मन महक रहा है विविध भारती को नित नये सोपान रचते...देखते,सुनते.बस इसी आलम में लिख गया विविध भारती के नाम यह कविता.सच कहूँ कविता मुझे कभी आई नहीं लेकिन विविध भारती को एक बड़ी क़ामयाब पारी पूरी करते भावनाओं ने लिया विस्तार और काग़ज़ पर उतर आये ये शब्द.कविता का व्याकरण समझने वाले मेरी इस रचना से निराश ही होंगे लेकिन हम विविध भारती मुरीदों की भावनाओं का यह गुलदस्ता यानी मेरी यह कविता विविध भारती और अपने करोंड़ों श्रोताओं के लिये अपने आप को झोंक देने वाले प्यारे प्यारे प्रसारणकर्ताओं को हमारा आत्मीय सलाम है.
मेरे यह शब्द काव्य मनीषी और विविध भारती के प्रथम प्रोड्यूसर पं.नरेन्द्र शर्मा
की दूरगामी कल्पनाशीलता रचनात्मकता को भी विनम्र वंदन है.
रेडियोनामा की बधाई और शुभकामना....
विचार,सुर,शब्द,ज्ञान और मनोरंजन का यह पंचरंगी सिलसिला बना रहे बरसों बरस
हम रहें न रहें ..सिवैया और रसगुल्ले सी मीठी विविध भारती बनी रहे सरस.
भोर बेला में बाँध देती भावाभीने भजनों के वंदनवार
भूले-बिसरे गीतों से सुरभित होता है मन-संसार
दुनिया भर के समाचार
और बाद में एक ही फ़नकार
शास्त्रीय संगीत,लोक गीत और चित्रपट के
मनचाहे गीत सजाती जयमाला
हवा महल और चित्रशाला
बरसों बरस से है प्रीत पुरानी
ज़िन्दगी की नेमत रही है गीतों भरी कहानी
छायागीत से महकती है रात
मिलन यामिनी की क्या बात
हैलो फ़रमाइश बेमिसाल
हैलो सखी जैसे बिन्दी लगी हो भाल
बीते कल की और आज की आवाज़
हमेशा देती रही सुरीली परवाज़
गीत बजे,धुनें बजी और बजते रहे
अनगिनत और बेजोड़ साज़
लोक समवेदनाओं का चौबारा
जिससे आगे भागता समय हारा
रंग-तरंग में बहते रहे शेरोसुख़न
पत्रावली का अंदाज़ बड़ा प्यारा
मोगरे सी महकती अनुरंजनी
स्वर सुधा की बात निराली
इन सब में महकते रहे सुर-ताल
संगीत सरिता सरगम की प्याली
बीती आधी सदी और बीतेंगे साल
श्रोताओं के कान रहेंगे मालामाल
संस्कार और संस्कृति को देती विस्तार
मात्र मनोरंजन नहीं;है सार्थक विचार
पवित्रता और तहज़ीब की उतारती आरती
तुमसे ज़िन्दगी की सारी तल्ख़ियाँ हारती
सम्मानित होती भाषा और माँ भारती
जय जय विविध भारती,जय विविध भारती.
निवेदन :इन पंक्तियों को लिखते लिखते मेरी स्मृतियों में दर्ज़ वर्तमान और विगत के कार्यक्रमों के शीर्षक ताज़ा हो गए हैं . इनमें किसी तरह का कोई समयक्रम या छूट गये कार्यक्रमों के नामों की कोई कमीं न तलाशें ..यह एक सांकेतिक अभिव्यक्ति है.
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Thursday, October 2, 2008
तुमसे ज़िन्दगी की सारी तल्ख़ियाँ हारती....विविध भारती
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5 comments:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।
आप सभी को गाँधी जी, शास्त्री जी की जयंति व ईद की बहुत बहुत बधाई।
achchi terah sare karyakramon ki khoobiyon ko piroya hai aapne is kavita mein.
संजयजी,
कविता के लिये बधाई । एक लम्बे समय के बाद रेडियोनामा पर आने पर आप का स्वागत है ।
पियुष महेता ।
सँजय भाई
आपका श्रम और स्नेह सदा ऐसा ही बना रहे और "विविध भारती " स्वर्ण जयँती से
"हीरक महोत्सव "
की ओर अग्रसर हो कर
सफलता हासिल करे
यही शुभकामना है -
स स्नेह,
- लावण्या
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