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Thursday, December 23, 2010

विविध भारती के मेहमान - साप्ताहिकी 23-12-10

विविध भारती में लगभग हर दिन पधारे मेहमानों से उनके अनुभव और संघर्ष यात्रा को जानने का मौक़ा मिला, साथ ही मिली महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी और साथ-साथ सुनने को मिले उनके पसंदीदा गीत भी। यह कार्यक्रम हैं -

शुक्रवार - सरगम के सितारे
शनिवार - विशेष जयमाला
रविवार - उजाले उनकी यादो के
सोमवार - सेहतनामा
बुधवार - आज के मेहमान और इनसे मिलिए

इनमे से विशेष जयमाला को छोड़ कर सभी भेंटवार्ताएं हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

शाम बाद के प्रसारण में 7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद फ़ौजी भाईयों के जाने-पहचाने सबसे पुराने कार्यक्रम जयमाला में शनिवार को विशेष जयमाला में मेहमान रहे गायक जोडी भूपेन्द्र और मिताली सिंह। कुछ नई जानकारी मिली कि भूपेन्द्र जी की पहली फिल्म हैं - हकीक़त जिसमे उन्होंने एक फ़ौजी की भूमिका की और रफी साहब के साथ गाया यह गीत - होके मजबूर मुझे

और मिताली सिंह की पहली हिन्दी फिल्म हैं सत्यमेव जयते वैसे अन्य भाषाओं की फिल्मो के लिए भी उन्होंने काम किया हैं।

अपने गाए फिल्मी गीत सुनवाए भूपेन्द्र जी ने और गैर फिल्मी गीत सुनवाए मिताली जी ने अपने एलबम - अर्ज किया हैं से - दरवाजा खुला रखना और एक रिकार्ड से गजल सुनवाई। अंत में दोनों ने साथ-साथ बातचीत की और उसी एलबम से एक रचना सुनवाई और साथ-साथ ही समापन किया। एक बात अखर गई दोनों मिल कर बातचीत करते हुए, अपनी संगीत यात्रा की कुछ बाते बताते हुए प्रस्तुति देते तो अच्छा लगता। वैसे अच्छी संगीतमय प्रस्तुति रही, खासकर गजलो से अच्छा समां बंधा।

शरू और अंत में जयमाला की संकेत धुन सुनवाई गई लेकिन कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता का नाम नही बताया गया। यह कार्यक्रम प्रायोजित था। प्रायोजक के विज्ञापन, क्षेत्रीय केंद्र से सन्देश भी प्रसारित हुए।

इसी समय के प्रसारण में बुधवार को जयमाला के बाद 7:45 पर 15 मिनट के इनसे मिलिए कार्यक्रम में बहुत ही दिलचस्प मेहमान तशरीफ लाए - डबिंग कलाकार विनय नाटकर्नी जिन्हें डोनाल डग की आवाज से पहचाना जाता हैं। बातचीत की कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने। बताया कि पहले मिमिक्री किया करते थे और अपनी आवाज को तोते की आवाज मानते थे। दर्शक भी यही मानते थे। कुछ कार्यक्रम किए जिसमे संगीतकार कल्याण जी आनंद जी का भी कार्यक्रम था। बाद में डिजनी वाले मुम्बई आए और एक ऎसी आवाज ढूंढ रहे थे डबिंग के लिए तब डोनाल डग के बारे में पता चला। अपनी इस डबिंग के बारे में भी बताया कि लगातार ऎसी आवाज निकालने में ऊर्जा बहुत लगती हैं। अपनी इस मिमिक्री में शोले फिल्म से गब्बर सिंह का लोकप्रिय सीन सुनाया। माई नेम इज एंथोनी गोंजाल्विज गीत अपनी मूल आवाज और इस आवाज में सुनाया। अच्छा रही बातचीत, अगर एक-दो बाते डोनाल डग पर भी बता देते तो उचित रहता क्योंकि विविध भारती के कार्यक्रम दूरदराज के इलाको में भी सुने जाते हैं। इस कार्यक्रम को तेजेश्री (शेट्टे) जी के तकनीकी सहयोग से वीणा (राय सिंघानी) जी ने प्रस्तुत किया।

शेष कार्यक्रम शाम 4 से 5 बजे तक पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित किए जाते हैं। पिटारा कार्यक्रम की अपनी परिचय धुन है जो शुरू और अंत में सुनवाई जाती हैं और सेहतनामा को छोड़कर अन्य दोनों कार्यक्रमों की अलग परिचय धुन है जिसमे आज के मेहमान कार्यक्रम में संकेत धुन के स्थान पर श्लोक का गायन हैं।

शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सरगम के सितारे। जैसा कि शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं इस कार्यक्रम के मेहमान संगीत के क्षेत्र से होते हैं। इस सप्ताह पार्श्व गायिका और अभिनेत्री विजेता पंडित से कमल (शर्मा) जी की बातचीत सुनवाई गई। शुरूवाती बातचीत से एक ख़ास बात सामने आई कि मंगेशकर परिवार के बाद इन्ही के परिवार के अधिकाँश सदस्य फिल्मी संगीत से जुड़े हैं। अपने बार में विजेता ने बताया कि संगीत उन्हें विरासत में मिला हैं। पिता पंडित रामनारायण से बचपन से ही संगीत सीखा। माँ द्वारा गाए जाने वाले भक्ति गीत को गुनगुनाया - हे गोविन्द मुरारी
अपने पहले गीत के बारे में बताया कि एस डी बर्मन के निर्देशन में गाया, गीत सुनवाया गया जिसे मैंने पहली ही बार सुना और फिल्म का नाम भी जाना-पहचाना नही लगा - एक राजा था एक बेटा था

इसके बाद जिनी और जानी फिल्म के लिए किशोर कुमार के साथ गाए गीतों के अनुभव बताए। उन्ही के साथ गाए वफ़ा फिल्म के लिए होली गीत की रिकार्डिंग से सम्बंधित चर्चा की। अपने भाइयो जतिन-ललित के निर्देशन में रफी साहब के साथ पहली बार गाए रोमांटिक गीत के अनुभव बताए। रफी साहब से इस दौरान गाने संबंधी मिले निर्देशों की भी चर्चा की। अपनी बहन सुलक्षणा पंडित पर फिल्माए गए फिल्म दिल ही दिल में के इस गीत के बनने के भी अनुभव बताए और इसे गुनगुनाया -

गीत वफ़ा के दिल से जुबां पे आने लगे हैं

यह जानकारी भी दी जो शायद बहुत कम श्रोता जानते हैं कि बच्चो के सभी लोकप्रिय गीतों में अपनी आवाज दी जैसे मिली का गीत मैंने कहा फूलो से, परिचय का सारे के सारे। अपने उस एलबम की भी चर्चा की जिसे खुद ही संवारा हैं जिसमे हरिहरन और कुमार सानू के साथ गाया। अन्य भाषाओं में गाए अपने लोकप्रिय गीतों की भी जानकारी दी। अंत में यह दर्द छलक ही आया कि मौक़ा नही मिला पर अब भी कोशिश कर रही हैं स्थापित गायिका बनने के लिए।

विविध भारती को देश की शान बताया और जयमाला, छायागीत कार्यक्रम सुनने और पुराने गीत पसंद करने की बात बताई। अच्छी रही बातचीत, कई नई जानकारियाँ सामने आई। बातचीत अगले सप्ताह भी जारी रहेगी। इस कार्यक्रम को गणेश (शिन्दे) जी के तकनीकी सहयोग से कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया। सम्पादन खुद कमल जी ने किया। शुरू और अंत में इस कार्यक्रम की संकेत धुन सुनवाई गई जो लोकप्रिय गीतों के संगीत के अंशो से तैयार की गई हैं।

रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के। मेहमान रहे लोकप्रिय गीतकार गुलशन बावरा जिनसे बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। बातचीत की शुरूवात बहुत बढ़िया रही। जब वरिष्ठ गीतकार के रूप में परिचय दिया गया तब ही मेहमान गीतकार ने कह दिया कि मन से वो युवा ही हैं। फिर बातचीत शुरू हुई उनके बचपन से जो पाकिस्तान में बीता। आरंभिक शिक्षा भी वहीं उर्दू में हुई। तब रेडियो नही था, ग्रामोफोन सुना करते थे। रतन फिल्म का गीत - सावन के बादलो जैसे गीत, यही गीत सुनवाया भी गया। माँ के साथ भजन मंडली में जाया करते थे और वही एकाध पंक्ति लिखने भी लगे थे। बाद में नए रिकार्ड भी सुने जैसे - आ जा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे

यह गीत सुनवाया गया। लाहौर में ही पहली फिल्म देखी - मीरा। बंटवारे में परिवार बिखर गया और बहन के पास जयपुर चले आए। अंदाज फिल्म का गीत सुना करते थे - झूम झूम के नाचो आज जिससे गानों को समझने लगे थे। 11 साल की उम्र में पड़ोसन से एकतरफा प्यार रहा, उसकी शादी से कुछ-कुछ लिखने लगे। यहाँ एक बात अच्छी बताई कि लिखने में गंभीरता थी आजकल के गानों की तरह नही कि प्यार, जुल्फे जैसे शब्द डाल देने से ही समझते हैं कि गीत अच्छा बन गया। फिर दिल्ली में शिक्षा ली, हिन्दी सीखी। फिर बंबई आए और रेलवे में बतौर क्लर्क नौकरी की। इतनी बातचीत से समय समाप्त होने लगा। यहाँ बताया कि जंजीर फिल्म का गीत उन्होंने ही लिखा और उन्ही पर फिल्माया गया -

दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए, मोहब्बत भरी एक नजर चाहिए

