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Saturday, July 9, 2011

मेरी ज़िंदगी का नमक... रेडियो

आकाशवाणी इन्दौर के वरिष्ठ प्रसारणकर्ता नरहरि पटेल की यादें

रेडियोनामा के बदले स्वरूप को जारी रखते हुए कोशिश है कि रेडियो से जुड़े लोगों की उस पूरी जमात से संवाद बने जो किसी न किसी रूप में प्रसारण-विधा से जुड़े रहे हैं, चाहे वे एनाउंसर्स हों,प्रोड्यूसर,समाचार वाचक, कमेंट्रेटर्स, अभियंता, गायक, संगीतकार या वे तमाम लोग जो अतिथि कलाकार के रूप में आकाशवाणी केन्द्रों में आते रहे और महत्वपूर्ण प्रसारणों का हिस्सा बने रहे।

इसी सिलसिले में आज रेडियोनामा पर नमूदार हो रहे हैं आकाशवाणी इन्दौर के सुपरिचित स्वर नरहरि पटेल। नरहरिजी की शख़्सियत अपने में बहुतेरी विधाओं को समेटे हुए है जिसमें कवि, रंगकर्मी, रेडियो प्रसारणकर्ता, लेखक और मालवा का लोक संस्कृतिकर्म शामिल है। नरहरिजी इप्टा से जुड़े रहे हैं और आकाशवाणी इन्दौर जिसे मालवा हाउस के रूप में भी जाना जाता है उसकी स्थापना के समय से उनका आत्मीय राब्ता रहा है। आइये आज रेडियोनामा रूबरू होते हैं नरहरि पटेल की रेडियो यादों के साथ...


आज जब रेडियोनामा के ज़रिये आपसे रूबरू हूँ तो ज़िंदगी के वे तमाम ख़ूबसूरत पल याद आ जाते हैं जो मैंने आकाशवाणी इन्दौर में यानि मालवा हाउस की दीवारों के बीच गुज़ारे हैं। हर पल शब्द और स्वर से गूँजते मालवा हाउस के दरो-दीवार मध्यप्रदेश में प्रसारण की पुरातन परम्परा के दस्तावेज़ हैं। आज जब उन दिनों को याद करता हूँ तो लगता है जैसे एक बार फिर मैं मालवा हाउस के स्टुडियो के माइक्रोफ़ोन के सामने आ खड़ा हुआ हूँ।

म.प्र.की सांस्कृतिक और व्यावसायिक राजधानी इन्दौर में आकाशवाणी का केन्द्र शुरू हुआ २२ मई १९५५ के दिन। पहले यह परिसर ग्वालियर हाउस कहलाता था लेकिन इसमें
आकाशवाणी इन्दौर की शुरूआत होते ही इसे नाम दिया गया मालवा हाउस। वही मालवा हाउस जिसे इलाचंद्र जोशी,कर्तारसिंह दुग्गल,प्रभागचंद्र शर्मा,शरद जोशी,रमेश बक्षी,वीरेन्द्र मिश्र,उस्ताद अमीर ख़ाँ,पं.कुमार गंधर्व, उस्ताद रज्जब अली ख़ाँ जैसे कलावंतों के सुकर्म,विचार और चिंतन का स्पर्श मिला।

आकाशवाणी में प्रवेश की कहानी बड़ी रोचक है। मैं उन दिनों इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ रहा था। वही संस्थान जिसमें विख्यात पार्श्व गायक किशोर कुमार, आकाशवाणी के पूर्व निदेशक अमृतराव शिंदे "अमन' और जाने-माने पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक भी पढ़े। रतलाम ज़िले की छोटी सी रियासत सैलाना से मैट्रिक पास करने के बाद मैं इन्दौर चला आया। घर में कविता,संगीत, साहित्य और रंगकर्म का ख़ासा माहौल था और मैं विद्यार्थी के रूप में अपने स्कूल के नाटकों और संगीत प्रस्तुतियों में हमेशा अगुआ रहता॥ यहाँ भी जिस मोहल्ले में आकर रुका वहाँ जानेमाने संगीतकारों के कुनबों की रिहाइश थी जिसमें सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय हैं उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब।

बहरहाल,एक दिन शाम को मैं इन्दौर के एक भोजनालय में पहुँचा। आधा खाना खा चुका तब ही पास की टेबल पर भोजन करने वाले दो शख़्स कला साहित्य विषय पर बतिया रहे थे। उन्हें सुनने के लिए मैंने अपने भोजन की ऱफ़्तार धीमी कर दी। जैसे ही उन्होंने भोजन ख़त्म किया मै भी हाथ धोने के लिए खड़ा हुआ और उनमें से एक से परिचय पूछ बैठा ? सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी उस शख़्स ने कहा मुझे श्याम परमार कहते हैं। यहॉं आकाशवाणी केन्द्र शुरू करने आया हुआ हूँ। उन्होंने मेरे बारे में जानकारी लेना शुरू की और जैसे ही मैंने उन्हें बताया कि मैं क्रिश्‍चियन कॉलेज में पढ़ रहा हूँ और नाटक, कविता तथा लोक संगीत में रूचि रखता हूँ तो श्यामजी गदगद हो गए और यक़ीन मानिये बिना हाथ धोए उन्होंने मुझे बाहों में भरकर कहा अरे भाई आप जैसे लोगों को ही तो ढूँढ रहा हूँ मैं। कल ही मालवा हाउस आ जाओ। इस वाक़ये से मैं यह बताना चाहता हूँ ये थी आकाशवाणी की पुरातन कार्य-संस्कृति जिसमें काम करने वाले लोग अपने संस्थान के काम को अपना काम समझते थे।

