क्रिसमस पर्व से यह सप्ताह ख़ास रहा।
सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद पुराणों से कथन के अलावा जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं, विदेशी कवि यीट्स के विचार बताए गए। क्रिसमस के दिन ईसा के नाम से तो नहीं पर संबंधित संदेश सुनाया गया। वन्दनवार में बहुत दिन बाद सुना हरिओम शरण जी के स्वर में यह भक्ति गीत -
दुःख हरण प्रभु नारायण हे
त्रिलोकपति दाता सुखनाम
स्वीकारो मेरे परणाम
क्रिसमस के भक्ति गीत भी सुनवाए गए। सप्ताह भर अंत में सुनवाए गए देशगान भी अच्छे रहे जैसे -
ये भूमि हमारी वीरों की
हम हिन्दों की संतान है
हम भारत माँ की शान है
7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम रविवार को संगीतकार वसंत देसाई और गुरूवार को संगीतकार नौशाद को समर्पित किया गया। वसन्त देसाई के कुछ भूले बिसरे गीत है पर नौशाद के अधिकतर गीत लोकप्रिय है। अन्य दिनों में भी एकाध लोकप्रिय गीत के साथ भूले बिसरे गीत बजते रहे। हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा। शुक्रवार को सुनवाया गया प्रेसीडेंट फ़िल्म का बच्चों की कहानी कहता यह गीत मुझे बहुत पसन्द है -
एक राजे का बेटा लेकर उड़ने वाला घोड़ा
7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन के पहले खण्ड में राग पीलू की चर्चा करते हुए ख़्यात कलाकार पंडित शरद साठे जी ने भजन प्रस्तुत किया - रघुवर तुमको मेरी लाज। यही भजन इस राग को सीखते समय हमें स्कूल में सिखाया गया था। इसके बाद राग काफ़ी की चर्चा के साथ पहला खण्ड समाप्त हुआ।
रविवार से गंधार गुंजन का दूसरा खंड शुरू हुआ जिसे प्रस्तुत कर रहीं हैं ख्यात गायिका कुमुदिनी काड़पड़े जी। इसमें ऐसे रागों की जानकारी दी जा रही है जिसमे शुद्ध गंधार स्वर लगते है। शुरूवात हुई राग भैरव से फिर बिलावल राग पर चर्चा हुई। इन सुबह गाए जाने वाले रागों के बाद दोपहर बाद गाए जाने वाले रागो में राग हिंडोल, कठिन राग गौरी की चर्चा की गई, बहुत प्रचलित राग यमन की भी चर्चा हुई और इसके लिए सहगल साहब का गीत सुनवाया गया - दो नैना मतवारे। साथ ही हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई।
7:45 को त्रिवेणी में लोरी की भी चर्चा हुई, घर बनाने की भी बातें हुई। क्रिसमस पर प्रस्तुत अंक बहुत अच्छा रहा। आलेख, प्रस्तुति, गीतों का चुनाव, सुनवाने का क्रम सभी बढिया रहा।
दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आईं सलमा जी, फ़िल्में रही आखिर क्यों, जीने की राह, हमराज़, हीर रांझा, लोफ़र, नाइट इन लन्दन, हसीना मान जाएगी जैसी साठ से अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को बसन्त बहार, ये रात फिर न आएगी, मेरे हुज़ूर, आँखें, फिर वही दिल लाया हूँ, एक बार मुस्कुरा दो, शंकर हुसैन, जैसी पचास साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं शहनाज़ (अख़्तरी) जी। रविवार को दिलीप कुमार जी की फ़िल्में चुनी गई जैसे गोपी, लीडर, कर्मा, राम और श्याम, विधाता। मंगलवार को आईं शहनाज़ (अख़्तरी) जी फ़िल्में रही अर्पण, राजा, संघर्ष, आए दिन बहार के, राजा हिन्दुस्तानी, दिल से, गंगा की लहरें जैसी नई पुरानी फ़िल्में। इस तरह पूरे सप्ताह पचास के दशक से लेकर नई फ़िल्मों तक के गीत श्रोताओं के संदेशों के आधार पर सुनने को मिले।
1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में माशूका एलबम से कुमार शानू और अलका याज्ञिक का गाया समीर का लिखा गीत अच्छा रहा -
होते होते होते होते प्यार हो गया
एक चेहरे से मुझे प्यार हो गया
