डो. अजीतजी और अन्नपूर्णाजी,
अभी परिस्थिती इस प्रकार की है कि, मंगल और शुक्रवार दोनों अन्नपूर्णाजी के लिये बुक्ड जैसे ही है तो मेरे जैसे अन्य प्रासंगीक लेख़कोकी पोस्ट अगर सोमवार या गुरूवार रात्री रख़ने की होती है (यू-ट्यूब पर विडीयो अपलॉडींगमें लगने वाले समय के कारण) तो यहाँ बात स्वाभाविक होती है कि दूसरे दिन आनेवाली पोस्ट ही ज्यादा दर्शकोके सामने आयेगी और पिछले पोस्ट लेख़क की मेहनत ज्यादा तर बेकार जाती है । और उस पर एक भी टिपणी मिलती नहीं है । तो जिन लोगो के अपने निज़ी ब्लोग्स जानेमाने है, जैसे युनूसभाई, सागरभाई, संजयजी और इरफानभाई वे इस ब्लोग के लेखक सदस्य होटल हुए भी इस और मूडते भी नही है, जैसे भूल ही गये है कि वे यहाँ सदस्य है । इस लिये इस ब्लोग का दृष्य कुछ इस तरह बनाना जरूरी है, कि या तो जो पटेमें पहला पन्ना और अन्य टाईटल्स पढे जाते है वहाँ हर सदस्यों के नाम आ जाये जैसे युनूसजीने रेडियोवाणी पर दूसरा पन्ना पढ़ा जाता है, या तो पहेले पन्ने पर पूरी पोस्ट दिखाई देने की जगह जो हमारे दाहिने हाथ की और जो चालू माह की पोस्ट के शिर्षक दिख़ाई पडते है उनको पूरे पन्ने पर विस्तृत किया जाये और अगर जरूर लगे तो चालू माहकी उन सभी पोस्ट के सिर्फ शुरू के दो चार वाक्य को ही शिर्षक के हिसाबसे थोडे छोटे अक्षरमें दिख़ा कर अधूरा छोड दिया जाय और किसी भी पोस्ट को पूरा पढने के लिये दूसरी बार किल्क करना ही पडे वैसा हो, वैसे मैनें एक बार अन्नपूर्णाजी को सुचन किया था कि वे साप्ताहिकी और पूराने उनके हिसाबसे अलभ्य गानो कि चर्चा को एक ही पोस्टमें दो सब-टाईटल्स के साथ लिख़े पर मेरे कहने का मर्म वे पकड नहीं पायी या पकडना चाहा नहीं पर इसके अलावा उन्होंनें अन्य लेखको के रवैये के बारेमें जो बात कही है उसमें काफ़ी हद तक सच्चाई जरूर है । कहीं कोई विषेष ओडियो या विडीयो मेरे जैसा कोई रख़ता है तो अपने पीसी या लेप्टोप पे डाऊनलोड करना चूकते नहीं पर इसको सराहना जानबूज़ कर समयाभाव का थोडा सही या थोडा बढा-चढा कारण दिख़ा कर टाल देते है । कभी कभी पोस्ट लेख़क की तसवीर (प्रभावके संदर्भमें) शादगी पूर्ण बनती है या ग्लेमरस बनती है वो बात भी काम कर जाती है । हो सकता है, बल्की सही ही है, कि मेरी भाषा युनूसजी, संजयजी या इरफ़ानजी जैसी प्रभावक नहीं हो पर सीधी सादी हो और थोडी मेहनत कम हो, जैसे कोई गाने की बात हो तो पूरे गाने के लिरीक्स लिख़ना मेरे बसमें नहीं है । कभी कभी तो एक पोस्ट लिख़ना भी थोडा थकावट वाला काम बनाया जाता है मेरी शारिरीक प्रकृती के कारण, तो यह अन्नपूर्णाजी का रेडियोनामा और रेडियोवाणी की टिपणी संख्या का अंतर तूर्त ही दिलमें लगता है ।
श्री महेन्द्र मोदी साहब हमारे दिल से कहाँ जायेंगे ?