दूसरे दिन मैं हरे-भरे वृक्ष कुंजों से भरे परिसर वाले मालवा हाउस में था। स्टूडियो बन रहा था। श्याम परमार एक छोटे से कमरे में बैठे थे। वे मुझे उन दिनों निर्माणाधीन स्टुडियो में लेकर गये और हाथ में दे दी एक छोटी सी स्क्रिप्ट.बमुश्किल चार या पॉंच डायलॉग्स मैंने पढ़े होंगे और स्टूडियो में श्यामजी की आवाज़ गूँजी, उन्होंने कहा बस ! हो गया। वे मुझे अपनी टेबल तक ले गए और अपनी एक पुरानी कॉपी में से एक पन्ना फाड़कर मुझे कहा कि इस काग़ज़ पर स्वर परीक्षण के लिए एक चार पंक्ति का आवेदन लिख दीजिये क्योंकि तब तक मालवा हाउस में विधिवत कॉन्ट्रेक्ट फ़ॉर्म भी छपकर नहीं आये थे। कुछ दिनों बाद मुझे आकाशवाणी इन्दौर से पहला अनुबंध पत्र मिला। आधे घंटे का एक नाटक था जिसका पारिश्रमिक मुझे मिला पन्द्रह रुपये। सच कहूँ आज भी वे पन्द्रह रुपये बहुत अनमोल ख़ज़ाने की तरह याद आते हैं। बाद में मुझे मराठी की जानी-मानी अभिनेत्री सुमन धर्माधिकारी के साथ एक घंटे के लाइव प्रसारण का मौक़ा मिला। ये नाटक उज्जैन के राजा भृतहरि और उनकी रानी पिंगला पर एकाग्र था। तब मालवा हाउस तक रेकॉर्डिंग की मशीने नहीं पहुँची थीं सो सुमन ताई और हमने इस नाटक को लाइव किया। मालवा हाउस से ही ओम शिवपुरी, सुधा शर्मा(बाद में शिवपुरी) राजीव वर्मा, नंदलाल शर्मा, अशोक अवस्थी जैसे कई उन कलाकारों की आवाज़ रेकॉर्ड हुई जो बाद में फ़िल्म और टीवी के सुपरिचित चेहरे बने। मेरा सौभाग्य की कहीं न कहीं मैं इन कलाकारों के साथ काम कर पाया।
जारी...
नरहरि पटेल से संबधित लेखों को एक साथ देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए।

8 comments:

नीरज गोस्वामी said...

बहुत रोचक संस्मरण

नीरज

मीनाक्षी said...

आपकी यही यादें हमारे लिए भी अमूल्य हैं...

डॉ. अजीत कुमार said...

नरहरि जी हमसे जुड़े, यही हमारे लिए सौभाग्य की बात है.आप अपने संस्मरण सुना रहे हैं और हम उस पुराने दौर में आनंददायक डुबकी लगा रहे हैं.बहुत बहुत धन्यवाद. सागर जी से नम्र निवेदन है कि जल्द ही दूसरा भाग हमारे लिए प्रकाशित करें.

Anonymous said...

अगली कड़ी की प्रतीक्षा हैं....
अन्नपूर्णा

Yunus Khan said...

इंदौर केंद्र मुझे दुनिया का सबसे खूबसूरत केंद्र लगता है। क्‍या माहौल, क्‍या इलाका। पुराने ज़माने का रौब। कमाल है। हो सकता है इसकी वजह ये हो कि मेरे बचपन के एकाध साल इस केंद्र के बहुत नज़दीक बीते हैं। उस दौर को जीवंत कर देने के लिए शुक्रिया।

रज़िया "राज़" said...

वाह!!!खूबसुरत यादों को हम तक बाँटने के लिये शुक्रिया

लावण्या शाह said...


आदरणीय दादा नरहरी जी के युवावस्था के दिनों को सजीव किया आज उनकी कलम ने और हम भी ' मालवा हाऊस ' मे पहुँच गये ऐसा महसूस हुआ - ये सारी यादें अब शाश्वत हो गयीं जो , सदा सदा के लिए, विश्व व्यापी वेब पर स्थापित हो गयीं हैं - सादर धन्यवाद उनका लिखा पढ़कर आत्मीयता का भाव उभरता है
आगे की कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी युनूस भाई ...आपको शाबाशी और शुक्रिया ..
स स्नेह, सादर ,
- लावण्या

vandana gupta said...

आज का आकर्षण बना है आपका ब्लोग है ज़ख्म पर और गर्भनाल पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा । http://redrose-vandana.blogspot.com

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