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Friday, October 24, 2008

साप्ताहिकी 23-10-08

आप सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !

रोज़ सवेरे 6 बजे समाचार के बाद चिंतन से प्रसारण की शुरूवात हुई जिसमें विभिन्न विद्वान जैसे शेख़ काज़ी का कथन क्षमा करने और उदार बनने, प्रेमचन्द के विचार परोपकारी बनने के, एकता संबंधी लोकमान्य तिलक के विचार, विदेशी चिंतक स्मिथ के विचार बताए गए। वन्दनवार में लोकप्रिय भजन सुनवाए गए जैसे -

नाथ मोहे अबकी बेर उबारो

अंत में बजने वाले देशगान में सोमवार को सुनवाया गया देशगान नया था या फिर बहुत कम सुनवाया जाता है, लेकिन इसका विवरण भी नहीं बताया गया।

7 बजे भूले-बिसरे गीत में मंगलवार को एक गीत सुना जो न्यू थियेटर की फ़िल्म माई सिस्टर से था जिसके संगीतकार पंकज मलिक और गीतकार पंडित भूषण है। यह सभी नाम जाने पहचाने है और इस फ़िल्म का के एल सहगल का गीत तो हम सुनते ही रहते है पर इस दिन जो गीत सुनवाया गया उसकी गायिका है रेखा। मैनें भी पहली बार सुना और शायद आपमें से भी बहुतों को इसकी जानकारी नहीं होगी कि रेखा नाम की कोई गायिका भी है और वो भी के एल सहगल के समय की, गीत है -

आग लगे संसार में जिसमें सच्चा प्यार नहीं

यह गीत सुनने में बिल्कुल वैसा ही लगा जैसा पुराने दौर की गायिकाओं के गीत होते है। ऐसे ही गीतों से इस कार्यक्रम की सार्थकता है। हम नहीं जानते इस कार्यक्रम के अधिकारी का नाम, हम उन्हें धन्यवाद देते है।

हर दिन कार्यक्रम की समाप्ति परम्परा के अनुसार के एल (कुन्दनलाल) सहगल के गीतों से होती रही।

7:30 बजे संगीत सरिता में हिन्दुस्तानी और दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक जैसे रागों की श्रृंखला रविवार को राग हंस ध्वनि की चर्चा से समाप्त हुई और सोमवार से शुरू हुई नई श्रृंखला - गायिकी अंग का गिटार जिसमें बातचीत की जा रही है गायक और गिटार वादक दीपक क्षीरसागर से। यह श्रृंखला कांचन (प्रकाश संगीत) जी द्वारा प्रस्तुत की जा रही है। चर्चा में अधिकतर पुराने गीत रहे -

पूछो न कैसे मैनें रैन बिताई (मेरी सूरत तेरी आँखें)
ओ बसन्ती (जिस देश में गंगा बहती है)

यह भी बताया गया कि नए रूप का गले में लटकाया जाने वाला गिटार शास्त्रीय संगीत के इस वाद्य से कुछ अलग है जिसे स्पैनिश गिटार कहते है।

7:45 पर शनिवार को प्रसारित त्रिवेणी में पर्यावरण की बातें विशेषकर जीव-जन्तुओं के संरक्षण की बात कही गई। मंगलवार को जीवन की भाग-दौड़ से हट कर कभी-कभी प्रकृति का आनन्द लेने की बात कही गई। एक अनुरोध है कि कृपया इन दोनों अंकों को दुबारा प्रसारित न करें क्योंकि इतने छोटे से कार्यक्रम का जैसा का तैसा दुबारा प्रसारण सुनने से कार्यक्रम का आकर्षण कम हो जाता है जैसा कि रविवार और सोमवार को प्रसारित त्रिवेणी अच्छी होते हुए भी पहली बार के प्रसारण की तरह आकर्षक नहीं रही। हाँ इसी विषय को लेकर अलग-अलग तरह से त्रिवेणी के कई अंक बनाए जा सकते है जो आकर्षक रहेगें।

दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने, कार्यक्रम की शुरूवात में ही उस दिन की लोकप्रिय 12 फ़िल्मों के नाम बता दिए जाते है। श्रोताओं को 12 से 1 बजे के दौरान ही एस एम एस करना होता है और इन्हीं फ़िल्मों में से किसी गाने की फ़रमाइश करनी होती है। पहला संदेश आने तक एकाध मिनट का समय तो लगता ही है इसीलिए पहला गीत उदघोषक की पसन्द का बजता रहा, यह बात और है कि पहले गीत के लिए संदेश भी आते रहे।

