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Saturday, July 17, 2010

मनोहारी दादा को पीयूष (मेहता) जी और युनूस (खान) जी की विनम्र श्रद्धांजलि देती पोस्टे

यह पोस्ट मैं युनूस जी से हाथ जोड़ कर क्षमा याचना सहित लिख रही हूँ।

मनोहारी दादा के निधन का शोक समाचार सबसे पहले पीयूष (मेहता) जी ने रेडियोनामा पर दिया 13 जुलाई को। उसके अगले दिन 14 जुलाई को युनूस जी ने अपने ब्लॉग रेडियोवाणी पर यह समाचार देते हुए पोस्ट लिखी। अपनी पोस्ट में युनूस जी ने लिखा कि मनोहारी दा से उनकी मुलाक़ात विविध भारती के दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में हुई - संगीत सरिता और आज के मेहमान जिनमे से एक में युनूस जी ने खुद उनसे बातचीत की। बावजूद इसके युनूस जी ने इस पोस्ट को रेडियोनामा पर देना उचित नही समझा। हालांकि रेडियोनामा पर ऎसी कोई पाबंदी नहीं हैं कि एक ही विषय पर दो व्यक्ति दो पोस्ट नहीं लिख सकते। वैसे भी कुछ ही दिन पहले मैंने युनूस जी की एक पोस्ट पर टिप्पणी लिख कर उनकी रेडियोनामा से दूरी की चर्चा की थी।

अपनी पोस्ट पर युनूस जी ने उन गानों की फेहरिस्त भी दी जिसमे मनोहारी दादा का सेक्सोफोन गूंजता हैं। इन गीतों को लोकप्रिय बनाने में विविध भारती का कितना योगदान हैं यह युनूस जी बेहतर जानते हैं। कितना भावुक होकर उन्होंने यह पोस्ट लिखी इसका अंदाजा इसी से होता हैं कि आज के मेहमान को उन्होंने हमारे मेहमान लिखा और अमीर गरीब फिल्म के गीत की पंक्ति लिखी - मैं आया हूँ लेकर जाम हाथो में जबकि यह गीत जोशीला फिल्म का हैं और पंक्ति हैं - मैं आया हूँ लेकर साज हाथो में। यह साज हैं गिटार और इस साज के साथ जोशीला फिल्म के इस गीत की विस्तृत चर्चा रेडियोवाणी पर खुद ही की थी... खैर...

श्रद्धांजलि की पोस्ट पर पीयूष (मेहता) जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा कि इस महान कलाकार को यहाँ सही सम्मान और श्रद्धांजलि हैं। टिप्पणियों की लम्बी कतार देखी और उसमे विविध भारती का जिक्र भी देखा, समझ में नहीं आया यह कलाकार के प्रति सम्मान हैं या युनूस जी की पोस्ट पर टिप्पणियाँ देने की आदत ? इस स्थिति में रेडियोनामा पर बहुत ही कम दी जाने वाली टिप्पणियों पर बहुत पहले लिखी गई डा अजीत कुमार जी की पोस्ट याद आ गई।

जिन गानों से इस कलाकार की पहचान हैं उन गीतों का गढ़ हैं विविध भारती और उसके अपने ब्लौग पर पहले दी गई श्रद्धांजलि पर टिप्पणी लिखना जरूरी नही समझा जाता जबकि व्यक्तिगत ब्लौग पर टिप्पणियों की लाइन लगती हैं, समझ में नही आता लोग पोस्ट पढ़ते हैं या ब्लौग ?

खुद रेडियोनामा के सदस्य ही इसे गंभीरता से नही लेते। हर सप्ताह मैं साप्ताहिकी लिखती हूँ जिसमे उन्ही कार्यक्रमों की चर्चा होती हैं जो हैदराबाद में प्रसारित होते हैं, ऐसे कार्यक्रम भी हैं जो हैदराबाद में प्रसारित नही होते पर दूसरे शहरों में होते हैं जिन पर कुछ लिखा जा सकता हैं जिससे विविध भारती के समूचे प्रसारण की जानकारी सबको मिल सकती हैं, सभी कार्यक्रमों पर चर्चा हो सकती हैं पर कोई ध्यान देना ही नही चाहता। मेरा लेखन मेरा अपना नजरिया हैं, अगर दूसरे लिखेगे तो एक ही कार्यक्रम पर अलग-अलग नजरिए से चर्चा हो सकेगी। एकाध बार सागर नाहर जी ने संगीत सरिता पर समीक्षा लिखी थी पर सिलसिला आगे नहीं बढ़ा। जब भी रेडियोनामा खोलो दो ही नाम नजर आते हैं, मेरा और पीयूष जी का।

