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Tuesday, June 23, 2009

रामू दादा फ़िल्म का नाज़ुक सा गीत

देश के कुछ भागों में गर्मी से राहत तो मिली है पर मानसून सिर्फ़ दस्तक ही दे गया। ऐसे में धूप की तेज़ी भी नहीं है और बारिश की झमाझम भी नही यानि मौसम सुहावना सा है। तो क्यों न आज ऐसे ही एक गीत की याद ताज़ा करें।

यह गीत भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में बहुत सुनवाया जाता था। कभी-कभार मन चाहे गीत में भी श्रोताओं की फ़रमाइश पर सुनवाया जाता और कभी त्रिवेणी में भी बज उठता।

सिलोन के पुराने फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में अक्सर सुनवाया जाता। अंतिम बार मैनें यह गीत शायद छह-सात साल पहले मन चाहे गीत कार्यक्रम में सुना था और शायद उस कार्यक्रम को मोना (ठाकुर) जी प्रस्तुत कर रही थी।

रामू दादा फ़िल्म के इस गीत को अपनी बारीक सुरीली आवाज़ दी है कमल बारोट ने। गीत का मुखड़ा मुझे याद है वो भी कुछ-कुछ -

सुना है जब से मौसम है प्यार के क़ाबिल
लरज़ रहे है अरमां धड़क रहा है दिल
लगी न छूटे अब तो ये प्यार के है दिन
लरज़ रहे है अरमां धड़क रहा है दिल

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

1 comment:

डॉ. अजीत कुमार said...

आपके इन गीतों की लिस्ट हमारे यूनुस भाई चुपके चुपके ही अपनी डायरी में उतार रहे होंगे और देखियेगा आपको ( और हमें भी) एक दिन surprise मिल जाएगा.

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