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Friday, December 12, 2008

साप्ताहिकी 11-12-08

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद शेख़ मोहम्मद काज़ी, बाबा साहब अंबेडकर, सुभाषचन्द्र, प्रेमचन्द के विचार बताए गए, पर मंगलवार को विदेशी लेखक जार्ज बर्नाड शाँ के विचारों के बजाय मोहम्मद पैग़म्बर साहब या शेख़ काज़ी का ही कोई कथन सुनाते तो बकरीद के दिन प्रसारण की शुरूवात अच्छी लगती, वैसे वन्दनवार की शुरूवात और अंत के भक्ति गीत बकरीद से संबंधित ही रहे। बुधवार को नए भजन सुनवाए गए। गुरूवार को पुराने भजन सुनवाए गए जिसमें शुरूवात हुई कबीर की इस रचना से -

पोथी पढी पढी जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम के पढे सो पंडित होय

इसके बाद सिलसिला चला तुलसी, मीरा। सप्ताह भर अंत में सुनवाए गए देशगान भी अच्छे रहे।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम बुधवार को अशोक कुमार की पुण्य तिथि पर उन्हें समर्पित किया गया। उनका लीला चिटनीस के साथ गाया यह गीत भी सुनवाया गया जिसे बंधन फ़िल्म के लिए सरस्वती देवी और रामपाल ने संगीतबद्ध किया -

चल चल रे नौजवान

इसके अलावा कुछ लोकप्रिय गीत और अधिकतर भूले बिसरे गीत सुनवाए गए, भूले बिसरे कलाकारों को भी सुना और हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला नाद निनाद इस सप्ताह समाप्त हुई जिसे प्रस्तुत कर रहे थे ख़्यात बांसुरीवादक और संगीतकार विजय राघव राव। इसमें विभिन्न तालवाद्य सुनवाए गए, कविता और नृत्य शैली को संगीत में उतारने की चर्चा चली और सुनवाया गया यह गीत -

झनक झनक पायल बाजे

त्यौहारों के गीतों की भी चर्चा की गई और सुनवाया गया यह गीत -

होली के नट नन्दलाल बिरज में

ग़ज़ल भी सुनवाई गई और लोरी भी। समापन कड़ी में स्वाधीनता संग्राम से जुड़े वृत्त चित्र से एक संगीत का टुकड़ा सुनवाया गया जिसमें संघर्ष की झलक थी, रघुपति राघव राजा राम की धुन भी थी। इस तरह भावों विचारों को प्रस्तुत करने की संगीत की प्रवृतियों का अच्छा ज्ञान मिला।

गुरूवार से मंगेश (सांगले) जी और वीणा (राय सिंघानी) जी के सहयोग से कांचन (प्रकाश संगीत) जी द्वारा तैयार नई श्रृंखला आरंभ हुई - गंधार गुंजन। शीर्षक बहुत आकर्षक है, वैसे सभी श्रृंखलाओं के शीर्षक अच्छे ही होते है। यह श्रृंखला चार खण्डों में बँटी है। पहले खण्ड की शुरूवात हुई जिसे प्रस्तुत कर रहे है ख़्यात कलाकार पंडित शरद साठे। इस खण्ड में ऐसे रागों की जानकारी दी जा रही है जिसमें शुद्ध और कोमल गंधार स्वर लगते है, शुरूवात की गई पुराने राग श्रीपद भैरवी से। कार्यक्रम की परम्परा के अनुसार राग की पूरी जानकारी दी गई और इस पर आधारित फ़िल्मी गीत भी सुनवाया गया। लगता है यह श्रृंखला एकदम नई तैयार की गई है।

7:45 को त्रिवेणी में जीवन में अंधकार और रोशनी की, सुख-दुःख की बातें हुई, आदमी को इंसान बनाने की बात हुई और संबंधित गीत सुनवाए गए जैसे पैग़ाम फ़िल्म का यह गीत -

इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम
इंसान बनो

पर मंगलवार को भी जीवन में हँसी ख़ुशी दुःख की बातें सुनना अटपटा लगा, इस दिन बकरीद को ध्यान में रखकर क़ुर्बानी, बलिदान, त्याग की बातें की जाती और ऐसे ही गीत सुनवाए जाते तो ठीक रहता।

दोपहर 12 बजे कार्यक्रम एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने में शुक्रवार को पधारे कमल (शर्मा) जी फ़िल्में रही हरजाई, मेरे जीवन साथी, झुक गया आसमान, अभिलाषा, चोरी चोरी जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को बिग ब्रदर, रंग दे बसंती, आशिक बनाया आपने, रेस, जन्नत, ओम शान्ति ओम, जब वी मेट जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं सलमा जी। रविवार को बैजूबावरा, अनारकली, हलाकू, जहाँआरा, पाकीज़ा जैसी पचास साठ के दशक की क्लासिक फ़िल्में रही। सोमवार को यह कार्यक्रम अभिनेता धर्मेन्द्र के नाम रहा, उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने युनूस जी लाए साठ सत्तर के दशक की धर्मेन्द्र की बेहतरीन फ़िल्में जैसे आया सावन झूम के, आए दिन बहार के, धरम वीर, कर्तव्य पर यह कार्यक्रम हमने 12:30 बजे से सुना क्योंकि 12 बजे से क्षेत्रीय भाषा तेलुगु में प्रायोजित कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। मंगलवार को फ़िल्में रही कुर्बानी, धूम 2, इश्क विश्क, अनमोल। बुधवार को आईं सलमा (सय्यद) जी फ़िल्में रही शोला और शबनम, मोहरा, जुड़वां जैसी अस्सी नब्बे के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को फ़िल्में रही काली टोपी लाल रूमाल, मेरे हमदम मेरे दोस्त, आदमी, हम दोनों, सरस्वती चन्द्र, संघर्ष, गाइड, शोला और शबनम, झुक गया आसमान जैसी साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में।

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है और प्रस्तुति सहयोग रहा सुभाष भावसार, स्वाति भण्डारकर, निखिल धामापुरकर जी का।

इस कार्यक्रम में यह गीत बहुत दिनों बाद विविध भारती पर सुना -

लागी छूटे ना अब तो सनम (फ़िल्म काली टोपी लाल रूमाल)

पहले भूले बिसरे गीत कार्यक्रम में यह गीत बहुत सुना करते थे।

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में शुभा मुदगल का लिखा और गाया एलबम अली मेरे अँगना से यह भक्ति रस में डूबा गीत बहुत अच्छा रहा -

अली मेरे आँगना दरस दिखा
झुन झुन बोले पायलिया मोरी
इश्क मे तोरे जोगन बन गई
दिल मेरा डोले

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में मेरे हमसफ़र फ़िल्म का मोहम्मद रफ़ी और बलबीर का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

मौसम है बहारों का फूलों को खिलना है
वो जल्दी चल गडिये मैनू यार से मिलना है

साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में जैसे कश्मीर की कली, सीता और गीता के गीत भी शामिल रहे और नए गीत भी सुनवाए गए।

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। पहला फोन नागालैण्ड से आया और वहाँ की संस्कृति और जनजीवन के बारे जानकारी मिली। थोड़ी और गहराई से बात होती तो और अच्छी जानकारी मिल सकती थी। इसके अलावा कुछ गृहणियों और छात्राओं के फोन आए और उनके पसंदीदा नए पुराने गाने सुनवाए गए।

सोमवार को पौष्टिक खजूर की खीर और अचार बनाना बताया गया। खजूर का अचार मैंनें पहली बार सुना, कुछ अजीब सा लगा पर इसके बाद सुनवाया गया गीत खजूर की तरह मीठा और गीत संगीत के पौष्टिक गुणों से सराबोर रहा, नूरजहाँ और सुरेन्द्र का गाया अनमोल घड़ी का यह बेहतरीन सदाबहार गीत -
आवाज़ दे कहाँ है

