विविध भारती के दो कार्यक्रम ऐसे हैं जिनके माध्यम से सदविचार बता कर श्रोताओं को प्रेरित किया जाता हैं, ये दो कार्यक्रम हैं चिंतन और त्रिवेणी दोनों ही दैनिक कार्यक्रम हैं और सुबह की सभा में प्रसारित होते हैं। हालांकि इनका प्रसारण समय कम हैं पर गागर में सागर हैं ये कार्यक्रम। दोनों कार्यक्रम मिलाकर लगभग 15 मिनट का प्रसारण समय हैं।
आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं - 6:05 पर चिंतन में शुक्रवार को नेहरू जी का कथन बताया गया - जितना हम किताबो से सीखते हैं उससे सौ गुना अधिक हम अपने अनुभवों से सीखते हैं। शनिवार को विदेशी लेखक मैक्सिम गोर्की का कथन बताया गया - नवयुग की ज्योति को जो एक बार देख लेते हैं, वो उसी को पवित्र बनाती हुई जलाने लगती हैं।
रविवार को शेक्सपियर का कथन बताया गया - कोई वस्तु अच्छी हैं या बुरी, यह विचार ही उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं। सोमवार को विदेशी चिन्तक जेम्स एलन का कथन बताया - संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं फिर ज्ञान की शक्ति का बोध कराते हैं। मंगलवार को पुराणों का कथन बताया - सज्जन अपने स्वार्थ की अपेक्षा मित्रो के हितार्थ कार्य करते हैं। बुधवार को प्रेमचंद का कथन बताया गया - समाज और साहित्य एक दूसरे का आईना हैं, यदि इस आईने में हमारा आचरण शुद्ध रूप से दिखता हैं तो जान लीजिए कि हमने इसी आईने को साफ़ किया हैं। आज चिन्तन हम सुन ही नही पाए। समाचार समाप्त होते ही खरखराहट शुरू हो गई। जब प्रसारण ठीक से सुनाई देने लगा तभी चिंतन समाप्त हुआ था।
शनिवार से सोमवार तक लगातार तीन दिन विदेशियों के सदविचार सुने। यह सच हैं कि अच्छाई कही से भी मिले ग्रहण करनी चाहिए लेकिन अपने सदविचारो को अनदेखा कर गैरों से प्रेरणा लेना कुछ ठीक नही लगा। हमारे चिन्तक, मनीषियों, बुद्धिजीवियों, विचारकों ने बहुत कुछ कहा हैं। हमारी संस्कृति से ही उदाहरण दिए जा सकते हैं। साहित्य में नीति विषयक दोहे हैं, कई साहित्यकारों के कथन हैं। इनके साथ सप्ताह में एक बार किसी विदेशी विद्वान का कथन सुनना अच्छा रहेगा, पर लगातार विदेशियों को इस श्रेणी में सुनना अच्छा नही लगता।
7:45 को त्रिवेणी में शुक्रवार को जीवन में सफलता की कुंजी बताई। कहा कि आत्म विश्वास, संकल्प और समर्पण से सफलता मिलती हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में हौसला रखने से असंभव भी संभव होगा। यहाँ एक लघु बोध कथा सुनाई कि एक राजा जब पराजय से थक कर बैठा था तब उसने देखा कि एक मकडी बार-बार प्रयास कर अंत में दीवार पर चढ़ने में सफल हुई। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए - हम जब चले तो ---------- आरजू हमारी आसमाँ को छूले राही तू रूक मत जाना कभी तो मिलेगी बहारो की मंजिल शनिवार को उन लोगो को प्रेरणा दी जो हींन भावना के शिकार हो जाते हैं। कहा कि जीवन में परेशानियाँ हमेशा रहती हैं, कुछ हार जाते हैं और कुछ संघर्ष करते हुए आगे बढ़ जाते हैं। कोई भी लड़ाई हथियारों से नही बुलंद हौसले से लड़ी जाती हैं। जीवन में हौसला बुलंद रखे। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए - दुनिया में कितना गम हैं मेरा गम कितना कम हैं निर्बल से लड़ाई बलवान की ये कहानी हैं दिए की और तूफ़ान की राही ओ राही, तेरे सर पे दुआओं के साए रहे मंजिले पथ में पलकें बिछाए रहे तू निराशा में आशा के दीपक जला हो हिमालय से ऊंचा तेरा हौसला अंत में सुनवाए गए गीतों की फिल्मो के नाम भी बताए गए -अमृत, तूफ़ान और दिया, हिमालय से ऊंचा।