शुक्रवार को उदघोषक थे राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, सभी नई फ़िल्में थी जैसे परिणीता, दिल का रिश्ता, बरसात, यस बाँस जैसी लोकप्रिय 12 फ़िल्में।

शनिवार को मंजू (द्विवेदी) जी, फ़िल्में रही संबंध, कोरा काग़ज़, अपराध, एक बार मुस्कुरा दो जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय 12 फ़िल्में।

रविवार को कमल (शर्मा) जी, फ़िल्में रही यह रात फिर न आएगी, पत्थर के सनम, माया, दिल तेरा दीवाना जैसी पचास साठ के दशक की लोकप्रिय 12 फ़िल्में।

सोमवार को आए युनूस जी और लाए अस्सी के दशक से अब तक की लोकप्रिय फ़िल्मों में से चुनी हुई 12 फ़िल्में जैसे लव स्टोरी, कुर्बानी, हम आपके है कौन, कभी अलविदा न कहना, राज़, ओम शान्ति ओम।

मंगलवार को आए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, फ़िल्में रही चलते-चलते, ताल, ज़हर, बाज़ीगर, वास्तव, जैसी नई 12 लोकप्रिय फ़िल्में।

बुधवार को आए अशोक (सोनावणे) जी और फ़िल्में रही वारिस, दिल, साजन, तेज़ाब, मि इंडिया, चांदनी जैसी सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय 12 फ़िल्में।

गुरूवार को पधारीं रेणु (बंसल) जी और फ़िल्में किसी समय सीमा में बँधी नहीं थी जैसे पचास के दशक की ये रास्ते है प्यार के, फिर वही दिल लाया हूँ, साठ के दशक की जब प्यार किसी से होता है, सत्तर के दशक की हीरा पन्ना, शंकर हुसैन, कभी-कभी और नई फ़िल्में जब वी मेट, वीर ज़ारा जैसी लोकप्रिय 12 फ़िल्में।

इस तरह हर दिन ऐसी लोकप्रिय फ़िल्में चुनी गई जिसके लगभग सभी गीत लोकप्रिय रहे जिनमें से कुछ ऐसे गीतों की फ़रमाइश आई जिन्हें अक्सर सुनवाया जाता है जैसे -

दीदी तेरा देवर दीवाना (हम आपके है कौन)

और कुछ ऐसी फ़िल्में भी चुनी गई जिनके गीत बहुत लम्बे समय से नहीं बजे जैसे -

रूप तेरा ऐसा दर्पण मे न समाए (एक बार मुस्कुरा दो)

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। युनूस जी जब नाम बताते है तब पार्श्व में संगीत बजता है - नाम… नाम… नाम… नाम… नाम… हर दिन कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 12 फ़िल्मों के नाम बता दिए जाते है। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है।

1 बजे म्यूज़िक मसाला में सलमा आग़ा की आवाज़ में हुस्न एलबम से यह गाना सुन कर -

याद कोई आ रहा है क्या करूँ

निकाह फ़िल्म का गीत याद गया - समाँ भी है जवाँ जवाँ

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में सप्ताह भर मिले-जुले गाने सुनवाए गए जैसे साठ के दशक की फ़िल्म हसीना मान जाएगी, अस्सी के दशक की फ़िल्म अँखियों के झरोखों से फ़िल्म का शीर्षक गीत, नई फ़िल्म बार्डर का गीत पर डोली फ़िल्म के इस गीत को लम्बे अर्से बाद सुनना अच्छा लगा -

आज मैं देखूँ जिधर जिधर
न जाने क्यों उधर उधर
मुझे दो दो चाँद नज़र आए
मेहताब दर मेहताब

3 बजे का समय मुख्यतः सखि-सहेली का होता है। शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। इस दिन करवा चौथ थी और उत्तर प्रदेश के गाँव से एक सखि ने फोन किया और इस अवसर के लिए गीत की फ़रमाइश की। बैंग्लौर के गाँव से भी फोन आए। एम बी ए पढने वाली और एक अच्छी नौकरी की तमन्ना रखने वाली सखि ने भी फोन किया। इस तरह यह कार्यक्रम अलग-अलग स्तर की महिलाओं का एक मंच लगा। अच्छे लगते है ऐसे कार्यक्रम।

