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Friday, September 12, 2008

साप्ताहिकी 11-09-08

इस सप्ताह में पहला ही दिन विशेष रहा - शिक्षक दिवस

सुबह के प्रसारण में मंगल ध्वनि के बाद क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु में शिक्षक के सम्मान में श्लोक प्रस्तुत किया गया। समाचारों के बाद वन्दनवार की प्रस्तुति गुरू को समर्पित रही जिसमें गुरू रैदास की शिष्या मीरा के भजन के साथ सभी भक्ति अच्छे रहे। इसी भावना को कमल (शर्मा) जी ने त्रिवेणी में भी जारी रखा तथा गुरू और शिक्षा को केन्द्र में रख कर गीत प्रस्तुत किए। गीतों का चुनाव, आलेख, प्रस्तुति सभी सर्वोत्तम विशेषकर रफ़ी के गाए गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु श्लोक से शुरूवात जो वास्तव में सिकन्दर-ए-आज़म फ़िल्म के देश भक्ति गीत का मुखड़ा है।


सखि-सहेली में भी विशेष आयोजन हुआ। शुक्रवार होने से फोन-इन-कार्यक्रम हैलो सहेली चला पर शुरू में लगभग 10 मिनट और अंत में लगभग 20 मिनट, बीच में लगभग 25 मिनट एक विचार-विमर्श प्रसारित किया गया। विषय था - बच्चों के चरित्र निर्माण में कौन उत्तरदायी, शिक्षक या माता-पिता जिसमें दो प्रधान अध्यापिकाओं ने भाग लिया अनिता साहू और विजयलक्ष्मी सांवेदी। विजयलक्ष्मी जी का संबंध आवासीय विद्यालय (रेसीडेन्शियल स्कूल) से होने से उनकी उपस्थिति अधिक उचित रही। बातचीत का संचालन किया निम्मी (मिश्रा) जी ने। अच्छी बातचीत रही जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि बच्चों के चरित्र निर्माण में माता-पिता का उत्तरदायित्व तो है ही लेकिन शिक्षक की बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका है।

रात 9:30 बजे भी एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में शिक्षक दिवस को ध्यान में रख कर तारें ज़मीं पे फ़िल्म के गीत सुनवाए गए।

इस तरह आयोजित विभिन्न विशेष कार्यक्रमों के लिए महेन्द्र मोदी जी को बधाई !

इस सप्ताह वन्दनवार में रमज़ान का भी ध्यान रखा गया। नए भक्ति गीत भी सुनवाए गए। नए दौर के संगीत में भजन ठीक ही रहे और शेष दिन सामान्य रहे भजन। शुरूवात होती रही चिंतन से। समापन में देश भक्ति गीत का विवरण नहीं बताया गया।

7 बजे भूले-बिसरे गीत में शनिवार को सलिल चौधरी के स्वरबद्ध किए गीत सुनवाए गए जिसमें काबुलीवाला फ़िल्म का बच्चों का गाना सुन कर मज़ा आ गया। यह बहुत ही कम बजता है। सप्ताह भर अच्छे गीत सुनने को मिले कुछ लोकप्रिय और कुछ भूले-बिसरे और समाप्ति पर के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गीत जो इस सप्ताह आर सी (रायचन्द) बोराल के सगीत में सजे अधिक थे।

7:30 बजे संगीत सरिता में बातें ग़ज़लों की श्रृंखला समाप्त हुई और नई श्रृंखला शुरू हुई ठुमरी जिसे प्रसिद्ध गायिका रीता गांगुली प्रस्तुत कर रही है। बहुत बड़े कलाकारों को सुन कर आनन्द आया जैसे बड़े ग़ुलाम अलि ख़ाँ साहब, फ़ैय्याज़ अहमद ख़ाँ साहब, सिद्धेश्वरी देवी। दोनों ही श्रृंखलाएँ छाया (गांगुली) जी द्वारा तैयार की गई और पहली बार 1993 में प्रसारित की गई थी। वैसे इन श्रृंखलाओं को फिर से सुनना अच्छा लग रहा है।