अगर यह लम्बी बातचीत का पहला भाग होता जैसा कि आमतौर पर इस कार्यक्रम में होता हैं, तो बहुत बढ़िया कड़ी रही क्योंकि इस पहली कड़ी में ही उनके गीतकार बनने की शुरूवात बचपन से ही नजर आई। लेकिन समापन पर कमल जी ने धन्यवाद दिया और बातचीत समाप्त की। उद्घोषणा से भी लगा यह पूरी बातचीत थी, ऐसे में यह कार्यक्रम बिलकुल भी ठीक नही रहा। उनकी फिल्मी यात्रा पर बात ही नही हुई। केवल इतना पता चला कि जंजीर फिल्म का गीत लिखा, पर कुल कितने गीत लिखे, किस-किस के साथ, किस तरह से काम किया। पहला गीत, बढ़िया गीत, कोई पुरस्कार आदि किसी भी बात की चर्चा नही। इस कार्यक्रम को कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया।

सोमवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सेहतनामा। इसमे रेटीना से जुड़ी बीमारियों पर बातचीत की गई। मेहमान रहे रेटीना विशेषज्ञ डाक्टर विक्रम मेहता जिनसे रेणु (बंसल) जी की बातचीत सुनवाई गई। बहुत विस्तार से जानकारी दी। आधुनिक शोध तकनीक पर आधारित रेटीना सम्बंधित जानकारी भी दी, इससे सम्बंधित रोग और उनके इलाज पर चर्चा की और सावधानी बरतने के लिए सलाह भी दी। रेटीना की विशेषताएं और कार्य बताते हुए यह बताया कि आजकल मधुमेह (डायबिटीज), रक्त चाप, किडनी के रोग से भी इसके अधिक रोगी देखे जा रहे हैं। उम्र के साथ भी आँखों के परदे पर धब्बे दिखाई देते हैं। रेटीना पर प्रतिबिम्ब गिरता हैं, यह परदा हिलने से नजर में फर्क आता हैं। कम दिखने के लिए विस्तार से बताया कि वेस्ट प्रोडक्ट यानि बेकार की चीजे शरीर में रह जाने से फोटो रिसेप्टर मृत हो जाते हैं। चश्मा किसी भी उम्र में आ सकता हैं। इलाज में कार्निया के टिशू को ठीक किया जाता हैं जिससे नंबर कम हो सकता हैं। इलाज के लिए खर्च की भी जानकारी दी कि मशीनों के महंगे होने से खर्च बढ़ा हैं, दोनों आँखों के ऑपरेशन में 25-30 हजार तक खर्च होगा। सलाह दी कि यह जांच करवाते रहे कि कही परदा सरक तो नही रहा हैं। बार-बार आँख में उंगली न डाले, कंप्यूटर पर काम करते हुए बीच-बीच में इधर-उधर देखते रहे।

बातचीत के साथ डाक्टर साहब की पसंद के गीत सुनवाए गए। आधुनिक डाक्टर साहब की पसंद के गीत भी आधुनिक हैं। नए फिल्मी गीत सुनवाए गए - माई नेम इज खान फिल्म से तेरे नैना तेरे नैना, ओंकारा फिल्म से नैना ठग लेंगे। इस कार्यक्रम को विनायक (तलवलकर) जी के तकनीकी सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने प्रस्तुत किया।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम मे मेहमान रहे जाने-माने चरित्र अभिनेता, लेखक और निर्देशक सौरभ शुक्ला जिनसे बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। बताया कि बचपन से ही फिल्मे देखने का शौक रहा और फिल्म बनाना चाहते थे। कॉलेज में आने पर दोस्तों की सलाह से फिल्म न बना कर नाटको में काम करना शुरू किया। अपने नाटको के अनुभव भी बताए। टेलीविजन धारावाहिक भी किए। इसी दौरान शेखर कपूर ने उन्हें फिल्म बैंडिट क्वीन के लिए एक भूमिका का सृजन कर काम दिया। मुझे लगा यह बड़ी बात हैं पर इस फिल्म पर अधिक चर्चा नही की गई। अधिक चर्चा हुई सत्या फिल्म पर जो बतौर लेखक पहली फिल्म हैं जिसमे अनुराग कश्यप के साथ सहलेखन किया। लेखन कार्य के अनुभव बताए और इस काम को कठिन बताया। एक चरित्र अभिनेता, लेखक और निर्देशक से बहुत ही उचित प्रश्न था कमल जी का कि क्या फिल्मो में विषय के मामले में अकाल हैं... इस प्रश्न में नक़ल की बात पर भी चर्चा हो सकती थी कि कई फिल्मे विदेशी और देसी फिल्मो की नक़ल होती हैं। लेकिन जवाब स्पष्ट नही दिया। फिल्मो में ठहराव की बात की और अनावश्यक रूप से टेलीविजन धारावाहिकों से तुलना कर दी। सत्या फिल्म के साथ उनकी पसंद के पुराने गीत भी सुनवाए। बातचीत अगले सप्ताह जारी रहेगी। इस कार्यक्रम को कमलेश (पाठक) जी ने प्रस्तुत किया।

शुरू में इस कार्यक्रम की संकेत धुन के स्थान पर इस श्लोक का गायन सुना -

अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
आनंद मंगल मंगलम
इत प्रियम भारत भारतम

इस सप्ताह विविध क्षेत्रो के मेहमान आने से माहौल अच्छा रहा। डाक्टर साहब से उपयोगी जानकारी मिली। फिल्मी क्षेत्र से अलग-अलग समय की बातो को जाना।

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