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Sunday, December 12, 2010

विविध भारती के नाटक - साप्ताहिकी 9-12-10

रेडियो नाटको के विभिन्न रूपों को सुनने के लिए एक मात्र चैनल हैं - विविध भारती। नाटकों के दो कार्यक्रम हैं हवामहल और नाट्य तरंग हवामहल रात के प्रसारण का दैनिक कार्यक्रम हैं और नाट्य तरंग सप्ताहांत यानि शनिवार और रविवार को दोपहर बाद प्रसारित होता हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

हवामहल में रात 8 बजे शुक्रवार को हास्य व्यंग्य झलकी सुनवाई गई - काश ऐसा होता जिसमे उन पर व्यंग्य हैं जो समाज में अपना स्तर बनाए रखने के लिए उस भाषा को अधिकार से बोलते हैं जिसकी ठीक से जानकारी नही हैं। चाचा को उर्दू सीखने का शौक हुआ। कुछ उर्दू के शब्द बता दिए जैसे स्थानान्तरण को तबादला और इंतकाल भी कहते हैं। चाचा ने पत्नी को उसके भाई के तबादले की खबर देते हुए कहा इंतकाल हो गया। जाहिर हैं नाराजगी झेली फिर अंग्रेजी सीखने का शौक हुआ। यस नो सीख कर गाँव में ब्याह में झगड़ा मोल लिया। भाषा सिखाने वाले भतीजे ने प्रयोग कर बताया भाषा के प्रयोग कॉमन सेन्स होनी चाहिए। उन्होंने घर में पत्नी को प्रयोग कर बताया, पत्नी प्रयोग तो नही समझ पाई पर कह दिया, ये क्या किया, कॉमन सेन्स होनी चाहिए। अच्छी रही झलकी जिसके लेखक हैं कमर इरशाद राही और लखनउ केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं जयदेव शर्मा कमल।

शनिवार को नाटिका सुनी - अलाउद्दीन का चिराग। कबाड़ की दुकान से एक पुराना चिराग खरीद लाता हैं, यह सोच कर कि सफाई के बाद शायद सोने का निकल आए। चिराग को साफ़ करते समय उसमे से जिन निकल आता हैं। इस बार जिन गुलाम न होकर मालिक बन कर उससे काम करवाता हैं। कहता हैं कि अब तक उसे बहुत बेवकूफ़ बनाया गया, अब उसने दुनिया की सभी भाषाए भी सीख ली हैं और अब वह मालिक बन दूसरो से काम कराएगा। गुलामी की बात सुन वह घबरा जाता हैं, यह उसका सपना होता हैं। इस तरह हवामहल की पारंपरिक शैली की यह हास्य प्रस्तुति रही। दिल्ली केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं दीनानाथ और लेखक हैं अमृत कश्यप।

रविवार को इतिहास से विषय लिया गया। राममूर्ति चतुर्वेदी की लिखी नाटिका सुनी - आम्र मंजरी। वैशाली के लिच्छवी समाज और वहां के शासन और सामजिक प्रथा का पता चला। इतिहास का जाना-पहचाना चरित्र हैं नर्तकी आम्रपाली। जब वह देश में आए संकट में सहायता करना चाहती हैं तो शासन की ओर से इन्कार कर दिया जाता हैं क्योंकि उसे केवल भोग-विलास की वस्तु माना जाता हैं। एक भेंट में सेनापति पद्मनाभन के कहने पर वह अपने बालो से आम्र मंजरी निकाल कर देती हैं जिसकी कीमत वह समय आने पर लेना चाहती हैं। इसी संकट में वह सेनापति को कीमत के रूप में रोक लेना चाहती हैं और वचन के अनुसार सेनापति बिना उसकी अनुमति कहीं जा नही सकता। नगर सेठ और आम्रपाली के संवाद अच्छे हैं जिसमे नारी को केवल ऐश्वर्य के लिए अपनाने और उसके गुणों पर ध्यान नही दे कर उसे अपमानित करते समाज की झलक हैं। अच्छी प्रस्तुति, निर्देशिका हैं रमा बावा।

सोमवार की प्रस्तुति में नारी का दूसरा पहलू देखने को मिला। हरी आत्मा की लिखी नाटिका काली चादर की नारी महत्वाकांक्षी हैं। वह रंगमंच की उम्दा अभिनेत्री हैं और आगे बढ़ कर यश कमाना चाहती हैं। इसके लिए वह माँ भी नही बनना चाहती। बहुत प्यार करने वाले पति को छोड़ कर सहकलाकार से विवाह कर लेती हैं। दो वर्ष तक उसका शोषण करने के बाद वह उसे छोड़ देता हैं। तब वह पहले पति के पास लौटती हैं पर वह अपनाने से इन्कार कर देता हैं। दोनों में हुई बहस से वह आत्महत्या को प्रेरित होती हैं। इसे निर्देशित किया गंगा प्रसाद माथुर ने। बढ़िया प्रस्तुति रही विविध भारती की।

