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Friday, April 8, 2011

कुछ पुरानी यादें....लावण्‍या शाह।


हमारी , अन्नपूर्णा जी अक्सर " रेडियोनामा " के विविधरंगी कार्यक्रमों को न सिर्फ सुनतीं हैं बल्कि बहुत गंभीरता से, ध्यान से सुनकर इन संगीतमय कार्यक्रमों में क्या अच्छा लगा, क्या नहीं उनपर भी सुव्यवस्थित ढंग से अपने विचार, खुलकर प्रकट करतीं हैं और एक बंधे हुए अंतराल पर हमें " रेडिओ नामा " ब्लॉग से उनकी प्रविष्टी पढने को मिल जातीं हैं - इस नियमित तथा महत्त्वपूर्ण कार्य को वे जिस सहजता से करतीं रहीं हैं उसके लिए वे बधाई व बहुत बड़ी प्रशंशा की हकदार हैं - - यह मेरा निजी मत है जो मैं बेझिझक होकर लिख रही हूँ -- 
यदाकदा " रेडिओ नामा " पर , रेडियो की स्टेज की तथा साहित्य जगत की त्रिविध गतिविधियों पे मर्मग्य द्रष्टि रखे हुए, रेडिओ के शुभ चिन्तक श्री संजय पटेल जी की सच्ची और सही शिकायतें, डांट और  चिंता भी उनकी प्रविष्टियों से जाहीर हो जातीं हैं जैसा कुछ समय पूर्व उनहोंने रेडियो से जुड़े कार्यकर्ताओं  पे पोस्ट लिखकर , हमें सचेत किया था .
यूनुस भाई , " जादू " के पापा अपने निजी जीवन व सफल कार्यक्षेत्र की अपार व्यस्तता में इतने डूब गए हैं कि, उनकी पोस्ट यदाकदा ही आतीं हैं - हाँ , गुजरात प्रांत के  सुरत शहर  के रहनेवाले और एक सच्चे  रेडियो प्रेमी और रेडियो से जुड़े और संगीत से जुड़े हरेक कलाकार से  सच्ची ममता स्थापित करनेवाले भाई श्री पियूष  जी की संगीत सम्बंधित पोस्ट " रेडियो नामा " पर नियमितता में अन्नपूर्णा जी के साथ  साथ , सतत,  बराबर प्रकाशित होतीं रहीं हैं ...
 नका भी  सच्चे दिल से , शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ 

इतनी लम्बी भूमिका के  पश्चात,  आज एक और  मशहूर शख्शियत की , रेडियो के लिए   , एक पुरानी लिखी हुई , शिकायत  को लेकर , कहिये तो , आज , उनका आग्रह लिए  ही  मैं , उपस्थित हूँ ......
               मीडीया के ' एप्पिल ऑफ़ ध आय ' या भारत में सर्वाधिक चर्चित और मशहूर " बच्चन " नाम   को गौरव प्रदान करनेवाले , सिने कलाकार  एवं यश और ख्याति के आकाश पर दमकते सिने कलाकार श्री अमिताभ बच्चन जी के साहित्य मनीषी  पिता जी डाक्टर हरिवंश राय " बच्चन ' जी की सम्पूर्ण "  रचनावली  " पढने का हाल ही में , मुझे , अवसर मिला  है और उनका लिखा रेडियो से सम्बंधित , यह दिल में रह गया मलाल  पढ़कर उसे , प्रस्तुत करने  से अपने आप को रोक नहीं पाई - 
चूंकि, ताऊजी श्री " बच्चन " जी ने उनके अपने व मेरे स्व. पिता पंडित नरेंद्र शर्मा दोनों के पूरक गीत पर अपने मन के भाव यहाँ व्यक्त किये हैं --तब सोचा के , ' बच्चन जी की यह शिकायत , आप तक पहुंचा दूं ! 
 आप  लोग भी इसे अवश्य  पढ़िएगा और रेडियो से जुड़े , सभी से मेरा ,पुन: नम्र  निवेदन होगा कि वे " स्व. बच्चन " जी की इच्छाओं पर ध्यान दें और ये दोनों सुमधुर गीतों को एक साथ बजा दें ...........
कहते हैं , किसी दिवंगत  की इच्छाओं को , कभी झुठलाना नहीं चाहीये .......

अब प्रस्तुत है  " सुप्रसिध्ध " मधुशाला " के लिखनेवाले अमर कविवर श्री " बच्चन " जी के शब्द उनकी आत्मकथा से .... 
" बच्चन  रचनावली " 
 : पेज : ३१३ से साभार ..............
" सतरंगिनी " के पहले रंग की सातवीं कविता है " मयूरी " 
' मयूरी, नाच मगन मन नाच ! '
 " सतरंगिनी " पर लिखी गयी शुरू की समालोचनाओं में कतिपय पत्रों में , जहां तक मुझे स्मरण है , इस बात पर मेरी हंसी उडाई गयी थी की, मैंने मयूरी के नाचने की बात लिखी है जबकि प्राकृतिक सत्य इसके विपरीत है यानी मयूरी नाचती ही नहीं  !  
मैंने इसकी और कोइ ध्यान नहीं दिया , सोचा, मयूरी को नचाकर जो गूढ़ बात मैंने कही है उसे समझने के लिए अभी कम ही समय मिला है . 
मेरे भाव  प्रणव  और सहानूभुतिपूर्ण पाठक इसका रहस्य समझेंगें .
 पूर्वाग्रही पात्र - पत्रिकाओं के समालोचक तो गुण को भी दोष बनाकर दिखाते हैं 
 फिर जहां छिद्रान्वेषण की कोइ गुन्जाइश हो वहां का क्या कहना  ! 
फिर आगे  आदरणीय बच्चन जी लिखते हैं, 
  ' इधर ' मयूरी ' की गीतात्मकता ने एक बंगाली संगीतकार का ध्यान आकर्षित किया - उसने - ( नाम शायद ज्ञान घोष था ) ,  इसकी स्वरलिपि तैयार की  और किसी समय कलकता जाने पर मुझे वह गीत वाध्य यन्त्रों पर सुनवाया . मैं मुग्ध हो गया . 
 थोड़े दिनों बाद गीत का बँगला रूपांतर किया गया और वह भी उसी स्वर लिपि में बैठ गया . 
 कलकाता रेडियो से मैंने उसे भी कई बार सुना   और लोगों ने भी हिन्दी अथवा बँगला में निश्चय ' मयूरी ' वाला गीत सूना होगा - 
   " नाच रे मयूरा  SSSS ...." 
कुछ समय बाद एक दिन रेडियो पर बंधुवर नरेंद्र शर्मा का यह संगीत - बध्ध गीत सुनकर भाव विभोर हो उठा ! " मयूरी नाच , मगन मन नाच " की धुन भी  साथ  ही कानों में गूँज गयी सोचने लगा, शायद, नरेंद्र ने मेरे गीत से प्रेरणा ली हो, शायद उनहोंने यह  दीखाने  को लिखा हो कि, मयूर का नाचना ही प्राकृतिक सत्य है , शायद अपने गीत द्वारा उनहोंने मेरे गीत का पूरक उपस्थित किया हो ! इसे मैं, रेडियोवालों की कल्पना - हीनता ही कहूंगा कि, उनहोंने इन दोनों गीतों को कभी साथ प्रस्तुत नहीं किया -
 कम से कम, मैंने साथ नहीं  सुना  ! दोनों गीत साथ सुनाएँ जाएँ तो ध्वनि  के माध्यम से वे मयूर और मयूरी दोनों को साथ नाचते हुए प्रस्तुत कर दें ! दोनों गीतों की गति, लय , ताल , छंद  में कितना अनुरूप अंतर है !  नरेंद्र के गीत के स्वर - विस्तार ,में जैसे  मयूर का पंख ही फैला - सा जाता है - मेरे गीत के स्वर - लाघव में पुच्छ - रहित मयूरी का पद चापल्य सहज ही कल्पित किया जा सकता है - इन दोंन को पूरक मानकर मन में एक विशेष उल्लास अनुभव करने का मेरा अपना एक कारण था -
 " सतरंगिनी " में नर - नारी के आदर्श जोड़े के रूप में मैंने मयूर और मयूरी को ही प्रतीक माना है - मयूरी के नाचने अथवा न नाचने को जिन्होंने महत्त्व दिया है उससे मेरी शिकायत यहीं है कि, उनहोंने हाथी को नहीं देखा , सिर्फ उसकी पूँछ टटोली है ! 
- बच्चन 
[ प्रस्तुतकर्ता : लावण्या शाह ] 

4 comments:

annapurna said...

गैर फिल्मी गीतों के इस समय दो ही कार्यक्रम हैं - भक्ति और देश भक्ति गीतों का वन्दनवार और गजलो का कार्यक्रम गुलदस्ता. वास्तव में गैर फिल्मी गीतों का कोई कार्यक्रम नही हैं. मैं पहले भी साप्ताहिकियो में गैर फिल्मी गीतों के कार्यक्रम बढाने के लिए अनुरोध कर चुकी हूँ. आज भी अनुरोध हैं कि गैर फिल्मी गीतों का कार्यक्रम शुरू कीजिए जिससे ये अनमोल गीत हम सुन सके.

मीनाक्षी said...

लावण्यादी...रेडियोनामा पर जब भी आते है..नतमस्तक हो कर चले जाते हैं...आज दो महान आत्माओं की बात चली तो रोक न पाए...
हमारा भी अनुरोध है कि गैर फिल्मी गीतो का कार्यक्र्म शुरु किया जाए...
श्री नरेन्दजी का गीत मन्नाडे की आवाज़ मे सुनकर बार बार सुनने का जी करता है....
http://www.youtube.com/watch?v=KNq4HneNAfE
दूसरा गीत मयूरी का वही जिसका ज़िक्र बच्चन जी ने किया है...नही जानती .... सुनकर बताइएगा...
http://www.youtube.com/watch?v=KNq4HneNAfE

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Meenaxi ji ,
Asha ji wala Bangla geet sumadhur hai
per likha hai
By : Sudhin Dasgupta .
May be the song written by " Shri Bachchan ji "
is a different song ?
Will have to dig some more to find out
BUT
Yunus bhai + Vividh Bharti should help.
Thank you so much for your comment & research

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

लावण्याजी नमस्कार,
एक लम्बे अन्तराल के बाद आप इस मंच पर तसरीफ़ लायी इस लिये और पूरानी पर नई जानकारी के लिये और मैनें इस पोस्ट को आज अभी ही पढा ओस लिये क्षमा प्रार्थी हूँ और मेरे प्रयासोकी सराहना के लिये भी घन्यवाद ।
पियुष महेता ।
सुरत ।

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