बुधवार को सौन्दर्य में वही खीरे आटे से त्वचा की देखभाल की बातें की गई और स्वास्थ्य के लिए भी वही पुरानी बात बताई गई कि तनाव नहीं लेना और पूरी नींद लेना। गुरूवार को सफल महिलाओं की जानकारी देते हुए बताया गया कि पहली महिला पायलट सरला ठकुराल ने पति पायलट शर्मा के कहने पर प्रशिक्षण लिया और 1931 में पहली बार साड़ी पहन कर ज़हाज़ उड़ाया। सामान्य जानकारी में 10 दिसम्बर मानव अधिकार दिवस होने से, इस बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई।

शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की जिसका तेलुगु में शीर्षक है - पसीडी रेपटी प्रयत्नम जिसमें रेपटी शब्द का अर्थ है आने वाला कल। रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में हमेशा की तरह लोकप्रिय फ़िल्मों के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना नाटक चूम के बैल। इस मूल कन्नड़ नाटक के लेखक है नवरत्न राम जिसका हिन्दी अनुवाद किया है एच एस पार्वती ने जिसके निर्देशक है विजय नन्दन प्रसाद। यह दरभंगा केन्द्र की प्रस्तुति थी। बहुत संवेदनशील नाटक था। किसान को अपने बैलों के साथ मालिक की ज़मीन पर काम नहीं मिलता। इस तरह ग़रीबी और तनाव से वह नशा करने लगता है। कैसे एक निर्धन परिवार को सुखमय जीवन से वंचित किया जाता है, इसकी झलक मिली।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस की चाल इस बार भी धीमी रही। किताबों की दुनिया में ज्ञानपीठ पुरस्कार और हाल ही में घोषित इस पुरस्कार के लिए हिन्दी कवि कुँवर नारायण से संबंधित जानकारी दी गई। कंप्यूटर के माउस के अविष्कार के चालीस वर्ष पूरे होने पर इससे संबंधित जानकारी दी गई। युनूस जी और महेन्द्र मोदी जी से अनुरोध है कि कृपया इस कार्यक्रम को नया रूप रंग दीजिए, यह कुछ भा नहीं रहा है।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा चारूलता से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने नाड़ी संस्थान पर बातचीत की। तनाव आदि से मस्तिष्क से नियंत्रण बिगड़ने से होने वाले रोगों की विस्तार से जानकारी दी गई। बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में आयशा ज़ुल्का फ़िल्म अभिनेत्री से कमल (शर्मा) जी की बातचीत सुनवाई गई। अच्छी बातचीत रही। पता नहीं था कि यह अभिनेत्री बचपन से ही शास्त्रीय नृत्य में प्रशिक्षित है।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार को एक छोटी सी शायद 12-13 साल की लड़की प्रीति से अमरकान्त जी की बातचीत अच्छी लगी। वैसे उसने कोई ख़ास बात नहीं बताई, उसने अपने परिवार के सभी सदस्यों के नाम और कुछ उनके बारे में बताया पर उसका बात करने का अंदाज़ भा गया। गाना तो उसने पुराना उड़न खटोला फ़िल्म का पसन्द किया। मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए जिसमें कम शिक्षित कामकाजी श्रोता भी थे, सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सितमगर फ़िल्म के श्रेया घोषाल और सोनू निगम के गाए निखिल विनय के संगीतबद्ध किए कुछ इस तरह के बोलों का गीत सुना - प्यार तो हमने तुमसे ही किया दिल भी तुमको ही दिया, हालांकि बोलों और संगीत संयोजन में कोई नयापन नहीं था फिर भी अच्छा ही लगा। अन्य सभी गीत भी सामान्य ही रहे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। गुरूवार को बहुत दिन बाद सुना हमराही फ़िल्म का रफ़ी साहब और मुबारक बेगम का गाया यह गीत -

मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्रा ने। कुछ खुद के बारे में बताया और कुछ इधर उधर की बातें की। गाने नए पुराने दोनों सुनवाए। कुल मिलाकर प्रस्तुति अच्छी रही।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में ख़ासी और कश्मीरी लोक गीत सुनवाए गए। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी के साथ पधारे कमल (शर्मा) जी। जयमाला संदेश, मंथन जैसे कार्यक्रमों के बन्द किए जाने पर प्राप्त पत्रों के उत्तर में बताया कि संदेशों के पत्र कम प्राप्त हो रहे थे और कुछ श्रोता ही बार-बार अपने विचार बता रहे थे। गीतों के विवरण में कभी-कभार होने वाली ग़लतियों के विभिन्न कारण बताए जैसे टाइपिंग की ग़लती, सीडी में उपलब्ध ग़लत विवरण आदि यानि कुल मिला कर ग़लतियाँ स्वीकारी भी गई और कारण भी स्पष्ट हुए। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में बकरीद के अवसर पर ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ प्रस्तुत की गई। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान के परियोजना अधिकारी जगदीश जी से बातचीत सुनवाई गई। परिचय में कहा गया कि मुंबई में कहीं साँप निकलते है तो कभी कभार चीता भी नज़र आया। कुछ ही समय पहले शायद विविध भारती के कार्यालय में या पास में यानि बोरिवेली में साँप निकला और तुरन्त वहीं स्थित इस कार्यलय से जगदीश जी को बुलाया गया और वो अपने साथ एक बड़ी बड़नी लाए जिसके ढक्कन के छेद से उन्होनें इस बड़े से साँप को बड़नी में उतार लिया। यहाँ तक सुनते सुनते रोमाँच हो आया था पर जैसे ही उनसे बातचीत शुरू हुई पारम्परिक अंदाज़ में पहला प्रश्न किया गया कि आप इस क्षेत्र में कैसे आए तो सारा रोमाँच समाप्त हो गया और बातचीत का फ़्लो खत्म हो गया जबकि इसे बनाए रखते हुए पहला सवाल होना चाहिए था कि जिस अंदाज़ से उहोनें आसानी से बड़ा सा साँप पकड़ा उसका प्रशिक्षण कब और कैसे लिया और इसी के बाद चीते जैसे बड़े प्राणियों को पकड़ने की बात पूछी जाती तथा इसी क्रम में बातचीत आगे बढाते हुए अंत में आवश्यक होने पर उनके इस क्षेत्र में आने की व्यक्तिगत बात की जाती तो पूरा कार्यक्रम रोमाँचक हो जाता और बार-बार इस उपयोगी बातचीत को सुनने का मन भी करता। कार्यक्रम अधिकारी से अनुरोध है कि कभी-कभी परम्परा से हट कर कार्यक्रम को शेप देना ज्यादा अच्छा होता है। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग झिंझोटी पर आधारित फ़िल्म चौदहवीं का चाँद का आशा भोंसले का गाया गीत।

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकियाँ सुधार (रचना अजगर सिंह निर्देशक लोकेन्द्र शर्मा), मंगल में जंगल (रचना राजकुमार दाग़ निर्देशक दीनानाथ)

9 बजे गुलदस्ता में ग़ज़लें कुछ अधिक ही सुनवाई जाती है। एक गीत सुन कर अच्छा लगा, कुछ इस तरह के बोल है - मैं क्या से क्या हो गई।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में गीत गाता चल, मौसम, फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। सोमवार को अभिनेता धर्मेन्द्र के जन्मदिन के अवसर को ध्यान में रख कर समाधि फ़िल्म का चुनाव किया गया।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। इसमें गायकों पर बात हुई। किशोर कुमार जी के बारे में भी बताया गया पर ज्यादा बात की रफ़ी साहब के बारे जो उनके पड़ोसी थे। बहुत ही आत्मीयता से माला सिन्हा जी ने बातें की।

10 बजे छाया गीत में रात की बातें होती रही। अपनी आदत के अनुसार युनूस जी अनमोल गीत ले आए, फ़िल्म दो बूँद पानी का आशा भोंसले का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