मंगलवार को बहुत दिन बाद नए विषय पर झलकी सुनना अच्छा लगा - तू तू मैं मैं वाली एकता। क्रिकेट जगत पर रही झलकी। सभी जानते हैं आजकल खेल के अलावा उस दुनिया में क्या-क्या हो रहा हैं। खिलाड़ी खेल से ज्यादा मॉडलिंग पर ध्यान दे रहे हैं, मैच फिक्स हो रहे हैं। खिलाड़ियों में एकता नही हैं। कोच से बनती नही हैं। मैच हारने पर खुश होते हैं कि सिरदर्दी ख़त्म हुई। इन्ही सब बातो की प्रस्तुति थी। मूल लेखक हैं डा ज्ञानचन्द्र द्विवेदी जिसका रेडियो नाट्य रूपांतर किया गया। कलाकरों के नाम भी इस बार बताए गए। प्रस्तुति भोपाल केंद्र की रही।

बुधवार को विदेशी साहित्य से हास्य नाटिका सुनवाई गई - सफ़ेद हाथी की चोरी जिसका हिन्दी नाट्य रूपांतर सुरेन्द्र गुलाटी ने किया। महाराजा के सफ़ेद हाथी को कुछ समय के लिए बाहर लाया जाता हैं और वह गुम हो जाता हैं। जासूस से संपर्क किया जाता हैं। बड़े पैमाने पर ढूंढा जा रहा हैं। शहर भर में खोज हो रही हैं जिसमे हजारो का खर्च हो गया। इनाम की रकम बढ़ा कर एक लाख हो गई। चार दिन की खोज के बाद हाथी मिलता हैं पटाखों की दुकान पर जहां उसके टुकडे हो गए। जासूस सभी टुकड़ो को सुरक्षित भेजने का वादा करता हैं और दावत के आयोजन की भी बात करता हैं, क्योंकि टुकड़ो में ही सही हाथी को ढूंढा तो हैं। इनाम की रकम और ढूँढने का खर्च भी देने को कहता हैं। कुछ संवाद ऐसे भी रहे जिनमे बताया कि बड़ो से किस तरह धन उगाही की जाती हैं जैसे चोरो से सांठ-गाँठ कर इनाम की रकम बाँट लेना। समुद्र के किनारे से जासूस का तार भेजना जहां तार घर ही नही हैं। विविध भारती की इस प्रस्तुति के निर्देशक सत्येन्द्र शरद हैं।

गुरूवार को झलकी सुनी - बुरे फंसे बदली करवा कर। अपने कुछ कारणों से नौकरी का शिमला में तबादला करवा लेते हैं, यह सोच कर कि अब शान्ति से रह सकेगे। पर शिमला घूमने के लिए रिश्तेदार एक के बाद एक आने शुरू हो जाते हैं, घर भी छोटा पड़ जाता हैं और खर्च भी बढ़ जाते हैं। अच्छी यथार्थवादी रचना रही जिसे लिखा आरती शर्मा ने। गुरमीत रमण के निर्देशन में यह शिमला केंद्र की प्रस्तुति रही।

इस तरह इस सप्ताह हवामहल में विषयो को लेकर अच्छी विविधता रही। हास्य के साथ व्यंग्य भी रहा जिससे मनोरंजन भी हुआ। नारी के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूप गंभीरता से प्रस्तुत किए गए। इतिहास से विषय भी लिया और सामायिक विषय भी जैसे आज के दौर का क्रिकेट और विदेशी साहित्य की भी झलक मिली। सामाजिक समस्या भी बताई और दुनियादारी निभाने में आने वाली उलझनों का भी चित्रण हुआ। प्रस्तुति में भी विविधता नजर आई जैसे मूल रचनाओं का रेडियो नाट्य रूपांतर हुआ, झलकी, नाटिका सुनवाई गई।

