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Friday, April 8, 2011
जब विविध भारती कहे अपने मन की... कर्म की... साप्ताहिकी 7-4-11
लावण्या जी, बहुत दिन बाद रेडियोनामा पर आपकी उपस्थिति सुखद रही। इस समय साप्ताहिकी निकालना आवश्यक हैं क्योंकि अगली साप्ताहिकी के कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं... आज चर्चा उन दो कार्यक्रमों की जिसमे श्रोताओं से रूबरू हैं विविध भारती - छाया गीत और पत्रावली एक कार्यक्रम के अंतर्गत रोज उदघोषक एक या कभी उससे जुड़े अधिक भाव लेकर चलते हैं और उससे सम्बंधित अपनी पसंद के गीत सुनवाते हैं, इस तरह आलेख प्रस्तुति के साथ फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं। दूसरे कार्यक्रम के माध्यम से सप्ताह में एक बार विविध भारती श्रोताओं के पत्रों के माध्यम से अपने कार्यक्रमों का विश्लेषण करती हैं। आइए इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं - रात 10 बजे का समय छाया गीत का होता है। आधे घंटे के इस कार्यक्रम को शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। प्रस्तुति रही अपनी चिरपरिचित शैली साहित्यिक हिन्दी में। चर्चा प्यार की हुई, प्यार से जुड़ी यादों की हुई लेकिन लेकिन अंदाज वही पुराना रहा। गीतों के चयन में भी कोई नयापन नही। इन्ही भावो पर आधारित गीत सुनवाए जिनमे ये गीत भी शामिल थे - मेरे दो नैना मतवाले किसके लिए कितनी अकेली कितनी तन्हा सी लगी और अंत में सुनवा दिया - रामय्या वस्तावय्या मैंने दिल तुझको दिया शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। लगा, श्रोताओं को वर्ल्ड कप मैच देखने के लिए छुट्टी दी गई। वही चिरपरिचित भाव, मोहब्बत की, फूलो की, रूठने-मनाने की बाते। एक गीत अच्छा रहा - हुई शाम उनका ख्याल आ गया एकाध गीत ठीक रहा - रूठे सैय्या हमारे सैय्या क्यों रूठे बहुत सुस्त रही प्रस्तुति। ऐसे गीत भी सुनवाए जो बहुत कम सुनवाए जाते हैं। एक गीत के तो बोल भी ठीक से समझ में नही आए, शायद कुछ इस तरह हैं - प्यार में छुपने छुपाने से रविवार को प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने। कोई नयापन नही था। बाते प्यार मोहब्बत की, विरह की हुई। कुछ लोकप्रिय गीत सुनवाए जैसे - तुम और हम भूल के गम गाए प्यार भरी सरगम कुछ ऐसे गीत भी सुनवाए गए जो कम ही सुनवाए जाते हैं जैसे - बुझ गया दिल का दिया तो चांदनी को क्या कहे तीनो दिन ये कार्यक्रम उदघोषको की पसंद के ही रहे, मुझ जैसे श्रोताओ के लिए ये कार्यक्रम सुस्त और ऊबाऊ रहे। सोमवार को प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने। दिल की बाते हुई। संक्षिप्त आलेख और चुने हुए लोकप्रिय गीतों के साथ अच्छी प्रस्तुति थी, हालांकि नयापन नही था। ज्वैल थीफ, शागिर्द, कटी पतंग के गीत सुनवाए। दिल ही तो हैं और दिल हैं कि मानता नही फिल्मो के शीर्षक गीत सुनवाए। समापन किया भीगी रात फिल्म के इस बढ़िया गीत से - दिल जो न कह सका वही राजे दिल कहने की रात आई मंगलवार को प्रस्तुत किया ममता (सिंह) जी ने। इस दिन भी प्रस्तुति अच्छी रही। चर्चा प्यार की हुई। लोकप्रिय गजले सुनवाई शंकर हुसैन, साथ-साथ, बाजार, प्रेमगीत फिल्मो से