सोमवार को रसोई में त्यौहार व्रत का मौसम होने से सिंघाड़े के आटे में मूँगफली के दानों से नमकीन और मखाने की चटनी बनाना बताया गया। मंगलवार को किसी क्षेत्र में करिअर बनाने संबंधी दी जाने वाली जानकारी में जल सेना में तट रक्षक बनने के लिए जानकारी दी गई। बुधवार को बालों की देखभाल के घरेलू उपाय बताए गए जैसे नारियल, नीम, मीठा नीम (करी पत्ता) के मिश्रण को बालों में लगा कर कुछ देर बाद धोना आदि। गुरूवार को मदर टेरेसा के व्यक्तित्व और उनके काम तथा उनकी संस्थानों के बारे में बताया गया।

इसके अलावा सामान्य जानकारी में मिट्टी के बर्तन बनाने, धान की बालियों के गहनें जैसी लोक कलाओं की जानकारी दी गई। वैसे तो हर दिन अच्छे ही गीतों की फ़रमाइश आती है पर बुधवार को फ़रमाइशी गीतों में से बहुत अच्छे गीत चुने गए जिनमें से कुछ तो बहुत दिन बाद सुनने को मिले, इसके लिए धन्यवाद कमलेश (पाठक) जी।

शनिवार रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में हमेशा की तरह लोकप्रिय फ़िल्मों के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए जैसे नया दौर, आई मिलन की बेला

इसके बाद नाट्य तरंग में शनिवार और रविवार को सुना नाटक ढाई आख़र जिसकी निर्देशिका थी लता गुप्ता। कबीर साहब और उनके वर्ग संघर्ष का यह नाटक अच्छा लगा।

रविवार को शाम 4 बजे यूथ एक्सप्रेस में युनूस जी युवा श्रोताओं को खेल-कूद में अपना करिअर बना सकने की सलाह देते रहे।

4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा में प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सोलह श्रृंगार जिसमें नाख़ुनों की देखभाल पर चर्चा हुई। आमंत्रित थे त्वचा रोग विशेषज्ञ डा रेखा सेठ और नाख़ूनों से कलाकारी दिखाने वाले पुनीत सेन। बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। नाख़ूनों की देखभाल और पोषक तत्वों की कमी की नाख़ूनों से पहचान पर विस्तार से बात हुई और संरक्षण के उपाय भी बताए गए। ख़ास तरह के आर्ट पेपर पर नाख़ूनों से लिखने की कलाकारी से हम परिचित है। कालेज के दिनों में एक वरिष्ठ छात्र की इस कलाकारी को हमने बहुत देखा है। अच्छी लगी यह बातचीत भी। यह कार्यक्रम पुराना था जिसका दुबारा प्रसारण किया गया।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में विटामिन पर विस्तार से चर्चा हुई। आमंत्रित थे डा एस जी मूर्ति और आपसे रेणु (बंसल) जी ने बातचीत की। बहुत अच्छी जानकारी मिली कि विटामिन शरीर में बहुत ही कम बनते है और इसे बाहर से यानि भोजन से ही लेना पड़ता है। विभिन्न विटामिनों के बारे में अच्छी जानकारी मिली जिससे हम अपने खान-पान का स्तर तय कर सकेंगें।

बुधवार को आज के मेहमान में वायु सेना में स्टेशन कमांडेंट अनिल तिवारी से बातचीत की कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने। विंग कमाडिंग किस तरह से अलग है, प्रशिक्षण आदि के बारे में और उनके करिअर तथा जीवन के बारे में जानकारी मिली।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को अधिकतर ऐसे श्रोताओं के फोनकाल आए जो या तो पढ रहे है या खेती और किसी लघु उद्योग में लगे है। हालांकि आजकल मोबाइल पर विविध भारती आसानी से सुना जाता है और फोन-इन-कार्यक्रम के लिए बातचीत भी की जा सकती है फिर भी कभी किसी नौकरीपेशा श्रोता का फोनकाल नहीं सुना। वैसे गाने नए हो या पुराने सभी अच्छे होते है।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में पारम्परिक आरती सुनना अच्छा लगा -

