सुबह 6 बजे समाचार के बाद चिंतन में चक्रवर्ती राजगोपाल चारी का त्याग की महत्ता बताता कथन, महात्मा गाँधी और अन्य महर्षियों के कथन, रामनरेश त्रिपाठी की प्रेम और घृणा संबंधी कविता की पंक्तियाँ, भगवदगीता से दान संबंधी कथन बताए गए। वन्दनवार में हर दिन अच्छे भजन सुनवाए गए। शास्त्रीय संगीत से सजा यह भजन सुनना बहुत अच्छा लगा - भवानी दयानी ! कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, एकाध गीत लगा पहली बार सुना।
7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में न भूलने वाले गीत भी शामिल रहे यानि ऐसे गीत भी सुनवाए गए जो बहुत ही कम सुनवाए जाते है जैसे कुछ ऐसे ही बोलों का गीत सुना -
मौसम है सलोना चलो कहीं घूमने चले न
बड़ा अच्छा लगा यह गीत जो शायद एकाध बार ही सुनवाया गया।
7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला शुरू हुई - पंचसुर के राग जिसे प्रस्तुत कर रहे है ख़्यात गायक पंडित राम देशपाण्डेय जिनसे बातचीत कर रही है निम्मी (मिश्रा) जी। इसमें औड़व जाति के पाँच सुर वाले रागों की चर्चा की गई जैसे राग वृन्दावनी सारंग, भोपाली, दुर्गा, मालकौंस और दक्षिण शैली में प्रचलित राग हंसध्वनि। विभिन्न रागों के पाँचों सुर बताए गए साथ में उनका चलन, आरोह-अवरोह बता कर सामान्य जानकारी दी गई जैसे राग हिंडोल में वीर रस की रचनाएँ होती है। इन रागों में बंदिशें भी सुनवाई गई जिसमें तबला संगत की सूर्याक्ष देशपाण्डेय और हारमोनियम पर श्रीनिवास आचार्य ने। इन रागों पर आधारित फ़िल्में गीत भी सुनवाए गए जैसे लव इन टोकियो फ़िल्म का गीत - सायोनारा
यह दिनेश तापोलकर जी के तकनीकी सहयोग और वीणा राय सिंघानी के सहयोग से तैयार काँचन (प्रकाश संगीत) जी की एक और बढिया प्रस्तुति है।
7:45 को त्रिवेणी में शुक्रवार की प्रस्तुति बहुत मार्मिक रही। माता-पिता द्वारा बच्चों का प्यार से पालन-पोषण और बाद में बच्चों द्वारा माता-पिता की अवहेलना। इसके अलावा बारिश और लहलहाते खेत, जल की समस्या की, यातायात, इन्सानियत जैसे मुद्दों पर बात होती रही और गाने भी नए पुराने उचित सुनवाए गए जैसे -
इन्सान बनो करलो भलाई का कोई काम
दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आखिर क्यों, ख़ूबसूरत जैसी कुछ पुरानी और नई फ़िल्में रही। सोमवार को तेरे बिना जैसी नई फ़िल्में रही। मंगलवार को रफ़ूचक्कर जैसी कुछ पुरानी फ़िल्मे रही। बुधवार को ली गई कारवाँ, मेरे सनम, पड़ोसन जैसी पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को कुछ पुरानी लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
1:00 बजे शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम अनुरंजनि में शुक्रवार को बुद्धादित्य मुखर्जी का सितार वादन सुनवाया गया, राग रहे - मिश्र खमाज और भीमपलासी। शनिवार को उस्ताद अलि अकबर खाँ का सरोद वादन सुनवाया गया। सोमवार को वीणापाणि मिश्र का उपशास्त्रीय गायन सुनवाया गया। मंगलवार को पंडित रविशंकर का सितार वादन सुनवाया गया। गुरूवार को कृष्ण मोहन भट्ट और विष्णु मोहन भट्ट की गिटार और सितार पर जुगलबन्दी सुनवाई गई।
1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में श्रोताओं की फ़रमाइश पर मिले-जुले गीत सुनवाए गए जैसे सत्तर के दशक की फ़िल्म हाथ की सफ़ाई का यह गीत -
वादा कर ले साजना
नई फ़िल्म वीरज़ारा का यह गीत -
ये हम आ गए है कहाँ
3 बजे सखि सहेली कार्यक्रम में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। विभिन्न स्थानों जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, लुधिआना, राजस्थान से स्कूल कालेज की कुछ छात्राओं ने बात की। अपनी पढाई के बारे में बताया। नए गीतों की फ़रमाइश की। कुछ घरेलु महिलाओं ने भी बात की और बीच के समय के गीतों की फ़रमाइश की जैसे यादगार फ़िल्म का गीत -
