मंगलवार को रात 7:45 पर बज्म-ए-क़व्वाली में कलंदर आजाद के साथ दूसरे कलाकारों की गैर फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवा कर रमजान महीने की शुरूवात और पहले रोजे का माहौल बनाए रखा गया।
बुधवार की सुबह वन्दनवार में गणपति की वन्दना होती रही। त्रिवेणी में भी बुद्धिमत्ता की बातें हुई। 6:30 बजे तेलुगु भक्ति गीतों के कार्यक्रम अर्चना में विनायक स्तुति सुनवाई गई।
गुरूवार की सुबह भी गणेश जी की वन्दना हुई और शेष दिन सामान्य रहे भजन।
7 बजे भूले-बिसरे गीत में सप्ताह भर लोकप्रिय गीत कुछ अधिक ही सुनाई दिए जिनके साथ भूले-बिसरे गीत बजते रहे और समापन होता रहा के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गीतों से।
7:30 बजे संगीत सरिता में प्रसिद्ध पार्श्व और ग़ज़ल गायक भूपेन्द्र सिंह ने ग़ज़ल गायकी को विस्तार से बताया कि ग़ज़ल तैयार करते समय गायक की आवाज़ की उठान का ख़्याल रखा जाता है, उच्चारण पर ध्यान दिया जाता है। यह भी बताया कि कि किसी राग में पूरी तरह ग़ज़ल को बाँधना भी ज़रूरी नहीं है। साथ ही खय्याम, जयदेव, मदन मोहन के सुरों में ग़ज़ल पिरोने के अंदाज़ को समझाया।
त्रिवेणी में अन्य विषयों के साथ जीवन जीने की कला पर भी बातें हुई, इस विषय पर गीत बजे आलेख भी इस अच्छे रहे, विशेषकर गुरूवार को रेणु (बंसल) जी द्वारा प्रस्तुत त्रिवेणी भा गई।
फ़रमाइशी हिन्दी तेलुगु फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम मन चाहे गीत, आपकी फ़रमाइश, जनरंजनि और जयमाला में श्रोता फ़रमाइश भेजते समय गणेश जी को बिल्कुल भी नहीं भूले। बुधवार को जयमाला में फ़ौजी भाइयों ने फ़रमाइश की हम से बढ कर कौन फ़िल्म के इस गीत की -
देवा हो देवा गणपति देवा तुम से बढ कर कौन
और तुम्हारे भक्तजनों में हम से बढ कर कौन
इस गीत के शुरूवात में गणेश वन्दना का श्लोक अच्छा है, गीत भी ठीक ही है सुनने में पर देखने में तो यह गीत सारे चोरों पर फ़िल्माया गया है, ख़ैर… गुरूवार को भी इसी गीत की फ़रमाइश मन चाहे गीत में हुई फिर सखि-सहेली में भी बजा। मन चाहे गीत तो लगभग आधा ग़णपति को समर्पित रहा, वाह ! हमारे श्रोताओं का भी जवाब नहीं। शेष दिन फरमाइशी गीत सामान्य रूप से बजते रहे।
10 से 10:30 बजे तक और रात में 8:45 से 9 बजे तक क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु कार्यक्रम एक चित्र गानम में शुक्रवार को रात में अम्मा माटा और सुबह संबंधी जैसे लोकप्रिय नए पुराने सभी तरह की फ़िल्मों के गीत बजे।
सुहाना सफ़र में दोपहर 12 बजे से बुधवार को स्वर्ण जयन्ती मासिक पर्व के कार्यक्रम में वायु सेना के जवानो से बातचीत उनके गीत और धुनें सुनना अच्छा लगा। हमारा सुझाव है की इन्ही गीतों और धुनों को रोज़ जयमाला के अंत में सलाम इंडिया में सुनवाए जाने वाले फिल्मी गीत के स्थान पर सुनवाया जाए तो ज़्यादा ठीक रहेगा। इसके बाद सुना फिल्मी गीतों में गंगा जिसमे बजने वाले गीत, आलेख और प्रस्तुति सभी अच्छा था। फिर फिल्मो में शुरूवाती दौर के गानों के बारे में जानना मजेदार रहा, खासकर उन पुराने गानों को साथ सुनते हुए। फिर दौर शुरू हुआ लोकगीतों का जिसमे उत्तर प्रदेश की कजरी बरसे बदरिया सावन की सुनी, अच्छा होता अगर किसी और गीत का चुनाव किया जाता क्योंकि इसे बहुत बार सुनते रहे है।
