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Friday, May 28, 2010

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 27-5-10

शाम 5:30 बजे गाने सुहाने कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल ई-मेल और एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला। फरमाइश में से हर दशक से गीत चुने गए। इस तरह नए पुराने सभी समय के गीत सुनने को मिले।

शुक्रवार को फरमाइश में से रोमांटिक गीत सुनवाए इन फिल्मो से - गुमराह, सड़क, जहर, रब ने बना दी जोडी, अजब प्रेम की गजब कहानी फिल्मो के गीत और मुझे कुछ कहना हैं फिल्म का शीर्षक गीत।

रविवार को मुझसे शादी करोगी, धर्मात्मा, बंटी और बबली का कजरारे गीत और यादे फिल्म का वह गीत भी सुनवाया जिसके संगीत का एक अंश सखि-सहेली कार्यक्रम की संकेत धुन का अंश हैं।

सोमवार को मोहरा, अमर अकबर एंथोनी, राम लखन फिल्मो के गीतों के साथ नई फिल्मो के गीत भी शामिल थे जिनमे मुझे कुछ कहना हैं फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया गया, यही गीत दो दिन पहले शुक्रवार को भी सुनवाया गया था। एक ही गीत उसी कार्यक्रम में सुनवाने के लिए कम से कम एक सप्ताह का अंतराल तो होना चाहिए।

मंगलवार को बार्डर फिल्म के देश भक्ति गीत से शुरूवात हुई, फिर सुनवाए गए आशिकी, देवदास और रेफ्यूजी फिल्म के गीत और आनंद फिल्म का यह गीत भी शामिल था -

कही दूर जब दिन ढल जाए

बुधवार को शुरूवात हुई बाजीगर के काली-काली आँखे गीत से, प्रेम रोग, धड़कन, माँ तुझे सलाम फिल्मो के साथ करमा का देश भक्ति गीत भी सुनवाया गया।

गुरूवार को गाइड, साजन, 3 इडियट्स, जानम समझा करो, मेरी जंग फिल्मो के गीतों के साथ तेज़ाब फिल्म का एक दो तीन वाला गीत फ़ौजी भाइयो की फरमाइश पर शुरू से आखिर तक पूरा सुनवाया गया।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गया ख्यात चरित्र अभिनेता, शोले के साम्भा मैक मोहन की याद में। उनके द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम की रिकार्डिंग संग्रहालय से चुन कर सुनवाई गई। शुरूवात में शोले का वह सीन सुनवाया गया जिसमे साम्भा द्वारा बोला गया एकलौता संवाद हैं। मैक मोहन ने अपनी पारिवारिक फ़ौजी पृष्ठभूमि की जानकारी दी। अपनी पहली फिल्म हकीक़त सहित अपनी फिल्मो के गीत सुनवाए - हंसते जख्म, शोले, दूसरो की फिल्मो से भी गीत सुनवाए - दो रास्ते, कुछ निजी बाते की और फिल्मी अनुभव बताए जैसे आखिरी ख़त फिल्म के लिए चेतन आनंद से मुलाक़ात, इस फिल्म का गीत भी सुनवाया, सुन मेरे बंधु रे गीत सुनना अच्छा लगा और सबसे अच्छा लगा अनहोनी फिल्म का यह गीत सुनना जो संजीव कुमार की बेहतरीन चुनिन्दा फिल्मो में से एक हैं जिसका यह गीत बहुत दिन बाद सुनने को मिला -

बलमा हमार मोटर कार लेकर आयो रे

अच्छी रही प्रस्तुति। संयोजन कल्पना (शेट्टी) जी का रहा।

7:45 को गुलदस्ता कार्यक्रम में शुक्रवार को गुलोकार रहे जगजीत सिंह। शुरूवात हुई बशीर बद्र के कलाम से -

सुन ली जो खुदा ने दुआ तुम तो नही हो

यह गजल तुम तो नही हो एलबम से रही। इसके बाद एलबम टू गेदर से अजीज कैजी का कलाम सुनवाया गया -

आपको देख कर देखता रह गया
क्या कहूं और कहने को क्या रह गया

समापन हुआ इब्राहिम अश्क के कलाम से - मुस्कुरा कर मिला करो लोगो से

रविवार की महफ़िल ज्यादा अच्छी रही। गुलोकार रहे अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन जिनकी शास्त्रीय पद्धति में पगी गायकी सुन कर आनंद आ गया। आगाज हुआ दिनेश ठाकुर की गजल से -