रविवार को युवावस्था पर चर्चा हुई। बताया कि इस अवस्था में दो रास्ते नजर आते हैं। एक रास्ता सच्चाई का हैं और दूसरा रास्ता छोटा हैं, किसी भी तरह से सफलता पाने का। रास्ता चुनना कठिन होता हैं। इस उम्र में कुछ विचार रोमानी होते हैं और कुछ तर्क-वितर्क के। किसी को सुविधा संपन्न देख कर युवा उस जैसा बनना चाहते हैं। युवाओं को समय के महत्त्व को समझना होगा। यही समय हैं जब कोशिश कर जीवन को सफल बनाया जा सकता हैं। एक बार सफलता न मिले तो बार-बार कोशिश करनी चाहिए। गाने नए ही सुनवाए गए - मैं ऐसा क्यूं हूँ अभी अभी कुछ यकीं हैं पाया हैं मुझमे कमी वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता हैं बढ़िया प्रस्तुति।
सोमवार को मन के अँधेरे की चर्चा हुई। बताया कि इस अँधेरे में पूरा व्यक्तित्व ही डूब जाता हैं। निराशा को हावी न होने दे। जिस तरह रात की कालिख सुबह की किरण से धुल जाती हैं उसी तरह जीवन में भी सुबह आती हैं। चर्चा के दौरान तीन गीत सुनवाए गए - गम की अंधेरी रात में दिल को न बेकरार कर सुबह जरूर आएगी सुबह का इंतज़ार कर रात भर का हैं मेहमां अन्धेरा किसके रोके रूका हैं सवेरा वो सुबह कभी तो आएगी
मंगलवार को बताया कि भारतीय दर्शन में किनारे को मुक्ति माना गया हैं। संसार रूपी भव सागर में हम किनारे की तलाश करते हैं। यह किनारा ही जीवन का लक्ष्य हैं। बुजुर्गो ने कहा हैं कि जीवन एक यात्रा हैं और लगातार किनारे की ओर यानि लक्ष्य कि ओर हमें बढ़ना हैं। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए - दूर हैं किनारा गहरी नदी की धारा टूटी तेरी नय्या माझी खेते जाओ रे ओ माझी रे अपना किनारा नदिया की धारा जीवन से लम्बे हैं बंधू ये जीवन के रस्ते अंत में सुनवाए गए गीतों की फिल्मो के नाम भी बताए गए - किनारा, आशीर्वाद और खुशबू
बुधवार को बताया कि जीवन में हमेशा सफलता नही मिलती। सफल न होने पर अकर्मण्य होकर न बैठे। प्रयास करे, आगे बढे, आत्मबल ही मंजिल तक पहुंचाता हैं। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए - रूक जाना नही तू कही हार के ओ नदिया चले चले रे धारा चन्दा चले चले रे तारा तुझको चलना होगा जो राह चुनी तूने उसी राह पे रही चलते जाना रे
आज की त्रिवेणी में शुरू में बताया कि जीवन एक तस्वीर हैं जिसमे आशा और निराशा के रंग हैं। यह कल्पना अच्छी लगी। आगे बताया कि इन विरोधाभासी रंगों से जीवन प्रभावित होता हैं। आगे जो भी कहा गया उसमे शुक्रवार और बुधवार के कार्यक्रमों की झलक नजर आई, कहा कि हौसला होना चाहिए, हार से न डरे, गिर कर उठने का हौसला रखे और वही बात बताई कि कैसे जीव दीवार पर गिर-गिर कर चढ़ने में सफल होता हैं। यहाँ तक कि एक गीत भी वही सुनवाया जो कल की त्रिवेणी में ऐसे ही विचारों पर सुनवाया गया था - रूक जाना नही तू कही हार के समापन पर अच्छी बात बताई कि जब ईश्वर ने हम पर विश्वास कर मानव जीवन देकर हमें संघर्षो में डाला हैं तो क्यों न हम उस विश्वास को बनाए रखते हुए जीवन का यह महासंग्राम जीते। कितना अच्छा होता अगर इस अंतिम बात को ही विस्तार देकर पूरा आलेख तैयार करते... सुनवाए गए शेष दो गीत ये रहे - जीवन से न हार जीने वाले और यह पुराना गीत - तेरी हिम्मत में बल भगवान का
शुक्रवार और सोमवार को पुराने कार्यक्रमों को फिर से प्रसारित किया गया जबकि शनिवार, रविवार और मंगलवार को प्रस्तुति नई रही। त्रिवेणी कार्यक्रम क्षेत्रीय केंद्र से प्रायोजित रहा, प्रायोजक के विज्ञापन क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुए। दोनों ही कार्यक्रमों के लिए आरम्भ और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।