1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में आदमी और इंसान, दीवार, राजा हिन्दुस्तानी जैसी साठ के दशक से अब तक की फ़िल्मों के गीत श्रोताओं के अनुरोध पर सुनवाए गए। कुछ ऐसे गीत सुनवाए गए जो बहुत दिनों से नहीं सुनवाए गए जैसे अहमद वसी साहब का लिखा ऊषा मंगेषकर और सुरेश वाडेकर का गाया फ़िल्म कानून और मुजरिम का यह गीत -
शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह
3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। कर्नाटक की एक सहेली अश्विनी ने लगता है शरारत की, बैंग्लोर से फोन किया, कुछ कुछ होता है फ़िल्म का गीत पसन्द किया पर बातचीत कन्नड़ भाषा में की। जब शहनाज़ जी ने हिन्दी में पूछा तो कहने लगी हिन्दी समझ नहीं पाती फिर अंग्रेज़ी में पूछे जाने पर जवाब दिया कि घरेलु महिला है और फ़िल्में देखती है और कार्यक्रम सुनती है। जो बिल्कुल भी हिन्दी न समझे उसे कैसे पता कि हैलो सहेली के लिए कब कैसे फोन करना है ? और भी ऐसे कई सवाल है, ख़ैर… सब ड्रामा है, कभी कभी ऐसा भी होना चाहिए। इस तरह की नई चीज़ों से भी ताज़गी रहती है, मज़ा आता है। इस बार घरेलु महिलाओं के साथ कुछ छात्राओं और काम करने वाली महिलाओं ने भी फोन किए। उनकी पसन्द के गीत सुनवाए गए जिनमें से नए गाने अधिक थे।
मंगलवार को सखि सहेली कार्यक्रम में करिअर बनाने के लिए दी जाने वाली जानकारी में विदेशो में पाठ्यक्रमो में प्रवेश की तैयारी की जानकारी दी गई। सखियों की पसन्द पर पूरे सप्ताह नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए।
शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की जिसका तेलुगु में शीर्षक है - पसीडी रेपटी प्रयत्नम
रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए जैसे जानी मेरा नाम फ़िल्म का यह गीत -
पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले
झूठा ही सही
3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में संस्कृत नाटककार भास द्वारा रचित नाटक स्वप्न वासवदत्ता का हिन्दी रेडियो नाट्य रूपान्तर सुनवाया गया जो कृष्णकान्त दुबे द्वारा किया गया जिसके निर्देशक है स्वतंत्र कुमार ओझा
शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में आस पास की बातो के स्तम्भ में पानी पर एक श्रोता का लिखा लेख पढ़ कर सुनवाया गया। दुनिया देखो में मेघालय की संस्क्रृति खेती बाडी संबंधी लेख रेणु जी ने पढ़ कर सुनाया। किताबो की दुनिया में नोबुल पुरस्कार प्राप्त लुई के बारे में वार्ता प्रसारित हुई। विभिन्न कोर्सो में प्रवेश की जानकारी दी गई।
पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में पधारे पाकशास्त्री संजीव कपूर जी और साथ लेकर आए क्रिसमस के पकवानों की विधि। बातचीत की ममता (सिंह) जी ने। पारम्परिक क्रिसमस पुडिंग के बारे में जानना अच्छा लगा। वैसे क्रिसमस के अधिकतर व्यंजन ऐसे होते है जिसे ओवन में बनाया जाता है और निरामिश या माँसाहारी (नाँन वेज) होते है। इस बात का ख़्याल रखा ममता जी ने और आग्रह कर ऐसे व्यंजनों की विधि भी पूछी जो ओवन में न बना कर सामान्य रूप से बनाए जा सकते है।
बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में मौसमी चटर्जी से बातचीत सुनवाई गई। अपनी पहली ही हिन्दी फ़िल्म अनुराग से लोकप्रिय हुई इस अभिनेत्री का इस फ़िल्म का गीत भी शामिल रहा। अच्छी बातचीत रही। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे। एक बात समझ में नहीं आती कि आजकल सेल फोन पर एफ़ एम पर विविध भारती सुनना आसान है। फोन इन कार्यक्रमों के लिए फोन करना इस तरह से बहुत आसान हो गया है। इसके बावजूद भी महानगरों से फोनकाल नहीं आते।
5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सभी गीत सामान्य ही रहे।