आईने से कब तक तुम अपना दिल बहलाओगे
आएगे जब जब अँधेरे खुद को तनहा पाओगे

महफ़िल एकतेदाम को पहुंची मोहम्मद उस्मान आरिफ नक्शबंदी के कलाम से -

प्यार का जज्बा नया रंग दिखा देता हैं
अजनबी चेहरे को महबूब बना देता हैं

मंगलवार को फिल्मी गजले सुनवाई गई। शुरूवात हुई नूरजहाँ की गाई विलेज गर्ल फिल्म की गजल से - इस तरह भूलेगा दिल

तलत महमूद की दो गजले सुनवाई गई, फुटपाथ फिल्म से - शामे गम की क़सम

आशियाना फिल्म से - मैं पागल मेरा मनवा पागल

रफी साहब की आवाज में वल्लाह क्या बात हैं फिल्म की गजल - खुदाया काश मैं दीवाना होता

नूरजहाँ की गजल कभी-कभार और अन्य गजले अक्सर विभिन्न कार्यक्रमों में हम सुनते रहते हैं, यहाँ सुनवाने का कोई औचित्य नही लगा। अच्छा होता अन्य दो दिनों की तरह इस दिन भी गैर फिल्मी गजले सुनवाई जाती तो सप्ताह भर गुलदस्ता गैर फिल्मी गजलो का शुद्ध अच्छा कार्यक्रम हो जाता।

शनिवार को सुना सामान्य ज्ञान का कार्यक्रम जिज्ञासा। प्रवासी पक्षी दिवस के अवसर पर प्रवासी पक्षियों पर जानकारी दी गई। खेल जगत में महिला टी 20 में विश्व चैम्पियन बने आस्ट्रेलिया की खबर दी गई, यह खबर मीडिया में शायद ही देखने को मिली। विज्ञान की चर्चा में अग्नि 3 मिसाइल की बाते हुई। खोजी रिपोर्टर द्वारा लाई गई पानी में जहाज की दुर्घटनाओ से सम्बंधित चर्चा हुई, यह स्तम्भ बढ़िया हैं जिसमे ई-मेल द्वारा खोजी रिपोर्ट भेजी जा सकती हैं। शोध और आलेख युनूस (खान) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने।

सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कमल (शर्मा) जी। कुछ पत्र शिकायती भी रहे जैसे गुलदस्ता का समय कम कर दिया गया हैं। कुछ श्रोताओं ने सुझाव भी दिए जिनमे से एक सुझाव यह भी रहा हैं कि हिट सुपरहिट कार्यक्रम रात में दुबारा प्रसारित न किया जाए, इससे मैं भी सहमत हूँ। दो बार कार्यक्रम सुनवाने के बजाय एक बार कोई और कार्यक्रम प्रसारित किया जा सकता हैं। चित्र भारती कार्यक्रम से सम्बंधित भी पत्र रहे जो सिने पत्रिका कार्यक्रम हैं, मेरी समझ में यह कार्यक्रम वाकई अच्छा हैं पर एक घंटा समय हो तो बोझिल हो जाता हैं, आधे घंटे तक कार्यक्रम अच्छा रहेगा। श्रोताओं ने विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ भी की जैसे सखि-सहेली, आज के फनकार, उजाले उनकी यादो के कार्यक्रम।

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में पार्श्व गायिका हेमा सरदेसाई से युनूस (खान) जी की फोन पर हुई बातचीत सुनवाई गई। शुरू में कुछ बाते अपने बचपन की कही, फिर फिल्मो में प्रवेश की, संगीतकार ऐ आर रहमान द्वारा, गीत गुनगुना कर भी सुनाया। तेजी से बदलते संगीत के दौर में आजकल के कुछ गीतों को भी पसंद किया, हालांकि यह सवाल मुझे बेमानी लगा क्योंकि हेमाजी बहुत पुराने दौर की नही हैं।

हेमाजी ने बताया कि वो अंतर्राष्ट्रीय महिला संगठन के कार्यक्रमों के लिए गीत देती हैं। बालिका शिशु के लिए काम करना चाहती हैं। इस तरह संगीत से समाज सेवा को जोड़ कर काम कर रही हैं और आगे भी करना चाहती हैं।

टेलीफोन पर बात हुई पर बहुत स्पष्ट रही आवाज। रिकार्डिंग इंजीनियर रहे विनायक (तलवलकर) जी और प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही।

गुरूवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। इस बार एक ही राग पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए, राग चारुकेशी -

कृष्ण कन्हैय्या बंसी बजैय्या (फिल्म संत ज्ञानेश्वर)

उसके खेल निराले वही जाने अल्ला जाने (नूरी)

अकेल हैं चले आओ (राज)

गीतों के चुनाव में विविधता नही थी। दो भक्ति गीतों में से कोई एक किसी और मूड और भाव का गीत होता तब अच्छा लगता था।