इसी संदर्भ में एक दुःखद समाचार यह है कि सोमवार को प्रसिद्ध वायलिन वादक के आर वैद्यराजम का चेन्नई में निधन हो गया। वर्ष 2005 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था पर संगीत-सरिता में श्रृद्धांजलि तो दूर की बात रही निधन की सूचना तक श्रोताओं को नहीं दी गई जबकि अन्य कार्यक्रमों में पार्श्व गायिका आशा भोंसलें का जन्म दिन धूमधाम से मनाया गया। आकाशवाणी के क्षेत्रीय केन्द्र में तो निधन की सूचना तुरन्त मिल जाती होगी, शायद विविध भारती का क्षेत्रीय केन्द्रों से निरन्तर सम्पर्क नहीं हो पाता है।

त्रिवेणी में हुई बातें भोर की, जागरण की, सुख-दुःख की, पंच तत्वों की, गीत और आलेख दोनों अच्छे रहे।

फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम हिन्दी और तेलुगु दोनों ही भाषाओं में सामन्य रहे चाहे मन चाहे गीत हो, आपकी फ़रमाइश हो, जनरंजनि हो या जयमाला। यहाँ तक कि शुक्रवार (शिक्षक दिवस) को भी, न कहीं बच्चे नज़र आए न कहीं टीचर बस प्यार-मुहब्बत के गीत बजते रहे।

10 बजे पांच मिनट के समाचार बुलेटिन के बाद से 10:30 बजे तक और रात में 8:45 से 9 बजे तक क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु कार्यक्रम एक चित्र गानम में शुक्रवार को सुबह नई फ़िल्म के गीत सुनवाए गए और रात में बीच के समय की फ़िल्म पेन्डली कानुका (शादी का उपहार) के गाने सुनवाए गए इस तरह शिक्षक दिवस का ध्यान नहीं रखा गया। सप्ताह भर दिन और रात में अलग-अलग फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए जिसमें अर्थम चेसको (अर्थ समझो) जैसी नई फ़िल्में और भले दंपतिलु जैसी बीच के समय की फ़िल्में शामिल रही।

सुहाना सफ़र में दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक संगीतकारों का क्रम वही रहा - शुक्रवार को ए आर रहमान, शनिवार को आदेश श्रीवास्तव, रविवार को स्माइल दरबार, सोमवार को नए दौर के संगीतकारों के नए-नवेले गीत, मंगलवार को जतिन-ललित, बुधवार को शिवहरि, गुरूवार को शंकर-एहसान-लाँय के संगीतबद्ध किए गाने। नए गाने सुन कर ज्यादा मज़ा नहीं आ रहा। एक ही गाना अच्छा लगा जो आदेश श्रीवास्तव का स्वरबद्ध किया है -

चाँद से परदा कीजिए चुरा न ले चेहरे का नूर

1 बजे म्यूज़िक मसाला में एक गीत सुना -

क्या सूरत है क्या सूरत है क्या सूरत है

जिसे सुन कर किशोर कुमार का पुराना गाना याद आ गया -


ज़रूरत है ज़रूरत है ज़रूरत है
एक श्रीमती की कलावती की

सेवा करे जो पति की

शेष दिन गाने सामान्य रहे।

3 बजे सोमवार को सखि-सहेली में भी आशा भोंसले पर चर्चा हुई और साक्षरता दिवस पर निम्मी (मिश्रा) जी और ममता (सिंह) जी की भाषणबाजी हुई कि महिला साक्षर हो तो परिवार को अच्छा देखती है, अगर पढी-लिखी न हो तो बच्चों के साथ पढ सकती है वग़ैरह वग़ैरह… बुधवार को रेणु (बंसल) जी ने अच्छी जानकारी दी कि जौ और बारली में फ़र्क होता है। अक्सर लोग दोनों को एक ही समझते है। जौ के दानों में छिलका होता है और बारली का छिलका नहीं होता। अंजू ने ठीक बताया, वास्तव में जौ के आटे का लेप त्वचा के लिए वरदान है। शेष दिन कार्यक्रम सामान्य रहे।

शनिवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में शीर्षक की तरह ही गाने रहे।

इसके बाद नाट्य तरंग में यादवेन्द्र शर्मा का लिखा नाटक सुना - अश्वत्थामा हारा जिसका विषय गंभीर रहा पर रविवार को हल्का-फुल्का माहौल रखा गया और जयदेव शर्मा कमल के निर्देशन में हास्य के हल्के छीटें बिखेरता नाटक प्रस्तुत हुआ जो लखनऊ केन्द्र की भेंट थी।

4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारा में पिटारा में बाईस्कोप की बातों में बी आर चोपड़ा की साठ के दशक की फ़िल्म गुमराह फ़िल्म की चर्चा सुनी। बहुत सी नई बातें पता चली जैसे साहिर लुधियानवी की लोकप्रिय नज्म -

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों

साहिर साहब के फ़िल्मों में आने के पहले की लिखी हुई है पर फ़िल्म में देखकर ऐसा लगता है जैसे सिचुएशन के अनुसार लिखी गई है। कमाल है चोपड़ा साहब का ! इतनी अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद लोकेन्द्र (शर्मा) जी।

रविवार को शाम 4 बजे यूथ एक्सप्रेस में किताबों की दुनिया में व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी से युनूस जी की बातचीत मज़ेदार रही।। आशा भोंसलें के जन्मदिन पर बधाई दी गई और उनकी आर डी बर्मन और गुलज़ार के साथ बातचीत की रिकार्डिंग सुनवाई गई जो शायद संगीत-सरिता की थी। आशा भोंसलें के बारे में अच्छी जानकारी दी गई। बाक़ी खबरें विभिन्न शैक्षणिक कोर्सों में प्रवेश की रही।

सोमवार को सेहतनामा में चिकित्सा की होमियोपेथी पद्धति पर डाँ अनिल गोसाई से बातचीत में अच्छी जानकारी मिली। बुधवार को आज के मेहमान में मेहमान रहे डा कुँवर बैचेन। उनसे कविताएँ सुनना और उनकी पसन्द के फ़िल्मी गाने सुनना अच्छा लगा। बातचीत भी बहुत अच्छी रही। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को श्रोताओं के फोनकाल सुने, हल्की-फुल्की बातचीत के साथ उनके पसंदीदा गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में हिमेश रेशमिया का गाया गीत सुना -

तू मेरे दिल में रहे हमेशा
तू आ ऊ आ ऊ

तू बेख़ुदी तू आशिकी

तू तू आ ऊ आ ऊ

18-20 साल के छोरे-छोरियाँ मस्त नाच सकते है इस गाने पर।

5:30 से 7 बजे तक क्षेत्रीय कार्यक्रम होता है जिसमें 6 से 7 तक जनरंजनि में तेलुगु फ़िल्मों से फ़रमाइशी गीत सुनवाए जाते है। 5:30 से 6 बजे तक सोमवार से शुक्रवार तक संध्या रागम कार्यक्रम होता है - इस शीर्षक के हिन्दी अनुवाद की आवश्यकता नहीं है। पाँचों दिन अलग-अलग शीर्षक से कार्यक्रम होता है। अधिकांश शीर्षकों के हिन्दी अनुवाद की आवश्यकता नहीं है। शुक्रवार को प्रसारित होता है कार्यक्रम सारेगम जिसमें एक ही संगीतकार के गाने सुनवाए जाते है, सोमवार को कलम युगम में एक दौर के गीतकारों के लोकप्रिय गीत सुनवाए जाते है। मंगलवार को पद (शब्द) लहरी कार्यक्रम में एक शब्द (पद) लिया जाता है और ऐसे गीत सुनवाए जाते है जिसके मुखड़े में वो शब्द हो। बुधवार को आ पाटा मधुरै शीर्षक से कार्यक्रम होता है जिसका हिन्दी अनुवाद इस तरह है -

