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Friday, September 26, 2008

साप्ताहिकी 25-09-08

साप्ताहिकी शुरू करने से पहले एक ख़ास बात ! आज से स्वर्ण जयन्ति के मासिक पर्व पर सुनवाए गए कार्यक्रमों के संपादित अंशों का दुबारा प्रसारण किया जा रहा है। 2 अक्तूबर तक सुनते रहिए दोपहर 12 बजे से शाम 5:30 बजे तक।

अब करते है चर्चा सप्ताह भर के कार्यक्रमों की। सुबह के प्रसारण में समाचारों के बाद चिंतन में शेख़ काज़ी, भगवद गीता, शेक्सपीयर, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे व्यक्तितत्वों के विचार बताए गए। वन्दनवार में लोकप्रिय भजन सुनवाए गए जिनमें से एक भजन -

प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी

अनूप जलोटा की आवाज़ में भी सुनवाया गया और इसी भजन का एक पुराना रिकार्ड भी सुनवाया गया जो शायद साठ-सत्तर के दशक का है, गायिका का नाम मुझे पता नहीं। यह भजन दोनों रूपों में सुनना अच्छा लगा।

समापन में देश भक्ति गीतों में केवल सुमित्रानन्दन पन्त का गीत भारतमाता ग्रामवासिनी विवरण के साथ सुनवाया गया।

7 बजे भूले-बिसरे गीत में अच्छे भूले-बिसरे गीत सुनने को मिले जैसे क़िस्मत फ़िल्म में मिसेज घोष का गाया गीत। क़िस्मत के गाने तो बहुतों ने सुने होगें पर गायिका मिसेज घोष का नाम शायद बहुत कम लोगों ने ही सुना होगा। एक और गीत सुन कर बहुत मज़ा आया अरूण कुमार का गाया, सरस्वती देवी का संगीतबद्ध किया बंधन फ़िल्म का गीत - चना जोरगरम और समाप्ति के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गीतों से होती रही।

7:30 बजे संगीत सरिता में नई श्रृंखला शुरू हुई जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो विधाओं - हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में समान प्रकृति के रागों की चर्चा की जा रही है जैसे हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के राग यमन और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के राग कल्याणी, राग मालकौंस और हिन्डोलम, राग चारूकेशी जो मूल रूप से दक्षिण भारतीय संगीत का है। इन समानताओं को बताते हुए दोनों विधाओं के कलाकारों से गायन और वादन सुनवाए गए। प्रस्तुत कर रही है शकुन्तला नरसिंहन। यह श्रृंखला भी छाया (गांगुली) जी ने तैयार की है और 1993 में पहली बार प्रसारित की गई थी।

जहाँ तक मेरी जानकारी है भारतीय शास्त्रीय संगीत की तीन विधाएँ है - हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और रविन्द्र संगीत जिसमें से रविन्द्र संगीत बंगला भाषी क्षेत्र तक सिमटा है, कर्नाटक शास्त्रीय संगीत दक्षिण की चार भाषाओं और दक्षिणी क्षेत्र तक सिमटा होने से इसे दक्षिण भारतीय संगीत भी कहा जाता है। इस तरह इन दोनों विधाओं को भौगौलिकता के आधार पर भी नाम दिया जाता है पर जहाँ तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की बात है इसका क्षेत्र तो बहुत बड़ा है फिर हम समझ नहीं पाते है कि अक्सर इस कार्यक्रम में उदघोषणा में उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय संगीत क्यों कहा जाता है जबकि प्रस्तुत करने वाले संगीतज्ञ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को उत्तर भारतीय संगीत नहीं कहते। इस बार शकुन्तला नरसिंहन जी ने भी नहीं कहा जिससे प्रमाणित भी हो जाता है कि उत्तर भारतीय संगीत कहना ठीक नहीं। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराने का महत्वपूर्ण योगदान है, इंदौर के संगीत घराने है, महाराष्ट्र के कलाकारों का कम योगदान नहीं है। देश के उत्तरी क्षेत्र के अलावा कई क्षेत्रों के कलाकार है चाहे आप पंडित भीमसेन जोशी का नाम लीजिए या किशोरी अमोलकर का।

त्रिवेणी में लोभ-लालच की बातों के साथ किशोर कुमार का लोकप्रिय गीत बहुत समय बाद सुन कर मज़ा आया -

