सप्ताह के हर दिन परम्परा के अनुसार शुरूवात संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि सुनवाई गई। यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुआ। इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ जिसकी शुरूवात में कभी-कभार कार्यक्रमों के प्रायोजकों के विज्ञापन प्रसारित हुए जिसके बाद पहले कार्यक्रम वन्दनवार की शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, फिर सुनाया गया चिंतन।
चिंतन में इस बार शामिल रहे कथन - आचार्य चाणक्य के दो कथन बताए गए - विद्वानों के समूह में अनपढ़ तिरस्कृत होते हैं जैसे हंसों के झुण्ड में बगुला। दूसरा कथन - वही सुभार्या हैं जो पवित्र, चतुर और सत्य बोलने वाली हैं और जिस पर पति की प्रीति हैं। गांधी जी के दो कथन बताए गए - वास्तविक सौन्दर्य हृदय की पवित्रता में हैं। दूसरा कथन - जो अपना कर्तव्य पूरा नहीं करते उन्हें अधिकारों का उपयोग करते समय सोचना चाहिए कि क्या वे उचित कर रहे हैं। संत तुकाराम का कथन - आवश्यकता से अधिक बोलना व्यर्थ हैं। स्वामी विवेकानंद का कथन - झूठ और पाखण्ड कितना ही ठोस क्यों न हो यथार्थ के धरातल से टकराकर चूर-चूर हो ही जाता हैं। कबीर का दोहा अर्थ सहित बताया गया - तिनके को छोटा समझने की भूल न करे क्योंकि जब वह आँखों में जाता हैं तो बहुत कष्ट होता हैं।
वन्दनवार कार्यक्रम में इस बार भी फिल्मी घुसपैठ जारी रही। विनम्र अनुरोध है कृपया फिल्मी भक्ति गीतों और फिल्मी देश भक्ति गीतों का अलग कार्यक्रम रखिए, ऐसे समय जहां क्षेत्रीय कार्यक्रमों का समय न हो ताकि हम इन फिल्मी भक्ति गीतों और फिल्मी देश भक्ति गीतों का आनंद ले सके। वन्दनवार में इन गीतों से कार्यक्रम की गरिमा को धक्का लगता हैं।
सप्ताह भर विविध भक्ति गीत सुने -
साकार रूप के भक्ति गीतों में यह नया गीत -
एकदन्तया वक्रतुंडया श्री गणेशाय धीमहि
निराकार रूप के भक्ति गीत शामिल रहे - मैं एक दिया हूँ तू रोशनी हैं
पुराने लोकप्रिय भजन सुनवाए गए -
राम रमैय्या जपा करो कृष्ण कन्हैया जपा करो
भक्ति से मिल जाए दोनों नाम उन्ही का लिया करो
यह बहुत पुराना भजन सुन कर अच्छा लगा - भजमन रामचरण सुखदायी
एक नया भक्ति गीत सुना हालांकि रचना पुरानी हैं - श्री रामचंद्र कृपालु भजमन
शास्त्रीय पद्धति में ढला भक्ति गीत - आनंदमयी, चैतन्यमयी, सस्यमयी परमे
भक्तों के भक्ति गीत - मीरा का भजन - माने चाकर राखो जी गिरिधारी
कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, लोकप्रिय देशभक्ति गीत सुनवाए गए -
हम अपने सतकर्मो से मिले जुले सब धर्मो से
तेरी उतारे आरती जय जननि जय भारती
मिल के चलो, चलो भाई मिल के चलो
हमको इस माटी से बेहद प्यार हैं
यह देशगान शायद मैंने पहली बार सुना, अच्छा लगा - वन्देमातरम का नारा हम लगाएगे
शनिवार को क्षेत्रीय केंद्र में शायद कोई तकनीकी समस्या थी। प्रसारण थोड़ी देर से शुरू हुआ, मंगल ध्वनि के बाद केन्द्रीय प्रसारण से जुड़ने पर समाचार शुरू हो चुके थे। इसीसे लगातार 8 बजे तक केन्द्रीय प्रसारण चला जिससे हमें युगल गीतों का कार्यक्रम तेरे सुर और मेरे गीत सुनने का अवसर मिला। शुरूवात हुई इस गीत से - संभल ऐ दिल
फिर रात और दिन, दिल देके देखो, वक़्त फिल्मो के गीत सुनवाए गए, यह गीत भी सुना -
कभी तेरा दामन न छोड़ेगे हम
अच्छे गीत सुनवाए गए।
शेष हर दिन 6:30 बजे से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।
