आज मैं जो गीत याद दिलाने जा रही हूँ वो एक ख़ास फ़िल्म का है। फ़िल्म का नाम है - दास्तान।
यह फ़िल्म दो बार बनी। अब आप सोच रहे होंगे की इसमे क्या ख़ास बात है, कई फिल्में दो बार बनती है। इस फ़िल्म की ख़ास बात यह है कि दोनों बार फ़िल्म का नाम वही, कहानी वही कोई बदलाव नहीं और सबसे बड़ी बात नायक भी वही। जी हां दोनों बार फ़िल्म के नायक है दिलीप कुमार जिनका इसमें डबल रोल है। एक है रंगमंच के नायक और दूसरे वकील साहब।
पहली बार दास्तान फ़िल्म शायद पचास के दशक में बनी जिसमें नायिका है सुरैया और दूसरी भुमिका यानी वकील साहब की बेवफा पत्नी की भूमिका में शायद निगार सुल्ताना है जिनके प्रेमी बने है शायद याकूब। दूसरी बार यह फ़िल्म रिलीज हई 1972 में जिसमें नायिका है शर्मिला टैगोर और वकील साहब की बेवफा पत्नी है बिन्दु जिसके प्रेमी है प्रेमाचोपडा।
एक और ख़ास बात है कि पहली बार बनी फ़िल्म में संगीत पर नृत्य है और यह संगीत बहुत पसंद किया गया और शायद यही संगीत मशहूर कार्यक्रम बिनाका गीत माला में शायद सरताज गीत के लिए बजने लगा।
आज हम गीत याद कर रहे है दूसरी बार बनी फ़िल्म का। सिचुएशन कुछ शायद ऎसी है कि डबल रोल से होती है गलतफहमी और वकील साहब को म्रृत मान लिया जाता है तब वकील साहब अपने शहर में आते है ऐसे में ऊँचे सुर में रफी साहब का यह गीत गून्जता है -
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
तेरा वजूद है सिर्फ़ दास्ताँ के लिए
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
पलट के नूरे चमन देखने से क्या होगा
वो शाख ही न रही ------------
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
ग़रज़ परस्त जहां में वफ़ा तलाश न कर
ये शय बनी है किसी दूसरे जहां के लिए
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
किसी शायर के बोल लगते है। भाव भी ऊँचे स्तर के है। पहले विविध भारती, सीलोन और क्षेत्रीय केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था यह गीत - फरमाइशी और गैर फरमाइशी दोनों ही कार्यक्रमों में पर अब तो लंबा समय हो गया यह गीत सुने।
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
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Tuesday, June 30, 2009
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1 comment:
कई रेडियो स्टेशनों की अपने माया है. युववाणी पर देवर फिल्म का गाना 'बहारों ने मेरा चमन लूट कर" फरमाइश के वजह से खूब बजता था..पर बाक़ी स्टेशनों को लगता था 'ये ही कोई गाना है (!)'
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