गुरूवार को लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का स्थान अब संगीतकार शंकर-एहसान-लाँय ने ले लिया है। इस तरह पूरा सुहाना सफ़र नए गानो से भरपूर हो गया है।
1 बजे म्यूज़िक मसाला में कभी तो नज़र मिलाओ अलबम से अदनान सामी का संगीतबद्ध किया और आशा भोंसले के साथ गाया गीत नए पुराने गीतों का संगम सा लगा -
प्यार मे न जीना नहीं जीना
मुझसे बिझड़ना कभी ना
तू है सुर मै हूँ तेरी वीणा
मुझसे बिझड़ना कभी ना
शेष गाने सामन्य रहे।
3 बजे का समय मुख्यतः सखि-सहेली का होता है। शुक्रवार को फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। उत्तर प्रदेश से अधिक फोनकाल आए और वो भी अधिकतर कम पढी-लिखी महिलाओं के पर गाने नए पसन्द किए गए। यहाँ एक बात मैं कहना चाहूँगी कि जब भी किसी ज़िले या गाँव से फोन आया सभी ने यही कहा कि वहाँ खेती होती है जबकि आजकल कई गाँवों में खेती करना कठिन हो गया है और दूसरे काम जैसे हथकरघा आदि किए जा रहे है। लगता है गाँवों की खेती करने वाली औरतों को ही सखि-सहेली कार्यक्रम बहुत पसन्द है।
सोमवार को कुल्फी की रेसिपी सुनना अजीब लगा। कमलेश (पाठक) जी किसी भी चीज़ की कुल्फी बना ले, बनाने का मुख्य तरीका तो वही होता है, कुछ खास प्रादेशिक पकवान बताइए तो मज़ा आ जाए. शेष दिन कार्यक्रम सामान्य रहे।
शनिवार को सदाबहार नग़मों में गाने हमेशा की तरह अच्छे रहे।
इसके बाद नाट्य तरंग में मूल मराठी नाटक मैं हूँ अपनी देह का स्वामी का भगवानदास वर्मा द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद सुनवाया गया जिसके निर्देशक थे सुशील बैनर्जी। रविवार को इसका समापन भाग प्रसारित हुआ। बहुत संवेदनशील नाटक था।
4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारा में पिटारा बहुत-बहुत अच्छा था जिसमें बाईस्कोप की बातों में दक्षिण की प्रतिष्ठिल कंपनी एवीएम प्रोडक्शन्स की जेमिनी के बैनर तले बनी फ़िल्म तीन बहुरानियाँ फ़िल्म की चर्चा सुनी। बहुत पहले इसके गीत रेडियो से बहुत बजा करते थे, गीत भी एक से बढ कर एक थे -
आमदनी अठनी ख़र्चा रूपया
भय्या न पूछो न पूछो हाल
नतीजा ठन-ठन गोपाल
हमरे आँगन बगिया, बगिया में दो पंछी
पंछी उड़ न जाए देखना पंछी उड़ न जाए
मेरी तरफ़ ज़रा देखो तो कन्हैय्या
राधा से बन गई रीता ओ कन्हैय्या
कन्हैय्या ओ कन्हैय्या
बहुत सालों बात यह गाने और फ़िल्म की चर्चा, पृथ्वीराजकपूर की चर्चा सुनना बहुत अच्छा लगा। दिल को सुकून मिला।
रविवार को यूथ एक्सप्रेस में इस सप्ताह हिन्दी फिल्मी गानों की दुनिया भर में लोकप्रियता की बात हुई और ओलंपिक समापन समारोह में ओम शान्ति ओम के संगीत बजाए जाने की जानकारी दी। युनूस जी अगर फरहा खान से आपकी फोन पर बातचीत भी हो जाती तो उसे कार्यक्रम में सुन कर मज़ा आ जाता। बाक़ी खबर अखबारों की रही क्रिकेट जगत से और शायर साहेब के गुज़रने की बातें बताई गई।