आशा हैं युनूस जी सहित सभी सदस्य इस मुद्दे पर ध्यान देगे जिससे किसी कलाकार को लोकप्रिय बनाने वाली विविध भारती के धरातल पर ही सार्थक चर्चा हो सके।

5 comments:

रोमेंद्र सागर said...

मनोहारी दादा का जाना निश्चय ही संगीत जगत के लिए एक आघात है....लेकिन आज की डिजिटल-पीढ़ी इसे क्या समझेगी और क्या महसूस करेगी ! .... उनकी कमी संगीत की दुनिया को हमेशा हमेशा ही खलती रहेगी !

बाकी , रेडियो वाणी पर छपी युनुस भाई की श्रद्धांजली के विषय में लिखते हुए आपने जो यह लिखा है कि " ...और अमीर गरीब फिल्म के गीत की पंक्ति लिखी - मैं आया हूँ लेकर जाम हाथो में जबकि यह गीत जोशीला फिल्म का हैं और पंक्ति हैं - मैं आया हूँ लेकर साज हाथो में। यह साज हैं गिटार! " .....उसके विषय में क्षमा याचना सहित आपसे विनम्र निवेदन करना चाहूंगा ! ( बात छोटी सी है , अन्यथा ना लें )

यह ठीक है कि शब्द "जाम" नहीं "साज़" है मगर यह गीत फिल्म "जोशीला" का नहीं , देव आनंद अभिनीत फिल्म "अमीर गरीब" का ही है और साज़ भी सेक्सोफोन ही है ना कि गिटार !

annapurna said...

पोस्ट निकलने के बाद लम्बे समय तक खामोशी रही उसके बाद आपकी टिप्पणी देखना अच्छा लगा। शुक्रिया !

चूंकि मैं देव आनंद की फैन हूँ, उनकी फिल्मे देखती हूँ और मुझे याद भी रहती हैं। जोशीला और अमीर गरीब दोनों ही फिल्मे मेरी देखी हुई हैं। दोनों में नायिका हेमा मालिनी हैं।

अमीर गरीब फिल्म में देव आनंद अमीरों को लूटते हैं और उस पैसे से गरीबो की मदद करते हैं। इसमे एक गीत के दो संस्करण हैं - किशोर कुमार और लता या आशा जी का - सोनी और मोनी की हैं जोडी अजीब, एक क़व्वाली भी हैं।

अब बात करते हैं जोशीला फिल्म की। इस फिल्म में देव आनंद एक गायक हैं। स्टेज शो करते हैं गिटार के साथ ही यह गीत गाते हैं - मैं आया हूँ लेके साज हाथो में। इसी शो में बिंदु उन्हें देखती हैं और काम के लिए घर लाती हैं। इस गीत की खासियत ये हैं कि गाने के शुरू में गिटार की लम्बी धुन हैं, इतनी लम्बी आरंभिक धुन आमतौर पर गीतों में नही होती। इसी बात को लेकर जोशीला नाम के साथ ही युनूस जी ने अपने व्यक्तिगत ब्लॉग रेडियोवाणी पर पोस्ट लिखी थी। देव आनंद के हाथ में गिटार ही हैं, हो सकता हैं संगीत सेक्सोफोन का हो।

अगर इन गीतों के बारे में अब भी संदेह हैं तो यू ट्यूब पर चैक किया जा सकता हैं, वैसे इस तरह से चैक करना मुझे नही आता हैं, आप हो सके तो कोशिश कीजिए। लेकिन मेरी जानकारी शत प्रतिशत सही हैं। जोशीला फिल्म में एक हेमा जी का डांस गीत भी हैं - सोना रूपा और एक किशोर कुमार का गाया गीत भी हैं जो देव आनंद जेल में गाते हैं।

रोमेंद्र सागर said...

