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Tuesday, July 28, 2009

यादें: हल्लो आपके अनुरोध पर

विविध भारती के नियमीत श्रोताओं को हल्लो फरमाईश के अलावा इस नाम के एक और फरमाईशी कार्यक्रमकी याद जरूर होगी । इस कर्यक्रम शुरू करने का विविध भारती सेवा का उदेश्य कुछ: इस प्रकारका था कि पूर्व प्रसारित कार्यक्रम, जैसे नाटक, गज़ल, शास्त्रीय संगीत, अलग अलग शिर्षक वाले मुलाकाती कार्यक्रम से मुलाकात के अंश वगैरह: के अनुरोध करके उसको हल्लो फरमाईश से कुछ: अलग रख़ना और इस लिये उद्दघोषकोने पूरी कोशिश की थी । शुरूआती दिनोंमें इस कार्यक्रमको नियमीत रूपसे युनूसजी और ममताजी एक साथ श्रोताओं से बात करके प्रस्तूत करते थे पर इस कार्यक्रम के लिये जिन श्रोता लोगो के फोन लग पाये उनमें से ज़्यादातर श्रोता लोगोनें उन अंश के रूपमें भी गानों को ही पसंद किया और इस कार्यक्रम को भी हल्लो फरमाईश का ही स्वरूप दे दिया । पर जिन श्रोताओंने गानो को छोड अन्य प्रकार के अनुरोध किये उसमें एक मैं भी था और मैंनें और सिर्फ़ मैंनें ही, इस कार्यक्रममें एक लम्बे सम्य पूर्व प्रसारित फिल्मी धूनों के अनुरोध किये, उनके वादक कलाकारॉ और उनके द्वारा बजाये गये साझों का जिक्र करते हुए, जिसमें यह वात हो सकती थी, कि इन गानों की अन्य साझ पर और/या अन्य कलाकारों द्वारा बजायी गयी धूनें उन दिनोंमें प्रसारित हो रही हो । इसके पहेले मैं सिर्फ़ हल्लो फरमाईशमें ही फोन करता था जो उन दिनों कमल शर्माजी ही नियमीत रूपसे प्रस्तूत करते थे और सिर्फ़ एक बार ही हल्लो आप के अनुरोध पर कार्रक्रममें फोन किया था जिसमें सेल्यूलोईड के सितारें कार्यक्रममें श्री अहमद वसी द्वारा ली गयी पार्श्वगायिका सुधा मल्होतराजी से स्व. किशोर कुमार के लिये की गयी बातचीत को और साथमें प्रस्तूत किये गये फिल्म गर्ल फ्रेन्ड के उन दोनों के गाये युगलगीत की फरमाईश की थी, जो ममताजी के साथ युनूसजी के स्थान पर उस दिन के लिये आये श्री कमल किशोरजी के साथ हुई थी पर मेरे अनुरोध के स्थान पर सिर्फ कार्यक्रमके अंतमें नहीं शामिल किये गये फोनकोल्स की सूची में मेरा नाम शालिल हुआ था । और इस असफल कोशिश के बाद मेरा विविध भारती सेवा कार्यालय-मुम्बई जाना हुआ था जो उन दिनों मरीन लाईंस पर था । तब युनूसजी, क्मल किशोरजी और ममताजी तीनों से प्रथम रूबरू परिचय हुआ था, जिसमें ममताजी के साथ उस दिन का उस वक्त की उनकी परिचय सिर्फ़ औपचारीक ही था, जो उस वक्त उनको याद नहीं रह पाना स्वाभावीक था । उस के बाद सुरत आ कर मैंनें इस कार्यक्रमके लिये जो पहला सफ़ल फोन किया जो युनूसजी के साथ सबसे पहला फोन था, उसमें उपर बताने के मूताबीक धून सुनने का इरादा बताया तो ममताजीने सवाल पूछा जो मेरी कल्पना से बाहर था कि क्या में भी कुछ बज पाता हूँ या नहीं तो मैनें सच ही बताया कि कुछ थोड़ा सा माऊथ ओरगन ही बजा पाता हूँ । तो उन्होंनें बजाने के लिये कहा तो मूझे थोड़ा समय तो माऊथ ओरगन निकालने में ही लग गया था । और फ़िर तो युनूसजीने और ममताजीनें अन्य किस्तोंमें एक दूसरे से अलग अलग मेरे धून अनुरोध पर मूझसे माऊथ ओरगन बजवाने का एक अघोषित नियम बना लिया था । यह पहला फोन श्री एनोक डेनियेल्स साहब के प्रत्यक्ष निजी परिचय के पहेले था और दूसरे फोन के पहेले उनसे निजी परिचय हो सका था । यहाँ एक बात जरूर बताऊँगा कि धून का अनुरोध मेरा धूनका संग्रह करने का पहले था और इसमें भी प्रथम ईरादा श्री एनोक डेनियेल्स साहब की पियानो एकोर्डियन पर बजाई अलभ्य धूनों के लिये था । तो नीचे सुनिये उस अंश को । यह पोस्ट एक ल्म्बे अरसे के बाद मेरे द्वारा आयी है । अन्नपूर्णाजी को रामूदादा के गीत को याद करने के लिये और पाबलाजी को हेम रेडितो के दूसरे अंक के लिये बधाई ।

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इस पोस्ट को रेडियोनामा पर चढ़ाने पहेले आज की स्व. महमद रफ़ी साहबको श्रद्धांजली के रूपमें अन्नपूर्णाजी की नियमीत पोस्ट पर फिल्म दुनिया के गाने की याद को पढ़ा । इस लिये बधाई । और गंगुबाई हंगल की पोस्ट भी पढ़ी और इस पर सुरत निवासी कवी हास्य कलाकार श्री अलबेलाखत्री की टिपणी भी पढ़ी जिनको सुरत के दो छोटे कार्यक्रममें सुननेका सुनहरी मौका मिला है, हालाकि वे बड़े बड़े मंचों के व्यस्त कलाकार है । उनसे आशा है कि रेडियोनामा की टिपणीमें पोस्ट के बारेमें भी अपनी राय देते रहेंगे और उसके साथ कुछ कुछ अपनी बात लिखेंगे ।

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत-395001.

1 comment:

annapurna said...

ये कार्यक्रम मुझे भी याद है। इसी कार्यक्रम में मैनें एक बार हवामहल में पहले प्रसारित उदयपुर की ट्रेन झलकी भी सुनी थी।

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