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। यही धुन अंत में भी सुनवाई जाती है। शुक्रवार को आमंत्रित श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत झलकी सुनवाई गई - चोरो को आना चाहिए। बसंत सबनिस के लिखे मूल मराठी नाटक का हिन्दी अनुवाद किया वसंत देव ने। पति ने गहनों का बीमा करवा लिया। वह रात में दरवाजे खुले रखता हैं और चाहता हैं चोर आकर गहने चुरा ले जाए ताकि उसे बीमे के पैसे मिले। पर चोर नही आते और उसे बीमे की अगली किस्त भी देनी पड़ती हैं। झलकी के प्रस्तुतकर्ता हैं गंगा प्रसाद माथुर। झलकी सुन कर लगा यह झलकी तब लिखी गई जब सोने का भाव 2000 रूपए था।

शनिवार को के पी सक्सेना की लिखी झलकी सुनी - और लालटेन जल चुकी हैं। आँखों के डाक्टर के पास चश्मा लगवाने जाते हैं, डाक्टर और मरीज दोनों को ठीक से नही दीखता। मजेदार रही। विविध भारती से यह गंगा प्रसाद माथुर की प्रस्तुति रही।

रविवार को शंकर सुल्तानपुरी की लिखी झलकी सुनी - मकान खाली हैं। पेशगी में बड़ी रक़म लेकर मकान किराए पर देना चाहता हैं। बहुतो को नही मिलता मकान पर एक दूर की रिश्तेदारी में साला बता कर जीजी को पटा कर मकान ले लेता हैं। निर्देशक हैं सतीश माथुर। यह लखनऊ केंद्र की प्रस्तुति रही।

सोमवार को सुनवाई गई झलकी - दिल की भड़ास जिसके लेखक है राज कुमार दाग। बॉस से डांट सुनकर पति खिन्न हैं, पत्नी सलाह देती हैं अपने मन की बात कागज़ पर लिख दो, इस तरह मनोवैज्ञानिक इलाज से मन हल्का हो जाएगा। वह बॉस के लिए अपशब्द लिख देता हैं और एक पत्रिका में रख देता हैं जिसे कार्यालय का सहकर्मी ले जाता हैं। वह बॉस के सामने डरने लगता हैं पर पत्रिका में कार्यालय के बारे में देखकर बॉस खुश हैं, पति का लिखा कागज़ तो पत्नी पहले ही निकाल चुकी। अच्छा मनोरंजन हुआ और सलाह भी मिली। साधना भारद्वाज की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं कमल दत्त।

मंगलवार को शान्ति मेहरोत्रा का लिखा प्रहसन सुना - डर मत सच कह जिसके निर्देशक हैं लोकेन्द्र शर्मा। कड़वी सच्चाई लिए रहा यह प्रहसन कि आदर्शवादी बाते व्यावहारिक जीवन में लागू करना कठिन हैं। बिना डरे वह सच कह कर अपना ही नुकसान करता हैं। प्रस्तुति विविध भारती की रही।

बुधवार को झलकी सुनी - एक कप चाय। घर में पत्नी से नोक-झोक जिससे चाय नही मिलती, शहर बंद होने से कार्यालय में चाय नही मिलती, दोस्त के घर में ताला लगा हैं सो वहां भी चाय नही, पड़ोसी के पास चाय की पत्ती ख़त्म हो गई सो वह ठन्डे के लिए पूछती हैं, अंत में घर आने पर पत्नी कहती हैं चाय की पत्ती नही लाए तो चाय कैसे मिलेगी। अच्छा तो रहा पर मजा नही आया। जोधपुर केंद्र की इस प्रस्तुति के लेखक और निर्देशक अनिल कुमार राम हैं।

गुरूवार को विजय अमरेश की लिखी झलकी सुनी - प्रेमालय। प्रेमालय के खुलने पर तरह-तरह के लोग आते हैं, फोन आते हैं। अंत में पुलिस पकड़ कर ले जाती हैं। मोबाइल फोन की चर्चा से लगा झलकी नई हैं। कुछ ख़ास नही लगी...

इस तरह हवामहल में विविधता रही - सन्देश भी मिला और मनोरंजन भी हुआ।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए, एकाध बार क्षेत्रीय विज्ञापन भी प्रसारित हुए। फ़ौजी भाइयो को एस एम एस करने का तरीका बताया गया।

इस प्रसारण को युनूस (खान) जी, कमल (शर्मा) जी, शेफाली (कपूर) जी, ने हम तक पहुँचाया पर हम तक पहुंचाने में और भी लोग जुटे जिनके नाम नही बताए गए।

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 बजे से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

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