अन्नपूर्णा जी को नमस्कार...
अपनी टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रया देख अत्याधिक प्रसन्नता हुई ! यूँ तो बात कुछ भी नही है मगर चक्कर यह है की आपकी ही तरह मैं भी देव साहब का बहुत बड़ा फैन रहा हूँ... ( उनकी आत्मकथा पढने तक ... ) और मुझे भी कमोबेश उनकी हर फिल्म याद ही रहती है ...( वक़्त के साथ साथ कुछ असर तो होता ही होगा मगर फिल्मों और गीतों के बारे में कमबख्त यादाश्त वैसी की वैसी ही है जैसी कभी पहले हुआ करती थी ) इसी कारण मुझसे रहा नहीं गया और मैंने आपकी भूल को टोकना उचित समझा ! अच्छा लगा कि आपने भी अपनी फिल्मी यादों को खूब इस्तेमाल किया और इतने आत्मविश्वास के साथ अपनी बात दोहराई कि एकबारगी तो मुझे खुद पर शक सा होने लगा ....लेकिन जब आपने यह लिखा कि " जोशीला फिल्म में देव आनंद एक गायक हैं। स्टेज शो करते हैं गिटार के साथ ही यह गीत गाते हैं - मैं आया हूँ लेके साज हाथो में। इसी शो में बिंदु उन्हें देखती हैं और काम के लिए घर लाती हैं।..." तो ज़ाहिर हुआ कि आपकी यादाश्त आपसे खिलवाड़ कर रही है ! क्षमा याचना सहित मुझे कहना पड़ता है कि कहीं न कहीं आप कुछ फिल्मों को मिक्स कर रहीं हैं .... ! ( जोशीला फिल्म में देव साब की मुलाक़ात बिंदु से उसके घर पर होती है जहाँ वह मदन लाल धींगरा बन कर पहुँचते है ....बिंदु प्राण की पत्नी हैं और हेमा की सौतेली माँ ...यहाँ उन्हें मदन पुरी भेजते हैं )

फिल्म "अमीर गरीब" का तो चक्कर ही कुछ और है ...यहाँ देव "बगुला भगत " नाम के एक लुटेरे हैं , जो वैसे प्रतक्ष्य में प्रेम नाथ के होटल में गायक के रूप में नौकरी करते हैं ....और यहीं उनकी एंट्री का गीत है " लेडीज़ एंड जेंटिलमेन...मुझपे हैं सबके नैन ...सबके हैं दिल बेचैन के मैं आया हूँ...लेके साज़ हाथों में ....!

अब समस्या यह है कि आप शत प्रतिशत सही होने का दावा कर रहीं है जो वस्तुत: " सोना रूपा लायो रे ..." और जेल में गाये किशोर कुमार के गीत " किसका रास्ता देखे , ए दिल ए सौदाई ..." तक तो बिलकुल ठीक हैं मगर फिल्म अमीर गरीब ( 1974) के गीत " मैं आया हूँ ..लेके साज़ हाथों में..." के बारे में शत प्रतिशत गलत ही है !

आप यू ट्यूब पर चेक करना नहीं जानती फिर भी http://www.youtube.com/watch?v=AqjpQVCOffk लिंक पर जाकर फिल्म अमीर गरीब फिल्म के गीत का आनंद ज़रूर उठाएं ! मज़े का मज़ा हो जाएगा और जो थोड़ी सी गलतफहमी है ( जो यक़ीनन कभी भी , किसी को भी हो सकती है) उसका भी सुधार हो जाएगा !

छोटी सी बात ...कहने में कुछ लम्बी हो गयी ! क्षमा प्रार्थी हूँ....अन्यथा ना लीजिएगा !

annapurna said...

पता नही क्यों, मुझे अब भी लग रहा हैं, मेरी जानकारी सही हैं इसकी पुष्टि तभी होगी जब मैं यह दोनों फिल्मे दुबारा देख लूंगी।

रोमेंद्र सागर said...

दोनों टाइम पास करने वाली मजेदार फिल्में हैं...ज़रूर देखिये.....मज़े लीजिये और शंका का समाधान भी कर लीजिये !

पिछले दिनों अमीर गरीब तो काफी बार टी वी पर दिखाई जाती रही है !

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