विविध भारती की वेबसाईट के जन्मदाता और संवर्धक सहायक केन्द्र निर्देषक श्री महेन्द्र मोदी साहबने उस साईट के सदश्यों को अपने दिल्ही तबादले केर बारेमें और 28 जूलाई , 2010 विविध भारती कार्यालयमें उनके हाल अंतिम दिन होने के बारेमें सुचित किया है । पत्रावलि के श्रोता उनकी आवाझ और स्टाईल याद रख़ेंगे । सदनसीबसे मेरे पास उनकी मेरे पत्र के दिये जानेवाले उत्तर की ध्वनिमूद्री संग्रहीत रही है । उनको नये स्थान के लिये शुभ: कामना और राजेष रेड्डी साहब की (दूसरी ) वापसी की तरह उनकी भी पहली वापसी विविध भारती पर हो ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
सबसे नए तीन पन्ने :
Tuesday, July 27, 2010
1. रेडियोनामा के पुनर्जनम के लिये सुचन 2. केन्द्रीय विविध भारती सेवासे श्री महेन्द्र मोदी साहब का दिल्ही प्रस्थान
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4 comments:
आपने ठीक लिखा मैं साप्ताहिकी और गीतों की श्रृंखला को एक पोस्ट में नही रखना चाहती ताकि दो अलग दिन दो पोस्ट दिख सके क्योंकि यहाँ बहुत कम पोस्टे लिखी जाती हैं।
आज भी मैं गीतों की पोस्ट नही दे रहीं हूँ और कल भी नही दूंगी ताकि आपकी पोस्ट पर चर्चा हो सके।
जो सुझाव पोस्ट दिखाने का आपने दिया हैं लगता हैं यह आकार ब्लॉग एग्रीगेटर की तरह हैं, मुझे भी यह ठीक ही लग रहा हैं। इससे एक ही दिन में एक से अधिक पोस्टे रखी जा सकती हैं।
Piyush ji, main is mamle me kuchh shakht hona chahta hu. Kya ap yunus ji aur sagar ji se bat nahi kar sakte plz. Ap sagar ji se , yunus ji se , sanjay ji se chat karke mere 25 jul wali post ke bare me bol nhi sakte? Inhone padha bhi hai ya nahi. Ap mujhse bat kar sakte hain, no. Hai 09540541539. Ya ap apna no. De de main cl kar lunga .
agar pata chale ki mahendra modi dillee ke kis vibhaag mein gaye hain to bataaiyega.(Irfan: Tootee huee bikhree huee blog moderator)
आपने उन लोगों में मेरा भी जिक्र किया जो इस सामुहिक ब्लॉग के सदस्य होते हुए भी इस और मुड़ के देखते भी नहीं।
तो इस बारे में आपको कहना चाहूंगा कि मैं इस ब्लॉग का सिर्फ तकनीकी सलाहकार ही हूँ, स्थायी सदय नहीं।
एक बात और सामुहिक ब्लॉग में या किसी भी ब्लॉग में ऐसा कोई नियम या संविधान नहीं होता कि हर सदय पोस्ट लिखे ही। रेडियो पर लिखना कविता करने जैसा नहीं होता कि जब मूड आये लिख लो।
हम किसी भी सदस्य को बाध्य नहीं कर सकते कि आप पोस्ट लिखो या आप सदस्य हो तो टिप्प्णी तो करो ही।
आपने मेरे साथ यूनुस भाई और संजयभाई का भी जिक्र किया तो आप एक बार हम तीनों के ब्लॉग की अंतिम पोस्ट की तारीख देख लीजिये। शायद तीनों के ब्लॉग्स में जनवरी से अब तक दस पोस्ट्स भी नहीं लिखी गई होगी।
ब्लॉग या कोई भी लेख किसी से जबरन नहीं लिखवाया जा सकता। सब की अपनी अपनी व्यस्तताएं होती है।
मेरी इस टिप्पणी से किसी कोई तकलीफ हुई हो तो मैं क्षमा चाहता हूँ, और चुंकि मैं भी इस ब्लॉग पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा (आपको ऐसा लगता है कि मैं अपने ब्लॉग पर ज्यादा ध्याण दे रहा हूँ तो हूं तो मैं तकनीकी सहायक से भी अपना नाम वापस लेना चाहता हूँ।
धन्यवाद
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।