आज याद आ रहा हैं 1979 के आसपास रिलीज फिल्म जुर्माना का गीत।
इस फिल्म में शायद दो ही गीत हैं और दोनों ही लता जी के गाए हुए हैं। यह गीत बहुत ख़ास हैं, इसमे संगीत कम हैं और लता जी की आवाज बहुत उभर कर आई हैं।
फिल्म में राखी यह गीत रेडियो स्टेशन में लाइव गाती हैं और उसी को ढूंढ रहे अमिताभ कार में गाना सुनकर सीधे रेडियो स्टेशन पहुँचते हैं। इसमे विनोद मेहरा की भी महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
पहले रेडियो से इस फिल्म के गीत बहुत सुनवाए जाते थे खासकर यह गीत, पर बहुत लम्बे समय से सुना नही। गीत के कुछ बोल याद आ रहे हैं -
सावन के झूले पड़े तुम चले आओ
आँचल न छोड़े मेरा पागल हुई हैं पवन
अब क्या करूँ मैं जतन
धड़के जिया जैसे पंछी उड़े
सावन के झूले पड़े तुम चले आओ
जब हम मिले थे पिया
तुम कितने अनजान थे
तुम कितने नादाँ थे
बाली उमरिया में नैना लड़े
सावन के झूले पड़े तुम चले आओ
पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…
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Tuesday, July 20, 2010
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2 comments:
इस फिल्म के दूसरे गीत जिसमें कुछ 'कली जब खिली ' जैसे शब्दों आते है, उस धून को फिल्म में शायद शिर्षक संगीत या पार्श्व संगीतके रूपमें प्रस्तूत किया गया है, उसमें शुरू का हिस्सा उत्तम सिंह के वायोलिन पर है और बाद का हिस्सा स्व. मनोहरि सिंह के सेक्षोफोन पर है । आप की पिछली पोस्ट जो मेरे और युनूसजी के जिक्र के साथ थी, उस पर मैनें एल लम्बी हो गई हुई टिपणी डालने की कोशिश की थी, पर एक बार अपलोड नहीं हो पाई और दूसरी बार तो पूरी निकल गई और मेरी मेहनत बेकार गई, तो समय पा कर एक पोस्ट ही इस बारेमें लिख़ूँगा ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
सावन बस आने ही वाला है अन्नपूर्णा जी, जल्द ही ये गाना भी विविध भारती के खजाने से निकल कर फिजाओं में गूंजने लगेगा.
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।