गुणी जनों भक्त जनों, नक़द नारायण की जय-जय बोलों

तूफ़ान की, सुख-दुःख की भी बातें हुई, नज़रिए की भी चर्चा हुई।

दोपहर 12 बजे से 1 बजे प्रसारित होने वाले सुहाना सफ़र कार्यक्रम में हल्का सा परिवर्तन हुआ, बुधवार को शिवहरि के स्थान पर दिलीप सेन और समीर सेन (दिलीप-समीर) के स्वरबद्ध किए गीत सुनवाए गए। शुक्रवार को ए आर रहमान जिनके गानों में मधुश्री का गाना फिर से सुना - कभी नीम-नीम कभी शहद-शहद - बहुत ज्यादा सुनने को मिल रहा है यह गाना। शनिवार को आदेश श्रीवास्तव, रविवार को स्माइल दरबार, सोमवार को नए दौर के संगीतकारों के नए-नवेले संगीतकारों के संगीतबद्ध किए गीत, मंगलवार को जतिन-ललित के गानों में फ़ना का गाना अच्छा लगा -

चन्दा चमके… चटोरी चीनी ख़ोर

गुरूवार को शंकर-एहसान-लाँय के संगीतबद्ध किए गाने बजे।

1 बजे म्यूज़िक मसाला में वो कौन थी एलबम से जोजो का गाना - वो कौन थी जो नज़र मिला के चाँद ले गई, एलबम कौन हो सकता है के लिए सुनिधि चौहान का गीत - दिल मेरा डोले प्यार मेरा बोले इन सब गीतों में बोल बहुत ही साधारण थे जो पाश्चात्य संगीत में ढले थे।

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में मिले-जुले गाने सुनवाए गए जैसे दहक, मैं हूँ ना जैसी नई फ़िल्म के गाने - तुम से मिल के दिल का जो हाल क्या कहे जिसके तुरन्त बाद सत्तर के दशक की फ़िल्म दुश्मन का किशोर कुमार का गाया लोकप्रिय गीत - वादा तेरा वादा, दि ट्रेन फ़िल्म का गाना - मुझ सा भला ये आँचल तेरा सुनवाया। इसी तरह अस्सी के दशक की फ़िल्म देशप्रेमी के बाद साठ के दशक का गाना सुनवाया - नाना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे

3 बजे का समय मुख्यतः सखि-सहेली का होता है। शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टी) जी ने और फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। इस बार कार्यक्रम बहुत संतुलित रहा। पहला फोन उत्तराखंड से था। उत्तराखंड के आस-पास के क्षेत्रों मसूरी, गढवाल आदि की जानकारी भी दी और वहाँ तक पहुँचने की जानकारी भी दी। क्षेत्र की भी अच्छी जानकारी दी, श्रोता सखि ने जो कालेज की छात्रा थी। तहसील मंझोर से आशा जी ने बात की जो गृहणी है और जिनकी पसन्द पर पुरानी फ़िल्म ख़ानदान का गीत सुनवाया गया। इस क्षेत्र के धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सौन्दर्य के बारे में भी बताया। झारखंड से जिस सखि से बात हुई उन्होनें अपने बारे में अधिक नहीं बताया। नागपुर के पास बैतुल शहर से भी गृहिणी ने ही बात की जिन्होनें संयुक्त परिवार की बातें की। सिलीगुड़ी से फोन आया और अपने क्षेत्र के बारे में उन्होनें बताया कि देश भर में सिलबट्टे के लिए सिल्लियाँ यही से भेजी जाती है। पहाड़ी क्षेत्र होने से सिल्लियाँ अच्छी होती है जो पहाड़ो के बड़े पत्थरों के टुकड़ों की होती है इसी से शहर का नाम पड़ा सिल्लीगुड़ी। इस तरह इस कार्यक्रम से जानकारी बढी।

सोमवार को सखि-सहेली में रसोई की बातें हुई। बंबई की भेलपूरी बनाना बताया गया। मंगलवार को करिअर के लिए मार्ग दर्शन किया जाता है जिसके अंतर्गत इंटरव्यू कैसे दे ? क्या सावधानियाँ बरते, यह बताया गया। बुधवार को व्यक्तित्व निखारने की बातें हुई। यह सच भी है कि व्यक्तित्व अच्छा होने से सुन्दर न भी हो तब भी समाज में आकर्षक लगते है। गुरूवार को सफ़ल महिलाओं के बारे में बताया जाता है, इस सप्ताह पंजाबी और हिन्दी साहित्यकार अमृता प्रीतम के बारे में बताया गया। उनके जीवन और काम की जानकारी दी गई। उनकी रोशनी शीर्षक से कविता भी पढकर सुनाई गई।

