सबसे नए तीन पन्ने :

Monday, December 29, 2008

भूले बिसरे गीत या जाने पहचाने गीत?

रेडियोनामा में कई महीनों बाद लिख रहा हूँ।
पिछले कई महीनों से देख (आइ मीन सुन रहा हूँ) रहा हूँ भूले बिसरे गीत कार्यक्रम में जो गाने सुनवाये जा रहे हैं, वे भूले बिसरे ना होकर जाने जाने पहचाने होते हैं। अभी परसों ही अनाउंसर महोदय ने चुन चुन जाने पहचाने गीत सुनाये, मसलन राजहठ फिल्म का आये बहार बन कर लुभा कर चले गये.... अब यह गीत किस संगीत प्रेमी के लिये अन्जाना होगा।
अनाउंसर महोदय ने साथ में बताया भी कि ये सारे गाने अत्यन्त लोकप्रिय हुए थे।
महोदय जो गाने अत्यन्त लोकप्रिय हुए थे वे तो हम कहीं भी सुन लेंगे/लेते हैं। कम से कम भूले बिसरे गीतों के कार्यक्रम में तो वास्तव में भूले बिसरे या वे गीत सुनायें जो मधुर तो थे परन्तु ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुए
एक और भी शिकायत है जो मैं रेडियोनामा के जन्म के समय से करना चाह रहा हूँ पर मैं आलस का मारा आज तक कर नहीं पाया, इस कार्यक्रम के अन्त में बरसों से स्व. के एल सहगल के गीत ही सुनाये जाते हैं। यहाँ तक कि किसी अन्य कलाकार के विशेष अंक में भी, जैसे सुरैया स्पेशल के दिन भी अन्तिम गाना तो सहगल साहब का ही रहा, सुरैया का नहीं।
भई क्या भूले बिसरे गीत सिर्फ सहगल साहब के होते हैं? कम से कम इस कार्यक्रम को नियमित सुनने वाले के लिये तो सहगल साहब के गीत दुर्लभ या अन्जाने हो ही नहीं सकते। फिर क्यों जबरन इस प्रणाली को चालू रखा हुआ है, अन्य गायकों के दुर्लभ गीत भी सुनवाये जा सकते हैं, जैसे सुप्रसिद्ध निर्देशक राज खोसला के गाये हुए गीत!!!! हां जी राज खोसला ने गीत भी गाये हैं; और तो और राजकपूर ने भी!
स्व. मदन मोहन का गाया हुआ गीत माई री मैं कासे कहूं, नूरजहां, मास्टर मदन के गीत... आदि जैसे गीत क्यों सुनवाये नहीं जाते। सहगल साहब के गीत को ही अन्तिम स्थान पर क्यों? उन्हें अगले क्रम में भी रखा जा सकता है, और निचले/अन्तिम क्रम में कोई और गीत भी सुनाये जा सकते हैं।
आप क्या कहते हैं रेडियोप्रेमी दोस्तों?

9 comments:

Alpana Verma said...

आप की बात से पूरी तरह सहमत हैं.शायद वे 'भूले बिसरे' का सही अर्थ भूल गए हैं..

annapurna said...

सागर जी, आपके इस चिट्ठे से मैं बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ। लगता है आप पूरा कार्यक्रम ध्यान से नहीं सुनते। ध्यान बटा कर काम करना शायद आपकी आदत है जिसका उदाहरण इसी चिट्ठे के आरंभ में है जहाँ आपने लिखा कि आप श्रोता बिरादरी में लिख रहे है जबकि आपने रेडियोनामा पर लिखा, ख़ैर…

पहली बात यह कि इस कार्यक्रम में लोकप्रिय और भूले बिसरे दोनों ही तरह के गीत बजते है जिनमें लोकप्रिय गीत कम ही होते है। आज ही मैनें सुना गायक मोती की आवाज़ में एक गीत। इस गायक का नाम मेरे लिए नया है, क्या आप पहले इस गायक के गीत सुन चुके ?

रतन फ़िल्म के भी लोकप्रिय गीत छोड़ कर भूले बिसरे गीत सुनवाए गए। पिछले लगभग दो-तीन महीने के दौरान गजरे फ़िल्म का गीत दो बार सुनवाय गया जबकि इस फ़िल्म का नाम मेरे लिए नया है। लगभग दो दिन पहले सुना चितलकर और आशा भोंसले की आवाज़ में ऐसा गीत जिसे पहले शायद ही सुना गया हो। ऐसा रोज़ एक न एक गीत और एक न एक नाम शामिल रहता ही है। गायक मोती के अलावा मंजू, रेखा, क्या आपके लिए इन गायकों के नाम और इनके गीत जाने पहचाने है ?

रही बात सहगल साहब की, गीतों के शुरूवाती दौर की बात करें तो सहगल साहब का ही नाम उभरता है जिनके गीतों से समापन कर विविध भारती जो सम्मान इस गायक को देती है उसकी जगह किसी और गायक को देना कठिन है क्योंकि इस तरह की तुलना बहुत ही कठिन है। गीत लोकप्रिय हो या न हो, बात इतनी ही है कि गीत सहगल साहब का है और यह पुराने गीतों का कार्यक्रम है।

सागर नाहर said...