शायराना अंदाज में। केवल यह एक गजल ऎसी थी जो कम ही सुनवाई जाती हैं - झुकी झुकी सी नजर बेकरार हैं के नही बुधवार को प्रस्तुत किया राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। इस दिन भी शायराना अंदाज में प्यार की चर्चा हुई पर नए रोमांटिक गीतों के साथ। नए गीत चूंकि लम्बे होते हैं इसीलिए चार ही सुनवाए गए। दो गीत ऐसे थे जो अक्सर सुनवाए जाते हैं - तौबा तुम्हारे ये इशारे हम तुम्हारे हैं तुम्हारे सनम दो गीत ऐसे थे जो ज़रा कम ही सुनवाए जाते हैं - मेरी तरह तुम भी कभी प्यार करके देखो न गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने प्रस्तुत किया। इस दिन भी प्रस्तुति काव्यात्मक रही। शुरूवात की इस गीत से - मैंने रखा हैं मोहब्बत अपने अफसाने का नाम एकाध ऐसा गीत भी शामिल था जो कम ही सुनवाया जाता हैं - मीठी मीठी सी भीनी भीनी सी क्यों हैं हवा और समापन किया इस गीत से - अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ न सोमवार से गुरूवार तक प्रस्तुति में नयापन लाने की हल्की सी कोशिश नजर आई। पूरे सप्ताह प्रमुख भाव प्यार ही रहा। यह सच हैं कि प्यार एक अच्छी भावना हैं पर ऐसा भी क्या कि सातो दिन यह कार्यक्रम प्यार की भेंट चढ़ गया। किसी शायर ने क्या खूब कहा हैं - और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा... सोमवार को रात 7:45 पर पत्रावली में श्रोताओं के पत्र पढ़े रेणु (बंसल) जी ने और उत्तर दिए कमल (शर्मा) जी ने। 15 मिनट के इस कार्यक्रम में 15 पत्र शामिल हुए। इसके अलावा 6 पत्र ऐसे थे जिनमे सिर्फ छायागीत कार्यक्रम की तारीफ़ थी। मैं तो समझ ही नही पाई कि दिन पर दिन उबाऊ होते जा रहे इस कार्यक्रम में श्रोताओं को क्या पसंद आ रहा हैं, खैर... पसंद अपनी अपनी विभिन्न राज्यों से जिलों, शहरो और दूरदराज के गाँव से पत्र आए। कुछ नियमित श्रोताओं ने पत्र भेजे और कुछ नए श्रोताओं के भी पत्र पढ़े गए। लगभग सभी कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। कुछ सुझाव भी थे। एक श्रोता ने सुझाव दिया कि फ़ौजी भाइयो के कार्यक्रम जयमाला में वीर भावना और देश भक्ति के गीत सुनवाए जाए। इसके जवाब में कहा गया कि देश की सुरक्षा का भार संभाले फ़ौजी भाइयो के मनोरंजन के लिए हैं जयमाला कार्यक्रम। एक सुझाव था कि लघु तरंग (शार्ट वेव SW) पर प्रसारण समय बढाया जाए जिसके उत्तर में कहा कि सम्बंधित अधिकारियों तक यह सुझाव पहुंचा दिया जाएगा। कुछ पत्रों में फरमाइशे भी थी। एक पत्र में रफी साहब, साहिर लुधियानवी और गुरूदत्त से की गई बातचीत की रिकार्डिंग सुनवाने की फरमाइश थी जिसका उत्तर सुन कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, कहा कि इनसे बातचीत की रिकार्डिंग उपलब्ध नही हैं। तीनो सिने जगत के दिग्गज हैं, तीनो का सिने जगत में महत्वपूर्ण योगदान हैं और इनसे की गई बातचीत की रिकार्डिंग संग्रहालय में उपलब्ध नही हैं.... एक बात खली कि अंत में डाक पता और ई-मेल आई डी नहीं बताया गया जिससे कुछ श्रोता अगर अब पत्र भेजना चाहे तो उन्हें दिक्कत हो सकती हैं। शुरू और अंत में उद्घोषणा की युनूस (खान) जी ने।
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