इसके अलावा सामान्य काम की बातें भी होती रही जैसे रसोई की सफ़ाई, ओवन टोस्टर की सफ़ाई, बिजली की बचत आदि।

शनिवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में पहला गीत सुना फ़िल्म नौशेरवानेआदिल का, इस फ़िल्म के रफ़ी के गाने तो लोकप्रिय है पर यह जो सुनवाया गया - माशाअल्लाह माशाअल्लाहा भूला-बिसरा गीत लगा। बाकी सभी सदाबहार गाने थे जैसे प्रोफ़ेसर, मधुमति, राजकुमार फ़िल्म का यह गाना - आजा आई बहार दिल है

इसके बाद नाट्य तरंग में शनिवार और रविवार को दो किस्तों में मुमताज़ शकील के निर्देशन में सुरेन्द्रकान्त का लिखा नाटक सुना - गुलाब की पंखुड़ियाँ जो एक ऐतिहासिक समय का नाटक है जब मुग़ल और ब्रिटिश दोनों के बीच संघर्ष चल रहा था।

4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा में सुना सरगम के सितारे कार्यक्रम जो गीतकार शकील बदायूनीं पर आधारित था। शोध, आलेख और स्वर युनूस जी का था। सुन कर लगा युनूस जी ने बहुत मेहनत की। वैसे भी शकील बदायूनीं की शायरी को मोहम्मद रफ़ी का स्वर मिल जाय तो समाँ बँध जाता है। इसमें ख़ास तौर पर यह बताया गया कि अपनी शायरी में उन्होनें रात का ज़िक्र कैसे किया है और सुनवाए गए उनके लिखे रफ़ी के गाए एक से बढ कर एक गाने -

सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे

गीतों की तरह क़व्वालियाँ भी कर्णप्रिय रही -

जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा

ख़ासतौर पर रोशन के संगीत में। अन्य संगीतकारों के गीत भी सुनवाए गए जैसे हेमन्त कुमार। लता की आवाज़ में भी गीत सुना - कहीं दीप जले कहीं दिल

प्रस्तुति कांचन (प्रकाश संगीत) जी की थी। बहुत बढिया रहा कार्यक्रम जिसके लिए युनूस जी और काँचन जी को बधाई ! अब प्रतीक्षा है अगली कड़ी की…


रविवार को शाम 4 बजे यूथ एक्सप्रेस में माइक्रोचिप्स के पचास साल पूरे होने पर माइक्रोचिप्स पर अच्छी जानकारी दी युनूस जी ने, उनकी विज्ञान की शिक्षा का असर नज़र आया। दुनिया देखो खण्ड में पीज़ा की झुकी मीनर पर एक श्रोता ने जानकारी भेजी जिसे युनूस जी ने पढ कर सुनाया। किताबों की दुनिया में हिन्दी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला पर आलेख पढा गया। निराला जी के जन्मशती वर्ष में यह सुनना अच्छा लगा। विभिन्न कोर्स में प्रवेश की सूचना दी गई। हमेशा की तरह नए गाने तो बजे पर अस्सी के दशक के संगीत के माहौल को ध्यान में रखकर पंकज उदहास की ग़ज़ल भी सुनवाई गई। कुल मिलाकर अच्छा अंक रहा, युनूस जी को बधाई !

सोमवार को सेहतनामा में डा उमेश ओझा से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने बातचीत की। डाक्टर साहब ने नपुंसकता, शुक्राणुओं की कमी, इससे पुरूषों में होने वाली कमज़ोरी आदि बातों पर विस्तार से जानकारी दी। बुधवार को आज के मेहमान में मेहमान रहे बालकवि बैरागी जिनसे बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। बहुत ही संवेदनशील वार्तालाप रहा। बैरागी जी को एक अच्छे कवि के रूप में हम सभी जानते है। एक अच्छे सांसद और राजभाषा हिन्दी के लिए की गई उनकी सेवाओं से भी हम परिचित है। लेकिन उनके जीवन का संघर्ष पहली बार खुल कर सामने आया। उनके लिखे गानों में रेशमा और शेरा का गीत - तू चंदा मैं चांदनी तो हमेशा से ही लोकप्रिय रहा।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। पहला ही गीत कुली फ़िल्म का सुनवाया गया जो रमज़ान के माह का उत्साह दुगुना कर गया। ज्यादातर फोनकाल छात्रों के थे पर गाने नए के साथ बीच के समय के भी रहे। एक छात्रा ने जानी दुश्मन फ़िल्म का यह गीत सुनवाने का अनुरोध किया और बताया कि उसे नए के साथ पुराने गाने भी अच्छे लगते है -

