी होती है, और इसी तरह के कई पत्र विविध भारती के पत्रावली कार्यक्रममें लोग लिख़ते ही रहते है । जब हम इस ब्लोग के गीने चूने लेख़क या कुछ: टिपणी लेख़क की राय पूरी तरह एक नहीं होती तो विविध भारती को इस कार्यक्रम के लिये अपनी नीति तय करना या उसी को ही हर हमेंश कायम रख़ना कितना मुश्कील होगा । इसी लिये कोई समय-कालमें इस कार्यक्रममें लोकप्रिय पूराने गाने आते है तो कुछ: समय कालमें पूराने पर नये गाने आते है । या कभी कभी सब प्रकारके श्रोताके बीच संतुलन रख़ कर विविध भारती दोनों प्रकार गाने प्रस्तूत करती है । क्योंकी इसी पसंद पर आधारीत है, विज्ञापन से होने वाली आय । पर एक बात है कि गाने कितने भी अच्छे हो, साहितीक या संगीत या गायिकी के अलग या सभी रूपो से पर बार बार सुनने पर हमारा ध्यान स्वाभाविक रूपसे उसकी और चिंचाना थोड़ा सा कम तो होगा ही होगा चाहे वे सायगल साहब के सुमधूर गाने भी क्यों न हो । इसी दोनो तरफ की बातको मध्य नज़र रखते हुए मेरा यह सुचन था कि कार्यक्रम का नाम बदल कर कुछ: इस तरह का रख़ा जाये जिसमें पूराने या उसका समानार्थी शब्द शामिल हो पर भूले बिसरे या सदा बहार शब्द नहीं हो और समय समय पर दोनों प्रकार के गीत बजते रहे । अन्नपूर्णाजी से खास कहता हूँ, कि विविध भारती पर भी कई गाने ऐसे आये जिसको मैनें पहली सुना पर इसमें एक बात सामने आयी कि ऐसे गानो में से कुछ: थोडेसे गानो को छोड ज्यादा तर गाने 1961 से 1970 तक की फिल्मो के लगते है और कुछ: गाने 1960 से पहेले के शायद है, जब कि रेडियो श्री लंका पर इसी दिनोंमें हर बुधवार पूरानी फिल्मों के गीतो के कार्यक्रममें भूले बिसरे गीत आते है जो मेरे लिये आज भी कुछ: पहली बार सुनाई पड़ने वाले भी होते है वे 1960 से पहेले के और वे भी तीनों दसक के भी होते है । यहाँ एक बात मैं पहेले कहीं किसी पोस्ट में लिख़ी भी होगी की रेडियो श्रीलंका से इस प्रकार के उनके संग्रहमें होने पर भी कभी प्रसारित नहीं हो सके ऐसे गानो को ले कर जब श्री मनोहर महाजन साहब रेडियो सिलिन पर थे तब उन्होंनें ही शुरू किया था जो आज श्रीमती ज्योति परमारजीने जारी रख़ा है । आकाशवाणी का एक प्रादेशिक केन्द्र इसी प्रकार का एक माहवार कार्यक्रम इस प्रकार के संग्राहको को आमंत्रीत कर के करता है उसका एक नमूना सुनने के लिये जल्द ही आनेवाली मेरी अगली पोस्ट का इंतेझार किजीये । तब तक के लिये सभी पाठकों को आने वाले नये साल की सुभ: कामना और विविध भारती के मूख़्या श्री महेन्द्र मोदी साहब और उनके अभियंता श्री अजय श्रीवास्तव साहब तथा पूरे विविध भारती दल को भी नये साल की शुभ: कामनाएं ।

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत-395001

3 comments:

नीरज गोस्वामी said...

नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज

डॉ. अजीत कुमार said...

चलिए अच्छी बहस हो रही है इस विषय पर की गीत भूले बिसरे हैं या सदाबहार.
वैसे मैं एक बात कहना चाहूंगा कि यदि विविध भारती कुछ वैसे गानों को शामिल करती है जो हमारे सुधी पुराने श्रोताओं के लिए बहुत पुराने नहीं हैं या यूं कहूँ कि भूले बिसरे नहीं हैं तो ये अच्छी ही बात है. कम से कम नयी पीढी ,जो इन सारे गानों से अनजान होती जा रही है,वो तो इसे सुने.

annapurna said...

मेरी समझ में भूले बिसरे गीत और सदाबहार दोनों ही शीर्षक रहने दे तो ठीक ही रहेगा।

भूले बिसरे गीत कार्यक्रम में वो पुराने गीत सुनवाए जाए जो लोकप्रिय नहीं रहे। साथ ही वो लोकप्रिय गीत भी सुनवाए जाए जो बहुत समय से नहीं सुनने से भूले बिसरे हो गए है। आजकल इस कार्यक्रम का स्वरूप लगभग ऐसा ही है।

सदाबहार शीर्षक से कार्यक्रम में वो गीत सुनवाए जाने है जो हर समय लोकप्रिय रहते है। यह कार्यक्रम लगभग ऐसा ही प्रसारित हो रहा है पर कभी-कभार कम लोकप्रिय गीत भी सुनवाए जाते है।

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