7 बजे का समय रहा भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम का जो प्रायोजित रहा। अच्छा संतुलन रहा। लोकप्रिय गीत और कम सुने जाने वाले गीत सुनवाए गए। साथ ही हर दिन भूली-बिसरी आवाजे भी गूंजी।
शुक्रवार को हम पंछी एक डाल के और हम हिन्दुस्तानी फिल्मो के शीर्षक गीत सुनवाए गए। लोकप्रिय गीत सुनवाए गए हातिमताई फिल्म से और सहगल साहब का गाया करोड़पति फिल्म से। कम सुने जाने वाले गीत भी शामिल रहे जैसे फिल्म माँ-बाप से -
लागे उनकी सूरतिया कुछ ऎसी भली
जैसे कौवे के चोंच में अनार की कलि
और सहारा फिल्म से सुधा मल्होत्रा का गाया गीत।
शनिवार को यह कार्यक्रम अच्छा लगा। अभिनेत्री गायिका कानन देवी की पुण्य स्मृति में समर्पित किया गया। कम चर्चित गीत भी सुनवाए जैसे विद्यापति फिल्म से - आन बसों बनवारी
जवाब फिल्म का यह लोकप्रिय गीत - ऐ चाँद छुप न जाना
और इसी फिल्म का बहुत लोकप्रिय गीत भी सुनवाया - तूफ़ान मेल दुनिया
शायद गीत कम हैं इसीलिए हॉस्पिटल फिल्म से भी दो गीत सुनवाए गए। वैसे कार्यक्रम का समापन रफी साहब के गाए गीत से हुआ।
रविवार को लोकप्रिय गीत सुनवाए गए देवदास, मैं नशे में हूँ फिल्म से और यह गीत -
कह दो कोई न करे यहाँ प्यार
एक गाँव की कहानी फिल्म से कम सुना मजेदार गीत सुनवाया -
काना, लंगडा, लूला, बुड्ढा डाक्टर आएगा
दवा देगा वो जालिम रोग लगाकर जाएगा
ललिता देवलकर की आवाज में भी गीत सुना नदिया के पार फिल्म से।
सोमवार को सारंगा, घूंघट, हम हिन्दुस्तानी फिल्मो के लोकप्रिय गीतों के साथ यह गीत भी शामिल था -
रूक जा ओ जाने वाली रूक जा
कम सुने जाने वाले गीतों में घर की लाज फिल्म का गीत और गीता दत्त का गाया कल हमारा हैं फिल्म से यह गीत भी सुनवाया -
आ आ मेरी ताल पे नाच ले बाबू
मंगलवार को गीता रॉय को समर्पित रहा यह कार्यक्रम उनकी पुण्य स्मृति में। उनके गाए लोकप्रिय गीत सुनवाए गए पंचायत, फैशन, डिटेक्टिव फिल्मो से और यह गीत -
तोरा मनवा क्यों घबराए रे
लाख दीन दुखियारे प्राणी जग में रोटी खाए
ऐ राम जी के द्वार पे
कम सुना जाने वाला गीत सुनना अच्छा लगा -
हौले हौले डोले धीरे धीरे बोले
दिल ये खाए हिचकोले
सहगल साहब का गीत भी सुनवाया गया।
बुधवार को संगीतकार सज्जाद हुसैन की पुण्य तिथि पर शुरूवात उन्ही की क़व्वाली से हुई -
हम न भूलेगे तुम्हे अल्ला क़सम
रूस्तम सोहराब फिल्म की यह एक ही क़व्वाली सुनवाई और बताया कि उनकी फिल्मे बहुत कम 7-8 ही हैं। इस दिन मुकेश की भी पुण्य तिथि थी, कार्यक्रम का समापन मुकेश के गाए चालीस दिन फिल्म के गीत से किया। साथ ही मुकेश को समर्पित अन्य प्रसारण की जानकारी दी। इस दिन गर्ल फ्रेंड, कल्पना, हम सब चोर हैं फिल्मो के गीत सुनवाए गए। इस तरह सभी लोकप्रिय गीत सुनने को मिले।
आज अक्सर सुने जाने वाले गीत सुनवाए गए - मैं नशे में हूँ, घर की लाज फिल्मो से और यह गीत -
सांवले सलोने आए दिन बहार के
कोई पुकारे नदी किनारे
कम सुनवाए जाने वाले गीत भी बजे, माँ-बाप फिल्म से और संतान फिल्म का यह शादी-ब्याह का गीत -
छोटी सी दुल्हनिया की शादी
प्यारी सी दुल्हनिया की शादी
इस कार्यक्रम में फिल्मो और फिल्मी गीतों के बारे में सामान्य जानकारी भी कभी-कभार दी गई जैसे रिलीज होने का वर्ष, बैनर आदि।
