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Friday, September 19, 2008
रेडियो श्रीलंका की उर्दू सेवा- इतिहास का एक पन्ना
एक दिन कई सालो पहेले रेडियो सिलोन की सुबह की सभा के कार्यक्रम सुन रहा था तब आज की लोकप्यिय उद्दघोषिका श्रीमती ज्योति परमार के पिताजी स्व. दलवीरसिंह परमार ने 10.30 से शुरू हो कर करीब रात्री एक बजे तक चलने वाले कई हिन्दी फ़िल्म संगीत पर आधारित कार्यक्रम के अलावा अरबी भाषामें समाचार की कुछ: बात आयी । उन दिनों रेडियो श्रीलंका की हिन्दी सेवा का रात्री प्रसारण 10 बजे के बाद 25 मीटर पर बन्ध हो कर 31 मीटर पर तबदील होता था पर क्यूं यह पता नहीं था । पर हम लोग 31 मीटर पर ट्यून कर लेते थे । पर उस दिन परमार साहब के बताये समय पर समय से पहेले ही फ़िर से 25 मीटर ट्यून किया, तब एक उस समय मेरे लिये अनजान उद्दघोषक श्री अब्दूल अजीझ मेमण उद्दघोषणा करते सुनाई पड़े । पर भाषामें सभा की जगह नसरियात और मुख़ातीब जैसे शब्द आने लगे । बादमें एक के बाद एक कार्यक्रम प्रस्तूत होते गये जो ज्यादा तर हिन्दी सभा के कार्यक्रम की प्रतिकृति थी, पर एक बात ख़ाश थी, कि आज के कलाकार (फनकार), और एक ही फिल्म से जैसे कार्यक्रम भी सिर्फ़ एक श्रोता के सुचन के अनुसार उस श्रोता का नाम बता कर प्रस्तूत किये जाते थे । पर श्रोता के नामो में भारत के नाम नहीं होते थे पर पूर्व और मध्य अफ़्रीका, गल्फ़ देशो तथा ओस्ट्रेलिया के भारतिय मूल के श्रोता होते थे ( एक नाम विषेष आता था-सिड़नी ओस्ट्रेलिया के विजय नागपाल) । बादमें अरबीमें समाचार भी होते थे जो समय बितने पर इंग्रेजीमें हो गये । जैसे हिन्दी सेवा के हमेशा जवाँ गीतो के फरमाईशी कार्यक्रम आप के अनुरोध पर में शिर्षक गीत लताजी का गाया हुआ अभी तो मैं जवान हूँ होता था, उर्दू सेवाके इसी तरह के कार्यक्रम में इसी शब्दो वाला शायद मल्लीका पोख़राज का गाया हूआ पाकिस्तानी गीत शिर्षक गीत के रूपमें एक अंश तक़ बजता था । और पूरानी फिल्मों के गीतो के यह दोनों फरमाईशी कार्यक्रम रात्री 10.30 से 11 बजे तक़ समांतर आते थे । शनिवार और रविवार अब्दूलजी की छूट्टी पर हिन्दी सेवा के सिंहाली मूल के उद्दघोषक श्री विजय शेखर हिन्दी की जगह उर्दू बोल कर प्रस्तूत होते थे और एक दो बार हिन्दी सेवा के अन्य सिंहाली मूल के उद्दघोषक श्री धरम दास भी उर्दू शब्दों के साथ प्रस्तूत हूए थे । बादमें हिन्दी सेवा का समय भी रात्री पहेले 10.30 तक़ और बाद में 10, 9.30 और 9 तक सीमीत होता गया । उसी तरह उर्दू सभा भी सीमीत होते होते बंध हो गयी ।
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