7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गीतकार जलीस शेरवानी ने। पहली बार यह कहते सुना गया कि फ़ौजी भाइयों को नमस्कार और फ़ौजी भाइयों के साथ कुछ फ़ौजी बहनें भी काम करती होगी उन्हें भी नमस्कार। सच… यह सुनना बहुत अच्छा लगा, शुक्रिया जलीस साहब और धन्यवाद शकुन्तला (पंडित) जी। आशा है अभिवादन का यह क्रम टूटेगा नहीं। जलीस साहब ने खुद की फ़िल्मों के बारे में भी बताया और इधर उधर की बातें की और अंतिम गीत हकीकत फ़िल्म का सुनवाया और सभी नए गाने सुनवाए।
7:45 पर शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी के साथ पधारे महेन्द्र मोदी जी। इस बार भी कार्यक्रमों की तारीफ़ थी और कुछ सुझाव। एक श्रोता का भेजा गया सुझाव मुझे अच्छा लगा कि सेहतनामा कार्यक्रम को रात में दुबारा प्रसारित किया जाए। महेन्द्र मोदी जी ने कहा कि रात में गुलदस्ता, छाया गीत जैसे लोकप्रिय कार्यक्रमों के चलते शायद संभव नहीं होगा। पर यहाँ मेरा एक सुझाव है - रात मे जयमाला के बाद 7:45 पर सप्ताह में दो बार राग अनुराग कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है, जिसे सप्ताह में एक ही बार रखकर एक बार सेहतनामा प्रसारित किया जा सकता है। कुल सेहतनामा कार्यक्रम एक घण्टे का होता है जिसमें फ़िल्मी गीत भी शामिल होते है। इन गीतों को हटाने पर कार्यक्रम लगभग 45 मिनट का हो जाएगा जिसे तीन अंकों में तीन सप्ताह तक 7:45 पर 15 मिनट के लिए सुनवाया जा सकता है। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में गैर फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में मुंबई में प्राध्यापक, पक्षी निरीक्षक परवेश पांड्या जी से बातचीत सुनवाई गई। बहुत पहले पक्षी विशेषज्ञ सलीम अली जी के लेख पढ कर ज्ञान बढता था, फिर यह क्रम टूट सा गया था। अब लगता है विविध भारती ने इस विषय को गंभीरता से लेना शुरू किया है, इसके लिए हम धन्यवाद देगें महेन्द्र मोदी जी को। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।
8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकियाँ दरबारी लाल (रचना संजय श्रीवस्तव निर्देशक कुमुद भटनागर) अटरिया पे चोर (रचना आशा मिश्रा निर्देशक कमल सक्सेना) भूत कौन (निर्देशिका अचला नागर), प्यारे लाल की शादी।
9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें इस बार भी अच्छी सुनवाई गई। इस कार्यक्रम में ग़ज़ले अक्सर लंबी-लंबी सुनवाई जाती है।
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में ख़ाकी, अभिलाषा जैसी नई पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। माला सिन्हा ने इस कडी में बी आर चोपडा को याद किया, बातें हुई गुमराह, धूल का फूल फिल्मो की। माला जी ने बिल्कुल ठीक कहा उस समय चोपडा साहब ने उन फिल्मो में जो दिखाया वो आज हो रहा है, समाज पर उनकी कितनी पकड़ थी कि आने वाले दिनों की समस्याओं को समझ कर फिल्मो में उतारते गए। गुमराह फ़िल्म का शशिकला के साथ प्रभावशाली सीन भी सुनवाया गया।
10 बजे छाया गीत में अपनी आदत के अनुसार युनूस जी अनमोल गीत ले आए। इस बार ऐसे गीत जो पहले बहुत लोकप्रिय रहे फिर बजना कम हो गए, इन्हें अब फिर से याद किया गया। यहाँ मुझे लगता है एक चूक हुई, दूसरा जो गीत सुनवाया गया वो भूला बिसरा गीत ही है, लोकप्रिय उतना नहीं है जबकि इस फ़िल्म के अन्य गीत अधिक लोकप्रिय है, इन लोकप्रिय गीतों के इस समय बोल याद नहीं आ रहे, याद आने पर लिखूँगी, फ़िल्म का नाम शायद… प्यार किए जा
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Friday, December 26, 2008
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