अन्नपूर्णाजी
रेडियोनामा की जगह श्रोता बिरादरी लिख देने आपने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि मैं कार्यक्रम ध्यान से नहीं सुनता। टंकण दोष सबसे होना संभव है, और रेडियोनामा पर तो सबसे कई भूले हुई है।
मैं पिछले कई दिनों से यह कार्यक्रम सुन रहा हूँ (नियमित नहीं) पर मैने उसमें जितने भी गीत सुने, कम से कम मुझे भूले बिसरे कहीं से नहीं लगे। गजरे फिल्म के गीत मैं पचासों बार सुन चुका, और रेडियो/पुराने गीतों के प्रशंसक के लिये यह गीत नहीं सुने होना आश्चर्यजनक है।
आपने चितलकर-आशा भोंसले के गीत को पहली बार सुना, अगर आपने आपने अगर रहमत बानो के गीत नहीं सुने तो इसका अर्थ यह नहीं कि जो गीत आपने ना सुने हों वही भूले बिसरे की श्रेणी में आते हों।
सहगल साहब का मैं पक्का प्रशंसक हूं, पर इसका मतलब यह नहीं कि दूसरे कला... जाने दीजिये टिप्पणी करना व्यर्थ है। शायद मैं आपको अपनी बात सही समझा नहीं पाया और ना ही समझा पाऊंगा।
धन्यवाद

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री सागरभाई, एक लम्बे अरसे के बाद आपने पाठकों को याद दिलाया के आप भी इस ब्लोग के लेख़क सदस्य है, इस लिये बधाई । भूले बिसरे गीतका नाम पूरानी फिल्मोंसे या पूराने फिल्मी गीत या एक बार दो पहर के एक कार्यक्रम का नाम था गीत अतीत इस तरह का करके यह भूले बीसरे या सदा बहार का विवाद ही ख़तम कर देना काहिए ऐसा नहीं लगता ?

पियुष महेता ।
सुरत ।

adil farsi said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. अजीत कुमार said...

सागर जी,
टंकण दोष तो हो ही गया है, अब इसे मैं ही सुधार दूँ क्या... :)
आपने जिस तरफ़ का इशारा किया है वो मुझे लगता है कि वाजिब ही है. पर ना जाने क्यूँ हमारी एक साथी को इससे ऐतराज़ है, जबकि कभी वो भी इसी तरह की शिकायत कर चुकी हैं.

adil farsi said...

आये बहार बन के लुभा कर चले गये, राजहठ फिल्म का ये गीत मो0 रफी की आवाज में था ये गीत भले ही संगीतप्रेमियों के लिये भूला बिसरा ना हो लेकिन आज की युवा पीढी के लिये अवशय भूला बिसरा होगा

annapurna said...

सागर जी, बात हमारी या आपकी नहीं है, रेडियो के कार्यक्रम आम श्रोता के लिए प्रसारित होते है। वैसे गजरे फ़िल्म का गीत मैनें पहली ही बार सुना, अगर पहले सुना भी होगा तो याद नहीं आ रहा। अगर यह गीत आपने कई बार सुना है… तो रेडियो के किसी कार्यक्रम से ही सुना है या निजी संकलन से…

अगर बात पीयूष जी जैसे श्रोताओं की हो तो मुझे नहीं लगता कि उनके लिए कोई गीत भूला बिसरा है क्योंकि पीयूष जी आज भी रेडियो श्रीलंका भी सुनते है। सवाल यह है कि आप और पीयूष जी जैसे श्रोता है कितने ?

मैनें आपके चिट्ठे की नब्ज़ को अच्छी तरह से पकड़ा है, उदाहरण आज के ही कार्यक्रम का ले लीजिए। आज महेन्द्र कपूर की आवाज़ में फ़िल्म ग्यारह हज़ार लड़कियाँ का शीर्षक गीत सुनवाया गया। बचपन में यह गीत बहुत सुना था, पता नहीं कैसे ज़ेहन में रह गया था। इधर कई सालों के बाद इस गीत को सुनवाने का सिलसिला शुरू हुआ। आज भी सुना और लगभग 2-3 सप्ताह पहले भी सुना था, ऐसे ही गीत भूले बिसरे गीत माने जाते है। अगर यह गीत मेरे ज़ेहन से उतर चुका होता तो मैं आज यही कहती कि यह गीत मैनें पहली बार सुना।

अजीत जी, आपका इशारा मैं समझ नहीं पाई। वैसे कभी मैनें भी यह शिकायत की थी कि इस कार्यक्रम में जाने पहचाने गीत ही बजते है और किसी एक टिप्पणी में पीयूष जी ने भी यही कहा था, उस समय स्थिति वही थी पर आजकल इस कार्यक्रम में भूले बिसरे गीत बहुत सुनवाए जा रहे है।

वैसे चर्चा अच्छी चली और आगे भी और टिप्पणियों से जारी रहने की संभावना है। मुझे खेद है कि मेरे किसी चिट्ठे पर ऐसी चर्चा, चले इसका सौभाग्य मुझे नहीं मिला।

Unknown said...

bhule bisare ka mtlab nahi sune geet nahi hai,jo hum bhulna nahi chate aur sunte rahna chate hai.yehi bhule ko yaad karna hi bhule bisre geet,sunte rahne ko dil karta hai.

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें