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Friday, January 2, 2009

साप्ताहिकी 1-1-09

आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !

इस सप्ताह साल को अलविदा कहा गया और नए साल का स्वागत हुआ।

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद भगवान महावीर, विदेशी चिंतकों, साहित्यकारों जैसे वृन्दावनलाल वर्मा के विचार बताए गए। वन्दनवार में पुराने भजनों के साथ नए भजन भी सुनवाए गए जैसे -

गौरापति शंभु है कैलाश के वासी

बहुत दिन हुए हरिओम शरण जी के स्वर में हनुमान चालीसा नहीं सुनवाई गई।

हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा। यह देशगान बहुत सुनवाया जाता है फिर भी इसका विवरण नहीं बताया जाता, मुझे लगता है यह गीत राजेश रेड्डी जी का लिखा हुआ है -

ऐ वतन ऐ वतन ऐ वतन
जानेमन जानेमन जानेमन

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में संगीतकार एन दत्ता को उनकी पुण्य स्मृति पर याद किया गया और उन्हीं के संगीतबद्ध किए गीतों को सुनवाकर यह कार्यक्रम उन्हें समर्पित किया गया। कुछ भूले बिसरे नाम और आवाज़े गूँजी जैसे गायक कलाकार मंजू, मोती। साथ में लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए जैसे तलत महमूद का गाया सुजाता फ़िल्म का गीत - जलते है जिसके लिए

हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा। बहुत दिन हुए सहगल साहब का कपाल कुण्डला फ़िल्म का गीत नहीं सुनवाया गया।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन का दूसरा खंड समाप्त हुआ जिसे प्रस्तुत कर रहीं थीं ख्यात गायिका कुमुदिनी काटकरे जी। इसमें ऐसे रागों की जानकारी दी गई जिसमे अन्य स्वरों के साथ शुद्ध गंधार का प्रयोग होता है। राग छाया नट, विहाग, खमाज, बिलावल थाट के उतरांग प्रधान राग हमीर और शंकरा, शुद्ध कल्याण, कर्नाटक संगीत से हिन्दुस्तानी संगीत में आए राग कलावती पर चर्चा हुई। साथ ही हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई और फ़िल्मी गीत भी जैसे चोरी-चोरी फ़िल्म का गीत - रसिक बलमा

7:45 को त्रिवेणी में जीवन में धन की आवश्यकता, पल-पल भागते समय, जीवन के सुख दुःख की बातें हुई और मेल खाते नए पुराने गीत बजे। जाते साल और आते साल का असर भी दिखा जिसमें ईमेल और सेलफोन के आने से शुभकामना संदेश के कार्डों के कम होते चलन की चर्चा हुई। साल की अंतिम त्रिवेणी भी अच्छी रही जिसमें जीवन में समय को यूँ ही न बिताने की बात कही गई और नए साल के पहले दिन जीवन के रंग बताए गए, गीतों का चुनाव भी अच्छा रहा -

ये जीना है अंगूर का दाना
खट्टा मीठा खट्टा मीठा
खट्टा मीठा खट्टा मीठा

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, फ़िल्में रही परवरिश, नसीब, मि नटवरलाल, त्रिशूल, द ग्रेट गैम्बलर, अमर अकबर एंथोनी जैसी सत्तर अस्सी के दशक की अमिताभ बच्चन अभिनीत फ़िल्में। शनिवार को बीवी नं 1, आंटी नं 1, बेटी नं 1, कुली नं 1, अनाड़ी नं 1, हीरो नं 1, जोड़ी नं 1, सिर्फ़ तुम, गैंगस्टर, सोलजर जैसी लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। रविवार को फ़िल्में रही दिल से, परदेस, चक दे इंडिया, वन टू का फोर। सोमवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी लाईं राज़, प्रेम पुजारी, रज़िया सुल्तान, लैला मजनू, शोर, मुग़ले आज़म, जोधा अकबर जैसी नई पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। मंगलवार को आए कमल (शर्मा) जी फ़िल्में रही यह रात फिर न आएगी, आप आए बहार आई, कसमें वादे, प्यार का मौसम, ज्वैल थीफ़ जैसी साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। बुधवार को साल के आखिरी कार्यक्रम के ज़ोरदार नग़में लेकर आए अशोक (सोनावणे) जी फ़िल्में रही अवतार, जूली, कारवाँ, कन्हैय्या, धरती, अंदाज़, पराया धन, खट्टा मीठा, सच्चाई जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। इस अंतिम कार्यक्रम के लिए श्रोताओं ने बड़े ही अच्छे और उचित गानों के लिए संदेश भेजे जैसे -

ये राते नई पुरानी (फ़िल्म जूली जो बीतते साल और आने वाले साल के जश्न का गीत है)
ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना (अंदाज़)

और अवतार फ़िल्म का यह गीत तो बिल्कुल विविध भारती की तबियत से मेल खाता गीत था -

दिन महीने साल गुज़रते जाएगें
हम प्यार में जीते प्यार में मरते जाएगें
देखेंगें
देख लेना

वाकई दिन महीने साल गुज़रते जाते है पर विविध भारती पर वही प्यार मोहब्बत के गीत बजते जाते है। गुरूवार को पधारी सलमा जी, फ़िल्में रही बहार आने तक, सड़क, लाल दुपट्टा मलमल का, बाँबी, पत्थर के फूल, काला पत्थर जैसी लोकप्रिय फ़िल्में। यह साल का पहला दिन था पर ऐसा कुछ लगा नहीं। इस दिन भी कार्यक्रम सामान्य ही लगा।

1:00 बजे फाकिर मंत्र एलबम से फाकिर का गाया यह गीत सुन कर लगा वाकई म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम सुन रहे है वरना यहाँ भी अक्सर ग़ज़लनुमा गाने ही चलते है -

दिन में तेरी याद सतावे
रात को भी चैन न आवे
दूरी मुझको रास न आवे
सुनती जाणा
हीरिए सोणिए आ भी जा

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में सत्तर के दशक की फ़िल्मों से लेकर 5-7 साल पहले तक रिलीज़ हुई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। इनमें कुछ ऐसे गीत भी शामिल रहे जिन्हें बहुत दिन बाद सुनवाया गया -

राजेश खन्ना, हेमामालिनी अभिनीत फ़िल्म प्रेमनगर का किशोर कुमार और लता जी का गाया यह गीत -

ठंडी हवाओं ने गोरी का घूँघट उड़ा दिया
काली घटाओं ने साजन को नटखट बना दिया

देव आनन्द, ज़ीनत अमान अभिनीत फ़िल्म हरे रामा हरे कृष्णा का ऊषा अय्यर (ऊथूप) और आशा भोंसलें का गाया शीर्षक गीत (टाइटिल सांग)

छोटी सी मुलाक़ात फ़िल्म का शीर्षक गीत -

छोटी सी मुलाक़ात प्यार बन गई
प्यार बनके गले का हार बन गयी

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। पूना, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे विभिन्न स्थानों से फोन आए। घरेलु महिलाओं के साथ कुछ छात्राओं और काम जैसे सिलाई करने वाली, साड़ियों पर मोतियों, धागों की कढाई करने वाली महिलाओं ने भी फोन किए। बातचीत से हिमाचल प्रदेश के मौसम का भी पता चला। उनकी पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए जिनमें से फ़िल्म एक बार मुस्कुरा दो का किशोर कुमार और आशा भोंसले का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -

तू औरों की क्यों हो गई

सोमवार को गोवा का व्यंजन बाँलनट ब्राउनीज़, आड़ू का व्यंजन जिसमें केक और कस्टर्ड बना कर उसमें आड़ू डालकर बनाया बताया गया जो क्रिसमस के ढलते और नए साल के स्वागत करते माहौल के लिए उचित चुनाव है। वैसे हम भारतीय ऐसे व्यंजन अपनी रसोई में कम ही बनाते है, इसीलिए सुनना अच्छा लगा, बनाने में रूचि ली जा सकती है। मंगलवार को सखि सहेली कार्यक्रम में करिअर बनाने के लिए दी जाने वाली जानकारी में बताया गया कि इंटरव्यू कैसे दे। लगता है यह पहले भी बताया गया। बुधवार को स्वास्थ्य सौन्दर्य में पौष्टिक गाजर खाने की सलाह दी गई और इनके पौष्टिक तत्वों के बारे में भी बताया गया।


कमलेश (पाठक) जी एंड कंपनी दोनों दिन गुमसुम ही बनी रही। अच्छा होता अगर 31 को साल भर के चुनिंदा कार्यक्रमों के अंश सुनवाते। हालांकि लोक गीतों के, व्यंजनों के और महिलाओं से बातचीत के कुछ कार्यक्रम ख़ास रहे थे। नए साल के पहले दिन सभी सखियाँ आ कर हल्ला-गुल्ला करती तो मज़ा आता पर इस दिन भी उपदेश ही देते रहे…

रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में मुमताज़ शकील द्वारा रचित नाटक सिसकते पाषाण सुनवाया गया जिसके निर्देशक है सरताज नारायण माथुर। कलाकारों के दम्भ को दर्शाते इस नाटक में चोटी के शिल्पकारों द्वारा लगन से तैयार मूर्ति स्थापित नहीं हो पाती है जिसे एक ऐसा शिल्पकार धर्मा स्थापित करता है जिसका किताबी ज्ञान कम है। यह आकाशवाणी के जयपुर केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है। मुझे लगता है पहले भी यह नाटक प्रसारित किया गया है।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में साल भर के ऐसे गीत चुन कर सुनवाए गए जिनमें से कुछ अधिक चर्चित रहे तो कुछ अनमोल रहे जैसे पंडित जसराज द्वारा गाया यह गीत - वादा … से वादा। इसके साथ खेल जगत की उपलब्धियाँ भी बताई गई जिसमें सबसे अच्छा लगा यह जानकर कि मणिपुर की महिला ने विश्व स्तर पर कुश्ती में उच्च स्थान प्राप्त किया पर जिन्हें कम लोग जानते है। यह साल भर की यूथ एक्सप्रेस की अच्छी उप्लब्धि रही।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में कानून विशेषज्ञ वसुन्धरा देशपाण्डे से कांचन (प्रकाश संगीत) जी की बातचीत सुनवाई गई। यह सखि सहेली में प्रसारित कार्यक्रम का पुनःप्रसारण था। बातचीत वसीयतनामा विषय पर की गई। बहुत उपयोगी जानकारी मिली जैसे वसीयत पर जिन दो गवाहों के हस्ताक्षर होते है यदि ये दो डाक्टर और वकील हो तो ज्यादा ठीक रहेगा यानि यह प्रमाणित हो जाएगा कि वसीयतनामा पूरे होशोहवास में लिखा गया। यह भ्रान्ति भी दूर हुई कि वसीयत स्टाम्प पेपर पर ही नहीं, सादे काग़ज़ पर लिखी जाती है, महत्वपूर्ण होते है हस्ताक्षर।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में आँख कान गला (ईएनटी) रोग विशेषज्ञ डा दिनेश वाडरे से रेणु (बंसल) जी की बातचीत प्रसारित हुई। हमेशा की तरह इस बार भी विस्तृत और अच्छी जानकारी मिली। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में इस सप्ताह भी ऐसी फ़िल्मों के गीत शामिल रहे जिन्हें हम फ़रमाइशी कार्यक्रमों में भी सुनते है जैसे जब वी मेट

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। फ़ौजी भाइयो की पसन्द के इस गीत में मेरी पसन्द भी शामिल है -

फ्रीडम तर तर तर तर तर
दुनिया में लोगों को धोखा कभी हो जाता है
बातों ही बातों में यारों का दिल खो जाता है

आर डी बर्मन और आशा भोंसले के गाए आर डी के विशेष अंदाज़ के अपना देश फ़िल्म के इस गीत को बहुत दिन बाद याद किया गया। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध पार्श्व गायिका सुमन कल्याण्पुर ने। बहुत अच्छा लगा। शुक्रिया शकुन्तला (पंडित) जी, अब क्यों न कमल बारोट की प्रस्तुति हो जाए ?

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में कच्छी गीत सुनवाए गए। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में इस बार भी श्रोताओं ने कुछ सुझाव दिए जिनमें से एक सुझाव था कि 1947 से 66 तक की फ़िल्मों के गीतों का कार्यक्रम भूले बिसरे गीत रात 9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम के स्थान पर प्रसारित किया जाए क्योंकि यह कार्यक्रम दिन में 9:30 बजे भी प्रसारित होता है। यहाँ मेरा कहना है कि हैदराबाद में विविध भारती से क्षेत्रीय भाषा के कार्यक्रम भी होते है जिससे सवेरे आठ बजे के बाद हम दोपहर 12 बजे से केन्द्रीय सेवा के कार्यक्रम सुनते है। यही स्थिति और भी स्थानों की होगी। इस तरह यह श्रोता एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम सिर्फ़ रात मे 9:30 बजे ही सुनते है। इसीलिए इस कार्यक्रम को पूरी तरह से हटाने के बजाए सप्ताह में 2-3 दिन पुराने गीत सुनवाए जा सकते है। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में निकाह फिल्म की क़व्वाली भी शामिल-ए-बज्म रही। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में मुंबई में प्राध्यापक, पक्षी निरीक्षक परवेश पांड्या जी से बातचीत की अगली कड़ी सुनवाई गई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग खमाज पर आधारित मीरा फ़िल्म का वाणी जयराम का गाया गीत -

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकियाँ स्वर्ग का पासपोर्ट (रचना आर के शर्मा निर्देशक वी पी दीक्षित), अब ताली नही बजेगी (रचना पुष्पा दीक्षित निर्देशक विजय दीपक छिब्बर), बस स्टाप (निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर) कैलेण्डर का चक्कर (रचना रामेश्वर सिंह निर्देशक सत्येन्द्र देव)

9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें इस बार भी अच्छी सुनवाई गई पर नए-पुराने साल का खास माहौल नहीं मिला।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में अदालत, आबरू, धर्मपुत्र, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगें फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अंतिम कड़ी सुनी जिसमें माला सिन्हा ने राजकपूर और मनोज कुमार के साथ यादें ताज़ा की।

10 बजे छाया गीत में रेणु (बंसल) जी की नए साल की पहली प्रस्तुति अच्छी लगी।

31 दिसम्बर को रात 11 बजे के बाद किसी विशेष कार्यक्रम की आशा थी जो पूरी नहीं हुई। लगता है विविध भारती के वो दिन लद गए जब विशेष अवसरों पर कवि सम्मेलन, संगीतमय और हास्य कार्यक्रम प्रसारित हुआ करते थे।

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