जिस पथ पे चला उस पथ पे मुझे
आँचल तो बिछाने दे
सखियों की बातचीत से पता चला कि कश्मीर में अभी सैलानी बहुत आए है और मौसम सर्द है, कहीं-कहीं बर्फ़बारी भी हो रही है तो राजस्थान में गर्मी है, शाम में अँधड़ का माहौल रहता है, धूल भरी आँधी चलती है।
सोमवार को कटहल का अचार बनाना बताया गया। मंगलवार को करिअर संबंधी बातें बताई जाती है। इस बार प्रभावशाली ढंग से बोलना सीखने-सिखाने के बारे में यानि स्पीच थैरोपी के बारे में बताया गया। बुधवार को स्वास्थ्य और सौन्दर्य के घरेलु उपाय बताए गए। गुरूवार को सफल महिलाओं की गाथा बताई जाती है। इस बार श्रोताओं ने कुछ सफल महिलाओं के बारे में पत्र लिखे जैसे माण्टेसरी शिक्षा की शुरूवात करने वाली महिला मण्टेसरी। सखियों की पसन्द पर सप्ताह भर नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए जिनमें से सत्तर के दशक की फ़िल्म सबक़ का मुकेश का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -
बरखा रानी ज़रा जम के बरसो
मेरा दिलबर जा न पाए झूम कर बरसो
नई फ़िल्म अकेले हम अकेले तुम का उदित नारायण और आदित्य नारायण का गाया शीर्षक गीत जो फ़ादर्स डे के संदर्भ में सुनवाया गया।
शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में सदाबहार गीत सुनवाए गए जैसे गैम्बलर फ़िल्म का रफ़ी साहब का यह गीत -
मेरा मन तेरा प्यासा
पूरी कब होगी आशा
वैसे फ़िल्मी गीतों का यही कार्यक्रम ज्यादा अच्छा लगता है क्योंकि इसमें सदाबहार यानि लोकप्रिय गीत सुनवाए जाते है और गीतों के लिए छोटी-छोटी आवश्यक उदघोषणाएँ ही की जाती है जिससे अधिक गीत सुनने को मिलते है।
3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुनवाया गया नाटक - माँ निशाथ जिसके लेखक है डा कुँअरचन्द्र प्रकाश शर्मा और निर्देशक है जय देव शर्मा कमल। यह लखनऊ केन्द्र की प्रस्तुति थी। अच्छी शास्त्रीय प्रस्तुति।
पिटारा में शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में अच्छी शुरूवात की गई, ब्लागों से जानकारी लेकर दी जाने की जिसमें दो ब्लागों से जानकारी दी गई एक से भौतिक शास्त्र की और दूसरे से बारिश के पानी के संरक्षण की। युवाओं को यह सलाह भी दी गई कि एक ही करिअर के पीछे न पड़कर विकल्प भी तलाशें। किताबों की दुनिया स्तम्भ में इस बार आलोचना की बातें हुई, अँग्रेज़ी से। विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश की सूचना भी दी गई।
शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम पिटारे में पिटारा जिसमें सुनो कहानी कार्यक्रम में सलाम बिन रज़ाक की लिखी कहानी विष्णु शर्मा ने पढकर सुनाई। बहुत अच्छी प्रस्तुति रही पर लगातार आधे घण्टे तक सुनना बोझिल लगा। इसके बात राग-अनुराग कार्यक्रम प्रस्तुत किया गुलज़ार ने। बढिया प्रस्तुति, लगा कवि लेखक बोल रहा है, अपने गीत सुनवाए - मेरे अपने, परिचय फ़िल्म से और बहुत कम सुने गए गीत भी सुनवाए और गीतों से संबंधित बातें बताई। सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा वीणा पंडित से रेणु (बंसल) जी की बातचीत हुई। विषय रहा अंगदान और रक्त दान। यह सही बताया गया कि कुछ कृत्रिम अंग तो बनाए जा रहे है पर रक्त नहीं बनाया जा सकता इसीलिए रक्तदान महत्वपूर्ण है। अच्छी जानकारी मिली। बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में इन्सपेक्टर ईगल से मिलना अच्छा लगा यानि अभिनेता निर्माता निर्देशक सुधीर कुमार से बातचीत सुनवाई गई। रेडियो टेलीविजन और फ़िल्में - तीनों माध्यमों से जुड़े होने से बातचीत अधिक रोचक लगी। फ़िल्मों का संघर्ष, धारावाहिकों का निर्माण और व्यक्तिगत बातें सभी सुनकर लगा कि नए लोगों को एक मार्गदर्शन इस बातचीत से मिल सकेगा। उनकी पसन्द के सुनवाए गए सभी गाने अच्छे लगे ख़ासकर बहुत दिन बाद उनकी नायक के रूप में पहली फ़िल्म रातों का राजा का शीर्षक गीत सुनना अच्छा लगा -