चलो रे डोली उठाओ कहार पियामिलन की ॠत आई

मंगलवार और गुरूवार को भी श्रोताओं के फोनकाल और उनके पसंदीदा गाने सुने।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में शुक्रवार को बताया गया कि मुंबई में बारिश हो रही है और एक गीत सुनवाया गया फ़िल्म रेन से जिसके बोलों में कोई नयापन नहीं है - ए चाँद छुप जा बादलों के पीछे। शेष सभी दिन गाने सामन्य ही रहे।

शनिवार को अभिनेत्री माला सिन्हा ने विशेष जयमाला प्रस्तुत किया। हालांकि वही गीत सुनवाए जिसमें खुद माला सिन्हा ने काम किया था पर सभी लोकप्रिय गीत सुनने को मिले - गुमराह, आँखे, धूल का फूल और शुरूवात अनपढ फ़िल्म के गीत से जो मेरे बहुत ज्यादा पसंदीदा गानों में से एक है -

आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे
दिल की ऐ धड़कन ठहर जा मिल गई मंज़िल मुझे

बातें बहुत कम बताई पर अच्छा लगा। धन्यवाद शकुन्तला (पंडित) जी, यह कार्यक्रम भी बढिया रहा।

रविवार को फ़ौजी भाइयों और उनके परिजनों के संदेशों के साथ गाने सुनवाए गए। शेष दिन नए और कभी-कभार बीच के समय के गाने बजते रहे।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में सुनवाए गए उड़िया लोकगीत जिसमें बैद्यनाथ का गाया एक गीत सुनकर बहुत पहले दूरदर्शन पर देखे गए उड़िया लोकनृत्य याद आ गए जिसमें कलाकारों के पैरों के पास बाँस चलाए जाते थे जिनमें से पैर बचाकर कलाकारों के पैर थिरकते थे, बाँस की आवाज़ का रिदम गीत में स्पष्ट था। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पढे गए पत्रों से पता चला कि संगीत-सरिता और जयमाला कार्यक्रम अधिकतर श्रोताओं को पसन्द आते है। पर कोई विशेष सुझाव श्रोताओं से नहीं मिला। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में क़व्वालियाँ सुनी अगर रमज़ान को ध्यान में रखकर ग़ैर फ़िल्मी सूफ़ियाना क़व्वालियाँ सुनवाई जाती तो ज्यादा अच्छा होता। बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में दिनेश बिसरिया से रेणु (बंसल) जी की बातचीत सुनवाई गई जो स्वयंसेवी संघटन चलाते है इन संघटनों द्वारा पशु कल्याण के लिए किए जा रहे कामों की जानकारी दी। अक्सर ऐसे संघटन महिलाओं या बच्चों के लिए बनाए जाते है, बहुत कम संघटन है जो पशुओं के लिए काम करते है। इस विषय को चुनने के लिए हम धन्यवाद देना चाहेगें महेन्द्र मोदी जी को। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने। कल का कार्यक्रम सार्थक लगा इन गीतों को सुन कर - झनक-झनक पायल बाजे, भँवरा बड़ा नादान रे। लगा वाकई रागों पर आधारित गीत है वरना कुछ गाने ऐसे बजते है जिन्हें सुनकर लगता कि इन गानों में तो रागों की झलक शायद ही मिले और हम सोचते रह जाते है कि हिमेश रेशमिया का झलक दिखला जा किस राग पर आधारित होगा।

8 बजे हवामहल में सुनी गुरमित की लिखी हास्य झलकी अपने लगे बेगाने, मधुर श्रीवास्तव की लिखी और निर्देशित झलकी दस का भूत, के एल यादव की लिखी और चन्द्रप्रभा भटनागर द्वारा निर्दिशित झलकी शिकायत पर चुपके-चुपके झलकी भावुक कर गई। एक जगह भाई-बहन की नोंक-झोंक हुई, बहन ने माँ से कहा भय्या के लिए जल्दी से लड़की देखिए, भय्या पहले तस्वीर देखेंगे फिर सपने देखेगें इस तरह व्यस्त हो जाएगें… पहले घर-घर में ऐसी बातें होती थी। आजकल शायद ही सुनने को मिले, लगता है हवामहल जैसे कार्यक्रमों तक ही सिमट कर रह जाएगी यह संस्कृति।

