साठ के दशक के अंतिम वर्षों में एक फ़िल्म आई थी आदमी और इंसान जिसे अपार सफलता मिली थी। तब से लेकर आज तक इसके कुछ गीत रेडियो से गूँज रहे है पर एक गीत है जिसे लम्बे समय से नहीं सुना।
यह गीत सायरा बानो पर फ़िल्माया गया है पर इस बात की मुझे ठीक से जानकारी नहीं कि इसे लताजी ने गाया है या आशाजी ने। इस गीत के बोल बहुत अच्छे है। ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है। लगता है ज़रूर किसी शायर ने ही लिखे है। नाम मुझे याद नहीं आ रहा। एक बात कह सकती हूँ, यह फ़िल्म बी आर चोपड़ा की है तो शायर शायद साहिर लुधियानवी होंगें। बोल है -
ज़िन्दगी के रंग कई रे साथी रे
ज़िन्दगी के रंग कई रे
ज़िन्दगी दिलों को कभी जोड़ती भी है
ज़िन्दगी दिलों को कभी तोड़ती भी है
ज़िन्दगी दिलों को कभी तोड़ती भी है
ज़िन्दगी के रंग कई रे साथी रे
ज़िन्दगी के रंग कई रे
ज़िन्दगी की राह में ख़ुशी के फूल भी
ज़िन्दगी की राह में ग़मों के शूल भी
ज़िन्दगी की राह में ग़मों के शूल भी
ज़िन्दगी के रंग कई रे साथी रे
ज़िन्दगी के रंग कई रे
ज़िन्दगी कभी यकीं कभी गुमान है
हर क़दम पे तेरा मेरा इम्तिहान है
हर क़दम पे तेरा मेरा इम्तिहान है
ज़िन्दगी के रंग कई रे साथी रे
ज़िन्दगी के रंग कई रे
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
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Tuesday, October 27, 2009
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