सोमवार को सेहतनामा में पोषण सप्ताह पर आहार विशेषज्ञ एकता जागीरदार से रेणु (बंसल) जी की बातचीत सामान्य आहार और पोषण मूल्यों पर अच्छी जानकारी दे गई। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा गीत बजते रहे।
5 बजे नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में आने वाली फिल्मो के गीतों के साथ बीडी जलाए ले भी सुनना अच्छा लगा।
शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया संगीतकार शांतनु मोइत्रा ने और सचिन देव बर्मन के गाए गीतों से लेकर नई फ़िल्म परिणीता तक के गाने सुनवाए और बातें भी अच्छी बताई जिसके लिए हम धन्यवाद देगे महेंद्र मोदी जी को जिनकी सहमति के बिना इतना बढिया कार्यक्रम श्रोताओं तक नही पहुँच पाता। रविवार को फ़ौजी भाइयों और उनके परिजनों के संदेशों के साथ गाने सुनवाए गए। शेष दिन नए और बीच के समय के गाने बजते रहे।
7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में सुने बंगला गीत। कलाकार थे अरूँधती चौधरी, ब्रह्मचारी। सभी गीत बहुत मीठे लगे एकदम रोशुगुल्ला (रसगुल्ला) की तरह। इस बार दोनों ही दिन शनिवार और सोमवार को पत्रावली में बहुत संतुलन था वरना कभी-कभी बहुत ज्यादा तारीफ़ सुन कर ऊब होने लगती थी। बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में कोटा राजस्थान के किसी गायक से रेणु जी ने बात की, इतना जाना-पहचाना कलाकार तो यह नहीं लगा। गुरूवार और रविवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने। पहली बार जाना कि बाबूजी-बाबूजी गम-गम किशीकि-किशीकि कम-कम जैसा गाना भी किसी राग पर आधारित होता है, देशराग पर आधारित है यह गीत, यह जानकारी इसी कार्यक्रम से मिली।
8 बजे हवामहल में शनिवार को राजेन्द्र तिवारी की लिखी और विनोद रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत झलकी सुनी - इलाज हर मर्ज का। के पी सक्सेना की झलकी सुनी - देशी चने विलायती दांत जिसे सुन कर हवामहल पेंट के विज्ञापन की तर्ज पर सदाबहार प्रमाणित हो जाता है जहाँ यह कहा जाता है -
लगता है (बालो में) रंग लगाने का वक्त आ गया है
रंग लगाने का ? पर बंगला तो अभी भी चमकरिया है
हौ अभी भी चमक रहा है
रात 9 बजे गुलदस्ता में एक गीत बहुत बढिया लगा -
मेरी सतरंगी ओढनी का
एक-एक रंग निराला
वैसे गीत कुछ कम ही सुनने को मिलते है। ग़ज़ले ज्यादा सुनवाई जाती है।
9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में ओम शान्ति ओम, विरोध जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्मों के गीतों का इस सप्ताह बोलबाला रहा।
रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में संगीतकार नौशाद से अहमद वसी की बातचीत एक और चरण आगे बढी।
10 बजे छाया गीत में कभी रात को शीर्षक बनाया गया तो कभी पंछी को। नए गानों से भी पूरे कार्यक्रम को सजाया गया पर हमें तो पूरे सप्ताह में सबसे अच्छा यह गीत लगा -
पंछी रे ओ पंछी उड़ जा रे ओ पंछी
3 comments:
रमजान की शुरूआत, गणेश चतुर्थी का पर्व और विविध भारती की स्वर्ण जयन्ती की आपको ढेरों शुभकामनाएँ।
विविध भारती की स्वर्ण जयन्ती की आपको ढेरों शुभकामनाएँ।
achchi rachana
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