रात 9 बजे गुलदस्ता में मेहदी हसन की गाई ग़ज़ल अच्छी लगी जिसे उन्होनें ही संगीत से सजाया था। इससे भी अच्छा लगा ग़ालिब का कलाम बेगम अख़्तर की आवाज़ में सुनना और बहुत अच्छा लगा जब मलिका पुखराज को सुना जिसे सुनते हुए याद आ गए यह बोल -

अभी तो मैं जवान हूँ

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में कभी ख़ुशी कभी ग़म, आशिक़ी, नागिन, नम्स्ते लंदन जैसी लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत बजे।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अहमद वसी से बातचीत में संगीतकार नौशाद ने म्यूज़िक थेरेपी की बात की। संगीत से इलाज बताने या कहे कि संगीत का असर दिखाने बैजूबावरा से बढकर और कौन सी फ़िल्म हो सकती थी नौशाद साहब के लिए। बड़े ग़ुलाम अलि खाँ साहब का जिक्र किया गया और सुनवाई गई उनकी बंदिशे बैजू बावरा फ़िल्म से। बहुत कम ऐसा होता है जब किसी संगीतकार से बातचीत शास्त्रीय संगीत के सागर में डुबोती है। अभी आगे कड़िया बाकी है। धन्यवाद कमल (शर्मा) जी इस शानदार प्रस्तुति के लिए।

10 बजे छाया गीत में कमल (शर्मा) जी ने यादों की रात की बातें की, युनूस जी ले आए अनमोल बहुत ही कम सुने गए गीत पर थोड़ी सी चूक हो गई। पहला गीत सुनवाया सावन फ़िल्म का रफ़ी और शमशाद बेगम का - भीगा-भीगा प्यार का समाँ जो भूले-बिसरे गीत में बहुत बार सुनते रहे। पिछले शायद 5-6 साल से नहीं सुना और यह अंतराल लंबा नहीं होता है। इसीलिए यह गीत अन्य गीतों से विशेषकर राजधानी फ़िल्म के गीत से मैच नहीं कर रहा था। राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी पहले की नए गीत लेकर आए, अमरकान्त जी इस बार थोड़ा ज्यादा बोलते लगे तो अच्छा नहीं लगा…

4 comments:

mamta said...

आपने इसे लिखने मे बहुत अधिक मेहनत की है । इतने सारे कार्यक्रमों को याद रखना और लिखना कमाल की बात है।

Yunus Khan said...

बहुत बधाई । बहुत ही जतन और धीरज का काम है ये । बहुत अच्‍छा लगा हफ्ते भर के इन कार्यक्रमों की समीक्षा पढ़कर ।

Anonymous said...

आपकी हप्तावार समीक्षा बहोत सुन्दर होते हुए भी केन्द्रीय विविध भारती सेवा तथा हैद्राबाद विज्ञापन प्रसारण सेवा के स्थानिक कार्यक्रम तक सीमीत होती जा रही है और आप रेडियो के पूराने इतिहास और ख़ास तो रेडियो सिलोन की बातों से दूर हुई है तथा फिल्मी धूनों से शौख़ से भी दूर हो गयी है । तो आप से अनुरोध है कि इस साप्ताहिकी के अलावा भी आप चाहे तो अनियमीत रूपसे ही सही, पर कभी कभी पोस्ट या टिपणी लिखें जरूर । इन दिनों इस ब्लोग पर पोस्ट मेरे और आपके अलावा और कोई नहीं लिख़ता या टिपणी भी नहीं लिख़ते है, जो इस ब्लोग के पोस्ट लेख़क गृपमें शानिल रहे है । हाँ, मेरी पोस्ट के बारेमें अमरिका निवासी श्री हर्षदभाई या लावण्याजी कभी कभी वोईस चेटिंग पर अपनी राय देते है । रही बात भाषा शुद्धी की तो समय पर पोस्ट प्रकाशित करने के लिये और स्टेमीना के कारण मेरी ताईपींग गती के कारण लिख़ कर फ़िरसे पढ कर सुधार कर प्रकाशित करने की सुध नहीं रह पाती जब की रात्री के समय लम्बा लिख़ना होता है । हाँ, आपने मेरी वायु सेना की शान पोस्ट पर एक लाईन की सहमती की टिपणी लिख़ी थी वह मेरी यादमें है । क्या युनूसजी का भी फिल्मी धूनों का शौख़ छूट गया है ?
पियुष महेता ।
सुरत-395001.

annapurna said...

धन्यवाद ममता जी, युनूस जी !

पीयूष जी धन्यवाद ! मैं कुछ और भी लिखने की कोशिश करूंगी।

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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

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