7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला आरम्भ हुई - विविध भारती के खजाने से। इसके अंतर्गत अस्सी के दशक में हर रविवार को प्रसारित होने वाले विशेष कार्यक्रम को उसी रूप में यानि पुरानी संकेत धुन के साथ प्रसारित किया जा रहा हैं।
शुक्रवार को गायक बंधु पंडित राजन मिश्रा और साजन मिश्रा से कुसुमलता सिंह की बातचीत सुनवाई गई। जानकारी मिली कि दोनों का सम्बन्ध बनारस घराने से हैं। हालांकि इस घराने में विभिन्न शैलियाँ हैं पर दोनों ख्याल ही गाते हैं। दोनों ने स्वाभाविक रूप से साथ ही गाना शुरू किया। उनकी गाई रचनाएं भी सुनवाई गई।
शनिवार को सेसवान घराने के गायक हाफीज अहमद खाँ से राम सिंह पवार की बातचीत सुनवाई गई। जानकारी मिली कि इस घराने में पहले धुपद धमाल गाया जाता था बाद में ख्याल भी गाया जाने लगा। इस घराने के गायकों की चर्चा चली जिनके बुजुर्गो का सम्बन्ध वाजिद अली शाह के दरबार से रहा। सितार के अलावा बीन के ख़ूबसूरत अंग हैं जो ख्याल गायकी में झलकते हैं। आजकल तैयार किये जा रहे नए रागों की चर्चा करते हुए बताया कि अगर सिद्धांतो का ध्यान रखते हुए नए राग बनाए जाए तो ठीक रहेगा। खाँ साहब से राग बिहाग में तराना भी सुनवाया गया।
दोनों कार्यक्रमों को विजय शंकर चटर्जी जी ने प्रस्तुत किया।
रविवार को गायक पंडित के जी गिन्ड़े से दिनकर कैकरी जी की बातचीत प्रसारित हुई। पता चला कि गिन्ड़े जी को संगीत का वातावरण बचपन से मिला। 5 साल की उम्र में कार्यक्रम दिया फिर 11 साल की उम्र से लम्बे अरसे तक शिक्षा ली। संगीत सरिता कार्यक्रम की भी प्रशंसा की कि इस कार्यक्रम से सामान्य श्रोता संगीत में रुचि ले रहे हैं। संगीत के व्यावसायीकरण पर कहा कि बेहतर होगा संगीत शिक्षक बने। राग चारुकेशी में उनका गायन भी सुनवाया गया।
सोमवार को युगल गायक सिंध बन्धु से राम सिंह पवार की बातचीत प्रसारित हुई। बताया कि दोनों ने आरंभिक शिक्षा अपने बड़े भाई से ली जिन्होंने पटियाला और किराणा घराने के उस्तादों से सीखा था। बाद में उस्ताद अमीर खाँ से शिक्षा ली। इस तरह तीनो घरानों की गायकी का असर नजर आता हैं वैसे इनका अपना गायन इंदौर घराने से प्रभावित हैं। पहले दोनों अलग-अलग गाते थे लेकिन बाद में एक-दूसरे की कमियों को देखते हुए युगल गायन शुरू किया। गायन में राग की शुद्धता और पूर्णता का ध्यान रखते हैं। राग नट भैरव में एक अंश सुनाया। अंत में राग मेघ में गायन सुनवाया गया।
मंगलवार को गायक पंडित मणि प्रसाद जी से राम सिंह पवार की बातचीत प्रसारित हुई। बताया कि गायन में वह परिवार की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। 5 साल की उम्र से गा रहे हैं। 15 साल की उम्र में नागपुर में पहला कार्यक्रम प्रस्तुत किया। एक ही राग को विभिन्न घरानों की विभिन्न शैलियों में प्रस्तुत किये जाने पर चर्चा चली। जिस समय बातचीत रिकार्ड की गई उस समय वो आकाशवाणी दिल्ली केंद्र में कार्यरत थे। उनका गाया राग अहेरी तोडी में गायन भी सुनवाया गया।
बुधवार को सरोद वादिका जरीन दारूवाला शर्मा से कृष्ण शर्मा की बातचीत सुनवाई गई। बताया कि 4 साल कि उम्र में हारमोनियम सीखा, 6 साल की उम्र में गाना सीखा और 10 साल की उम्र से सरोद सीखा। बताया कि उस्ताद अली अकबर खाँ से प्रेरणा मिली। सितार से ज्यादा यह वाद्य पसंद होने से यही सीखा। वाद्य के बारे में भी हल्की सी जानकारी दी। बजा कर सुनाया। अंत में राग भटियार में सरोद वादन सुनवाया गया।