आ (वो) पाटा (गीत) मधुरै (मधुर है)

इसमें लोकप्रिय गीत सुनवाए जाते है। गुरूवार को कलम परिमलम में एक गीतकार के गीत सुनवाए जाते है। इस तरह संध्या रागम कार्यक्रम यहाँ बहुत लोकप्रिय है। शनिवार और रविवार को प्रायोजित कर्यक्रम होते है।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया गायिका जसविन्दर नरूला ने। बहुत स्वाभाविक बात की। गाने भी अच्छे सुनवाए। धन्यवाद शकुन्तला (पंडित) जी इस बढिया कार्यक्रम के लिए।

रविवार को फ़ौजी भाइयों और उनके परिजनों के संदेशों के साथ गाने सुनवाए गए। शेष दिन नए और बीच के समय के गाने बजते रहे।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में सुनवाए गए तीनों लोकगीत अलग-अलग थे - राजस्थानी, गढवाली और बुन्देलखण्डी जबकि अब तक तीनों एक ही प्रदेश संस्कृति के लोक गीत सुनवाए जाते थे। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में विभिम्म कार्यक्रमों पर श्रोताओं ने अपनी पसंद और नापसंद बताई। बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में बहुआयामी व्यक्तितत्व गीता बलसारा से कमल (शर्मा) जी ने बात की। हमारा अनुरोध है कि इस कार्यक्रम को दुबारा सखि-सहेली में सुनवाया जाए। इस कार्यक्रम के बारे में दोपहर में सुहाना-सफ़र की समाप्ति पर क्षेत्रीय केन्द्र से झरोखा में मज़ेदार जानकारी दी गई। पता नहीं कैसे हुई यह ग़लती या ग़लतफ़हमी, तेलुगु में बताया गया -

इनसे मिलिए कार्यक्रमलो बहुआयामी व्यक्तितत्व कमल शर्मा गारि तो संभाषणा

इसका हिन्दी अनुवाद है - इनसे मिलिए कार्यक्रम में बहुआयामी व्यक्तितत्व कमल शर्मा जी से बातचीत

मज़ा
आया सुन कर। गुरूवार और रविवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।

8 बजे हवामहल में शुक्रवार को सुनी झलकी - आज की ताज़ा ख़बर, शनिवार को रब झूठ न बुलाए पर माहौल बदला बुधवार को राममूर्ति चतुर्वेदी की झलकी आम्र मंजरी सुनकर।

रात 9 बजे गुलदस्ता में सोमवार को जिगर मुरादाबादी की पुण्य तिथि पर उनके लिखे कलाम सुनवाए गए। सभी एक से बढ कर एक रहे, ख़ासकर मखमली आवाज़ में तलत महमूद को सुनना बहुत बढिया लगा। शेष दिन गुलदस्ता सामन्य लगा।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में आनन्द जैसी सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में और जोधा अकबर जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत बजे पर कल तीसरी मंज़िल के रफ़ी के गाने सुनकर बहुत मज़ा आया।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में संगीतकार नौशाद से अहमद वसी की बातचीत की अगली कड़ी प्रसारित हुई।

10 बजे छाया गीत में शनिवार को अशोक जी ने अच्छी ग़ज़लें सुनवाई। कल युनूस जी ने ऐसे गीत सुनवाए जो बहुत ही कम सुने जाते है जैसे मन्नाडे का यह गीत -

एक समय पर दो बरसातें

पहले कभी-कभार यह गीत विविध भारती से बजता था पर अब बहुत समय बाद यह गीत सुनने को मिला। अन्य ऐसे गीत सुनवाए गए जो पहले शायद ही सुने गए। बाकी सबका अंदाज़ जाना पहचाना रहा, निम्मी जी भूले बिसरे गानों में ही ख़ुश नज़र आई।

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