ॐ जय जगदीश हरे

स्वर, संगीत संयोजन सभी अच्छा रहा।

7 बजे जयमाला में रोज़ फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए जिसमें नए गाने भी बजे जैसे वेलकम फ़िल्म से और सत्तर के दशक की फ़िल्म जैसे अपराध के गीत भी शामिल रहे पर सबसे अच्छा लगा इससे भी पुरानी फ़िल्म का यह गीत सुनना -

फूल बन जाऊँगा शर्त ये है मगर
अपनी ज़िल्फ़ों में मुझको सजा लीजिए

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेता विश्वजीत ने। अपने बारे में बहुत कम बताया। अन्य कलाकारों के बारे में भी कुछ बातें हुई और गीत सभी अच्छे सुनवाए।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में मैथिली, भोजपुरी गीत बजे। पत्रावली में शनिवार और सोमवार को पढे गए पत्रों में विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। श्रोता सुझाव बहुत कम भेजते है, लगता है विविध भारती जैसी है उन्हें वैसी ही पसन्द है। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी। रविवार को राग-अनुराग में राग बिलावल पर पाकीज़ा का यह गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -

आज हम अपनी दुवाओं का असर देखेगें

इसके अलावा गुरूवार को भी विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम के लिए दोपहर 1 बजे क्षेत्रीय केन्द्र से झरोका में बताया गया - लेखक, निर्माता, अभिनेता, करण राजाराम से युनूस जी की बातचीत। हम सोचते रहे यह कौन सी हस्ती है ? शाम में 7 बजे समाचार से पहले भी क्षेत्रीय केन्द्र से झरोका में यही बताया गया। जयमाला के बाद केन्द्रीय सेवा से कार्यक्रम की शुरूवात के पहले उदघोषणा में स्पष्ट हुआ नाम - करण राजदान। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, कुछ दिन पहले हवामहल के लिए महेन्द्र मोदी जी द्वारा निर्देशित झलकी के लिए बताया गया नरेन्द्र मोदी। बात यहीं समाप्त नहीं होती है, एक बार रेणु बंसल जी के लिए कहा गया रेणुका बंसल। हम समझ सकते है कि महेन्द्र और नरेन्द्र नामों में ग़लती हो सकती है पर रेणु नाम रेणुका कैसे हो गया ? हद तो तब हो गई जब एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम के लिए फ़िल्म लहू के दो रंग के लिए कहा गया लाहौर के दो रंग। इसे क्या कहें - अति विश्वास (ओवर कांफ़िडेंस) या मनमाना रवैया।

8 बजे हवामहल में गंगाप्रसाद माथुर, लोकेन्द्र शर्मा, विनोद रस्तोगी जैसे जाने-माने निर्देशकों की झलकियाँ सुनी - नींद का ग़ुलाम, मशीन का चक्कर, सड़क का मजनूं, कमबख़्त इश्क। इसके अलावा हैदराबाद के लेखक अज़हर अफ़सर का लिखा और प्रस्तुत करता प्रहसन भी सुना - मरने के बाद

रात 9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें दोनों का चुनाव अच्छा रहा - साहित्य और गायकी दोनों अच्छे रहे।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में राजा, पूनम, कभी हाँ कभी ना, तीसरी मंज़िल, काला बाज़ार, झुक गया आसमान जैसी नई पुरानी लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत बजते रहे।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अहमद वसी से बातचीत में संगीतकार नौशाद से के एल सहगल के इस गीत की चर्चा सुनना सुखद रहा -

मेरे सपनों की रानी रूही रूही रूही

कुछ ऐसे गीतों के बनने की बातें बताई जो गीत बहुत ही कम सुने गए जैसे नर्तकी फ़िल्म के कुछ गीत।

10 बजे छाया गीत में अमरकान्त जी इस बार भी देवआनन्दमय रहे पर अशोक जी ने सुनवाए भूले-बिसरे गीत, राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने नए गीत नहीं सुनवाए, शेष सभी का अंदाज़ वही रहा जिसके अंतर्गत युनूस जी लेकर आए पुराने ज़माने के अनमोल नग़में जिसमें सुनहरे वर्क़ फ़िल्म का गीत तो ठीक था पर एक के बाद एक फ़िल्म का गीत देवआनन्द द्वारा अभिनीत और निर्देशित अन्य फ़िल्मों की तरह उतना अच्छा नहीं लगा, वैसे भी कल सुनवाए गए सभी गीत उतने लोकप्रिय तो नहीं थे पर यह पता चला कि कुछ ऐसे सुनने लायक गीत भी है।

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