आज याद आ रहा है साठ के दशक की फ़िल्म इंतेक़ाम का एक गीत। इस गीत को संजय और साधना पर फ़िल्माया गया है। रफ़ी साहब का गाया यह बहुत ही शान्त धीमा गीत है और सुनने में बहुत अच्छा लगता है।
पहले यह गीत रेडियो से बहुत बजता था। आजकल भी इस फ़िल्म के दूसरे गीत सुनवाए जाते है पर इस गीत को सुने लम्बा समय हो गया -
जो उनकी तमन्ना है बर्बाद हो जा
तो ए दिल मोहब्बत की किस्मत बना दे
तड़प ओ तड़प कर अभी जान दे दे
यूँ मरते है मर जाने वाले दिखा दे
जो उनकी तमन्ना है बर्बाद हो जा
न उनका तबस्सुम तेरे वास्ते है
न तेरे लिए उनकी ज़ुल्फ़ों के साए
तू बेआस फिर क्यों जिए जा रहा है
जवानी में यूँ ज़िन्दगानी लुटा के
जो उनकी तमन्ना है बर्बाद हो जा
सितम या करम हुस्न वालों की मर्जी
कभी कोई उनसे शिकवा न करना
सितमगर सलामत रहे हुस्न तेरा
यही उसको मिटने से पहले दुआ दे
जो उनकी तमन्ना है बर्बाद हो जा
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
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Tuesday, October 20, 2009
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