जा री पवनिया पिया के देश जा

युनूस जी कहने लगे ऐसे कई अच्छे गीत है जो बहुत ही कम सुनने को मिलते है, तो मैं यहाँ कहना चाहूँगी कि इसके लिए युनूस जी आप भी तो कुछ हद तक ज़िम्मेदार है। यह मानी हुई बात है कि फ़िल्मी गानों की लोकप्रियता में विविध भारती की बहुत बड़ी भूमिका है। फ़रमाइशी गीत तो ख़ैर जो श्रोता फ़रमाइश करें वही सुनवाए जाते है पर ग़ैर फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में तो अच्छे गाने सुनवाए जा सकते है न ! आज भी फ़िल्मी गानों की ऐसी सूची मैं दे सकती हूँ जो बहुत दिन हुआ सुनने को नहीं मिले हालाँकि विविध भारती पर कभी भी सुनवाए जा सकते है।

3 comments:

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

आदरणिय श्री अन्नपूर्णाजी,
आपकी हर साप्ताहीकीको मैं पढता हूँ, पर जो मूझे इसकी तारीफ़ के रूपमें बहोत पहेले कहना चाहीए था, वह आज कहाँ रहा हूँ, कि इतने लम्बे लेख़में आप प्रकासन के पिछले दिन तक की सभी बातें ले आती है, तो मेरे मन में सवाल यह उठता है कि क्या आप पोईंंट्स नोट करके उसमें नये दिन के उसी कार्यक्रम के बारेमें भी समीक्षा ऎड करती जाती है या बृहस्पतिवार की रात्री को ही पूरा लेख़ लिख़ती है ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.

annapurna said...

पीयूष जी धन्यवाद कि आप हर साप्ताहिकी पढते है। मैं हर दिन लिखती हूँ। दोपहर के कार्यक्रम (सखि सहेली तक) मैं जैसे-जैसे सुनती हूँ साथ-साथ लिखती हूँ और इसी के साथ एक दिन पहले शाम, रात और उस दिन सुबह के कार्यक्रमों के बारे में लिखती हूँ इस तरह दोपहर के कार्यक्रमों को छोड़कर सभी कार्यक्रमों के बारे में दोपहर में लिखने तक मुझे याद रखना पड़ता है। गुरूवार को सप्ताह भर का पूरा लिखा हुआ एक बार पढकर उसे संपादित कर देती हूँ। शुक्रवार सुबह गुरूवार शाम रात के कार्यक्रमों के बारे में लिख कर प्रकाशित करती हूँ। यह ड्राफ़्ट मैं रेडियोनामा में नहीं रखती हूँ क्योंकि यहाँ से सदस्य इसे पढ सकते है। मैं अपने कंप्यूटर पर ही रखती हूँ और शुक्रवार को रेडियोनामा पर कापी कर प्रकाशित करती हूँ।

Anonymous said...

annapurna ji mein aapki har weekly post padti hoon. kabhi koi programme agar miss ho jata hai to apki post se pata chal jata hai us ke bare mein.aur aj yeh bhi pata chala ki aap apni post daily thodi thodi likhti hai varna saari baatein pure week yaad rakhna thoda mishkil hi hai. aapne likha ki kuchh gane vbs par kafi time se nahi baje.aap thode bahut gaano ke bol har post mein likha kijiye kuchh to sunne ko milenge shayad. mein ajkal prem pujari ka title song s.d burman ji ki aawaaj mein daily you tube pe sun rahi hoon (prem ke pujari hum hai.).yeh gaana bhi kafi samay se vividh bharati par nahi suna.

sakhi saheli mein mamta ji kafi din baad aayi bahot achha laga .jab bhi koi sakhi long leave par jaati hai to unki kami bahut mehsus hoti hai . par yeh bhi samajhte hai ki kabhi koi personal kam bhi hote hai.

aapki post ka hamesha intzaar rehta hai.hamesha ki tarah achhi post
manjot bhullar

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