आज तार शहनाई वादक विनायक वोहरा से राम सिंह पवार की बातचीत सुनवाई गई। बताया कि पारिवारिक माहौल से बचपन से संगीत सीखा। पिताजी दिलरूबा बजाया करते थे। दिलरूबा में परिवर्तन करने से यह वाद्य तार शहनाई बना जिस पर विस्तृत जानकारी दी। अंत में राग कालिंगडा सुनवाया गया।
दो को छोड़कर सभी कार्यक्रमों को छाया गांगुली जी ने प्रस्तुत किया।
7:45 को त्रिवेणी कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। यह कार्यक्रम प्रायोजित होने से शुरू और अंत में प्रायोजक के विज्ञापन प्रसारित हुए। इस कार्यक्रम की संकेत धुन अच्छी हैं जो शुरू और अंत में सुनवाई जाती हैं।
शुक्रवार को बताया कि आत्मविश्वास और अथक परिश्रम से सफलता अवश्य मिलती हैं। असंभव भी असंभव हो जाता हैं। प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना भी बताई कि युद्ध से थके हारे राजा ने जब देखा कि एक मकडी बार-बार प्रयास करने के बाद ऊपर चढने में सफल हुई तब राजा ने भी उससे प्रेरणा ली और युद्ध में विजय पाई। गीत भी अच्छे सुनवाए - राही तू रूक मत जाना
कभी तो मिलेगी बहारो की मंजिल
यह पुराना ही अंक हैं फिर से प्रसारित किया गया।
शनिवार को भी पुराना ही अंक फिर से प्रसारित किया गया। सर्दी का मौसम समाप्त होने और गर्मी के शुरू होने पर पेड़ों की छाया की चर्चा चली और शाम के समय गाँव में चौपाल में बैठने और आपसी सुख-दुःख की चर्चा चली, समापन किया इस गीत से -
ऐसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरूवर की छाया
हालांकि गीतों के चुनाव में थोड़ी असावधानी हुई जैसे गाइड फिल्म का यह गीत सुनना -
वहां कौन हैं तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ
गर्मी के मौसम में ठीक हैं पर आजकल यह सुनना ठीक नहीं लगता। वैसे भी इस कार्यक्रम के लिए विषयो की कमी नहीं हैं। गीत भी विषय के अनुसार मिल ही जाते हैं। अगर इसका रूख थोड़ा बदल देते तो आज के माहौल में भी अच्छी प्रस्तुति हो जाती।
रविवार का अंक भी पुराना ही लगा। जीवन की व्यस्तता में मशीन बने हम कभी-कभी छुट्टिया बिताने प्रकृति के करीब जाते हैं और जीवन की ऊब मिटाते हैं। गाने नए-पुराने दोनों शामिल थे -
दिल ढूँढता हैं फिर वही फुरसत के रात दिन
कोलंबस छुट्टी हैं आई
सोमवार का भी अंक पुराना ही लगा। जीवन के रास्तो की चर्चा हुई। गाने शामिल रहे - मैं तो चला जिधर चले रास्ता
एक रास्ता हैं जिन्दगी
मंगलवार को वक़्त के साथ चलने पर चर्चा हुई। फिल्म एक बार मुस्कुरा दो का यह गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -
सवेरे का सूरज तुम्हारे लिए हैं
वक़्त फिल्म का गीत और यह गीत भी शामिल था -
जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मुकाम
वो फिर नही आते
बुधवार को लगा पुराने अंक को कुछ बदलाव के साथ प्रस्तुत किया। चर्चा चली कि जीवन में हर समय सफलता नहीं मिलती। कठिन राह पर भी चलना हैं। गीत थोड़े पुराने पर अच्छे सुनवाए - सफ़र, इम्तिहान और तपस्या फिल्म का गीत -
जो राह चुनी तूने उसी राह पे राही चलते जाना रे
आज विषय तो पुराना था पर प्रस्तुति नई रही। जिन्दगी को समझने की कोशिश की गई। नए पुराने गीत सुनवाए गए -
जिन्दगी कैसी हैं पहेली
कैसी पहेली हैं ये जिंदगानी
सवेरे के त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।
सबसे नए तीन पन्ने :
Thursday, July 22, 2010
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