3:30 बजे नाट्य तरंग कार्यक्रम में शनिवार को असद जैदी का लिखा नाटक सुना - वायलन वादक। अकेलेपन के द्वन्द पर आधारित इस नाटक में युवा वायलन वादक के पिता नही हैं। माँ ने उसका पालन किया, वह अध्यापिका हैं। अपने अकेलेपन की चर्चा वह बेटे से नही कर सकती। अपने सहयोगी बत्रा के साथ विवाह करना चाहती हैं जो खुद भी बरसों से अकेला हैं। वह अपने बेटे को बत्रा के नाटको में काम करने के लिए कहती हैं। रिहर्सल पर माँ का आना युवक को पसंद नही। माँ अपने विवाह की बात कहती हैं पर युवक को बत्रा के साथ उसका सम्बन्ध पसंद नही। माँ विवाह कर लेती हैं। बेटा नए घर में सहज नही हो पाता और पुराने घर में जाकर रहने लगता हैं। उदास और अकेलेपन में दो साल गुजार देता हैं। वायलन बजाता हैं और उसकी पड़ोसन लड़की हमेशा की तरह सुनती हैं। एक बार तनाव में दूर निकल जाता हैं और लगातार वायलन बजाता रहता हैं, लड़की भी वहां आकर सुनती हैं। समाचार बन जाता हैं कि वह विश्व रिकार्ड बनाने के लिए लगातार बजा रहा हैं। बारह- चौदह घंटे तक बजाता जाता हैं। समाचार सुन कर पुलिस की सहायता से उसको ढूंढ रही माँ वहा आती हैं। पता चलता हैं युवक ने आत्म हत्या कर ली। इस नाटक पर ख्यात हिन्दी लेखिका मन्नू भंडारी के चर्चित उपन्यास आपका बंटी की छाप नजर आई। नाटक का निर्देशन अच्छा लगा, खासकर युवक के मन में चल रही बातो की प्रस्तुति अच्छी की। जयपुर केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं मदन शर्मा।

रविवार को सिद्धनाथ कुमार का लिखा नाटक प्रसारित किया गया - यात्रा का अंत। इसमे कुछ वर्ष पहले के मध्यमवर्गीय परिवार का यथार्थवादी चित्रण हैं, जब लड़कियां खुद अपने आप को समाज में बोझ समझने लगती थी। बेटी का विवाह न कर पाने से निराश पिता घर छोड़ देते हैं और रेल में उद्देश्यहीन यात्रा कर रहे। पति के कही चले जाने से दुखी माँ अपने बेटे से कहती हैं कि बच्चो को अच्छी शिक्षा दी, अच्छा पालन किया फिर भी पिता इतने हताश हैं। बेटा कहता हैं उसने कोई दुःख नही दिया, फिर भी ऐसा हुआ। बेटी को लगता हैं उसका विवाह न कर पाने से पिता ने घर छोड़ा हैं। माँ कहती हैं अगर वो वापस नही आए तो वह भी घर छोड़ देगी, बेटी कहती हैं माँ-पिता के जाने के बाद वह भी घर में नही रहेगी। बेटा अलग घर में रहने वाले अपने भाई से बात करता हैं। चर्चा होती हैं कि पिता को अपनी बेटी के ब्याह के लिए चालीस हजार रूपए चाहिए। दोनों बेटो में से कोई भी पूरे पैसे नही दे सकते। एक बेटा आधे दे सकता हैं पर दूसरा कुछ भी नही क्योंकि दोनों को अपने घर बनवाने हैं। स्थिति देख कर दोनों शादी की व्यवस्था के लिए तैयार हो जाते हैं पर तभी पता चलता हैं कि बहन ने आत्महत्या कर ली हैं और चिट्ठी में लिखा हैं कि वह एक बोझ हैं और भाइयो का उसके लिए त्याग करना उसे पसंद नही। रेल में पिता को अखबार में बेटे द्वारा छपवाए गए पत्र से यह समाचार मिलता हैं जिसमे घर आने का अनुरोध होता हैं। आज के दौर में यह सब ठीक नही लगता पर उस समय के अनुसार बहुत मार्मिक रहा यह नाटक। निर्देशक हैं एम एस बेग। रांची केंद्र की अच्छी प्रस्तुति रही। इस केंद्र की कम ही रचनाए सुनने को मिलती हैं।

इस तरह इस सप्ताह नाट्य तरंग के दोनों नाटको में नारी के दोनों रूप प्रस्तुत हुए - आधुनिक और पारंपरिक, और दोनों ही रूपों में नारी संघर्ष करती नजर आई।

सप्ताह के सभी नाटको से विविध भारती के साथ विभिन्न केन्द्रों की प्रतिभाओं का परिचय मिला। लेकिन खेद हैं कि एक दिन को छोड़ कर किसी भी दिन कलाकारों के नाम नही बताए गए। प्रतिभाओं को नाम से पहचानना अच्छा रहेगा।

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