मेरे लिए आती है शाम चन्दा भी है मेरा ग़ुलाम
धरती से सितारों तक है मेरा इन्तेज़ाम
रातों का राजा हूँ मैं
शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को हैलो फ़रमाइश में श्रोताओं से फोन पर बातचीत हुई। श्रोताओं की पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए।
5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद सप्ताह भर फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम में नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए जैसे आजकल गूँजने वाले हिमेश रेशमिया के गीत।
7 बजे जयमाला में शनिवार को गायक शैलेन्द्र सिंह ने प्रस्तुत किया विशेष जयमाला। खुद के बारे में बताया, खुद के गीत सुनवाए जो सभी लोकप्रिय गीत है। एक बात खटकी कि एक मज़ेदार फ़िल्म में उन्होनें अभिनय किया नायक के रूप में, नायिका है रेखा, फ़िल्म का नाम है एग्रीमेन्ट। यह फ़िल्म खूब चली थी पर इसकी कोई चर्चा उन्होनें नही की। सोमवार से एस एम एस द्वारा भेजी गई फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश पर गीत सुनवाए गए। गाने नए और पुराने दोनों ही सुनवाए जा रहे है। अक्सर एक ही संदेश पर भी गीत सुनवाए जा रहे है।
7:45 पर शुक्रवार को असमी लोकगीत सुना पर प्रकाश कौर और सुरिन्दर कौर का गाया पंजाबी लोकगीत अच्छा लगा, सुन कर लगा यह फ़िल्मी गीत इसी लोकगीत पर आधारित है -
रेशमी सलवार कुर्ता जाली का
रूप सहा नहीं जाए नख़रेवाली का
शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी आए। श्रोताओं ने विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। एक पत्र से मैं भी सहमत हूँ कि एक कार्यक्रम चुटकुलों का होना चाहिए और मेरी समझ में साथ में हास्य, मज़ेदार गीत सुनवाए जाने चाहिए पर एक अनुरोध है कि कृपया ऐसे समय पर प्रसारित करें कि सभी सुन सकें सांध्य गीत की तरह नहीं कि हैदराबाद समेत कुछ शहरों में प्रसारित ही नहीं होता है। मंगलवार को सुनवाई गई ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ। बुधवार को गुजराती रंगमंच और धारावाहिक तथा हिन्दी धारावाहिकों के अभिनेता से बातचीत हुई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग भोपाली पर आधारित ममता फ़िल्म का गीत -
इन बहारों में अकेले न फिरों राह में काली घटा रोक न ले
मुझको ये काली घटा रोके भी क्या ये तो खुद है मेरी ज़ुल्फ़ों के तले
8 बजे हवामहल में इस सप्ताह प्रहसन और हास्य नाटिकाएँ सुनवाई गई जैसे दुनिया रंग रंगीली, एक मर्ज़ लाइलाज
9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें सुनवाई गई।
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में ससुराल, चन्द्रकान्ता, दूर की आवाज़ जैसी पुरानी लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।
10 बजे छाया गीत में सभी का वही अन्दाज़ रहा। गीत भी कुछ-कुछ वही सुनवाए गए जो दोपहर में सुनवाए गए।
10:30 बजे से श्रोताओं की फ़रमाइश पर गानों की संख्या कम ही हो गई है क्योंकि उदघोषक श्रोताओं से बातचीत भी कर रहे है। 11 बजे समाचार के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।
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Friday, June 26, 2009
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